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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - विद्युत् छन्दः - त्रिष्टुप् पराबृहतीगर्भा पङ्क्तिः सूक्तम् - विद्युत सूक्त
    104

    यां त्वा॑ दे॒वा असृ॑जन्त॒ विश्व॒ इषुं॑ कृण्वा॒ना अस॑नाय धृ॒ष्णुम्। सा नो॑ मृड वि॒दथे॑ गृणा॒ना तस्यै॑ ते॒ नमो॑ अस्तु देवि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । त्वा॒ । दे॒वा: । असृ॑जन्त । विश्वे॑ । इषु॑म् । कृ॒ण्वा॒ना: । अस॑नाय । धृ॒ष्णुम् ।सा । न॒: । मृ॒ड॒ । वि॒दधे॑ । गृ॒णा॒ना । तस्यै॑ । ते॒ । नम॑: । अ॒स्तु॒ । दे॒वि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां त्वा देवा असृजन्त विश्व इषुं कृण्वाना असनाय धृष्णुम्। सा नो मृड विदथे गृणाना तस्यै ते नमो अस्तु देवि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । त्वा । देवा: । असृजन्त । विश्वे । इषुम् । कृण्वाना: । असनाय । धृष्णुम् ।सा । न: । मृड । विदधे । गृणाना । तस्यै । ते । नम: । अस्तु । देवि ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 13; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आत्मरक्षा के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (विश्वे) सब (देवाः) विद्वानों ने (याम् त्वा) जिस तुझ परमेश्वर को (असनाय) नाश के लिये (धृष्णुम्) बहुत दृढ़ (इषुम्) शक्ति अर्थात् बरछी (कृण्वानाः) बनाकर (असृजन्त) माना है। (सा) सो तू (विदथे) यज्ञ में (गृणाना) उपदेश करती हुयी (नः) हमको (मृड) सुख दे, (देवि) हे देवी [बरछी] (तस्यै ते) उस तेरे लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥४॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग परमेश्वर के क्रोध को सब संसार के दोषों के नाश के लिये बरछीरूप समझ कर सदा सुधार और उपकार करते हैं, तब संसार में प्रतिष्ठा और मान पाकर सुख भोगते और परमात्मा के क्रोध का धन्यवाद देते हैं ॥४॥ यजुर्वेद में लिखा है−यजु० १६।३ ॥ यामिषुं॑ गिरिशन्त॒ हस्ते॑ बि॒भर्ष्यस्त॑वे। शि॒वां गि॑रित्र॒ तां कु॑रु॒ मा हि॑सीः॒ पुरु॑षं जग॑त् ॥१॥ हे वेद द्वारा शान्ति फैलानेवाले ! जिस बरछी वा बाण को चलाने के लिये अपने हाथों में तू धारण करता है, हे वेदद्वारा रक्षा करनेवाले ! उसको मङ्गलकारी कर, पुरुषार्थी लोगों को तू मत मार ॥

    टिप्पणी

    ४−त्वा। प्रवतो नपातम्, म० ३। देवाः। विद्वांसः। असृजन्त। सृज विसर्गे−लङ्। सृष्टवन्तः, त्यक्तवन्तः। मनसा कल्पितवन्तः। इषुम्। ईषेः किच्च। उ० १।१३। इति ईष हिंसने-उ, ह्रस्वश्च। अथवा। इष गतौ−उ। बाणम् शक्तिनामायुधम्। कृण्वानाः। कृवि हिंसाकरणयोः−शानच्। कुर्वाणाः असनाय। असु क्षेपणे−भावे ल्युट्। क्षेपणाय। नाशनाय। धृष्णुम्। त्रसिगृधिधृषिक्षिपेः क्नुः। पा० ३।२।१४०। इति ञिधृषा प्रागल्भ्ये−क्नु। प्रगल्भाम्, निर्भयाम् सुदृढाम्। मृड। मृडय, सुखय। विदथे। रुविदिभ्यां ङित्। उ० ३।११५। इति विद ज्ञाने, विद्लृ लाभे, विद विचारणे, विद सत्तायाम्−अथ प्रत्ययः। स च ङित्। विदथः, यज्ञनाम−निघ० ३।१७। ज्ञायते हि यज्ञः, लभते हि दक्षिणादिरत्र, विचार्यते हि विद्वद्भिः, भावयत्यनेन फलम्−इति तत्र टीकायां देवराजयज्वा। यज्ञे। वेदितव्ये कर्मणि। गृणाना। गॄ शब्दे−शानच्। शब्दायमाना, उपदिशन्ती। देवि। हे द्योतमाने, हे दिव्यगुणयुक्त ॥

