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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 88 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 88/ मन्त्र 2
    ऋषिः - उशनाः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स ईं॒ रथो॒ न भु॑रि॒षाळ॑योजि म॒हः पु॒रूणि॑ सा॒तये॒ वसू॑नि । आदीं॒ विश्वा॑ नहु॒ष्या॑णि जा॒ता स्व॑र्षाता॒ वन॑ ऊ॒र्ध्वा न॑वन्त ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । ई॒म् इति॑ । रथः॑ । न । भु॒रि॒षाट् । अ॒यो॒जि॒ । म॒हः । पु॒रूणि॑ । सा॒तये॑ । वसू॑नि । आत् । ई॒म् इति॑ । विश्वा॑ । न॒हु॒ष्या॑णि । जा॒ता । स्वः॑ऽसाता । वने॑ । ऊ॒र्ध्वा । न॒व॒न्त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स ईं रथो न भुरिषाळयोजि महः पुरूणि सातये वसूनि । आदीं विश्वा नहुष्याणि जाता स्वर्षाता वन ऊर्ध्वा नवन्त ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । ईम् इति । रथः । न । भुरिषाट् । अयोजि । महः । पुरूणि । सातये । वसूनि । आत् । ईम् इति । विश्वा । नहुष्याणि । जाता । स्वःऽसाता । वने । ऊर्ध्वा । नवन्त ॥ ९.८८.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 88; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सः, ईं) सोऽयं सोमः (रथः, न) गतिशीलविद्युदादिपदार्था इव (भुरिषाट्) सर्वगतिकारकोऽस्ति अपि च सर्वपदार्थानुत्पत्तिसमये (अयोजि) सम्मिश्रयति। (पुरूणि, वसूनि) बहूनि धनानि (सातये) सुखं दातुं (आत्, ईं) निश्चयेन यः (नहुष्याणि) मनुष्ययोग्योऽस्ति तस्मै ददाति। (वने, स्वर्षाता) सङ्ग्रामे (विश्वा) बहवः (जाताः) येऽरय उत्पन्नाः (ऊर्ध्वा, नवन्त) ते ऊर्ध्वपदात् नीचैर्भवन्तु ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (स इं) यह सोम (रथो न) गतिशील विद्युदादि पदार्थों के समान (भुरिषाट्) सबको गति करानेवाला है और सब पदार्थों को उत्पत्ति समय में (अयोजि) मिलाता है। (पुरूणि वसूनि) बहुत से धनों को (सातये) सुख देने के लिये (आदीं) निश्चय जो (नहुष्याणि) मनुष्यत्व के योग्य हैं, उनको देता है (वने स्वर्षाता) संग्राम में (विश्वा) जो बहुत से (जाताः) शत्रु उत्पन्न हो गये हैं, वे (ऊर्ध्वा नवन्त) नीचे हों ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा हमको अनन्त प्रकार के ऐश्वर्य्य प्रदान करे और हमारे अन्यायकारी प्रतिपक्षियों को दूर करे ॥२॥

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    विषय

    रथ के अश्वों के समान शिष्यों को इन्द्रिय दमन का उपदेश। पक्षान्तर में देह में आत्मा का दिग-दर्शन।

    भावार्थ

    जिस प्रकार (पुरूणि वसूनि सातये) बहुत से ऐश्वर्यों को युद्ध वा व्यापार द्वारा प्राप्त करने के लिये (भुरिषाट् रथः अयोजि) बहुत भार सहन करने वाला रथ जोड़ा जाता है उसी प्रकार (पुरूणि वसूनि सातये) बहुत से ऐश्वर्यों और देह में बसे नाना इन्द्रिय गणों को दमन करने के लिये (भुरिषाट्) बहुत शीत, वात आतपादि सहन करने वाला (सः महः) वह गुणों में महान् ब्रह्मचारी (अयोजि) नियुक्त किया जाता है। (आत्) अनन्तर (ईम्) इसको सब ओर से (विश्वा नहुष्याणि जाता) सब मनुष्योपयोगी नाना पदार्थ (वने स्वः-साता) वन में ज्ञान प्रकाश प्राप्त करने के उपरान्त (ऊर्ध्वा) स्वयं उन्नत होकर (नवन्त) प्राप्त होते हैं। (२) इसी प्रकार देह में आत्मा भी नियुक्त है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उशना ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः – १ सतः पंक्ति:। २, ४, ८ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। ५ त्रिष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    वसुओं की प्राप्ति के लिये

    पदार्थ

    (सः) = वह (ईम्) = निश्चय से (भूरिषाट्) = बहुत अधिक भार को सहनेवाले (रथः न) = रथ के समान (अयोजि) = शरीर में युक्त किया जाता है। यह (मह:) = महान् सोम (पुरूणि) = पालक व पूरक (वसूनि) = धनों को सातये देने के लिये होता है। शरीर के अन्नमय आदि सब कोशों को यही भरनेवाला होता है। (आत् ईम्) = इस सोम के शरीररथ में संयुक्त होने पर ही (विश्वा) = सब (नहुष्याणि) = मानवहित की बातें (जाता) = प्रादुर्भूत होती हैं। ये सोम (स्वर्षाता) = प्रकाश की प्राप्ति के निमित्त (वने) = उपासक में (ऊर्ध्वा नवन्त) = उत्कृष्ट गतिवाले होते हैं। [वन् संभक्तौ] उपासना के द्वारा सोमकणों की ऊर्ध्वगति होती है और ऊर्ध्वगतिवाले होकर ये सोम ज्ञानाग्नि का ईंधन बनते हैं और प्रकाश को प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम वसुओं [शरीरहित धनों] की प्राप्ति के लिये होते हैं और प्रकाश की प्राप्ति का कारण बनते हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The great exalted soma spirit of life’s vibrancy, like a great chariot of abundant comfort, capacity and possibility is enjoined for achieving many kinds of wealth, honours and excellences, and then all things born, created and achieved, all high ups, giving showers of joy in the exciting field of life honour, adore and celebrate the soma spirit of life divine.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराने आम्हाला अनंत प्रकारचे ऐश्वर्य प्रदान करावे व आमच्या अन्यायकारी प्रतिपक्षांना दूर करावे. ॥२॥

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