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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 28/ मन्त्र 3
    ऋषिः - चातनः देवता - यातुधानी छन्दः - विराट्पथ्याबृहती सूक्तम् - रक्षोघ्न सूक्त
    66

    या श॒शाप॒ शप॑नेन॒ याघं मूर॑माद॒धे। या रस॑स्य॒ हर॑णाय जा॒तमा॑रे॒भे तो॒कम॑त्तु॒ सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । श॒शाप॑ । शप॑नेन । या । अ॒घम् । मूर॑म् । आ॒ऽद॒धे । या । रस॑स्य । हर॑णाय । जा॒तम् । आ॒ऽरे॒भे । तो॒कम् । अ॒त्तु॒ । सा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या शशाप शपनेन याघं मूरमादधे। या रसस्य हरणाय जातमारेभे तोकमत्तु सा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । शशाप । शपनेन । या । अघम् । मूरम् । आऽदधे । या । रसस्य । हरणाय । जातम् । आऽरेभे । तोकम् । अत्तु । सा ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 28; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (4)

    विषय

    युद्ध का प्रकरण।

    पदार्थ

    (या) जिस [शत्रुसेना] ने (शपनेन) शाप [कुवचन] से (शशाप) कोसा है और (या) जिसने (अघम्) दुःख की (मूरम्) मूल को (आदधे) आकर जमाया है और (या) जिसने (रसस्य) रस के (हरणाय) हरण के लिये (जातम्) [हमारे] समूह को (आरेभे) हाथ लगाया है, (सा) वह [शत्रुसेना] (तोकम्) अपनी बढ़ती वा सन्तान को (अत्तु) खा लेवे ॥३॥

    भावार्थ

    रणक्षेत्र में जब शत्रुसेना कोलाहल मचाती, धावा मारती और लूट-खसोट करती आगे बढ़ती आवे, तो युद्धकुशल सेनापति शत्रुओं में भेद डाल दे कि वह लोग आपस में लड़ मरैं और अपने सन्तान अर्थात् हितकारियों का ही नाश कर दें ॥३॥ सायणभाष्य में (आदधे) के स्थान में [आददे] पाठ है ॥

    टिप्पणी

    ३−या। यातुधानी शत्रुसेना। शशाप। शप आक्रोशे−लिट्। शापम्। अनिष्टकथनं कृतवती। शपनेन। शप आक्रोशे−करणे ल्युट्। आक्रोशेन, कुवचनेन। अघम्। अघ पापकरणे−णिच्−अच्। पापं दुःखम्। दुःख-करम्। मूरम्। क्विप् च। पा० ३।२।७६। इति मुर्छा मोहसमुच्छ्राययोः−क्विप्। राल्लोपः। पा० ६।४।२१। इति छकारलोपः। मूर्छाकरम्। यद्वा। मूल, प्रतिष्ठायाम्, रोपणे-कु, लस्य रकारः। मूलम्। प्रतिष्ठाम्। अघं मूरम्। दुःखकरं मूलं शरणम्। आ-दधे। आङ्+डुधाञ् धारणपोषणयोः, दाने च−लिट्। परि जग्राह। रसस्य। रस आस्वादे−पचाद्यच्। सारस्य, बलस्य, धनस्य, आनन्दस्य। हरणाय। अपहरणाय, नाशनाय। जातम्। जनी प्रादुर्भावे−क्त। अस्माकं समूहम्। आ-रेभे। आङ् पूर्वात् लभ आलम्भे=स्पर्शे-लिट्, लस्य रकारः। आलेभे, स्पृष्टवती। तोकम्। १।१३।२। वृद्धिकरम्। सन्तानम्। अत्तु। अक्षयतु नाशयतु। सा। शत्रुसेना।

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    विषय

    तीन त्याज्य बातें

    पदार्थ

    १. [क] (या) = जो (शपनेन) = अपशब्दों, आक्रोशों [curses] से (शशाप) = शाप देती है, गालियाँ देती है, [ख] (या) = जो (मूरम्, अघम्) = [मूरम्-destroying, killing] हिंसात्मक पापों को (आदधे) = धारण करती है, [ग] (या) = जो (रसस्य हरणाय) = औरों के आनन्द को नष्ट करने के लिए (जातम्) = साधन बने हुए कर्म को (आरेभे) = आरम्भ करती है, (सा) = वह (तोकम् अत्तु) = अपनी सन्तान को ही खा जाती है २. इस स्त्री के बच्चों पर इन सब कर्मों का इतना घातक प्रभाव होता है कि बच्चों का जीवन ही नष्ट हो जाता है। उसके बच्चे भी गाली देने लगेंगे, हिंसात्मक कर्मों में रुचिवाले हो जाएंगे और सदा औरों को दु:खी करने में ही आनन्द लेने लगेंगे। इसप्रकार के ये बच्चे बड़े होकर समाज के लिए बड़े भार प्रमाणित होंगे।

