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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 57/ मन्त्र 3
स म॑र्मृजा॒न आ॒युभि॒रिभो॒ राजे॑व सुव्र॒तः । श्ये॒नो न वंसु॑ षीदति ॥
स्वर सहित पद पाठसः । म॒र्मृजा॒नः । आ॒युऽभिः॑ । इभः॑ । राजा॑ऽइव । सु॒ऽव्र॒तः । श्ये॒नः । न । वंसु॑ । सी॒द॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स मर्मृजान आयुभिरिभो राजेव सुव्रतः । श्येनो न वंसु षीदति ॥
स्वर रहित पद पाठसः । मर्मृजानः । आयुऽभिः । इभः । राजाऽइव । सुऽव्रतः । श्येनः । न । वंसु । सीदति ॥ ९.५७.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 57; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुव्रतः इभः राजा इव) शोभनानुशासनकर्तृनिर्भीकनृपतिरिव (सः) असौ परमात्मा (आयुभिः मर्मृजानः) ऋत्विग्भिः स्तुतः (श्येनः वंसु न) यथा विद्युदादयः सूक्ष्मेषु पदार्थेषु तिष्ठन्ति तथैव (सीदति) स ईश्वरस्तेषामन्तःकरणे अधितिष्ठति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुव्रतः इभः राजा इव) सुन्दर अनुशासनवाले निर्भीक राजा के समान (सः) वह परमात्मा (आयुभिः मर्मृजानः) ऋत्विजों द्वारा स्तुति किया गया (श्येनः वंसु न) जिस प्रकार विद्युदादि शक्तियें सूक्ष्म पदार्थों में रहती हैं, उस प्रकार (सीदति) वह उनके हृदय में अधिष्ठित होता है ॥३॥
भावार्थ
जैसे ब्रह्माण्डगत प्रत्येक पदार्थ में विद्युत् व्याप्त है, इसी प्रकार परमात्मशक्ति भी सर्वत्र व्याप्त है ॥३॥
विषय
निर्भयता - सुक्र्तता-ऐश्वर्य
पदार्थ
[१] (सः) = वह सोम (आयुभिः) = गतिशील पुरुषों से (मर्मृजान:) = शुद्ध किया जाता है। कर्म में लगे रहना ही वासनाओं से आक्रान्त न होने का उपाय है। वासनाओं से आक्रान्त न होने पर ही सोम का रक्षण होता है एवं गतिशील पुरुष सदा कर्मों में प्रवृत्त पुरुष इस सोम का रक्षण कर पाते हैं। [२] यह सोम (इभः) = [ गतभयः] भयों से रहित है। इसके रक्षण के होने पर शरीर में आधि-व्याधि के आक्रमण का भय नहीं रहता । [३] यह (सुव्रतः) = उत्तम व्रतोंवाले (राजा इव) = राजा के समान है। इसके सुरक्षित होने पर हमारे कर्म उत्तम होते हैं तथा यह हमें दीप्त जीवनवाला बनाता है [राज् दीप्तौ] एक राजा अपने ऐश्वर्य से ही चमकता है, पर यदि साथ ही वह उत्तम कर्मोंवाला हो तो उसकी शोभा खूब ही बढ़ जाती है । यह सोमरक्षण हमें 'सुव्रत राजा' के समान बनाता है। [४] (श्येनः न) = एक गतिशील पुरुष की तरह यह सोम (वंसु) = सम्भजनीय ऐश्वर्यों में (सीदति) = स्थित होता है । सब ऐश्वर्यों को प्राप्त करानेवाला यह सोम ही है। गतिशीलता हमें सोमरक्षण के योग्य बनाती है । सुरक्षित सोम हमारे लिये ऐश्वर्य को प्राप्त करानेवाला है।
भावार्थ
भावार्थ- गतिशील बने रहने से, वासनाओं से आक्रान्त न होने के कारण हम सोम का रक्षण कर पाते हैं। सुरक्षित सोम हमें (क) रोगादि के भय से बचाता है, (ख) हमें सुव्रत बनाकर शोभायुक्त करता है, (ग) सब ऐश्वर्यों को प्राप्त कराता है।
विषय
शत्रु-दमन, सर्वसाक्षी, सब को सन्मार्ग दिखाना आदि अनेक कर्तव्य।
भावार्थ
(इभः राजा इव) राजा के समान निर्भय होकर (सु-व्रतः) उत्तम कर्म करने वाला, (आयुभिः) मनुष्यों द्वारा (मर्मृजानः) अभिषिक्त और अलंकृत होता हुआ, (श्येनः न) सूर्यवत् उत्तम आचरणवान् होकर (वंसु सीदति) ऐश्वर्यों के बीच वा अभिषेक योग्य जलों के बीच विराजता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अवत्सार ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:— १, ३ गायत्री २ निचृद गायत्री। ४ ककुम्मती गायत्री।
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, adored and glorified by people, as a self- controlled, powerful and brilliant ruler ever awake and unfailing power, pervades in the human common-wealth and the entire world of sustenance.
मराठी (1)
भावार्थ
जसे ब्रह्मांडातील प्रत्येक पदार्थात विद्युत व्याप्त आहे त्याच प्रकारे परमात्मशक्ती सर्वत्र व्याप्त आहे. ॥३॥
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