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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 58 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 58/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अवत्सारः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ध्व॒स्रयो॑: पुरु॒षन्त्यो॒रा स॒हस्रा॑णि दद्महे । तर॒त्स म॒न्दी धा॑वति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ध्व॒स्रयोः॑ । पु॒रु॒ऽसन्त्योः॑ । आ । स॒हस्रा॑णि । द॒द्म॒हे॒ । तर॑त् । सः । म॒न्दी । धा॒व॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ध्वस्रयो: पुरुषन्त्योरा सहस्राणि दद्महे । तरत्स मन्दी धावति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ध्वस्रयोः । पुरुऽसन्त्योः । आ । सहस्राणि । दद्महे । तरत् । सः । मन्दी । धावति ॥ ९.५८.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 58; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे परमात्मन् (ध्वस्रयोः पुरुषन्त्योः) भवतो व्याप्तिशीला या ज्ञानशक्तिस्तथा कर्मशक्तिश्च (सहस्राणि) अनेकप्रकारिकास्ति, ताः (आदद्महे) प्राप्नुवाम (तरत् स मन्दी धावति) भवान् सर्वान् तारयन् हर्षरूपेण सर्वस्मिन् व्याप्तो विराजते ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! (ध्वस्रयोः पुरुषन्त्योः) आपकी व्याप्तिशील जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति (सहस्राणि) अनेक प्रकार की हैं, उनको (आदद्महे) हम प्राप्त करें (तरत् स मन्दी धावति) आप सबको तारते हुए हर्षरूप से सर्वत्र विराजित हैं ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा की ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति का लाभ करके कर्मयोगी और ज्ञानयोगी अपने कर्तव्य में तत्पर रहते हैं ॥३॥

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    विषय

    'ध्वस्त्र व पुरुषन्ति'

    पदार्थ

    [१] 'ध्वस्र' वह पुरुष है जो कि काम-क्रोध-लोभ का विध्वंस करता है। 'पुरु+ षन्ति' वह है जो कि खूब ही दान देनेवाला है [सन्ति] । हम सोमरक्षण के द्वारा गत मन्त्र के अनुसार ज्ञानरश्मियों को प्राप्त करके देववृत्ति के बनते हैं। ये देववृत्ति के पुरुष 'ध्वस्र व पुरुषन्ति' होते हैं, वासनाओं का विध्वंस करते हैं, दान की वृत्तिवाले होते हैं। इन (ध्वस्त्रयोः पुरुषन्त्योः) = ध्वस्र व पुरुषन्ति के (सहस्त्राणि) = शतशः गुणों को (आदद्महे) = ग्रहण करते हैं। सोमरक्षण से हम 'ध्वस्र व पुरुषन्ति' बन पाते हैं। [२] (सः) = वह 'ध्वस्र व पुरुषन्ति' बननेवाला पुरुष (तरत्) = सब वासनाओं व रोगों को तैरता हुआ (मन्दी) = प्रभु का उपासक बनकर (धावति) = जीवन को शुद्ध बना पाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण हमें 'वासनाओं का विध्वंस करनेवाला व दानवृत्तिवाला' बनाता है ।

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    विषय

    उसके सहस्रों ऐश्वर्य।

    भावार्थ

    (ध्वस्रयोः) दुःखों के नाश करने वाले और (पुरुषन्त्योः) बहुत ऐश्वर्य के देने वाले, आत्मा परमात्मा के हम (सहस्राणि) सहस्रों, अनेक ऐश्वर्य (आ दद्महे) प्राप्त करें। (सः मन्दी तरत् धावति) वह स्तुतिकर्ता आनन्द मग्न होकर सब पापों, दुःखों से तर जाता है, वह शुद्ध पवित्र हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अवत्सार ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३ निचृद् गायत्री। २ विराड् गायत्री। ४ गायत्री॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Let us receive a thousand gifts of the divine soma power that destroys evil and exalts humanity. Saving, delighting and fulfilling, the stream of divine bliss flows on.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याची ज्ञानशक्ती व कर्मशक्ती प्राप्त करून कर्मयोगी व ज्ञानयोगी आपल्या कर्तव्यात तत्पर असतात. ॥३॥

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