अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 28/ मन्त्र 4
ऋषिः - चातनः
देवता - यातुधानी
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - रक्षोघ्न सूक्त
77
पु॒त्रम॑त्तु यातुधा॒नीः स्वसा॑रमु॒त न॒प्त्य॑म्। अधा॑ मि॒थो वि॑के॒श्यो॑३ वि घ्न॑तां यातुधा॒न्यो॑३ वि तृ॑ह्यन्तामरा॒य्यः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒त्रम् । अ॒त्तु॒ । या॒तु॒ऽधा॒नी: । स्वसा॑रम् । उ॒त । न॒प्त्यम् । अध॑ । मि॒थ: । वि॒ऽके॒श्य: । वि । घ्न॒ता॒म् । या॒तु॒ऽधा॒न्य: । वि । तृ॒ह्य॒न्ता॒म् । अ॒रा॒य्य: ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुत्रमत्तु यातुधानीः स्वसारमुत नप्त्यम्। अधा मिथो विकेश्यो३ वि घ्नतां यातुधान्यो३ वि तृह्यन्तामराय्यः ॥
स्वर रहित पद पाठपुत्रम् । अत्तु । यातुऽधानी: । स्वसारम् । उत । नप्त्यम् । अध । मिथ: । विऽकेश्य: । वि । घ्नताम् । यातुऽधान्य: । वि । तृह्यन्ताम् । अराय्य: ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
युद्ध का प्रकरण।
पदार्थ
(यातुधानीः=०-नीः) दुःखदायिनी, [शत्रुसेना] (पुत्रम्) [अपने] पुत्र को, (स्वसारम्) भली-भाँति काम पूरा करनेहारी बहिन को (उत) और (नप्त्यम्=नप्त्रीम्) नातिनी वा धेवती को (अत्तु) खा लेवे अर्थात् नष्ट करे। (अध) और (विकेश्यः) केश बिखेरे हुए वह सब [सेनाएँ] (मिथः) आपस में (विघ्नताम्) मर मिटें और (अराय्यः) दान अर्थात् कर न देनेहारी (यातुधान्यः) दुःख पहुँचानेहारी [शत्रुप्रजाएँ] (वितृह्यन्ताम्) विविध प्रकार के दुःख उठावें ॥४॥
भावार्थ
चतुर सेनापति राजा अपनी बुद्धिबल से दुष्ट शत्रुसेना में हलचल मचा दे कि वह सब घबराकर आपस में कट-मर कर एक दूसरे को सताने लगें और जो प्रजागण हठ दुराग्रह करके, कर आदि न देवें, उनको दण्ड देकर वश में कर लेवे ॥४॥ तीनों संहिताओं में (यातुधानीः) सविसर्ग पाठ लेखप्रमाद दीखता है। सायणभाष्य में (यातुधानी) विसर्गरहित व्याख्यात है, वह (अत्तु) क्रिया के संबन्ध में ठीक है ॥ इति पञ्चमोऽनुवाकः ॥
टिप्पणी
४−पुत्रम्। १।११।५। स्वसुतम्। यातु-धानीः। म० २। प्रथमैकवचनं छन्दसि यथा श्रीः। यातुधानी, दुःखप्रदा, शत्रुसेना। स्वसारम्। सावसेर्ऋन्। उ० २।९६। इति सु+असु क्षेपणे−ऋन्। सुष्ठु अस्यति समाप्नोति कार्याणि सा स्वसा। भगिनीम्। उत। अपि च। नप्त्यम्। नप्तृनेष्टृत्वष्टृहोतृ० उ० २।९५। इति न+पत अधोगमने-तृच्। न पतति वंशो यस्मात् स नप्ता। ऋन्नेभ्यो ङीप्। पा० ४।१।५। इति नप्तृशब्दात् ङीप्। वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति पूर्वरूपस्य विकल्पाद् यणादेशः। नप्त्रीम्, पौत्रीं दौहित्रीं वा। अध। थस्य धः। अथ, अनन्तरम्। मिथः। मिथ वधे, मेधायाम्−असुन्, पृषोदरादित्वाद् ह्रस्वः। अन्योऽन्यम् परस्परम्। वि-केश्यः। स्वाङ्गाच्चोपसर्जनादसं०। पा० ४।१।५४। इति विकेश-ङीप्। विकीर्णकेशयुक्ताः परस्परताडनेन। वि। विविधम्। घ्नताम्। हन हिंसागत्योः−लोटि बहुवचने। हन्यन्ताम्। म्रियन्ताम्। यातुधान्यः। म० १। पीडाप्रदाः शत्रुसेनाः। तृह्यन्ताम्। तृह हिंसायाम्−कर्मणि लोट्। हिंस्यन्ताम्। अराय्यः। रा दाने−घञ् युक् आगमः, ङीप्। अदानशीलाः प्रजाः ॥
विषय
परस्पर लड़ने-झगड़ने से बचना
पदार्थ
