अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 3
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - आसुरी वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - श्वेत कुष्ठ नाशन सूक्त
62
सरू॑पा॒ नाम॑ ते मा॒ता सरू॑पो॒ नाम॑ ते पि॒ता। स॑रूप॒कृत्त्वमो॑षधे॒ सा सरू॑पमि॒दं कृ॑धि ॥
स्वर सहित पद पाठसऽरू॑पा । नाम॑ । ते॒ । मा॒ता । सऽरू॑प: । नाम॑ । ते॒ । पि॒ता ।स॒रू॒प॒ऽकृत् । त्वम् । ओ॒ष॒धे॒ । सा । सऽरू॑पम् । इ॒दम् । कृ॒धि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सरूपा नाम ते माता सरूपो नाम ते पिता। सरूपकृत्त्वमोषधे सा सरूपमिदं कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठसऽरूपा । नाम । ते । माता । सऽरूप: । नाम । ते । पिता ।सरूपऽकृत् । त्वम् । ओषधे । सा । सऽरूपम् । इदम् । कृधि ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
महारोग के नाश के लिये उपदेश।
पदार्थ
(ओषधे) हे उष्णता रखनेहारे अन्न आदि ओषधि (सरूपा) समान गुण वा स्वभाववाली (नाम) नाम (ते) तेरी (माता) माता है, (सरूपः) समान गुण वा स्वभाववाला (नाम) नाम (ते) तेरा (पिता) पिता है। (त्वम्) तू (सरूपकृत्) सुन्दर वा समान गुण करनेहारी है, (सा=सा त्वम्) सो तू (इदम्) इस [अङ्ग] को (सरूपम्) सुन्दररूपयुक्त (कृधि) कर ॥३॥
भावार्थ
(ओषधि) क्षुधा रोगादिनिवर्तक वस्तु को कहते हैं, जिससे शरीर में उष्णता रहती है, उसकी (माता) प्रकृति वा पृथिवी और (पिता) परमेश्वर वा मेघ वा सूर्य्य है, जिनके गुण वा स्वभाव सब प्राणियों के लिये समान हैं। ईश्वर से प्रेरित प्रकृति से अथवा भूमि और मेघ वा सूर्य्य के संयोग से सब पुष्टिदायक और रोगनाशक पदार्थ उत्पन्न होते हैं। विद्वान् लोग पदार्थों के गुणों को यथार्थ जान कर नियमपूर्वक उचित भोजन आदि के सेवन और यथोचित उपकार लेने से अपने को और अपने सन्तानों को रूपवान् और वीर्य्यवान् बनावें ॥३॥
टिप्पणी
३−स-रूपा। म० २। समानं रूपं स्वभावो गुणो यस्याः सा। समानस्वभावाम्। नाम। अव्ययम्। नामन्सीमन्व्योमन्०। उ० ४।१५१। इति म्ना अभ्यासे−मनिन्। निपातनात् साधुः। म्नायते अभ्यस्यते यत्। प्रसिद्धा। प्रसिद्धम्। माता। १।२।१। माननीया जननी भूमिः प्रकृतिर्वा। स-रूपः। समानरूपः। समानस्वभावः, समानगुणः। पिता। १।२।१। पालको जनकः। परमेश्वरो मेघः सूर्यो वा। सरूप-कृत्। डुकृञ् करणो−क्विप्। ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्। पा० ६।१।७१। इति तुक् आगमः। शोभनरूपकारिणी। समानगुणकारिणी। त्वम् ओषधे। १।२३।१। हे रोगनाशकद्रव्य त्वम्। स-रूपम्। सुन्दररूपयुक्तम्। इदम्। रोगदूषितम् अङ्गम्। कृधि। श्रुशृणुपॄकृवृभ्यश्छन्दसि। पा० ६।४।१०२। इति हेर्धिरादेशः। कुरु ॥
विषय
आसुरी के माता व पिता
पदार्थ
