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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आसुरी वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - श्वेत कुष्ठ नाशन सूक्त
    108

    आ॑सु॒री च॑क्रे प्रथ॒मेदं कि॑लासभेष॒जमि॒दं कि॑लास॒नाश॑नम्। अनी॑नशत्कि॒लासं॒ सरू॑पामकर॒त्त्वच॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒सुरी । च॒क्रे॒ । प्र॒थ॒मा । इ॒दम् । कि॒ला॒स॒ऽभे॒ष॒जम् । इ॒दम् । कि॒ला॒स॒ऽनाश॑नम् । अनी॑नशत् । कि॒लास॑म् । सऽरू॑पाम् । अ॒क॒र॒त् । त्वच॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आसुरी चक्रे प्रथमेदं किलासभेषजमिदं किलासनाशनम्। अनीनशत्किलासं सरूपामकरत्त्वचम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आसुरी । चक्रे । प्रथमा । इदम् । किलासऽभेषजम् । इदम् । किलासऽनाशनम् । अनीनशत् । किलासम् । सऽरूपाम् । अकरत् । त्वचम् ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 24; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    महारोग के नाश के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रथमा) प्रथम प्रकट हुई (आसुरी) प्रकाशमय परमेश्वर की माया [बुद्धि वा ज्ञान] ने (इदम्) इस [वस्तु] को (किलासभेषजम्) रूपनाशक महा रोग की ओषधि और (इदम्) इस [वस्तु] को ही (किलासनाशनम्) रूप बिगाड़नेवाले महारोग की नाश करनेहारी (चक्रे) बनाया। [उसने] [ईश्वर माया ने] (किलासम्) रूप बिगाड़नेवाले महारोग को (अनीनशत्) नाश किया और (त्वचम्) त्वचा को (सरूपाम्) सुन्दर रूपवाली (अकरत्) बना दिया ॥२॥

    भावार्थ

    (आसुरी) प्रकाशस्वरूप परमेश्वर की शक्ति से प्रलय के पश्चात् अनेक विघ्नों के हटाने पर मनुष्य के सुखदायक पदार्थ उत्पन्न हुए, जिससे पृथिवी पर समृद्धि और क्षुधा आदि रोगों की निवृत्ति हुई ॥२॥

    टिप्पणी

    २−आसुरी। म० १। प्रकाशमयपरमेश्वरस्य माया प्रज्ञा। चक्रे। म० १। कृतवती। प्रथमा। म० १। आदिभूता। इदम्। प्रसिद्धम्। उपस्थितम्। किलास-भेषजम्। किलासम्। १।२३।१। किल+असु क्षेपणे−अण्। भिषजो वैद्यस्येदमिति अण् निपातनाद् एत्वम् यद्वा, भेषं भयं रोगं जयतीति जि−ड। रुपनाशकस्य महारोगस्य औषधम्। किलास-नाशनम्। कृत्यल्युटो बहुलम्। पा० ३।३।११३। इति किलास+णश अदर्शने−कर्तरि ल्युट्। किलासस्य रूपनाशकस्य महारोगस्य कुष्ठादिकस्य निवर्तकम्। अनीनशत्। णश अदर्शने−णिच्, लुङ्। नाशयति स्म। किलासम्। १।२३।१। वर्णनाशकं महारोगम्। सरूपाम्। ज्योतिर्जनपद०। पा० ६।३।८५। इति समानस्य सभावः। समानरूपाम्। साधुरूपाम्। अकरत्। डुकृञ् करणे लुङ् कृतवती। त्वचम्। १।२३।४। त्वचाम्, शरीरावरणं चर्म ॥

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    विषय

    त्वचा की सरूपता

    पदार्थ

    १. (प्रथमा) = अत्यन्त फैलनेवाली (आसुरी) = इस आसुरी औषधि ने (इदम्) = इस किलास (भेषजम्) = श्वेतकुष्ठ के धब्बों की औषध को चक्रे बनाया है। (इदम्) = यह औषध किलास (नाशनम्) = श्वेतकुष्ठ का नाश करनेवाला है। २. नाश करनेवाला क्या, इसने तो (किलासम्) = किलास को (अनीनशत्) = नष्ट कर ही दिया और (त्वचं सरूपाम् अकरत्) = सारी त्वचा को समान रूपवाला कर दिया है। ३. यहाँ मन्त्र का उत्तरार्ध साहित्य की अतिशयोक्ति अलंकारपूर्ण शैली में कहा गया है। इससे ओषधि के महत्व पर प्रकाश पड़ता है। यह ओषधि किलास को शीघ्र दूर करनेवाली है, यही भाव अभिप्रेत है।