१. (अध) = अब (यातुधान्य:) = औरों के लिए पीड़ा का आधान करनेवाली (स्त्रियाँ मिथ:) = परस्पर भी (विकेश्य:) = बिखरे हुए केशोंवाली (विघ्नताम्) = परस्पर (मारने) = पीटनेवाली होती हैं और (अराय्य:) = न देने की वृत्तिवाली ये यातुधानियाँ (वितहान्ताम) = विविध प्रकारों से परस्पर हिंसा करनेवाली होती हैं। २. इसप्रकार परस्पर लड़ती हुई तथा हिंसात्मक कर्मों में लगी हुई (यातुधानी:) = ये यातुधानियाँ (पुत्रम्) = पुत्र को (अत्तु) = खा जाती हैं, अर्थात् उनके जीवन को नष्ट कर देती हैं, (उत) = और (स्वसारम्) = अपनी बहिन को व नप्त्यम्-नाती को भी खा जाती हैं, अर्थात् उनके जीवन को भी नष्ट कर देती है।
भावार्थ
सन्तान को उत्तम बनाने के लिए आवश्यक है कि गृहपत्नियों परस्पर लड़ें नहीं । और हिंसात्मक कर्मों में भी प्रवृत्त न हों।
विशेष
सूक्त का संक्षिप्त विषय यह है कि प्रचारक ऐसी उत्तमता से प्रचार करे कि समाज से 'द्वयावी, किमीदी व यातुधान' दूर हो जाएँ। माताएँ भी यातुधानत्व को छोड़कर उत्तम कर्मों में लगी रहकर सन्तानों को उत्तम बनाएँ [१-४] । सन्तानों को उत्तम बनाने के लिए आवश्यक है कि इन्हें 'अभीवर्तमणि' के रक्षण की शिक्षा दी जाए। इसके रक्षण से जीवन को उत्तम बनाते हुए वे 'वसिष्ठ' अत्यन्त उत्तम निवासवाले बनेंगे। यह वसिष्ठ ही अगले सूक्त का ऋषि है।
भाषार्थ
(यातुधानीः) यातुधानी स्त्री (पुत्रमत्तु) पुत्र को खाए१ (स्वसारम्) निज बहिन को (उत) तथा (नप्त्यम्) नातिन को खाए। (अध) तथा (विकेश्यः) बिखरे केशोंवाली हुई, (मिथः) परस्पर (विघ्नताम्) विशेष रूप में हनन करें, (यातुधान्यः) यातुधानी स्त्रियाँ ( अराय्यः ) एक-दूसरे को कुछ न देती हुई परस्पर शत्रुरूप हो जाएँ। विघ्नताम् = अथवा परस्पर के कार्यों में विघ्न पैदा करें।
टिप्पणी
[विकेश्यः द्वारा यातुधानियों की उन्मत्तता को सूचित किया है। देखो मन्त्र (३) में "मूरम्" पद। इन यातुधानियों के तोक, नाती तथा स्वसाएँ भी हैं। अतः ये मानुषी हैं। मनुष्यजाति के ही भिन्न-भिन्न वर्ग की हैं। अराय्यः अ+रा [दाने]+ युक् (अष्टा० ७।३।३३ )] [१. सूक्त का अर्थ सायणकृत अर्थ के आधार पर किया है। ब्रह्मा है चतुर्वेदविद् विद्वान्। यथा "ब्रह्मा त्वो वदति जातविद्याम्" (ऋ० १०।७१।११) तथा "ब्रह्मैको जाते जाते विद्यां वदति। ब्रह्मा सर्वविद्यः सर्वं वेदितुमर्हति। ब्रह्मा परिवृढः श्रृततः" (निरुक्त १।३।८)।]
विषय
घृणाकारी दुष्टों का नाश।
भावार्थ
( यातुधानीः ) यातना पहुंचाने वाली यह शत्रु सेना के ( पुत्रम् ) अपने पुत्र भी ( अत्तु ) इसी प्रकार नष्ट किये जाय ( स्वसारमुत नप्त्यम् ) इनकी कन्याएं, बहिनें तथा अन्य नाती भी इसी प्रकार नष्ट किये जाय। और इनमें ऐसा त्रास तथा भेद नीति फैलाया जाय कि ये ( विकेश्यः ) एक दुसरे के केशों को नोचती हुई ( मिथः विघ्नताम् ) परस्पर युद्ध द्वारा नष्ट हो जाय ता कि ( यातुधान्यः अराय्यः ) यातना पहुंचाने वाली शत्रु सेनाएं ( वि तृह्यन्ताम् ) परस्पर एक दूसरे का नाश करें। इति पञ्चमोऽनुवाकः।
टिप्पणी
‘पुत्रमत्तु यातुधानी’, ‘अथ मिथो’ इति सायणाभिमतौ पाठौ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
चातन ऋषिः । १ अग्निर्देवता २, ३, ४ यातुधान्यो देवताः । १, २ अनुष्टुभौ, ३ विराट् पथ्याबृहती, ४ पथ्यापंक्तिः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Destroying the Wicked
Meaning
Let the fire and light of yajnic treatment convert the afflictive germs, viruses, negative cells and psychic evils into positivities so that they themselves consume and destroy their by-products, side effects, consequential developments, mutual conflicts and expansions, and thereby may all these afflictions and evils, now consuming and debilitating, be by themselves crushed, destroyed and uprooted.
