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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 81 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 81/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसुर्भारद्वाजः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    आ न॑: सोम॒ पव॑मानः किरा॒ वस्विन्दो॒ भव॑ म॒घवा॒ राध॑सो म॒हः । शिक्षा॑ वयोधो॒ वस॑वे॒ सु चे॒तुना॒ मा नो॒ गय॑मा॒रे अ॒स्मत्परा॑ सिचः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नः॒ । सो॒म॒ । पव॑मानः । कि॒र॒ । वसु॑ । इन्दो॒ इति॑ । भव॑ । म॒घऽवा॑ । राध॑सः । म॒हः । शिक्ष॑ । व॒यः॒ऽधः॒ । वस॑वे । सु । चे॒तुना॑ । मा । नः॒ । गय॑म् । आ॒रे । अ॒स्मत् । परा॑ । सि॒चः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ न: सोम पवमानः किरा वस्विन्दो भव मघवा राधसो महः । शिक्षा वयोधो वसवे सु चेतुना मा नो गयमारे अस्मत्परा सिचः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नः । सोम । पवमानः । किर । वसु । इन्दो इति । भव । मघऽवा । राधसः । महः । शिक्ष । वयःऽधः । वसवे । सु । चेतुना । मा । नः । गयम् । आरे । अस्मत् । परा । सिचः ॥ ९.८१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 81; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे परमात्मन् ! भवान् (पवमानः) पवितास्ति। (इन्दो) हे सर्वप्रकाशक ! त्वम् (नः) अस्मान् (वसु) सर्वविधं धनं (आकिर) देहि। (मघवा) सर्वधनस्वाम्यसि। अतो मह्यं (महो राधसः) उत्कृष्टधनस्य (भव) प्रदाता भव। हे परमेश्वर ! त्वं मह्यं (सुचेतुना) स्वीयपवित्रज्ञानेन (शिक्ष) शिक्षय। अथ च (वयोधः) त्वं सर्वैश्वर्यधारकोऽसि (वसवे) ऐश्वर्ययोग्याय ममैश्वर्यं देहि। अथ च (गयम्) धनं (अस्मादारे) मत्सकाशात् (मा परा सिचः) मान्यत्र कुरु ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! (पवमानः) आप सबको पवित्र करनेवाले हैं। (इन्दो) हे सर्वप्रकाशक ! आप (नः) हमको (वसु) सब प्रकार के धन को (आकिर) दें। (मघवा) आप सब ऐश्वर्य के स्वामी हैं, इसलिये हमारे (महो, राधसः) अत्यन्त धन के (भव) प्रदाता बने रहें। परमात्मन् ! आप हमको अपने (सुचेतुना) पवित्र ज्ञान से (शिक्षा) शिक्षा दें और (वयोधः) आप सब प्रकार के ऐश्वर्य्यों को धारण करनेवाले हैं। (वसवे) ऐश्वर्य के पात्र मेरे लिये आप ऐश्वर्य प्रदान करें और (गयं) धन को (अस्मदारे) हमसे (मा परा सिचः) मत दूर करें ॥३॥

    भावार्थ

    इश्वरोपासकों को चाहिये कि ईश्वर की प्राप्ति के हेतु ईश्वर के परम ऐश्वर्य्य का कदापि त्याग न करें और ईश्वर से भी सदा यही प्रार्थना करें कि हे परमेश्वर ! आप हमको ऐश्वर्य्य से कदापि वियुक्त न करें ॥३॥

     

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    विषय

    प्रभु से ज्ञान बल की याचना।

    भावार्थ

    हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! हे (इन्दो) दीप्तिमन् ! तेजस्विन् ! तू (पवमानः) हमें पवित्र करता और व्यापता हुआ, (नः वसु किर) हमें उत्तम ऐश्वर्य उदारता से मेघवत् प्रदान कर। तू (मघवा) उत्तम ऐश्वर्यवान् होकर (महः राधसः) बड़े भारी धनैश्वर्य का स्वामी (भव) हो। और (चेतुना) ज्ञान द्वारा (वयः धाः) दीर्घ जीवन, तेज, बल और ज्ञान का धारण करने वाला होकर (वसवे) वसु, इस जीव को (शिक्ष) बल और ज्ञान प्रदान कर। (नः गयम्) हमारे प्राण वा सुख, कल्याण को (अस्मत् मा परा सिचः) हम से दूर कभी न कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसुर्भारद्वाज ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः–१—३ निचृज्जगती। ४ जगती। ५ निचृत्त्रिष्टुप्॥

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    विषय

    'वसु प्रदाता' सोम

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ति ! तू (नः) = हमारे लिये (पवमाना:) = पवित्रता को करनेवाली है। (वसु) = निवास के लिये आवश्यक सब धनों को अधिकार हमारे लिये सर्वतः प्राप्त करानेवाली हो, शरीर के अंगप्रत्यंग में उस-उस वसु को प्राप्त करा । हे (इन्दो) = शक्तिशालिन् सोम ! तू (महः राधसः) = महनीय धन की शिक्षा दे । (मघवा) = तू सर्वैश्वर्यवाला है। [२] हे (वयोधः) = उत्कृष्ट जीवन को धारित करनेवाले सोम तू (सुचेतुना) = उत्तम ज्ञान के द्वारा (वसवे) = हमारे वसुओं के लिये हो, हमें उत्कृष्ट निवास को प्राप्त कराने के लिये हो । (नः गयम्) = हमारी प्राणशक्ति को (स्मत्) = हमारे से (मा) = मत (परासिचः) = दूर करनेवाला हो हमारी प्राण शक्ति का रक्षण कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम सब वसुओं को प्राप्त कराके हमारे निवास को उत्तम बनाता है। यह हमारी प्राणशक्ति का रक्षक है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, pure and purifying lord of peace and glory, bring us peace and prosperity of the world, and be the harbinger of great honour and excellence and high potential for success and progress. Wielder, controller and giver of health and age and wealth of the world, give us insight into ways of noble wealth and excellence, and never deprive us of our hearth and home and our peace and prosperity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ईश्वरोपासकांनी ईश्वरप्राप्तीसाठी ईश्वराच्या परम ऐश्वर्याचा कधीही त्याग करू नये व ईश्वराला सदैव ही प्रार्थना करावी की हे परमेश्वरा! तू आम्हाला ऐश्वर्यापासून कधीही वंचित करू नकोस. ॥३॥

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