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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 79/ मन्त्र 4
    ऋषिः - कविः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    दि॒वि ते॒ नाभा॑ पर॒मो य आ॑द॒दे पृ॑थि॒व्यास्ते॑ रुरुहु॒: सान॑वि॒ क्षिप॑: । अद्र॑यस्त्वा बप्सति॒ गोरधि॑ त्व॒च्य१॒॑प्सु त्वा॒ हस्तै॑र्दुदुहुर्मनी॒षिण॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दि॒वि । ते॒ । नाभा॑ । प॒र॒मः । यः । आ॒ऽद॒दे । पृ॒थि॒व्याः । ते॒ । रु॒रु॒हुः॒ । सान॑वि । क्षिपः॑ । अद्र॑यः । त्वा॒ । ब॒प्स॒ति॒ । गोः । अधि॑ । त्व॒चि । अ॒प्ऽसु । त्वा॒ । हस्तैः॑ । दु॒दु॒हुः॒ । म॒नी॒षिणः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दिवि ते नाभा परमो य आददे पृथिव्यास्ते रुरुहु: सानवि क्षिप: । अद्रयस्त्वा बप्सति गोरधि त्वच्य१प्सु त्वा हस्तैर्दुदुहुर्मनीषिण: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दिवि । ते । नाभा । परमः । यः । आऽददे । पृथिव्याः । ते । रुरुहुः । सानवि । क्षिपः । अद्रयः । त्वा । बप्सति । गोः । अधि । त्वचि । अप्ऽसु । त्वा । हस्तैः । दुदुहुः । मनीषिणः ॥ ९.७९.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 79; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (मनीषिणः) मेधाविनो जनाः (त्वा) त्वां (हस्तैः) ज्ञानयोगकर्मयोगादिसाधनैः (दुदुहुः) साक्षात्कुर्वते अथ च तेषां (अद्रयः) चित्तवृत्तयः (गोरधि त्वचि) स्वमनसि (अप्सु) कर्मभ्यः (त्वा) भवन्तं (बप्सति) गृह्णन्ति। हे परमात्मन् ! (ते) तव (दिवि नाभा) लोक-लोकान्तरस्य बन्धनरूपद्युलोके (यः) यः पुरुषः (आददे) त्वां गृह्णाति स (परमः) सर्वोत्कृष्टो भवति । अथ च (ते) तव (पृथिव्याः) पृथ्वीलोकस्य (सानवि) उपरिभागे (क्षिपः) धृतः सन् (रुरुहुः) उत्पद्यते ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (मनीषिणः) मेधावी लोग (त्वा) तुमको (हस्तैः) ज्ञानयोग कर्म्मयोगादि साधनों द्वारा (दुदुहुः) साक्षात्कार करते हैं और उनकी (अद्रयः) चित्तवृत्तियाँ (गोरधि त्वचि) अपने मन से (अप्सु) कर्म्मों के लिये (त्वा) तुमको (बप्सति) ग्रहण करती हैं। हे सोम ! (ते) तुम्हारे (दिवि नाभा) लोक-लोकान्तरों के बन्धनरूप द्युलोक में (यः) जो पुरुष (आददे) तुमको ग्रहण करता है, वह (परमः) सर्वोत्कृष्ट होता है और (ते) तुम्हारे (पृथिव्याः) पृथिवीलोक के (सानवि) उच्चशिखर में (क्षिपः) रक्खा हुआ (रुरुहुः) उत्पन्न होता है ॥४॥

    भावार्थ

    जो लोग चित्तवृत्तिनिरोध द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार करते हैं, वे परमात्मा की विभूति में सर्वोपरि होकर विराजमान होते हैं ॥४॥

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    विषय

    परमेश्वर की महती शक्तियां।

    भावार्थ

    हे सोम ! प्रभो ! (यः) जो (परमः) सब से उत्कृष्ट बल (दिवि नाभा) महान् आकाश के नाभि, केन्द्र में (आददे) सब को थामे है, वह (ते) तेरा ही अंश है। और (ते) तेरे ही (क्षिपः) नाना पदार्थों को इधर उधर फेंकने, चलाने वाली शक्तियां (पृथिव्याः सानवि) पृथिवी के उच्च भागों पर (रुरुहुः) उत्पन्न या प्रकट होती हैं। (गोः त्वचि अधि) पृथिवी तल के ऊपर (अद्रयः) मेघ गण (त्वा) तुझे ही (बप्सति) अपने में लेते हैं। और (मनीषिणः) बुद्धिमान पुरुष (अप्सु) जलों में वा प्राणों के बीच (हस्तैः) नाना प्राप्ति साधनों से (त्वा दुदुहुः) तुझे ही प्राप्त करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कविर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३ पादनिचृज्जगती। २, ४, ५ निचृज्जगती। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    शिखर पर

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो (परम:) = [ परः मीयते येन] प्रभु का ज्ञान प्राप्त करनेवाला व्यक्ति है वह हे सोम ! (ते) = तेरे (नाभा) = बन्धन के करनेवाले (दिवि) = ज्ञान में (आददे) = तेरा ग्रहण करता है, अर्थात् ज्ञान प्राप्ति में तत्पर होकर तुझे अपने अन्दर बाँधनेवाला बनता है। (ते) = वे तुझे अपने अन्दर बाँधनेवाले (क्षिपः) = वासनाओं व रोगों को अपने से दूर फेंकनेवाले लोग (पृथिव्याः सानवि) = इस शरीर रूप पृथिवी के शिखर पर (रुरुहुः) = आरूढ़ होते हैं, अधिक से अधिक उन्नति कर पाते हैं, इस शरीर को पूर्ण स्वस्थ बना पाते हैं । [२] (अद्रयः) = प्रभु के उपासक [अद्रि= one who adores], हे सोम ! (गो:) = इन ज्ञान-वाणियों के (अधि) = आधिक्येन (त्वचि) = सम्पर्क में (त्वा) = तुझे बप्सति खाते हैं, अपने अन्दर ही व्याप्त करते हैं। सोमरक्षण के लिये उपासना व स्वाध्याय ही मुख्य साधन हैं। ये (मनीषिणः) = ज्ञानी पुरुष (हस्तै:) = हाथों से (अप्सु) = कर्मों में लगे रहकर (त्वा) = तुझे (दुदुहुः) = अपने अन्दर प्रपूरित करते हैं । एवं कर्मों में लगे रहना हमें वासनाओं के आक्रमण से बचाता है और हम सोम का रक्षण कर पाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण के लिये आवश्यक है कि [ अद्रयः] उपासनामय हमारा जीवन हो, [गो: त्वचि = in touch ] हम सदा ज्ञान के सम्पर्क में हों [अप्सु] कर्मों में लगे रहें । रक्षित सोम हमें द्युलोक व पृथिवीलोक के शिखर पर पहुँचायेगा, अर्थात् हमारे मस्तिष्क व शरीर को उन्नत करेगा।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The supreme power and bliss of yours, which captivates and holds, abides in the centre of the regions of light. The inspirations for the light arise here on top of the earth. The veteran wise exalt you in the vedi on the floor of the earth, and thinkers and seekers distil the bliss in their actions as they milk the cow with their hands for milk.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक चित्तवृत्तिनिरोधाद्वारे परमेश्वराचा साक्षात्कार करतात ते परमात्म्याच्या विभूतीमध्ये विराजमान होतात. ॥४॥

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