Translation
May the bacteriophages (Yatudhanf) eat-up their own sons, sister and grand-children, may the hurried (vikesyah) mutually destroy (one another). May the parasites be shattered asunder.
Translation
Let these painful female germs eat their own progeny, their own sisters, and their own grand children. They fight in themselves scratching their hair and destroy each other.
Translation
Let the troublesome army of the enemy, through confusion, destroy her own son, sister and granddaughter. Let the rival forces, with them disheveled hair, fight together and destroy themselves. Let the non tax-paying turbulent subjects be crushed down.
Footnote
The king should subdue the non-tax-paying unruly subjects, and cause confusion in the ranks of the enemy’s forces, that they destroy their own kith and km, and annihilate themselves through mutual fight.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−पुत्रम्। १।११।५। स्वसुतम्। यातु-धानीः। म० २। प्रथमैकवचनं छन्दसि यथा श्रीः। यातुधानी, दुःखप्रदा, शत्रुसेना। स्वसारम्। सावसेर्ऋन्। उ० २।९६। इति सु+असु क्षेपणे−ऋन्। सुष्ठु अस्यति समाप्नोति कार्याणि सा स्वसा। भगिनीम्। उत। अपि च। नप्त्यम्। नप्तृनेष्टृत्वष्टृहोतृ० उ० २।९५। इति न+पत अधोगमने-तृच्। न पतति वंशो यस्मात् स नप्ता। ऋन्नेभ्यो ङीप्। पा० ४।१।५। इति नप्तृशब्दात् ङीप्। वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति पूर्वरूपस्य विकल्पाद् यणादेशः। नप्त्रीम्, पौत्रीं दौहित्रीं वा। अध। थस्य धः। अथ, अनन्तरम्। मिथः। मिथ वधे, मेधायाम्−असुन्, पृषोदरादित्वाद् ह्रस्वः। अन्योऽन्यम् परस्परम्। वि-केश्यः। स्वाङ्गाच्चोपसर्जनादसं०। पा० ४।१।५४। इति विकेश-ङीप्। विकीर्णकेशयुक्ताः परस्परताडनेन। वि। विविधम्। घ्नताम्। हन हिंसागत्योः−लोटि बहुवचने। हन्यन्ताम्। म्रियन्ताम्। यातुधान्यः। म० १। पीडाप्रदाः शत्रुसेनाः। तृह्यन्ताम्। तृह हिंसायाम्−कर्मणि लोट्। हिंस्यन्ताम्। अराय्यः। रा दाने−घञ् युक् आगमः, ङीप्। अदानशीलाः प्रजाः ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(য়াতুধানীঃ) পরপীড়ক শত্রু সেনা (প্রত্রম্) স্বীয় পুত্রকে (স্বসরাম্) ভগ্নীকে (উত) এবং (নপ্তাম্) পৌত্রকে (অত্তু) ভক্ষণ করুক (অধ) এবং (বিকেশ্যঃ) আলুলায়িত কেশযুক্ত সৈন্যগণ (মিথঃ) নিজেদের মধ্যে (বিঘ্নতাং) মারামারি করিয়া শেষ হয় এবং (অরায়্যঃ) দানহীন (য়াতুধান্যঃ) দুঃখদায়ী শত্রুসেনা (বিতৃহ্যন্তাং) বিবিধ প্রকারের দুঃখভোগ করুক।।
भावार्थ
