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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 57 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 57/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अवत्सारः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - ककुम्मतीगायत्री स्वरः - षड्जः

    स नो॒ विश्वा॑ दि॒वो वसू॒तो पृ॑थि॒व्या अधि॑ । पु॒ना॒न इ॑न्द॒वा भ॑र ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । विश्वा॑ । दि॒वः । वसु॑ । उ॒तो इति॑ । पृ॒थि॒व्याः । अधि॑ । पु॒नानः । इ॒न्दो॒ इति॑ । आ । भ॒र॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नो विश्वा दिवो वसूतो पृथिव्या अधि । पुनान इन्दवा भर ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । नः । विश्वा । दिवः । वसु । उतो इति । पृथिव्याः । अधि । पुनानः । इन्दो इति । आ । भर ॥ ९.५७.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 57; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्दो) हे परमात्मन् ! (सः) स त्वम् (नः) अस्मदर्थं (दिवः विश्वा वसु) द्युलोकसम्बन्धिसकलसम्पदः (उतो) तथा (पृथिव्याः अधि) भूमिसम्बन्धिसमस्तसम्पत्तीः (आभर) आहर। अथ च (पुनानः) मां पवित्रं कुरु ॥४॥ इति सप्तपञ्चाशत्तमं सूक्तं चतुर्दशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्दो) हे परमात्मन् ! (सः) वह आप (नः) हमारे लिये (दिवः विश्वा वसु) द्युलोकसम्बन्धी सकल सम्पत्तियें (उतो) तथा (पृथिव्याः अधि) पृथिवीसम्बन्धी सम्पूर्ण सम्पत्तियें (आभर) आहरण कीजिये और (पुनानः) मुझको पवित्र करिये ॥४॥

    भावार्थ

    सम्पूर्ण सम्पत्तियों का स्वामी एकमात्र परमात्मा ही है, इसलिए ऐश्वर्यप्राप्ति के लिए उसी की शरणागत होना आवश्यक है ॥४॥ यह ५७ वाँ सूक्त और १४ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    द्युलोक व पृथिवीलोक का ऐश्वर्य

    पदार्थ

    [१] हे (इन्दो) = शक्ति को देनेवाले सोम ! तू (विश्वा) = सब (दिवः अधि) = मस्तिष्क रूप द्युलोक में स्थित (वसु) = वसुओं को (नः) = हमारे लिये (आभर) = प्राप्त करा । मस्तिष्क रूप द्युलोक के (वसु) = ऐश्वर्य 'ज्ञान-विज्ञान' ही हैं। सुरक्षित सोम इन वसुओं को प्राप्त करानेवाला होता है। सोम से ज्ञानाग्नि दीप्त होती है, बुद्धि सूक्ष्म बनती है। यह सूक्ष्म बुद्धि सब ज्ञान-विज्ञान को प्राप्त करनेवाली होती है [२] (उत उ) = और निश्चय से हे सोम ! (पुनानः) = तू हमें पवित्र करता हुआ (पृथिव्याः अधि) = पृथिवी में, इस शरीर रूप पृथिवी में स्थित वसुओं को भी प्राप्त करा । मस्तिष्क में ज्ञान को तू भरनेवाला हो और शरीर में शक्ति को देनेवाला हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम द्युलोक व पृथिवीलोक के ऐश्वर्यों को प्राप्त कराता है। अवत्सार ही कहता है-

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    विषय

    शत्रु-दमन, सर्वसाक्षी, सब को सन्मार्ग दिखाना आदि अनेक कर्तव्य।

    भावार्थ

    हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! दयालो ! (दिवः उतो पृथिव्याः अधि) अन्तरिक्ष और पृथिवी के (विश्वा वसु) सब ऐश्वर्यो को (नः) हमें (सः) यह तू (पुनानः) पवित्र करता हुआ वा स्वयं अभिषिक्त होकर (आ भर) प्रदान कर वा उन ऐश्वर्यों को हमें देता हुआ (आ भर) पोषण कर। इति चतुर्दशी वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अवत्सार ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:— १, ३ गायत्री २ निचृद गायत्री। ४ ककुम्मती गायत्री।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, lord of wealth, beauty and excellence, ever pure and sanctifying, may, we pray, bring us all the wealth, honour and fame of life on earth and the light and magnificence of heaven.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    संपूर्ण संपत्तीचा स्वामी एकमात्र परमात्माच आहे. त्यासाठी ऐश्वर्याच्या प्राप्तीसाठी त्यालाच शरण जाणे आवश्यक आहे. ॥४॥

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