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    विषय

    दिव्य इषु

    पदार्थ

    १. हे (देवि) = प्रभु की दिव्यशक्ते! (तस्यै ते नमः अस्तु) = उस तेरे लिए नमस्कार हो, (याम्) = जिस तुझे (विश्वेदेवा:) = सब देव (धृष्णम्) = धर्षक शत्रु को-काम-क्रोध आदि पराभूत करनेवाले शत्रुओं को (असनाय) = परे फेंकने के लिए (इधुं कृण्वाणा:) = बाण के रूप में करते हुए (असृजन्त) = उत्पन्न करते हैं। मनुष्य के लिए काम-क्रोध आदि को जीतना सम्भव नहीं। उस समय देववृत्ति के लोग परमेश्वर की दैवी शक्ति को अपना इषु [बाण] बनाते हैं। इस इषु से काम का पराजय होता है। प्रभु-स्मरण काम का विध्वंस करता है। २. (सा) = वह ईश्वरीय शक्ति (विदथे गृणाना) = ज्ञानयज्ञों में स्तुति की जाती हुई (न: मृद्ध) = हमारे लिए सुख करनेवाली हो। 'विदथ' शब्द युद्ध के लिए भी प्रयुक्त होता है। यह शक्ति काम आदि के साथ युद्ध के प्रसंग में हमारा कल्याण करनेवाली हो।

    भावार्थ

    प्रभु की दिव्य शक्ति कामादि के साथ युद्ध में हमारा इषु बनती है और काम का विध्वंस करती है।

    विशेष

    प्रभु की शक्ति ही सर्वत्र कार्य करती है [१]। तप उस शक्ति को प्राप्त करने का साधन है [२]। तप और प्रभु-प्रेरणा को सुनना ही प्रभु-दर्शन के मार्ग हैं [३]। प्रभु की दिव्य शक्ति इषु बनकर हमारे लिए काम का विध्वंस करती है [४]। इन तपस्वी कुलों में ही कुलवधुओं का जन्म होता है -

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    भाषार्थ

    हे पारमेश्वरी माता (याम् त्वा) जिस तुझको (विश्वे) सब उपासक योगीजन (असृजन्त) प्रकट करते हैं, (असनाय) आसुर भावों और कर्मों पर फेंकने के लिये, (धृष्णुम्) धर्षक (इषु कृण्वानाः) अपना वाण करते हुए, बनाते हुए। (सा) वह तू (न:) हमें (मृड) सुखी कर (विदथे ) ज्ञान के निमित्त (गृणाना) वेदोपदेश करती हुई; (देवि ) हे दिव्य माता ! (तस्यै ते) उस तेरे लिये (नमः अस्तु) नमस्कार हो। यह पारमेश्वरी माता है।

    टिप्पणी

    [धृष्णुम्= धर्षक, आक्रमणकारी।]