    भावार्थ

    आसुरी ओषधि से बनाया गया भेषज किलास को शीघ्र दूर करनेवाला है।

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    भाषार्थ

    (आसुरी) मन्त्र (१) में कथित प्राणवान् मनुष्य का शक्तिरूप पित्त (प्रथमा) मुख्य शक्तिरूप हुआ, इसने (इदम्) इस (किलासभेषजम्) किलासौषध को (चक्रे) उत्पन्न किया [अर्थात् वह किलास का मुख्य भेषज हुआ], (इदम्) यह पित्त (किलासनाशनम्) किलास का नाशक हुआ (अनीनशत् किलासम्) इसने किलास को नष्ट किया और ( त्वचम्) त्वचा को ( सरूपाम् ) समानरूपवाली (अकरत्) कर दिया। अर्थात् किलास१ को नष्ट कर समग्र त्वचा को समानरूपवाली कर दिया। एकरूपवाली कर दिया [अर्थात् किलास के चिह्नों को भी मिटा दिया।]

    टिप्पणी

    [मन्त्र में आसुरी और पित्तम् को पर्यायवाची रूप में वर्णित किया है। अतः दोनों में लिङ्गभेद की उपेक्षा हुई है।] [१. किलास है श्वित्र अर्थात् श्वेत कुष्ठ (सायण)।]

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    विषय

    त्वचादोष का निवारण।

    भावार्थ

    ( आसुरी ) आसुरी नामक ओषधि (प्रथमा) सबसे श्रेष्ठ है। उसने ही ( इदं ) यह ( किलासभेषजं ) किलासनामक कुष्ठ की चिकित्सा ( चक्रे ) करती है । ( इदं किलासनाशनं ) यह स्वयं भी किलास का नाश करने हारी है । वह ( किलासं ) किलास= कुष्ठरोग को ( अनीनशत् ) नाश करती और ( त्वचं ) त्वचा को ( सरूपाम् ) सर्वत्र शरीर पर एक समान कान्तिवाली ( अकरत् ) बना देती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। आसुरी वनस्पतिर्देवता। १, ४, ४ अनुष्टुभः, २ निचृत् पथ्यापंक्तिः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Leprosy Cure

    Meaning

    That wonderful life energy, Asuri, forms and creates this herbal remedy for skin leprosy, this destroyer of skinny white, this Sarupa. It certainly destroys leprosy and makes the skin uniform in colour.

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    Translation

    First of all, the biotic experiments led to the discovery of the remedy the leprosy. It is destroyer of leprosy.We have again and again confirmed it. This destroys leprosy and has made the skin of uniform natural colour.

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    Translation

    This Asuri herb is first potential curative among others. This medicine cures the leprosy. It is the dispeller of leprosy by itself. This destroys leprosy and makes the skin beautiful and coloured.

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    Translation

    The Asuri plant is highly curative. It is the medicine for leprosy, the banisher of leprosy. It removes leprosy and lends beautiful color to the skin.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−आसुरी। म० १। प्रकाशमयपरमेश्वरस्य माया प्रज्ञा। चक्रे। म० १। कृतवती। प्रथमा। म० १। आदिभूता। इदम्। प्रसिद्धम्। उपस्थितम्। किलास-भेषजम्। किलासम्। १।२३।१। किल+असु क्षेपणे−अण्। भिषजो वैद्यस्येदमिति अण् निपातनाद् एत्वम् यद्वा, भेषं भयं रोगं जयतीति जि−ड। रुपनाशकस्य महारोगस्य औषधम्। किलास-नाशनम्। कृत्यल्युटो बहुलम्। पा० ३।३।११३। इति किलास+णश अदर्शने−कर्तरि ल्युट्। किलासस्य रूपनाशकस्य महारोगस्य कुष्ठादिकस्य निवर्तकम्। अनीनशत्। णश अदर्शने−णिच्, लुङ्। नाशयति स्म। किलासम्। १।२३।१। वर्णनाशकं महारोगम्। सरूपाम्। ज्योतिर्जनपद०। पा० ६।३।८५। इति समानस्य सभावः। समानरूपाम्। साधुरूपाम्। अकरत्। डुकृञ् करणे लुङ् कृतवती। त्वचम्। १।२३।४। त्वचाम्, शरीरावरणं चर्म ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (প্রথমা) আদিতে প্রকাশিত (আসুরী) প্রকাশময় পরমেশ্বরের জ্ঞান (ইদং) এই বস্তুকে (কিলাস ভেষজং) সৌন্দর্য নাশক মহারোগের ঔষধ ও (ইদং) এই বস্তুকেই (কিলাস নাশনং) সৌন্দর্য মহারোগের নাশক (চক্রে) রূপে প্রস্তুত করিয়াছে। ঈশ্বরের জ্ঞান (কিলাসং) সৌন্দর্য নাশক মহারোগকে (অনীনশৎ) নাশ করিয়াছে এবং (ত্বত্চং) ত্বককে (সরূপাং) সুন্দর রূপযুক্ত (অকরৎ) করিয়াছে।।