দুষ্ট পরপীড়ক শত্রু সেনা স্বীয় পুত্র, ভগ্নী ও পৌত্রীকেও ধ্বংস করুক এবং আলুলায়িত কেশযুক্ত সৈন্যগণ নিজেদের মধ্যে মারামারি করিয়া ধ্বংস হউক। দানহীন শত্রু প্রজা বিবিধ প্রকারের দুঃখ ক্লেশ ভোগ করুক।।
রাজার ভেদনীতিতে শত্রুসৈন্য এই ভাবে ধ্বংস প্রাপ্ত হউক।।
मन्त्र (बांग्ला)
পুত্রমত্তুয়াতুধানীঃ স্বসারমুত নপ্ত্যম্ অধামিতো বিকেশ্যো৩ বিঘ্নতাং য়াতধান্যো৩ বি তৃহ্যন্তামরায়্যঃ।।
ऋषि | देवता | छन्द
চাতনঃ। যাতুধান্যঃ। পথ্যা পঙ্ক্তিঃ
मन्त्र विषय
(যুদ্ধপ্রকরণম্) যুদ্ধের প্রকরণ
भाषार्थ
(যাতুধানীঃ=০-নীঃ) দুঃখদায়িনী, [শত্রুসেনা] (পুত্রম্) [নিজের] পুত্রকে, (স্বসারম্) উত্তমরূপে কর্ম পূর্ণকারী/সম্পন্নকারী বোনকে (উত) এবং (নপ্ত্যম্=নপ্ত্রীম্) পৌত্রী বা দৌহিত্রীকে (অত্তু) খেয়ে ফেলুক অর্থাৎ বিনষ্ট করুক। (অধ) এবং (বিকেশ্যঃ) অবিন্যস্ত কেশযুক্ত/মুক্তকেশী সেই সব [সেনাগণ] (মিথঃ) নিজেদের মধ্যে (বিঘ্নতাম্) বিনাশ হবে/হোক এবং (অরায়্যঃ) দান অর্থাৎ কর প্রদান করে না এমন/অদানশীল (যাতুধান্যঃ) দুঃখদায়ী/দুঃখদায়ক [শত্রুপ্রজাগণ] (বিতৃহ্যন্তাম্) বিবিধ প্রকারের দুঃখ পাবে/প্রাপ্ত হোক ॥৪॥
भावार्थ
চতুর সেনাপতি রাজা নিজের বুদ্ধিবল দ্বারা দুষ্ট শত্রুসেনা মধ্যে এমন আলোড়ন সৃষ্টি করবেন যে, তারা সবাই ভীত হয়ে নিজেদের মধ্যে পরস্পরকে আক্রমণ করে একে অপরকে বিনাশ করে/করবে/করুক। এবং যে প্রজাগণ হঠকারী ও দুরাগ্রহী হয়ে কর আদি না দেবে, তাদের শাস্তি দিয়ে রাজা নিজের বশবর্তী/নিয়ন্ত্রণে করবেন/করুক ॥৪॥ তিনটি সংহিতাতে (যাতুধানীঃ) সবিসর্গ পাঠ লেখপ্রমাদ দেখা যায়। সায়ণভাষ্যে (যাতুধানী) বিসর্গরহিত ব্যাখ্যাত হয়েছে, তা (অত্তু) ক্রিয়ার সম্বন্ধে ঠিক আছে॥
भाषार्थ
(যাতুধানীঃ) রাক্ষসী স্ত্রী (পুত্র মত্তু) যেন নিজের পুত্রকেই খায়১/বিনাশ করে (স্বসারম্) নিজের বোনকে (উত) এবং (নপ্ত্যম) নাতনীকে ভক্ষণ করে। (অধ) এবং (বিকেশ্যঃ) অবিন্যস্ত/মুক্তকেশী হয়ে, (মিথঃ) পরস্পর (বিঘ্নতাম্) বিশেষ রূপে হনন করে/করুক, (যাতুধান্যঃ) রাক্ষসী স্ত্রী (অরায্যঃ) একে অপরকে কিছু না দিয়ে পরস্পর শত্রুরূপ হোক/হয়ে যাক। (বিতৃহ্যন্তাম্) পরস্পরের কার্যে বিঘ্ন উৎপন্ন করুক।
टिप्पणी
[বিকেশ্যঃ দ্বারা রাক্ষসীর/পীড়াদায়ক স্ত্রী-এর উন্মত্ততাকে সূচিত করা হয়েছে। দেখো মন্ত্র (৩) এ "মূরম" পদ। এই রাক্ষসীদের পুত্র, নাতী এবং বোনও থাকে। অতএব এর মানুষই। মনুষ্যজাতির ভিন্ন-ভিন্ন বর্গের। অরায়্যঃ অ + রা [দানে]+ যুক্ (অষ্টা ৭।৩।৩৩)।] [১. সূক্তের অর্থ সায়ণকৃত অর্থের উপর ভিত্তি করে করা হয়েছে। ব্রহ্মা হলো চতুর্বেদবিদ্ বিদ্বান্। যথা "ব্রহ্মা ত্বো বদতি জাতবিদ্যাম্" (ঋ০ ১০।৭১।১১) এবং "ব্রহ্মৈকো জাতে জাতে বিদ্যাং বদতি। ব্রহ্মা সর্ববিদ্যঃ সর্ব বেদিতুমর্হতি। ব্রহ্মা পরিবৃঢ়ঃ শ্রুততঃ" (নিরুক্ত ১।৩।৮)।]
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