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    विषय

    विद्युत् शक्ति।

    भावार्थ

    हे ( देवि ) दिव्यगुणसम्पन्न विद्युत् ! (यां) जिस (त्वा), तुझको (विश्व देवाः) समस्त विद्वान् गण ( धृष्णुम् ) शत्रु का घर्षण या मानभंग करने हारे ( इषुम् ) बाण रूप ( कृण्वाना ) बनाते हुए शत्रुओं पर ( असनाय ) फेंकने के लिये ( असृजन्त ) तैयार करते हैं ( सा ) वह तू ( विदथे ) संग्राम और परोपकार के कार्यों में भी (नः) हमें ( गृणाना ) विद्वान् पुरुषों द्वारा उपदेश की गई ( मृड ) सुखकारी हो ( तस्ये ) उस ( ते ) तेरा ( नमः ) सदुपयोग ( अस्तु ) हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वंगिराः। ऋषिः। विद्युत् देवता। १, २ अनुष्टुप् छन्दः । ३ चतुष्पद विराड् जगती । ४ त्रिष्टुप् परा बृहतीगर्भा पंक्तिः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Electric Energy

    Meaning

    O divine energy whom all forces of nature create and divine intellectuals of humanity inculcate, producing inviolable power, arrows like, to shoot at the negative forces in existence in nature and humanity, pray you, praised, honoured and applied, be kind and gracious to us in our battle of life. To you, O divine mother, Shakti, all hail, all homage!

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    Translation

    O divine force, our homage be to you, whom all the enlightened ones create a powerful arrow for hurling. May you, winning laurels in battle, be gracious to us.

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    Translation

    It is that to which all [the physical] forces created making. The arrow (weapon) to destroy cloud. (Or to which the all scientists create making it the weapon for killing the strong enemy). This praised for its use be for our benefit in war and domestic affairs. We express our high appreciation for this powerful force.

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    Translation

    O God, for subduing the enemy, manufacturing strong and mighty military instruments, all learned persons adore Thee. Lauded in battles, be Gracious unto us, O God. We pay our homage to Thee.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−त्वा। प्रवतो नपातम्, म० ३। देवाः। विद्वांसः। असृजन्त। सृज विसर्गे−लङ्। सृष्टवन्तः, त्यक्तवन्तः। मनसा कल्पितवन्तः। इषुम्। ईषेः किच्च। उ० १।१३। इति ईष हिंसने-उ, ह्रस्वश्च। अथवा। इष गतौ−उ। बाणम् शक्तिनामायुधम्। कृण्वानाः। कृवि हिंसाकरणयोः−शानच्। कुर्वाणाः असनाय। असु क्षेपणे−भावे ल्युट्। क्षेपणाय। नाशनाय। धृष्णुम्। त्रसिगृधिधृषिक्षिपेः क्नुः। पा० ३।२।१४०। इति ञिधृषा प्रागल्भ्ये−क्नु। प्रगल्भाम्, निर्भयाम् सुदृढाम्। मृड। मृडय, सुखय। विदथे। रुविदिभ्यां ङित्। उ० ३।११५। इति विद ज्ञाने, विद्लृ लाभे, विद विचारणे, विद सत्तायाम्−अथ प्रत्ययः। स च ङित्। विदथः, यज्ञनाम−निघ० ३।१७। ज्ञायते हि यज्ञः, लभते हि दक्षिणादिरत्र, विचार्यते हि विद्वद्भिः, भावयत्यनेन फलम्−इति तत्र टीकायां देवराजयज्वा। यज्ञे। वेदितव्ये कर्मणि। गृणाना। गॄ शब्दे−शानच्। शब्दायमाना, उपदिशन्ती। देवि। हे द्योतमाने, हे दिव्यगुणयुक्त ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (বিশ্বে) সব (দেবাঃ) বিদ্বান (অসনায়) নাশের জন্য (ধৃষ্ণুম্) অতি দৃঢ় (ইষুং) শক্তি (কৃণ্বানাঃ) করিয়া (য়াম্ ত্বা) যে তোমাকে (অসৃজন্ত) মানিয়াছেন (সঃ) সেই তুমি (বিদথে) যজ্ঞে (গৃণানা) উপদেশ করিয়া (নঃ) আমাকে (মৃড) সুখদান কর। (দেবী) দেবী (তস্যৈ তে) সেই তোমাকে (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হইক।।

    भावार्थ


    হে পরমাত্মন! তুমি দুঃখ ক্লেশকে বিনাশ কর এবং দৃঢ়শক্তি সম্পন্ন বিদ্বানেরা তোমাকে এই ভাবেই মানিয়া থাকেন। কর্মানুষ্ঠাদিতে আমাদিগকে সত্য পথ নির্দেশ কর এবং সুখ বিধান কর। হে দিব্যগুণশালী প্রভো! তোমাকে নমস্কার করি।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়াং ত্বা দেবা অসৃজন্ত বিশ্ব ইষুং কণ্বানা অসনায় ধৃষ্ণুম্ । সানো মৃড বিদথে গৃণানা তস্যৈ তে নমো অস্ত দেবি।

    ऋषि | देवता | छन्द

    ভৃগ্বঙ্গিরাঃ। বিদ্যুৎ। ত্রিষ্টুপ্পরা বৃহতীগর্ভা পঙত্তিঃ

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    मन्त्र विषय

    (আত্মরক্ষোপদেশঃ) আত্মরক্ষার জন্য উপদেশ

    भाषार्थ

    (বিশ্বে) সমস্ত (দেবাঃ) বিদ্বানগণ (যাম্ ত্বা) যে [আপনি] পরমেশ্বরকে (অসনায়) নাশের জন্য (ধৃষ্ণুম্) অনেক দৃঢ় (ইষুম্) শক্তি অর্থাৎ বাণ (কৃণ্বানাঃ) করে (অসৃজন্ত) মেনেছে। (সা) সুতরাং আপনি (বিদথে) যজ্ঞে (গৃণানা) উপদেশ করে (নঃ) আমাদের (মৃড) সুখ দিন/প্রদান করুন, (দেবি) হে দেবী [বাণ] (তস্যৈ তে) সেই আপনার জন্য (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হোক ॥৪॥

    भावार्थ

    বিদ্বানগণ পরমেশ্বরের ক্রোধকে সমস্ত সংসারের দোষের নাশের জন্য বাণরূপ মনে করে সদা সংশোধন এবং উপকার করে, তখন সংসারে প্রতিষ্ঠা ও সম্মান পেয়ে/প্রাপ্ত করে সুখ ভোগ করে এবং পরমাত্মার ক্রোধের ধন্যবাদ দেয়/জ্ঞাপন করে ॥৪॥ যজুর্বেদে লেখা আছে−যজু০ ১৬।৩ ॥ যামিষু গিরিশন্ত হস্তে বিভর্ষ্যস্তবে। শিবাং গিরিত্র তাং কুরু মা হিসীঃ পুরুষং জগৎ ॥৩॥ হে বেদ দ্বারা শান্তি প্রসারণকারী ! যে বাণকে চালানোর/নিক্ষেপের জন্য আপনি নিজের হাতে ধারণ করেন, হে বেদদ্বারা রক্ষাকারী ! তা মঙ্গলকারী করুন, পুরুষার্থী লোকেদের আপনি মারবেন/নাশ করবেন না॥

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    भाषार्थ

    হে পারমেশ্বরী মাতা (যাম্ ত্বা) যে তোমাকে (বিশ্বে) সব উপাসক যোগীগণ (অসৃজন্ত) প্রকট করে, (অসনায়) অসুর ভাব ও কর্মের প্রতি নিক্ষেপ করার জন্য, (ধৃষ্ণুম্) ধর্ষক (ইষু কৃণ্বানাঃ) নিজের বাণ করে, তৈরি করে। (সা) সেই তুমি (নঃ) আমাদের (মৃড) সুখী করো (বিদথে) জ্ঞানের নিমিত্ত (গৃণানা) বেদোপদেশ করে; (দেবি) হে দিব্য মাতা ! (তস্যৈ তে) সেই তোমার জন্য (নমঃ অস্তু) নমস্কার হোক। ইনি পারমেশ্বরী মাতা।

    टिप्पणी

    [ধৃষ্ণুম্= ধর্ষক, আক্রমণকারী।]

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