Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 6 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 2
    ऋषिः - सिन्धुद्वीपं कृतिः, अथवा अथर्वा देवता - अपांनपात् सोम आपश्च देवताः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - जल चिकित्सा सूक्त
    132

    अ॒प्सु मे॒ सोमो॑ अब्रवीद॒न्तर्विश्वा॑नि भेष॒जा। अ॒ग्निं च॑ वि॒श्वशं॑भुवम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒प्ऽसु । मे॒ । सोम॑: । अ॒ब्र॒वी॒त् । अ॒न्त: । विश्वा॑नि । भे॒ष॒जा । अ॒ग्निम् । च॒ । वि॒श्वऽशं॑भुवम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा। अग्निं च विश्वशंभुवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप्ऽसु । मे । सोम: । अब्रवीत् । अन्त: । विश्वानि । भेषजा । अग्निम् । च । विश्वऽशंभुवम् ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आरोग्यता के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (सोमः) बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर ने [चन्द्रमा वा सोमलता ने] (मे) मुझे (अप्सु अन्तः) व्यापनशील जलों में (विश्वानि) सब (भेषजा=०-नि) औषधों को, (च) और (विश्वशम्भुवम्) संसार के सुखदायक (अग्निम्) अग्नि [बिजुली वा पाचनशक्ति] को बताया है ॥२॥

    भावार्थ

    परमेश्वर सब विद्याओं का प्रकाशक है, चन्द्रमा औषधियों को पुष्ट करता है और सोमलता मुख्य ओषधि है। यह सब पदार्थ जैसे जल द्वार औषधों, अन्न आदि और शरीरों के बढ़ाने, बिजुली और पाचन शक्ति पहुँचाने और तेजस्वी करने में मुख्य कारण होते हैं, वैसे ही मनुष्यों को परस्पर सामर्थ्य बढ़ाकर उपकार करना चाहिये ॥२॥

    टिप्पणी

    २−अप्सु। १।४।३। व्यापयितृषु, जलेषु जलवद् गुणिषु मनुष्येषु−इत्यर्थः। सोमः। अर्त्तिस्तुसुहु०। उ० १।१४०। इति षु प्रसवैश्वर्ययोः−मन्। सवति ऐश्वर्यहेतुर्भवतीति सोमः। परमेश्वरः। चन्द्रमाः। सोमलता। अब्रवीत्। ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि−लङ्। उपदिष्टवान्। अकथयत्। अन्तः। मध्ये। विश्वानि। सर्वाणि। भेषजा। १।४।४। शेश्छन्दसि बहुलम्। पा० ६।१।७० इति शेर्लोपः। भेषजानि। भयनिवारणानि। औषधानि। अग्निम्। अङ्गेर्नलोपश्च। उ० ४।५०। इति अगि गतौ-नि, नलोपः। तेजः। वैश्वानरम्। वह्निम्। पाचनशक्तिम्। विश्व-शंभुवम्। क्विप् च। पा० ३।२।७६। इति विश्व+शम्+भू-क्विप्, उवङ्, आदेशः। विश्वस्य जगतः सुखस्य भावयितारं कर्तारम्, सर्वसुखकरम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    जल+अग्नि

    पदार्थ

    १. (सोमः) = उस सोम परमात्मा ने (मे) = मेरे लिए (अब्रवीत्) = यह उपदेश किया है कि (अप्सु अन्त:) = जलों में (विश्वानि भेषजा) = सब औषध हैं। जल सब रोगों का प्रतीकार करनेवाले हैं। एक जल-चिकित्सक जल के विविध प्रयोगों से शरीर को नीरोग करता है। जल का 'भेषजम्' यह नाम ही पड़ गया है। यह सचमुच औषध है। जल के विषय में निम्न नियमों का पालन शरीर को स्वस्थ रखता है-[क] उष:काल में अधिक-से-अधिक जल पीने का प्रयत्न करना, [ख] भोजन के आरम्भ व अन्त में जल न लेकर बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा करके लेना, [ग] पीने के लिए गरम पानी का प्रयोग करना, गर्मियों में भी बर्फ का प्रयोग न करना, [घ] स्नान के लिए ठण्डे पानी का ही प्रयोग करना, स्नान स्पञ्जिङ्ग रूप में करना। २. उसी सोम प्रभ ने च-यह भी बताया कि (अग्निं विश्वशंभुवम्) = अग्नि सब शान्तियों को उत्पन्न करनेवाला है। गरम पानी में अग्नि व जल का मेल हो जाता है और ये दोनों मिलकर रोगों को शान्त करनेवाले होते हैं। शरीर में गरमी होती है, अत: वहाँ ठण्डा पानी भेजना ठीक नहीं। बाहर से शरीर ठण्डा है, वहाँ ठण्डे पानी का प्रयोग ही ठीक है।

    भावार्थ

    जल में सब औषध है। अग्नि व जल दोनों मिलकर शान्ति देनेवाले हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (सोमः) जगदुत्पादक या चन्द्रवत् या जलवत् शान्तिदायक परमेश्वर ने (मे) मुझे (अब्रवीत्) कहा है कि (अप्सु अन्तः) जलों के भीतर (विश्वानि भेषजा= भेषजानि) सब औषधे हैं, (च) तथा (अग्निम्) उनमें अग्नि है, (विश्वशंभुवम् ) जो कि सब रोगों का शमन करती है।

