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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः, इन्द्राणी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - स्वस्त्ययन सूक्त
    59

    न ब॒हवः॒ सम॑शक॒न्नार्भ॒का अ॒भि दा॑धृषुः। वे॒णोरद्गा॑ इवा॒भितो ऽस॑मृद्धा अघा॒यवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । व॒हव॑: । सम् । अ॒श॒क॒न् । न । अ॒र्भ॒का: । अ॒भि । द॒धृ॒षु॒: । वे॒णो: । अङ्गा॑:ऽइव । अ॒भित॑: । अस॑म्ऽऋध्दा: । अ॒घ॒ऽयव॑: ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न बहवः समशकन्नार्भका अभि दाधृषुः। वेणोरद्गा इवाभितो ऽसमृद्धा अघायवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । वहव: । सम् । अशकन् । न । अर्भका: । अभि । दधृषु: । वेणो: । अङ्गा:ऽइव । अभित: । असम्ऽऋध्दा: । अघऽयव: ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 27; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    युद्ध का प्रकरण।

    पदार्थ

    (न) न तो (बहवः) बहुत से शत्रु (समशकन्) समर्थ हुए (न) और न (अर्भकाः) वह निर्बल हो जाने पर (अभिदाधृषुः) कुछ साहस कर सके, (वेणोः) बाँस के (अद्गाः) मालपुओं के (इव) समान (अघायवः) बुरा चीतनेवाले शत्रु (असमृद्धाः) निर्धन [होवें] ॥३॥

    भावार्थ

    राजा दुराचारी दुष्टों को ऐसा वश में करे कि वह एकत्र न हो सकें और न सता सकें और जैसे नीरस सूखे बाँस आदि तृण का भोजन पुष्टिदायक नहीं होता, इसी प्रकार सर्वथा निर्बल कर दिये जावें। इसी प्रकार मनुष्य आत्मशिक्षा करें ॥३॥ सायणभाष्य में (दाधृषुः) के स्थान में [दादृशुः] और (अद्गाः) के स्थान में [उद्गाः] है ॥

    टिप्पणी

    ३−बहवः। लङ्घिबंह्योर्नलोपश्च। उ० १।२९। इति बृहि वृद्धौ−कु, नस्य लोपः। विपुलाः, हस्त्यश्वरथपदातियुक्ताः शत्रवः। सम्। सम्यक्, अल्पमपीत्यर्थः। अशकन्। शक्लृ शक्तौ−लुङ्। जेतुं शक्ता अभूवन्। अर्भकाः। अर्त्तिगॄभ्यां भन्। उ० ३।१५२। इति ऋ गतौ-भन् स्वार्थे-कन्। दभ्रमभ्रकमित्यल्पस्य। इति यास्कः−निरु० ३।२०। अल्पाः, निर्बलाः। अभि। आभिमुख्येन। दाधृषुः। धृषु संहतौ, हिंसे, प्रागल्भ्ये−लिट्। दीर्घः। धृष्टाः प्रगल्भा बभूवुः। वेणोः। अजिवृरीभ्यो निच्च। उ० ३।३८। इति अज गतिक्षेपणयोः−णु। वीभावो गुणश्च। वंशकाण्डस्य नीरसतृणस्य इत्यर्थः। अद्गाः। गन् गम्यद्योः। उ० १।१२३। इति अद भक्षणे−गन्। अद्यते भक्ष्यते स अद्गः। पुरोडाशाः। अभितः। सर्वतः। अन्यद् व्याख्यातम्। म० २ ॥

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    विषय

    तीन त्याज्य बातें

    पदार्थ

    १. [क] (या) = जो (शपनेन) = अपशब्दों, आक्रोशों [curses] से (शशाप) = शाप देती है, गालियाँ देती है, [ख] (या) = जो (मूरम्, अघम्) = [मूरम्-destroying, killing] हिंसात्मक पापों को (आदधे) = धारण करती है, [ग] (या) = जो (रसस्य हरणाय) = औरों के आनन्द को नष्ट करने के लिए (जातम्) = साधन बने हुए कर्म को (आरेभे) = आरम्भ करती है, (सा) = वह (तोकम् अत्तु) = अपनी सन्तान को ही खा जाती है २. इस स्त्री के बच्चों पर इन सब कर्मों का इतना घातक प्रभाव होता है कि बच्चों का जीवन ही नष्ट हो जाता है। उसके बच्चे भी गाली देने लगेंगे, हिंसात्मक कर्मों में रुचिवाले हो जाएंगे और सदा औरों को दु:खी करने में ही आनन्द लेने लगेंगे। इसप्रकार के ये बच्चे बड़े होकर समाज के लिए बड़े भार प्रमाणित होंगे।