१. सब ओषधियों की माता यह पृथिवी है, हे आसुरी! (ते माता) = तेरी मातृस्थानापन्न यह पृथिवी (सरूपा नाम) = सरूपा नामवाली है। मिट्टी का लेप भी त्वग्दोष को दूर करके स्वरूपता लाने में सहायक होता है। २. इसीप्रकार सब ओषधियों का पिता धुलोक है। यह वृष्टि व सूर्य किरणों द्वारा इन ओषधियों को जन्म देनेवाला व पालन करनेवाला है। वह (ते पिता) = तेरा धुलोकरूपी यह पिता भी (सरूपः नाम) = सरूप नामवाला है। यह भी त्वचा को सरूपता देनेवाला है। सूर्य-किरणों को त्वचा पर लेना तथा वृष्टिजलों में स्नान-ये दोनों ही बातें त्वग्दोष को दूर करनेवाली हैं। ३. हे (ओषधे) = त्वचा के दोष का दहन करनेवाली आसुरि! (त्वम्) = तू भी इस पृथिवी व धुलोकरूप माता-पिता से उत्पन्न होकर (सरूपकृत्) = सारी त्वचा को समान रूपवाला करनेवाली है। (सा) = वह तू (इदं सरूपं कृधि) = हमारे इस शरीर को सरूप बना दे।
भावार्थ
[क] मिट्टी का लेप, [ख] सूर्य-किरणों का सम्पर्क, [ग] वृष्टिजल में स्नान तथा [घ] आसुरी ओषधि का प्रयोग-ये चार बातें अवश्य कुष्ठ रोग को दूर कर सरूपता प्रास कराती हैं।
भाषार्थ
(ते माता) तेरी माता (सरूपा) समान अर्थात् एकरूपवाली (नाम) प्रसिद्ध है, (ते पिता) तेरा पिता (सरूपः) समान अर्थात् एकरूपवाला (नाम) प्रसिद्ध है। (ओषधे) हे ओषधि! (त्वम्) तु (सरूपकृत्) समान अर्थात् एकरूपवाला कर देती है। (सा) वह तु ( इदम् ) इस शरीर को ( सरूपम् ) समान अर्थात् एकरूपवाला (कृधि) कर।
टिप्पणी
[ओषधि है असिक्नी (अथर्व १।२३।१)। इसकी माता है पृथिवी। वह सरूपा है, एकरूपवाली है। इसका पिता है द्यौ: । वह भी एकरूपवाला है, शुक्लरूपवाला।]
विषय
त्वचादोष का निवारण।
भावार्थ
हे ओषधे ! (ते) तेरी (माता) उत्पत्ति-भूमि ( सरूपा ) तेरे ही समान रूप गुण वाली ‘सरूपा’ नामक है ( ते ) तेरा (पिता) उत्पादक बीज या पालक सूर्य भी ( सरूपः नाम ) ‘सरूप’ नाम वाला है। हे ओषधे ! (त्वं) तू स्वयं (सरूपकृत्) त्वचा का समान रूप बना देने हारी है, इसलिये ( इदं ) इस दोषयुक्त कुष्ठी शरीर को भी (सरूपं ) समान सुन्दर रूप ( कृधि ) कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। आसुरी वनस्पतिर्देवता। १, ४, ४ अनुष्टुभः, २ निचृत् पथ्यापंक्तिः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Leprosy Cure
Meaning
O herb, Sarupa, the earth, uniform and unifunctional, is your mother. Uniform and unifunctional surely is your father, the sun. You too are uniform and unifunctional in action. As such, make the skin of this patient uniform in colour.
Translation
Of uniform colour is your mother and of uniform colour is your father. O medicinal herb, you make the skin uniform. May you make this man of uniform appearance.
Translation
This herbaceous plant has its rise from the earth which is Sarupa, beautiful. This has its protection from the Sun which is also Sarupa, beautiful and the centre of colours. This plant has also coloured and beautiful essence. This makes the affected body beautiful.
