ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 88/ मन्त्र 3
वा॒युर्न यो नि॒युत्वाँ॑ इ॒ष्टया॑मा॒ नास॑त्येव॒ हव॒ आ शम्भ॑विष्ठः । वि॒श्ववा॑रो द्रविणो॒दा इ॑व॒ त्मन्पू॒षेव॑ धी॒जव॑नोऽसि सोम ॥
स्वर सहित पद पाठवा॒युः । न । यः । नि॒युत्वा॑न् । इ॒ष्टऽया॑मा । नास॑त्याऽइव । हवे॑ । आ । शम्ऽभ॑विष्ठः । वि॒श्वऽवा॑रः । द्र॒वि॒णो॒दाःऽइ॑व । त्मन् । पू॒षाऽइ॑व । धी॒ऽजव॑नः । अ॒सि॒ । सो॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वायुर्न यो नियुत्वाँ इष्टयामा नासत्येव हव आ शम्भविष्ठः । विश्ववारो द्रविणोदा इव त्मन्पूषेव धीजवनोऽसि सोम ॥
स्वर रहित पद पाठवायुः । न । यः । नियुत्वान् । इष्टऽयामा । नासत्याऽइव । हवे । आ । शम्ऽभविष्ठः । विश्वऽवारः । द्रविणोदाःऽइव । त्मन् । पूषाऽइव । धीऽजवनः । असि । सोम ॥ ९.८८.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 88; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यः) यः सोमः (वायुः, न) पवन इव (नियुत्वान्) वेगवान्, (इष्टयामा) स्वेच्छया गमनशीलः, (नासत्येव) विद्युदिव (शम्भविष्ठः) अतिशयसुखदायकः, (विश्ववारः) निखिल-वरणीयः, (पूषेव) पूषेव पोषकः (सवितेव, धीजवनः, असि) सूर्य्यसमानो मनोवेगवाँश्चासि। हे उक्तगुणसम्पन्न सोम ! त्वं मा पाहि ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यः) जो सोम (वायुर्न) वायु के समान (नियुत्वान्) वेगवाला है, (इष्टयामा) स्वेच्छाचारी गमनवाला है और (नासत्येव) विद्युत् के समान (शम्भविष्ठः) अत्यन्त सुख के देनेवाला है। (विश्ववारः) सबके वरण करने योग्य है। (पूषेव) पूषा के समान पोषक है। (सवितेव, धीजवनः असि) सूर्य्य के समान मनोरूप वेगवाला है। उक्त गुणसम्पन्न हे सोम ! आप हमारी रक्षा करें ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में पूर्वोक्त गुणसम्पन्न परमात्मा से यह प्रार्थना है कि हे परमात्मन् ! आप हमारे अन्तःकरण को शुद्ध करें ॥३॥
विषय
विद्याव्रत-स्नातक का विद्या प्राप्ति के अनन्तर गृह में आवर्त्तन अर्थात् लौटना और उसका गृहाश्रम में प्रवेश।
भावार्थ
हे (सोम) विद्या-व्रत में स्नान करने हारे नव विद्वन् ! (यः) जो तू (वायुः न नियुत्वान्) वायु के तुल्य नाना शक्तियों, दस सहस्रों वाणियों का स्वामी होकर अश्वपति, रथवान् के सदृश (इष्ट-यामा) अपने इष्ट माता पिता आदि बन्धुओं की ओर आने वाला होता है वह तू (हवे) दान और आदान के कार्य में तथा यज्ञ युद्धादि में (नासत्या इव) प्रमुख राजा और सचिव एवं गृहस्थ नर नारी के समान ही (शम्-भविष्ठः असि) अत्यन्त शान्ति, सुख का कारण हो। वह तू (विश्व-वारः) सब दुःखों को वारण करने वाला, एवं (विश्व-वारः) सर्वाङ्ग शरीर में आवृत, कवच वा शाल दुशाले आदि से पूजित, (द्रविणोदाः) धन, ज्ञान के देने वाले स्वामी के तुल्य (त्मन्) और अपने आत्म-सामर्थ्य में (पूषा इव धी-जवनः) परिपोषक गृहपति के समान कर्म में कुशल (आ असि) हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
उशना ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः – १ सतः पंक्ति:। २, ४, ८ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। ५ त्रिष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
विषय
इष्टयामा
पदार्थ
(यः) = जो सोम (वायुः न) = निरन्तर चलनेवाली वायु के समान (नियुत्वान्) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाला है और (इष्टयामा) = लक्ष्य तक पहुँचानेवाला है, वह सोम (नासत्या इव) = प्राणापान की तरह (हवे) = पुकारने पर (आ शम्भविष्ठः) = शरीर में समन्तात् शान्ति को उत्पन्न करनेवाला है। शरीर में सुरक्षित सोम रोगादि को विनष्ट करके शान्ति को उत्पन्न करनेवाला है । (द्रविणोदाः इव) = धनों के देनेवाले की तरह (त्मन्) = अपने अन्दर (विश्ववार:) = सब वरणीय वस्तुओं को प्राप्त करानेवाला है । सोम सुरक्षित होकर शरीर में सब कोशों को वरणीय धनों से परिपूर्ण करता है । हे सोम ! तू (पूषा इव) = सबके पोषक इस सूर्य की तरह (धीजवनः असि) = कर्मों को प्रेरित करनेवाला है [धी = कर्म] जैसे सूर्य सब को कर्मों में प्रवृत्त होने की प्रेरणा देता है, उसी प्रकार यह सोम हमें स्फूर्तिमय बनाता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम इष्ट लक्ष्य स्थान पर हमें पहुँचाता है, रोगादि को शान्त करता है, सब वरणीय वस्तुओं को प्राप्त कराता है और स्फूर्ति को देकर कर्मों में प्रेरित करता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, vibrant spirit of life in ceaseless flow like energy reaching the cherished goal, most blissful like the Ashvins, circuitous currents of nature’s energy in the exciting field of life, you are the treasure-hold of world’s wealth of universal value, infinite giver of everything like the parental beneficence and nourishment of divinity, and you move forward at the speed of thought.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात पूर्वोक्त गुणसंपन्न परमात्म्याला ही प्रार्थना आहे की हे परमात्मा! तू आमच्या अंत:करणाला शुद्ध कर. ॥३॥
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