    भावार्थ

    माता अपने सन्तानों के कल्याण के लिए तीन बातों से बचे-[क] गाली देने से, [ख] हिंसात्मक कर्मों से, [ग] औरों के आनन्द को नष्ट करने से। -

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    भाषार्थ

    (बहवः) बहुसंख्यक शत्रु (न समशकन्) हमें पराजित करने में, परस्पर संघीभूत हुए, समर्थ नहीं हुए। (अर्भका:) अल्पसंख्यक शत्रुओं ने तो (अभि) अभिमुख हमारे होकर (न दाधृषुः) यह धृष्टता ही नहीं की। (अघायवः) अघ अर्थात् पापरूपी युद्धकर्म चाहते हुए शत्रु, (वेणोः) बाँस से (अभितः, इव उद्गाः) शाखा-प्रशाखारूप में सब ओर उठी हुई, फैली हुई (इव) के सदृश (असमृद्धाः) समृद्धिरहित हुए हैं, तितर-बितर हुए हैं।

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    विषय

    सेना-सञ्चालन।

    भावार्थ

    ( अघायवः ) हमारे शत्रु सैनिक ( बहवः ) बहुत से (सम्) मिलकर भी ( न अशकन् ) हम पर आक्रमण की शक्ति सेरहित हों। ( अर्भकाः ) वे बच्चों के समान निर्बल ( न अभि दाधृषुः ) हमारे पर आक्रमण की धृष्टता भी नहीं कर सकें। (वेणोः अभितः) बांस के चारों और (अद्भाः इव ) छोटी २ शाखाओं की न्याई ( अघायवः ) हत्यारे शत्रुसैनिक ( असमृद्धाः ) तितर बितर हो जाने के कारण ऋद्धि सिद्धि रहित हो गये हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्वस्त्ययनकामोऽथर्वा ऋषिः। चन्द्रमा इन्द्राग्नी च देवता। १ पथ्यापंक्तिः, २, ३, ४ अनुष्टुभः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ruler’s Army

    Meaning

    Neither the many nor the few of the evil doers like slender sticks of cane are able to challenge us. Their mind and morale is broken down to naught all round.

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    Translation

    Many were not able to withstand the attack. They could not even take away their children with them. Like the shoots of bamboo they were finished from all sides. Those with evil intentions never prosper.

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    Translation

    The enemies many in number, let net be able to attack us collectively, they like infants be not successful in assailing us. Let these our enemies like scattered fragments: of reed, never be prosperous.

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    Translation

    Let not our enemy have the power to attack us in large numbers, nor the audacity to wage war against us with forces feeble like the children. Like scattered fragments of a reed, ne’er are the wicked prosperous.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−बहवः। लङ्घिबंह्योर्नलोपश्च। उ० १।२९। इति बृहि वृद्धौ−कु, नस्य लोपः। विपुलाः, हस्त्यश्वरथपदातियुक्ताः शत्रवः। सम्। सम्यक्, अल्पमपीत्यर्थः। अशकन्। शक्लृ शक्तौ−लुङ्। जेतुं शक्ता अभूवन्। अर्भकाः। अर्त्तिगॄभ्यां भन्। उ० ३।१५२। इति ऋ गतौ-भन् स्वार्थे-कन्। दभ्रमभ्रकमित्यल्पस्य। इति यास्कः−निरु० ३।२०। अल्पाः, निर्बलाः। अभि। आभिमुख्येन। दाधृषुः। धृषु संहतौ, हिंसे, प्रागल्भ्ये−लिट्। दीर्घः। धृष्टाः प्रगल्भा बभूवुः। वेणोः। अजिवृरीभ्यो निच्च। उ० ३।३८। इति अज गतिक्षेपणयोः−णु। वीभावो गुणश्च। वंशकाण्डस्य नीरसतृणस्य इत्यर्थः। अद्गाः। गन् गम्यद्योः। उ० १।१२३। इति अद भक्षणे−गन्। अद्यते भक्ष्यते स अद्गः। पुरोडाशाः। अभितः। सर्वतः। अन्यद् व्याख्यातम्। म० २ ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (বহবঃ) বহু পরিমিত শত্রু সৈন্য (সম্অশকন্ ন) সমর্থ হয় না এবং (ন অর্ভকাঃ) নির্বল হইবার পর (অভিদাধ্বকষুঃ) কিছু সাহস করিতে পারে না। (বেণোঃ) বাশের (অদ্‌গাঃ ইব) ভোজ্য বস্তুর ন্যায় (অথায়বঃ) দুর্বুদ্ধি শত্র (অসমৃদ্ধাঃ) নির্ধন হইয়া যাক।।

    भावार्थ

    রাজা শত্রুগণকে এইরূপ বশীভূত করিবে যেন তাহারা সংখ্যায় বহু হইলেও কিছু করিতে সমর্থ না হয় এবং নির্বল হইবার পরেও কিছু করিতে সাহস না করে। নীরস বাশ আদি তৃণের ভোজ্য পদার্থ যেরূপ পুষ্টিকর হয় না সেইরূপ শত্রু সৈন্য নির্ধন হইয়া নিস্তেজ হউক।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    ন বহবঃ সমশকন্ নার্ভকা অভি দাধৃঃ। বেণোরদ্‌গা ইবাভিতোহ্ সমৃদ্ধা অঘায়বঃ।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা (স্বস্ত্যয়নকামঃ)। ইন্দ্ৰাণী। অনুষ্টুপ্

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    मन्त्र विषय

    (যুদ্ধপ্রকরণম্) যুদ্ধের প্রকরণ

    भाषार्थ

    (ন) না তো (বহবঃ) বহু শত্রু (সমশকন্) সমর্থ হয়েছে (ন) এবং না (অর্ভকাঃ) যেন তারা নির্বল হয়ে যাওয়ার পর (অভিদাধৃষুঃ) কিছু সাহস করতে পারে, (বেণোঃ) বাঁশের (অদ্গাঃ) নীরসতার (ইব) ন্যায় (অঘায়বঃ) কুচিন্তক শত্রু (অসমৃদ্ধাঃ) নির্ধন [হোক] ॥৩॥

    भावार्थ

    রাজা দুরাচারী দুষ্টদের এমন ভাবে বশ করবেন যে তারা যেন একত্র হতে না পারে এবং না মানুষদের উত্যক্ত করতে পারে। যেরূপ নীরস শুষ্ক বাঁশ আদি তৃণের ভোজন পুষ্টিদায়ক হয় না, একই ভাবে তাদের সর্বথা নির্বল করে দেওয়া হোক। এইভাবে মনুষ্য আত্মশিক্ষা লাভ করুক॥৩॥ সায়ণভাষ্যে (দাধৃষুঃ) এর স্থানে [দাদৃশুঃ] এবং (অদ্গাঃ) এর স্থানে [উদ্গাঃ] রয়েছে ॥

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    भाषार्थ

    (বহবঃ) বহুসংখ্যক শত্রু (ন সমশকন্) আমাদের পরাজিত করার জন্য, পরস্পর সংযুক্ত হয়ে, সমর্থ হয়নি (অর্ভকাঃ) অল্পসংখ্যক শত্রুরাও তো (অভি) আমাদের অভিমুখ হয়ে (ন দাধৃষুঃ) এই ধৃষ্টতাই করেনি। (অঘায়বঃ) অঘ অর্থাৎ পাপরূপী যুদ্ধকর্ম অভিলাষী শত্রু, (বেণোঃ) বাঁশ থেকে (অভিতঃ, ইব উদ্গাঃ) শাখা-প্রশাখারূপে সব দিকে উত্থিত, বিস্তৃতির (ইব) সদৃশ (অসমৃদ্ধাঃ) সমৃদ্ধিরহিত হয়েছে, ছিন্ন বিচ্ছিন্ন হয়েছে।

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