ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 80/ मन्त्र 4
तं त्वा॑ दे॒वेभ्यो॒ मधु॑मत्तमं॒ नर॑: स॒हस्र॑धारं दुहते॒ दश॒ क्षिप॑: । नृभि॑: सोम॒ प्रच्यु॑तो॒ ग्राव॑भिः सु॒तो विश्वा॑न्दे॒वाँ आ प॑वस्वा सहस्रजित् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । त्वा॒ । दे॒वेभ्यः॑ । मधु॑मत्ऽतमम् । नरः॑ । स॒हस्र॑ऽधारम् । दु॒ह॒ते॒ । दश॑ । क्षिपः॑ । नृऽभिः॑ । सो॒म॒ । प्रऽच्यु॑तः । ग्राव॑ऽभिः । सु॒तः । विश्वा॑न् । दे॒वान् । आ । प॒व॒स्व॒ । स॒ह॒स्र॒ऽजि॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा देवेभ्यो मधुमत्तमं नर: सहस्रधारं दुहते दश क्षिप: । नृभि: सोम प्रच्युतो ग्रावभिः सुतो विश्वान्देवाँ आ पवस्वा सहस्रजित् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । त्वा । देवेभ्यः । मधुमत्ऽतमम् । नरः । सहस्रऽधारम् । दुहते । दश । क्षिपः । नृऽभिः । सोम । प्रऽच्युतः । ग्रावऽभिः । सुतः । विश्वान् । देवान् । आ । पवस्व । सहस्रऽजित् ॥ ९.८०.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 80; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (मधुमत्तमम्) अत्यन्तानन्ददं तथा (सहस्रधारम्) विविधानन्दवर्षकं (तं त्वाम्) पूर्वोक्तं भवन्तं (नरः) ऋत्विगादयः (दुहते) दुहन्ति। अथ च (दश क्षिपः) कर्मेन्द्रियज्ञानेन्द्रियाणां दशानां (ग्रावभिः) शक्तिभिः (सुतः) सिद्धः (सोम) हे परमात्मन् ! भवान् (नृभिः) मनुष्यैः साक्षात्क्रियते। (सहस्रजित्) हे अनेकानेकासुरीशक्तिनाशक- परमात्मन् ! त्वम् (विश्वान् देवान्) अखिलान् विदुषः (आ पवस्व) पुनीहि ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (मधुमत्तमम्) अत्यन्त आनन्द के प्रदाता (सहस्रधारम्) विविध प्रकार के आनन्द को बरसानेवाले (तं त्वाम्) पूर्वोक्त तुमको (नरः) ऋत्विगादि लोग (दुहते) दुहते हैं। (दश क्षिपः) पाँच कर्मेंन्द्रिय और पाँच ज्ञानेन्द्रिय की (ग्रावभिः) शक्तियों से (सुतः) सिद्ध किये हुए (सोम) हे परमात्मन् ! आप (नृभिः) मनुष्यों से साक्षात्कार किये जाते हैं। (सहस्रजित्) अनन्त प्रकार की आसुरीय शक्तियों को तिरस्कृत करनेवाले आप (विश्वान् देवान्) सम्पूर्ण विद्वानों को (आ पवस्व) पवित्र करें ॥४॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मा का साक्षात्कार करते हैं, परमात्मा उन्हें अवश्य पवित्र करते हैं ॥४॥
विषय
सर्व-कामदुधा प्रभु।
भावार्थ
(त्वां) तुझ (मधुमत्-तमं) अति अधिक आनन्द से सम्पन्न (सहस्र-धारं) सहस्रों वेदवाणियों के धारण करने वाले अनन्त शक्तिमान् प्रभु को (नरः) समस्त मनुष्य नायक (दश क्षिपः) दशों हस्तांगुलिवत् (सहस्र-धारं) सहस्रों धारा रूप में (दुहते) दोहन करते हैं, उससे ज्ञान रस को प्राप्त करते हैं। हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! तू (ग्रावभिः) धर्मोपदेष्टा पुरुषों और (नृभिः) नायक पुरुषों से (प्र-च्युतः) प्रकृष्ट पद को प्राप्त और (ग्रावभिः) विद्योपदेष्टा जनों से (प्र-च्युतः) उत्तम मार्ग को लेजाया जाता है। इधर वह (सुतः) अभिषिक्त होकर (सहस्र-जित्) हजारों को पराजित करने हारा (विश्वान्) (देवान् आपवस्व) समस्त विद्वानों को प्राप्त हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसुर्भारद्वाज ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४ जगती। २, ५ विराड़ जगती। ३ निचृज्जगती॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
विषय
'सहस्त्रजित् ' सोम
पदार्थ
[१] हे सोम ! (देवेभ्यः) = देव वृत्तिवाले पुरुषों के लिये (मधुमत्तमम्) = अतिपूण्य के माधुर्य को प्राप्त करनेवाले (ते) = उस (त्वा) = तुझको (दक्षक्षिपः) = दसों इन्द्रियों के विषयों को परे फेंकनेवाले (नर:) = पुरुष( दुहते) = अपने में प्रपूरित करते हैं। उस तुझको, जो तू (सहस्त्रधारम्) = हजारों प्रकार से धारण करनेवाला है। [२] हे सोम ! (नभिः) = उन्नतिपथ पर चलनेवाले लोगों से (प्रच्युतः) = भूमि में प्रकर्षेण असेचित किया हुआ तू (ग्रावभिः) = स्तोताओं से (सुतः) = सम्पादित हुआ। (विश्वान् देवान्) = सब दिव्य गुणों को (आपवस्व) = प्राप्त करा । तू ही तो (सहस्त्रजित्) = हमारे लिये हजारों वसुओं का विजय करनेवाला है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण के लिये आवश्यक है कि हम [क] देववृत्ति के बनें, [ख] इन्द्रियों को विषयों में न फँसने दें, [ग] उन्नतिपथ पर चलते हुए प्रभु का साधन करनेवाले बनें। सुरक्षित हुआ हुआ यह सोम 'मधुमत्तम' है और 'सहस्राधार' है जीवन को मधुर बनाता है, हजारों प्रकार से हमारा धारण करता है, हजारों वसुओं का हमारे लिये विजय करता है, 'सहस्रजित् ' है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Men of vision and wisdom blest with ten senses of intense perception, thought and imagination experience the most beatific presence in infinite showers of bliss for the devotees from the divinities. O Soma, lord of bliss, winner, master and controller of infinite gifts and powers, vibrant presence, distilled by the veteran wise by experience with meditative mind and senses, pray come and bless the holy celebrants with fulfilment.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक परमात्म्याचा साक्षात्कार करतात, परमात्मा त्यांना अवश्य पवित्र करतो. ॥४॥
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