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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 98 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 98/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अम्बरीष ऋजिष्वा च देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    द्विर्यं पञ्च॒ स्वय॑शसं॒ स्वसा॑रो॒ अद्रि॑संहतम् । प्रि॒यमिन्द्र॑स्य॒ काम्यं॑ प्रस्ना॒पय॑न्त्यू॒र्मिण॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्विः । यम् । पञ्च॑ । स्वऽय॑शसम् । स्वसा॑रः । अद्रि॑ऽसंहतम् । प्रि॒यम् । इन्द्र॑स्य । काम्य॑म् । प्र॒ऽस्ना॒पय॑न्ति । ऊ॒र्मिण॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्विर्यं पञ्च स्वयशसं स्वसारो अद्रिसंहतम् । प्रियमिन्द्रस्य काम्यं प्रस्नापयन्त्यूर्मिणम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्विः । यम् । पञ्च । स्वऽयशसम् । स्वसारः । अद्रिऽसंहतम् । प्रियम् । इन्द्रस्य । काम्यम् । प्रऽस्नापयन्ति । ऊर्मिणम् ॥ ९.९८.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 98; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 6
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यं, ऊर्मिणं) यं ज्ञानस्वरूपं परमात्मानं (द्विः, पञ्च) दश (स्वसारः) इन्द्रियवृत्तयः अथवा दश प्राणाः (प्रस्नापयन्ति) साक्षात्कुर्वन्ति (स्वयशसं) यस्य च स्वाभाविको यशः (अद्रिसंहतं) यश्च ज्ञानरूपचित्तवृत्तिविषयः (इन्द्रस्य, प्रियं) कर्मयोगिनः प्रियश्च यः (काम्यं) कमनीयोऽस्ति च ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यम्, ऊर्मिणम्) जो ज्ञानस्वरूप है, तिस परमात्मा को (द्विः, पञ्च) दश (स्वसारः) इन्द्रियवृत्तियें अथवा दश प्राण (प्रस्नापयन्ति) साक्षात्कार करते हैं, (स्वयशसम्) जिसका स्वाभाविक यश है, (अद्रिसंहतम्) जो ज्ञानरूपी चित्तवृत्ति का विषय है (इन्द्रस्य, प्रियम्) और जो कर्मयोगी का प्रिय है (काम्यम्) कमनीय है ॥६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में प्राणायामादि विद्या द्वारा अथवा यों कहो कि चित्तवृत्तियों द्वारा परमात्मा के साक्षात्कार का वर्णन किया है ॥६॥

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    विषय

    पांचों प्रजाओं से उसका अभिषेक।

    भावार्थ

    (यम्) जिस (स्वयशसम्) अपने ही स्वतः बलवान्, (अद्रि-संहतम्) पर्वत के समान दृढ़ शरीर वाले, (प्रियम्) प्रिय, (इन्द्रस्य काम्यम्) ऐश्वर्य पद की कामना करने वाले, (ऊर्मिणम्) बलवान्, उत्तम भावों वाले उदात्त पुरुष को (पञ्च स्वसारः) पाचों प्रजाएं, भगिनियों के तुल्य पांचों प्रजाएं (द्विः) दो बार विद्या और व्रत में (प्रस्नापयन्ति) स्नान करातीं, अभिषेक करती हैं। (त्यं) उस (हर्यतं) कान्तिमान् (बभ्रुं) भरण पोषण में समर्थ, तेजस्वी (हरिम्) पुरुष को (वारेण परि पुनन्ति) वरण करके सभी पवित्र करते हैं। (यः) जो (विश्वान् देवान् इत्) समस्त कामनावान् पुरुषों को (मदेन सह परि गच्छति) हर्ष सहित प्राप्त होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अम्बरीष ऋजिष्वा च ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, ४, ७, १० अनुष्टुप्। ३, ४, ९ निचृदनुष्टुप्॥ ६, १२ विराडनुष्टुप्। ८ आर्ची स्वराडनुष्टुप्। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    द्विः पञ्च स्व-सार: [दस बहिनें]

    पदार्थ

    यह सोम वह है (यम्) = जिसको (द्विः पञ्च) = दस [दो बार पाँच], पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ व पाँच कर्मेन्द्रियाँ, (स्व-सारः) = आत्मतत्त्व की ओर चलनेवाली होकर (प्रस्नापयनि) = शुद्ध कर डालती हैं । इन्द्रियाँ विषयों में न जाकर जब अन्तर्मुखी वृत्तिवाली होती हैं, तो सोम शुद्ध बना रहता है, इसे वासनाओं का उबाल मलिन नहीं करता। उस सोम को ये शुद्ध करती हैं, जो (स्वयशसम्) = मनुष्य को अपने कर्मों से यशस्वी बनाता है। (अद्रि-संहतम्) = उपासना के द्वारा [ adore] शरीर में सम्यक् गति वाला होता है [ हन् गतौ] (प्रियम्) = प्रीति का जनक है । (इन्द्रस्य काम्ये) = जितेन्द्रिय पुरुष से कामना करने योग्य है और (ऊर्मिणम्) = प्रकाश वाला है [ऊर्मि = Light] ज्ञानाग्नि को दीप्त करके हमें ज्ञान के प्रकाश को देनेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- आत्मतत्त्व की ओर चलती हुई इन्द्रियाँ सोम को शुद्ध बनाये रखती हैं। यह शुद्ध सोम हमें यशस्वी व प्रकाशमय जीवन वाला बनाता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, dearest love of the soul, innately glorious, the glory intensified by spiritual light, vibrant spirit rolling in the consciousness whom ten psychic powers of mind and sense perceive, conceive and exalt, that spirit we cherish and adore.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात प्राणायाम इत्यादी विद्यांद्वारे किंवा चित्तवृत्तीद्वारे परमेश्वराच्या साक्षात्काराचे वर्णन केलेले आहे. ॥६॥

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