Translation
O medicine, beautiful is thy mother, the Earth, beautiful is thy father, the sun. Beautiful art thou, make this diseased body beautiful,
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−स-रूपा। म० २। समानं रूपं स्वभावो गुणो यस्याः सा। समानस्वभावाम्। नाम। अव्ययम्। नामन्सीमन्व्योमन्०। उ० ४।१५१। इति म्ना अभ्यासे−मनिन्। निपातनात् साधुः। म्नायते अभ्यस्यते यत्। प्रसिद्धा। प्रसिद्धम्। माता। १।२।१। माननीया जननी भूमिः प्रकृतिर्वा। स-रूपः। समानरूपः। समानस्वभावः, समानगुणः। पिता। १।२।१। पालको जनकः। परमेश्वरो मेघः सूर्यो वा। सरूप-कृत्। डुकृञ् करणो−क्विप्। ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्। पा० ६।१।७१। इति तुक् आगमः। शोभनरूपकारिणी। समानगुणकारिणी। त्वम् ओषधे। १।२३।१। हे रोगनाशकद्रव्य त्वम्। स-रूपम्। सुन्दररूपयुक्तम्। इदम्। रोगदूषितम् अङ्गम्। कृधि। श्रुशृणुपॄकृवृभ्यश्छन्दसि। पा० ६।४।१०२। इति हेर्धिरादेशः। कुरु ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(ওষধে) হে অন্নাদি ওষধি! (সরূপা) সমান গুণ বা স্বভাব যুক্ত (নাম) নাম (তে) তোমার (মাতা) মাতা (সরূপঃ) সমান গুণ বা স্বভাব যুক্ত (নাম) নাম (তে) তোমার (পিতা) পিতা। (ত্বম্) তুমি (সরূপম্) সমান গুণ সম্পাদনকারী ((সা তং) সেই তুমি (ইদং) এই অঙ্গকে (স্বরূপং) সমান রূপযুক্ত (কৃধি) কর।।
भावार्थ
হে অন্নাদি ওষধি! তোমার মাতা প্রকৃতি ও পিতা সূর্য সকলের নিকটই সমান ভাবে গুণ ও স্বভাব প্রকাশ করে। তুমি নিজেও সকলের নিকট সমান ভাবে গুণ ও স্বভাব প্রকাশ কর। তুমি আমাদের শরীরকে যথাযোগ্য রূপ প্রদান কর।।
मन्त्र (बांग्ला)
সরূপা নামতে মাতা সরূপো নামতে পিতা । সরূপকৃৎ ত্বমোষধে সা সরূপমিদং কৃধি।।
ऋषि | देवता | छन्द
ব্ৰহ্মা। আসুরী বনষ্পতিঃ। অনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(মহারোগনাশোপদেশঃ) মহারোগ নাশের জন্য উপদেশ
भाषार्थ
(ওষধে) হে উষ্ণতা রক্ষাকারী অন্ন আদি ঔষধি ! (সরূপা) সমান গুণ বা স্বভাবযুক্ত (নাম) নাম (তে) তোমার (মাতা) মাতা, (সরূপঃ) সমান গুণ বা স্বভাবযুক্ত (নাম) নাম (তে) তোমার (পিতা) পিতা। (ত্বম্) তুমি (সরূপকৃৎ) সুন্দর বা সমান গুণকারী, (সা=সা ত্বম্) সেই তুমি (ইদম্) এই [অঙ্গকে] (সরূপম্) সুন্দর রূপযুক্ত (কৃধি) করো ॥৩॥
भावार्थ
(ওষধি) ক্ষুধা রোগাদি নিবর্তক বস্তুকে বলা হয়, যার মাধ্যমে শরীরে উষ্ণতা বজায় থাকে। সেই ঔষধির (মাতা) প্রকৃতি বা পৃথিবী এবং (পিতা) পরমেশ্বর বা মেঘ বা সূর্য, যার গুণ বা স্বভাব সকল প্রাণীদের জন্য সমান। ঈশ্বর দ্বারা প্রেরিত প্রকৃতি থেকে অথবা ভূমি এবং মেঘ বা সূর্যের সংযোগ দ্বারা সব পুষ্টিদায়ক এবং রোগনাশক পদার্থ উৎপন্ন হয়। বিদ্বানগণ পদার্থসমূহের গুণসমূহ যথার্থভাবে জেনে নিয়মপূর্বক উচিত ভোজন আদির সেবন এবং যথোচিত উপকার গ্রহণ করার মাধ্যমে নিজেকে এবং নিজের সন্তানদের রূপবান এবং বীর্যবান করুক ॥৩॥
भाषार्थ
(তে মাতা) তোমার মাতা (সরূপা) সমান অর্থাৎ একই (নাম) প্রসিদ্ধ, (তে পিতা) তোমার পিতা (সরূপ) সমান অর্থাৎ একই (নাম) প্রসিদ্ধ। (ওষধে) হে ঔষধি ! (ত্বম্) তুমি (সরূপকৃৎ) সমান অর্থাৎ এক রূপবিশিষ্ট করো। (সা) সেই তুমি (ইদম্) এই শরীরকে (সরূপম্) সমান অর্থাৎ একরূপের (কৃধি) করো।
टिप्पणी
[ঔষধি হলো অসিক্নী (অথর্ব ১।২৩।১)। এর মাতা হলো পৃথিবী। সে সরূপা, একরূপাধিকারী। এর পিতা হলো দ্যৌঃ। তাও একরূপাধিকারী, শুক্লরূপবান।]
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