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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 27 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 27/ मन्त्र 2
    ऋषि: - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः, इन्द्राणी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - स्वस्त्ययन सूक्त
    29

    विषू॑च्येतु कृन्त॒ती पिना॑कमिव॒ बिभ्र॑ती। विष्व॑क्पुन॒र्भुवा॒ मनो ऽस॑मृद्धा अघा॒यवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विषू॑ची । ए॒तु॒ । कृ॒न्त॒ती । पिना॑कम्ऽइव । बिभ्र॑ती । विष्व॑क् । पु॒न॒:ऽभुवा॑: । मन॑: । अस॑म्ऽऋध्दा: । अ॒घ॒ऽयव॑: ॥१.२७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विषूच्येतु कृन्तती पिनाकमिव बिभ्रती। विष्वक्पुनर्भुवा मनो ऽसमृद्धा अघायवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विषूची । एतु । कृन्तती । पिनाकम्ऽइव । बिभ्रती । विष्वक् । पुन:ऽभुवा: । मन: । असम्ऽऋध्दा: । अघऽयव: ॥१.२७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 27; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (2)

    विषय

    युद्ध का प्रकरण।

    पदार्थ

    (पिनाकम् इव) त्रिशूल सा (बिभ्रती) उठाये हुए (कृन्तती) काटती हुयी [हमारी सेना] (विषूची) सब ओर फैल कर (एतु) चले। और (पुनर्भुवाः) फिर जुड़ कर आयी हुयी [शत्रुसेना] का (मनः) मन (विष्वक्) इधर-उधर उड़ाऊ [हो जावे] (अघायवः) बुरा चीतनेवाले शत्रु लोग (असमृद्धाः) निर्धन हो जावें ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे चतुर सेनापति अस्त्र-शस्त्रवाली अपनी साहसी सेना के अनेक विभाग करके शत्रुओं पर झपट कर धावा मारता और उन्हें व्याकुल करके भगा देता है, जिससे वह लोग फिर न तो एकत्र हो सकते और न धन जोड़ सकते हैं, ऐसे ही बुद्धिमान् मनुष्य कुमार्गगामिनी इन्द्रियों को वश में करके सुमार्ग में चलावें और आनन्द भोगें ॥२॥ सायणभाष्य में (पुनर्भुवाः) के स्थान में [पुनर्भवाः] है ॥

    टिप्पणी

    २−विषूची। १।१९।१। नानाविधं गच्छन्ती, नानामुखी। एतु। गच्छतु। कृन्तती। कृती छेदने−शतृ। तुदादित्वात् शः। शे मुचादीनाम्। पा० ७।१।५९। इति नुम्, ततो ङीप्। छिन्दती, भिन्दती शत्रुसेना। पिना-कम्। पिनाकादयश्च। उ० ४।१५। पा रक्षणे पन स्तुतौ वा−आकप्रत्ययेन निपात्यते। त्रिशूलम्। बिभ्रती। १।१।१। डुभृञ् धारणपोषणयोः−शतृ। उगितश्च। पा० ४।१।६। इति ङीप्। धारयन्ती। विष्वक्। १।१९।१। नानामुखम्, अनवस्थितम्। पुनः−भुवाः। पुनः+भू सत्तायाम्−क्विप्। पुनः सङ्घीभूतायाः पृदाक्वाः, शत्रुसेनायाः−इत्यर्थः। मनः। चित्तम्। असम्−ऋद्धाः। ऋधु वृद्धौ−क्त। असम्पन्नाः, निर्धनाः। अघायवः। म० १। अनिष्टचिन्तकाः शत्रवः ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Ruler’s Army

    Meaning

    Let the army bearing multidirectional arms go forward, surround them and advance, tearing them down like death itself, scattering the enemy army rallied as well as re-rallied. Let the mind and morale of the evil doers break down to naught.

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