    भावार्थ

    আদিতে প্রকাশিত প্রকাশময় পরমেশ্বরের জ্ঞান এই বস্তুকে সৌন্দর্য নাশক মহারোগের ওষধি ও এই বস্তুকেই সৌন্দর্য নাশক মহারোগের বিনাশক রূপে প্রস্তুত করিয়াছে। ঈশ্বরের জ্ঞান সৌন্দর্য নাশক মহারোগকে নাশ করিয়াছে এবং ত্বককে সুন্দর রূপযুক্তি করিয়াছে।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    আসুরী চক্রে প্রথমেদং কিলাস ভেষজমিদং কিলাস নাশনম্ ৷ অনীনশৎ কিলাসং সরূপামকরৎ ত্বত্চম্।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    ব্ৰহ্মা। আসুরী বনস্পতিঃ। নিভৃৎ পথ্যা পঙক্তিঃ

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    मन्त्र विषय

    (মহারোগনাশোপদেশঃ) মহারোগ নাশের জন্য উপদেশ

    भाषार्थ

    (প্রথমা) প্রথম প্রকটিত (আসুরী) প্রকাশময় পরমেশ্বরের মায়া [বুদ্ধি বা জ্ঞান] (ইদম্) এই [বস্তুকে] (কিলাসভেষজম্) রূপনাশক মহারোগের ঔষধি এবং (ইদম্) এই [বস্তুকেই] (কিলাসনাশনম্) রূপ বিনষ্টকারী মহারোগের বিনাশকারী (চক্রে) করেছেন । [তিনি] [ঈশ্বরের মায়া] (কিলাসম্) রূপ বিনষ্টকারী মহারোগকে (অনীনশৎ) বিনাশ করেছে এবং (ত্বচম্) ত্বককে (সরূপাম্) সুন্দর রূপবান (অকরৎ) করেছে ॥২॥

    भावार्थ

    (আসুরী) প্রকাশস্বরূপ পরমেশ্বরের শক্তি দ্বারা প্রলয়ের পশ্চাতে অনেক বিঘ্নসমূহ অপসারণের পর মনুষ্যের সুখদায়ক পদার্থ উৎপন্ন হয়েছে, যার দ্বারা পৃথিবী সমৃদ্ধ এবং ক্ষুধা আদি রোগসমূহের নিবৃত্তি হয়েছে ॥২॥

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    भाषार्थ

    (আসুরী) মন্ত্র (১) এ বর্ণিত প্রাণবান্ মনুষ্যের শক্তিরূপ পিত্ত (প্রথমা) মুখ্য শক্তিরূপ, ইহা (ইদম্) এই (কিলাসভেষজম্) কুষ্ঠ রোগের ঔষধ (চক্রে) উৎপন্ন করেছে [অর্থাৎ তা কুষ্ঠ রোগের মুখ্য ভেষজ হয়েছে], (ইদম্) এই পিত্ত (কিলাস নাশনম্) কুষ্ঠনাশক হয়েছে। (অনীনশৎ কিলাসম্) ইহা কুষ্ঠ বিনষ্ট করেছে এবং (ত্বচম্) ত্বককে (সরূপাম্) সমানরূপবিশিষ্ট (অকরত) করেছে। অর্থাৎ কুষ্ঠ১ নষ্ট করে সমগ্র ত্বককে সমান করে দিয়েছে, একরূপের করে দিয়েছে [অর্থাৎ কুষ্ঠের চিহ্নকেও নষ্ট করে দিয়েছে]

    टिप्पणी

    [মন্ত্রে আসুরী এবং পিত্তম্-কে পর্যায়বাচী রূপে বর্ণিত করা হয়েছে। অতএব দুটোর মধ্যে লিঙ্গভেদের উপেক্ষা হয়েছে।] [১. কিলাস হলো শ্বিত্র অর্থাৎ শ্বেত কুষ্ঠ (সায়ণ)।]

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