ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 78/ मन्त्र 2
इन्द्रा॑य सोम॒ परि॑ षिच्यसे॒ नृभि॑र्नृ॒चक्षा॑ ऊ॒र्मिः क॒विर॑ज्यसे॒ वने॑ । पू॒र्वीर्हि ते॑ स्रु॒तय॒: सन्ति॒ यात॑वे स॒हस्र॒मश्वा॒ हर॑यश्चमू॒षद॑: ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रा॑य । सो॒म॒ । परि॑ । सि॒च्य॒से॒ । नृऽभिः॑ । नृ॒ऽचक्षाः॑ । ऊ॒र्मिः । क॒विः । अ॒ज्य॒से॒ । वने॑ । पू॒र्वीः । हि । ते॒ । स्रु॒तयः॑ । सन्ति॑ । यात॑वे । स॒हस्र॑म् । अश्वाः॑ । हर॑यः । च॒मू॒ऽसदः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्राय सोम परि षिच्यसे नृभिर्नृचक्षा ऊर्मिः कविरज्यसे वने । पूर्वीर्हि ते स्रुतय: सन्ति यातवे सहस्रमश्वा हरयश्चमूषद: ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्राय । सोम । परि । सिच्यसे । नृऽभिः । नृऽचक्षाः । ऊर्मिः । कविः । अज्यसे । वने । पूर्वीः । हि । ते । स्रुतयः । सन्ति । यातवे । सहस्रम् । अश्वाः । हरयः । चमूऽसदः ॥ ९.७८.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 78; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वने) भक्तिमार्गे (कविः) सर्वज्ञः परमेश्वरः (नृभिः) मनुष्यैः (अज्यसे) उपासितो जगदीशः (नृचक्षाः) सर्वान्तर्याम्यस्ति (ऊर्मिः) आनन्दसमुद्ररूपोऽस्ति च। (सोम) हे जगन्नियन्तः ! भवान् (इन्द्राय) कर्मयोगिने (परिषिच्यसे) लक्ष्यरूपेण निर्मितः (ते) तव (स्रुतयः) शक्तयः (हि) यतः (पूर्वीः) प्राचीनाः सन्ति। (यातवे) गमनशीलाय कर्मयोगिने (सहस्रम्) बहुविधासु (अश्वाः) गतिशीलासु (चमूषदः) सेनासु स्थित्वा (हरयः) विनाशं धारयन्त्यः (सन्ति) कर्मयोगिनं प्राप्नुवन्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वने) भक्ति के मार्ग में (कविः) सर्वज्ञ परमात्मा (नृभिः) मनुष्यों के द्वारा (अज्यसे) उपासना किया जाता है। वह (नृचक्षाः) सबका अन्तर्यामी है। (ऊर्मिः) आनन्द का समुद्र है। (सोम) हे परमात्मन् ! आप (इन्द्राय) कर्मयोगी के लिये (परिषिच्यसे) लक्ष्य बनाये गये हो। (ते) तुम्हारी (स्रुतयः) शक्तियें (हि) क्योंकि (पूर्वीः) सनातन हैं। (यातवे) गतिशील कर्मयोगी के लिये (सहस्रम्) अनन्त प्रकार की (अश्वाः) गतिशील (चमूषदः) सेना में स्थिर होकर (हरयः) विनाश को धारण करती हुई (सन्ति) कर्मयोगियों को प्राप्त होती हैं ॥२॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मा की भक्ति में विश्वास करते हैं, परमात्मा उनके बल को अवश्यमेव बढ़ाता है अर्थात् उत्पत्ति स्थिति और संहाररूप परमात्मा की शक्तियें कर्मयोगियों की आज्ञापालन करने के लिये उपस्थित होती हैं ॥२॥
विषय
उत्तम शासक शास्रोपदेशक के कर्त्तव्य। अभिषेक योग्य राजा का वैभव।
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! उत्तम शासक ! शास्त्रोपदेशक ! तू (नृ-चक्षाः) सब मनुष्यों को देखने हारा, (ऊर्मिः) महान् तरंग के समान उन्नत, (कविः) क्रान्तदर्शी होकर ही (इन्द्राय) ऐश्वर्य राष्ट्रपति पद के लिये (परि सिच्यसे) अभिषेक किया जाता है। हे राजन् ! तू (वने) वन में अग्नि के शोलों के समान (अज्यसे) प्रकाशित होता है। (ते यातवे) तेरे सन्मार्ग से जाने के लिये (पूर्वीः) पूर्वो के (स्रुतयः) नाना मार्ग (सन्ति) हैं। और (ते यातवे) तेरे प्रयाण करने के लिये, (हरयः) अति मनोहर (अश्वाः सहस्रं) हज़ारों अश्व और अश्वारोहीगण और (चमू-सदः) सेना के अध्यक्ष पदों पर विराजमान अनेक पुरुष भी हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कविर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ५ निचृज्जगती। २–४ जगती॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
विषय
सोमरक्षण व राक्षसी भावों का विनाश
पदार्थ
[१] हे सोम-वीर्यशक्ते ! तू नृभिः = उन्नतिपथ पर चलनेवाले मनुष्यों से इन्द्राय - प्रभु प्राप्ति के लिये परिषिच्यसे शरीर में समन्तात् सिक्त किया जाता है। शरीर में सिक्त हुआ हुआ तू इस शरीर को प्रभु का अधिष्ठान बनाता है। नृचक्षाः सब मनुष्यों का ध्यान करनेवाला तू ऊर्मि:- उत्साह की तरंगों को उत्पन्न करनेवाला है । कविः - तू क्रान्तदर्शी है, सुरक्षित सोम बुद्धि को तीव्र करता है और इस प्रकार यह मनुष्य को प्रत्येक तत्त्व के अन्तर्दृष्टिवाला बनाता है। तू वने - प्रभु के उपासक में अज्यसे=अलंकृत किया जाता है, उपासक के शरीर में सोम सुरक्षित रहता है। [२] ते= तेरी स्स्रुतयः = शरीर में गतियाँ सहस्त्रम्-हजारों प्रकार से पूर्वी :- पालन व पूरण करनेवाली सन्ति होती हैं। ये गतियाँ हि-निश्चय से यातवे - राक्षसों के, राक्षसी भावों के, विनाश के लिये होती हैं [यहाँ 'मशकार्थो धूमः = मशक निवृत्ति के लिये धूवाँ है' ऐसा प्रयोग है] । राक्षसी भावों के विनाश के होने पर अश्वा: - इन्द्रियाश्व हरयः दुःखों का हरण करनेवाले व चमूषदः - शरीररूप चमस में स्थित होनेवाले होते हैं । अर्थात् उस समय इन्द्रियाँ इधर-उधर भटकती नहीं ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से प्रभु प्राप्ति होती है, यह हमें तीव्र बुद्धि, स्वस्थ व पवित्र जीवनवाला बनाता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, spirit of universal joy, is poured from one form into another for the sake of Indra, the soul. The all-watching, all-knowing creative, all rolling pervasive spiritual cosmic flow is loved and worshipped in the beautiful world of divinity. O lord, eternal and universal are the holy dynamics of your creation for humanity to pursue and follow, infinite your moving forces, advancing, arresting and absorbing in the yajnic world.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक परमात्म्याच्या भक्तीत रमतात, परमात्मा त्यांचे बल अवश्य वाढवितो. अर्थात् उत्पत्ती, स्थिती व संहाररूप परमेश्वराच्या शक्ती कर्मयोग्याच्या आज्ञापालनासाठी उपस्थित असतात. ॥२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal