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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 79/ मन्त्र 5
    ऋषिः - कविः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    ए॒वा त॑ इन्दो सु॒भ्वं॑ सु॒पेश॑सं॒ रसं॑ तुञ्जन्ति प्रथ॒मा अ॑भि॒श्रिय॑: । निदं॑निदं पवमान॒ नि ता॑रिष आ॒विस्ते॒ शुष्मो॑ भवतु प्रि॒यो मद॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । ते॒ । इ॒न्दो॒ इति॑ । सु॒ऽभ्व॑म् । सु॒ऽपेश॑सम् । रस॑म् । तु॒ञ्ज॒न्ति॒ । प्र॒थ॒माः । अ॒भि॒ऽश्रियः॑ । निद॑म्ऽनिदम् । प॒व॒मा॒न॒ । नि । ता॒रि॒षः॒ । आ॒विः । ते॒ । शुष्मः॑ । भ॒व॒तु॒ । प्रि॒यः । मदः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा त इन्दो सुभ्वं सुपेशसं रसं तुञ्जन्ति प्रथमा अभिश्रिय: । निदंनिदं पवमान नि तारिष आविस्ते शुष्मो भवतु प्रियो मद: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव । ते । इन्दो इति । सुऽभ्वम् । सुऽपेशसम् । रसम् । तुञ्जन्ति । प्रथमाः । अभिऽश्रियः । निदम्ऽनिदम् । पवमान । नि । तारिषः । आविः । ते । शुष्मः । भवतु । प्रियः । मदः ॥ ९.७९.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 79; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्दो) हे परमैश्वर्य्ययुक्तपरमात्मन् ! (ते एव) तवैव (सुपेशसम्) रूपं (सुभ्वम्) सुन्दरमस्ति (अभिश्रियः) त्वदुपासकाः (प्रथमाः) मुख्यं (रसम्) आनन्दं (तुञ्जन्ति) गृह्णन्ति (पवमान) हे सर्वपवित्रकारक परमात्मन् ! (निदं निदम्) प्रतिनिन्दकं भवान् (नितारिषः) विनाशयतु। पुनः (ते) तव (शुष्मः) बलं (प्रियः) यः सर्वप्रियकर्ता (मदः) आनन्ददातास्ति सः (आविः भवतु) प्रादुर्भवतु ॥५॥ इत्येकोनाशीतितमं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः।

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्दो) हे परमैश्वर्य्ययुक्त परमात्मन् ! (ते एव) तुम्हारा ही (सुपेशसम्) रूप (सुभ्वम्) सुन्दर है। (अभिश्रियः) तुम्हारे उपासक लोग (प्रथमाः) मुख्य (रसम्) आनन्द को (तुञ्जन्ति) ग्रहण करते हैं। (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (निदं निदम्) प्रत्येक निन्दक को आप (नितारिषः) नाश करते हैं और (ते) तुम्हारा (शुष्मः) बल (प्रियः) जो सबका प्रिय करनेवाला है (मदः) और आनन्द देनेवाला है, वह (आविः भवतु) प्रकट हो ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा का आनन्द परमात्मयोगियों के लिये सदैव आह्लादक है और दुराचारी दुष्टों के लिये परमात्मा का बल नाश का हेतु है, इसलिये परमात्मपरायण पुरुषों को चाहिये कि वे सदैव परमात्मा के नियमों के पालन में तत्पर रहें ॥५॥ यह ७९ वाँ सूक्त और ४ वाँ वर्ग समाप्त हुआ।

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    विषय

    उत्तम सेव्य स्वामी प्रभु।

    भावार्थ

    हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! (ते एव) तेरे ही (सुभ्वम्) उत्तम, सुखजनक (सुपेशसं) सुन्दर रूप युक्त (रसं) बल, रस आनन्द को (प्रथमाः) सर्व श्रेष्ठ (अभिश्रियः) उत्तम सेवकजन (तुञ्जन्ति) ग्रहग करते हैं। हे (पवमान) परम पावन ! तू (निदं-निदं) प्रत्येक निन्दाकारी, पुरुष और निन्दनीय कर्म को (नि तारिषः) विनाश कर। वा प्रत्येक (नि-दं-नि-दं) अपने आपको नितरां सर्वथा दे देने वाले भक्त को जगत् से (नि तारिषः) सब प्रकार से मुक्त कर देते हो। (ते प्रियः) तेरा प्यारा, (शुष्मः) बल और (मदः) आनन्द सुख (आविः भवतु) सब को प्रकट हो। इति चतुर्थो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कविर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३ पादनिचृज्जगती। २, ४, ५ निचृज्जगती। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    सोम का 'सुभू सुपेशस् ' रस

    पदार्थ

    [१] (एवा) = गत मन्त्र में वर्णित प्रकार से, हे (इन्दो) = सोम ! (ते) = तेरे (सुभ्वम्) = शरीर, मन व बुद्धि को उत्तम करनेवाले [सु-भू] (सुपेशसम्) = अंग-प्रत्यंग की रचना को सुन्दर बनानेवाले (रसम्) = रस को, सार को (प्रथमा:) = अपनी शक्तियों व ज्ञानों का विस्तार करनेवाले (अभि-श्रियः) = प्रातः - सायं प्रभु का उपासन करनेवाले लोग [ श्रि = भज सेवायाम्] (तुञ्जन्ति) = अपने अन्दर प्रेरित करते हैं । सोमरक्षण का उपाय है— [क] प्रथम बनना, [ख] अभि- श्री बनना। इसका लाभ यह है कि- [क] शरीर, मन और बुद्धि उत्तम होते हैं, [ख] सर्वांग सुन्दर रचनावाला शरीर बनता है। [२] हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! (निदं निदम्) = जो कुछ निन्दनीय है, उसे (नितारिषः) = नष्ट कर। (ते) = तेरा (शुष्मः) = शत्रु-शोषक बल (आविः भवतु) = प्रकट हो, जो (प्रियः) = प्रीति को देनेवाला तथा (मदः) = उल्लास का जनक है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण वही कर पाता है जो अपना लक्ष्य 'प्रथम स्थान में पहुँचना रखे तथा प्रातः सायं प्रभु का उपासन करे।' रक्षित सोम सब निन्दनीय तत्त्वों को विनष्ट करता है और प्रीति श्व उल्लास को प्राप्त कराता है। सोमरक्षण से अपने निवास को उत्तम बनानेवाला 'वसु' अगले सूक्त का ऋषि है, यह अपने में शक्ति को भरने के कारण 'भारद्वाज' है। यह कहता है कि-

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, bright and blissful divine spirit of existence, pure and purifying power, thus do veteran devotees of noble dedicated mind distil the gracious, delicious and inspiring bliss of divine joy. Pray dispel the malice of all malignant minds so that your dear delightful power and bliss shines pure and bright every where in every living being.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराचा आनंद योग्यांसाठी सदैव आल्हादक असतो व दुराचारी दुष्टांसाठी परमेश्वराचे बल नाशाचा हेतू आहे. त्यासाठी परमात्म परायण पुरुषांनी सदैव परमेश्वराच्या नियमांचे पालन करण्यात तत्पर असावे. ॥५॥

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