    भावार्थ

    माता अपने सन्तानों के कल्याण के लिए तीन बातों से बचे-[क] गाली देने से, [ख] हिंसात्मक कर्मों से, [ग] औरों के आनन्द को नष्ट करने से। -

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    भाषार्थ

    (या) जो [शत्रु की सम्राज्ञी] (शपनेन) शाप द्वारा (शशाप) शाप देती है, (या) जो ( मूरम् ) मूलभूत ( अघम् ) हत्यारे कर्म को ( आदधे) निज जीवन में आधान करती है, (या) जो (रसस्य ) विषयों की प्यास बुझाने के लिए (जातम् ) बच्चों को (आरेभे) मार डालती है और (सा) वह (तोकम्) अपनी सन्तान को (अत्तु) खा जाती है।

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    विषय

    घृणाकारी दुष्टों का नाश।

    भावार्थ

    (या) जो शत्रु सेना ( शपनेन शशाप ) निन्दित वचनों द्वारा हमारी निन्दा करती है, ( या ) जो शत्रु सेना ( मूरम् ) मोहक (अघम्) और घातक अस्त्र (आदधे) हमपर फैकने के निमित्त लिये हुए हैं, ( या ) जो शत्रुसेना (रसस्य हरणाय) राष्ट्र रूप देह के रस या बल के हर लेने के लिये ( जातं तोकम् ) हमारे नन्हें २ बच्चों कों भी ( आरेभे ) पकड़ लेती हैं, और उन्हें मार डालती है, (सा) वह शत्रु सेना भी ( अत्तु ) अपने इन कर्तव्यों का बुरा फल चखे अर्थात् हम भी उससेना के साथ तथा उस सेना में अपने देशज लोगों के साथ ऐसा ही वर्ताव करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    चातन ऋषिः । १ अग्निर्देवता २, ३, ४ यातुधान्यो देवताः । १, २ अनुष्टुभौ, ३ विराट् पथ्याबृहती, ४ पथ्यापंक्तिः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Destroying the Wicked

    Meaning

    Whatever force, enemy, negativity and infection within or from outside, with its own destructive action, has become a curse for us, whatever has planted itself as a fast growing killer disease, or whatever natal disease afflicts our new born baby and consumes its vitality of life, may all that disease, affliction and negativity be self-consuming to cause its own end.

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    Subject

    Yatudhani

    Translation

    These malignant microbes have cursed(the patient) with cursings that has taken malignity as her root (mura= mula); that has seized our young babies to suck the blood. Let her devour her own child (tokam).

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    Translation

    Let that female germ of disease who curses us with the curse (infection), who has in her store the fatality, a great sin, who attacks our infant child for sucking chyle return back to eat her own progeny.

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    Translation

    She who hath reviled us with filthy words or hath made mischief her aim, or seized our men for taking their blood, let her retard her own advancement.

    Footnote

    She and her refer to the army of the enemy, such an army can make no progress, who curses us, is bent on mischief, or takes the blood of our soldiers.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−या। यातुधानी शत्रुसेना। शशाप। शप आक्रोशे−लिट्। शापम्। अनिष्टकथनं कृतवती। शपनेन। शप आक्रोशे−करणे ल्युट्। आक्रोशेन, कुवचनेन। अघम्। अघ पापकरणे−णिच्−अच्। पापं दुःखम्। दुःख-करम्। मूरम्। क्विप् च। पा० ३।२।७६। इति मुर्छा मोहसमुच्छ्राययोः−क्विप्। राल्लोपः। पा० ६।४।२१। इति छकारलोपः। मूर्छाकरम्। यद्वा। मूल, प्रतिष्ठायाम्, रोपणे-कु, लस्य रकारः। मूलम्। प्रतिष्ठाम्। अघं मूरम्। दुःखकरं मूलं शरणम्। आ-दधे। आङ्+डुधाञ् धारणपोषणयोः, दाने च−लिट्। परि जग्राह। रसस्य। रस आस्वादे−पचाद्यच्। सारस्य, बलस्य, धनस्य, आनन्दस्य। हरणाय। अपहरणाय, नाशनाय। जातम्। जनी प्रादुर्भावे−क्त। अस्माकं समूहम्। आ-रेभे। आङ् पूर्वात् लभ आलम्भे=स्पर्शे-लिट्, लस्य रकारः। आलेभे, स्पृष्टवती। तोकम्। १।१३।२। वृद्धिकरम्। सन्तानम्। अत्तु। अक्षयतु नाशयतु। सा। शत्रुसेना।

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (য়া) যে শত্রু সেনা (শপনেন) শাপ দ্বারা (শশাপ) আক্রোেশ প্রকাশ করিয়াছে, (য়া) যে (অঘ) দুঃখের (মূলং) মূলকে (আধদে) একত্র সম্মিলিত করিয়াছে, (য়া) যে (রহস্য) রস (হরণায়) হরণের জন্য (জাতং) আমাদের সমষ্টির উপর (আরেভে) হাত লাগাইয়াছে (সা) সেই শত্রু সেনা (তোকম্) নিজের সন্তান বা হিতৈষী ব্যক্তি গণকেই (অদ্ভু) ভক্ষণ করুক।।

    भावार्थ

    যে সব শত্রু সৈন্য অভিশাপ দ্বারা আক্রোশ প্রকাশ করিয়াছে, যাহারা দুঃখের মূল সৃষ্টি করিয়াছে, যাহারা বল হরণের জন্য আমাদের সমষ্টি শক্তির উপরেন্দ্র হস্তক্ষেপ করিয়াছে। সেই শত্রু সৈন্যরা নিজের সন্তান বা হিতৈবী বন্ধুগণকেই ভক্ষণ করুক।।
    রণক্ষেত্রে যখন শত্রু সৈন্যরা উপদ্রবের সৃষ্টি করে, লুটপাট করিয়া ক্রমেই অগ্রসর হইতে থাকে, সেনাপতি তখন শত্রু সৈন্যের মধ্যে এমন ভেদনীতির চালনা করিবে, যেন শত্রুসৈন্য নিজেরা কলহ বিবাদ করিয়া ধ্বংস প্রাপ্ত হয়।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়া শশাপ শপনেন য়াঘং মূরমাদধে। য়া রসস্য হরণায় জাতমারেভে তোকমত্তুসা।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    চাতনঃ। যাতুধান্যঃ। বিরাট্ পথ্যা বৃহতী

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    मन्त्र विषय

    (যুদ্ধপ্রকরণম্) যুদ্ধের প্রকরণ

    भाषार्थ

    (যা) যে [শত্রুসেনা] (শপনেন) অভিশাপ [কুবচন] দ্বারা (শশাপ) অভিসম্পাত করে/কষ্ট দেয় এবং (যা) যে/যারা (অঘম্) দুঃখের (মূরম্) মূল (আদধে) দৃঢ়/ধারণ করেছে এবং (যা) যে (রসস্য) রসের (হরণায়) হরণের জন্য (জাতম্) [আমাদের] গোষ্ঠীকে (আরেভে) স্পর্শ করে, (সা) সেই [শত্রুসেনা] (তোকম্) নিজের বৃদ্ধি বা সন্তানকে (অত্তু) নাশ/ভক্ষণ করুক ॥৩॥

    भावार्थ

    রণক্ষেত্রে যখন শত্রুসেনা কোলাহল সৃষ্টি করে, আক্রমণ করে এবং লুট-পাট করতে করতে সামনে অগ্রসর হবে, তখন যুদ্ধকুশল সেনাপতি শত্রুদের মধ্যে ভেদ সৃষ্টি করবেন যেন তারা[শত্রুসেনা] নিজেদের মধ্যেই লড়াই করে বিনষ্ট হয়এবং নিজের সন্তান অর্থাৎ হিতকারীদেরই নাশ করে দেয় ॥৩॥ সায়ণভাষ্যে (আদধে) এর স্থানে [আদদে] পাঠ রয়েছে ॥

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    भाषार्थ

    (যা) যে [শত্রুর সম্রাজ্ঞী] (শপনেন) অভিশাপ দ্বারা (শশাপ) অভিশাপ দেয়, (যা) যে (মূরম্) মূলভূত (অঘম্) হত্যাকর্মকে (আদধে) নিজ জীবনের আধান করে, (যা) যে (রসস্য) বিষয়সমূহের তৃষ্ণা নিবারণের/দূর করার জন্য (জাতম) শিশুদের (আরেভে) হত্যা করে; (সা) সে যেন (তোকম) নিজের সন্তানকেই (অত্তু) ভক্ষণ/বিনাশ করে/খেয়ে নেয়।

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