    टिप्पणी

    [जलों में सब रोगों को शान्त करने की शक्ति है, और इनमें वैद्युताग्नि१ भी है, जोकि सब रोगों को शान्त कर देती है। सोमः=षु प्रसवे (भ्वादिः)।] [१. विद्युदग्नि द्वारा रोगों को शान्त करने का निर्देश हुआ है। जलों से विद्युत् पैदा होती है ।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    जलों का वर्णन

    भावार्थ

    ( सोमः ) सौम्यगुणयुक्त, प्रेरक, परमात्मा और सब रोगों के विनाशक, सोमरूप, आयुर्वेद का परम विद्वान् ( मे ) मुझे ( अब्रवीत् ) यह उपदेश करता है कि ( अप्सु अन्तः ) जलों के भीतर ही ( विश्वानि ) समस्त ( भेषजा ) औषध एकत्र हैं और वह ही ( अग्निम् ) जलों में स्थित अग्नि का उपदेश देता है ( विश्वशम्भुवम् ) जो कि समस्त रोगों की शान्ति करने वाला है।

    टिप्पणी

    आपश्च विश्वशम्भुवः इति मै०स०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अपोनप्त्रीयं सूक्तम्। अथर्वा कृतिः सिन्धुद्वीपश्च ऋषी। ऋग्वेदे त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धु द्वीपोऽवाम्बरीष ऋषिः। आपो देवताः। पथ्यापंक्तिश्छन्दः । चतुर्ऋचं सृक्तम् ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Waters for Health and Happiness

    Meaning

    Soma, the moon and the herbs, creates and shows, and the physician too tells me, that there is universal medicine in the waters for us. And the waters, universal medicine, also create the vital heat of life which is the universal sustainer of us all.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Wise men have acclaimed that within the waters dwell all balms that heal, the waters contain all the healing herbs, and also the fire, the benefactor of the universe. (also Rg. 1.23.20).

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The physician tells us there are contained in the waters all the healing balms and also the heat which is the means of happiness, for all.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    A skilled physician tells me, that in waters lies the capacity to heal all ailments and digestive power is the bringer of all sorts of happiness.

    Footnote

    Some commentators interpret Soma as God and Agni as fire, or warmth in waters.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−अप्सु। १।४।३। व्यापयितृषु, जलेषु जलवद् गुणिषु मनुष्येषु−इत्यर्थः। सोमः। अर्त्तिस्तुसुहु०। उ० १।१४०। इति षु प्रसवैश्वर्ययोः−मन्। सवति ऐश्वर्यहेतुर्भवतीति सोमः। परमेश्वरः। चन्द्रमाः। सोमलता। अब्रवीत्। ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि−लङ्। उपदिष्टवान्। अकथयत्। अन्तः। मध्ये। विश्वानि। सर्वाणि। भेषजा। १।४।४। शेश्छन्दसि बहुलम्। पा० ६।१।७० इति शेर्लोपः। भेषजानि। भयनिवारणानि। औषधानि। अग्निम्। अङ्गेर्नलोपश्च। उ० ४।५०। इति अगि गतौ-नि, नलोपः। तेजः। वैश्वानरम्। वह्निम्। पाचनशक्तिम्। विश्व-शंभुवम्। क्विप् च। पा० ३।२।७६। इति विश्व+शम्+भू-क्विप्, उवङ्, आदेशः। विश्वस्य जगतः सुखस्य भावयितारं कर्तारम्, सर्वसुखकरम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (সোমঃ) ঐশ্বর্যবান চন্দ্রমা (মে) আমাকে (অপ্সু অন্তঃ ) জলের ধ্যে (বিশ্বানি) সব (ভেষাজা) ঔষধ (চ) এবং (বিশ্ব শম্ভুবং) সংসারের খদায়ক (অগ্নিং) অগ্নিকে (অব্রবীং) বর্ণনা করেন।।
    ‘সোম’ পরমেশ্বরঃ “চন্দ্রমাঃ”, সোমলতা। ষু প্রসবৈশ্বৰ্য্যয়োঃ নন। সবতি ঐশ্বর্য্য হেতুৰ্ভবতীতি সোমঃ। এই মন্ত্র ঋগ্বেদে ১.২৩.২০ ও ১০.৯.৬।।

    भावार्थ

    ঐশ্বর্যবান পরমেশ্বর জলস্থ সব ঔষধকে ও সংসারের সুখদায়ক বিদ্যুতাগ্নিকে আমাদের অন্য প্রদান করিয়াছেন।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    অপ্সুমে সোমো অব্রবীদন্তবিশ্বানি ভেষজা । অগ্নিং চ বিশ্ব শং ভুবম্।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা কৃতিৰ্বা। আপঃ। গায়ত্রী

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्र विषय

    (আরোগ্যতোপদেশঃ) আরোগ্য­তার জন্য উপদেশ

    भाषार्थ

    (সোমঃ) পরম ঐশ্বর্যবান্ পরমেশ্বর [চন্দ্র বা সোমলতা] (মে) আমাকে (অপ্সু অন্তঃ) ব্যাপনশীল জলে (বিশ্বানি) সমস্ত (ভেষজা=০-নি) ঔষধকে, (চ) এবং (বিশ্বশম্ভুবম্) সংসারের সুখদায়ক (অগ্নিম্) অগ্নি [বিদ্যুৎ বা পাচনশক্তি]কে বলেছেন ॥২॥

    भावार्थ

    পরমেশ্বর সমস্ত বিদ্যার প্রকাশক, চন্দ্রমা ঔষধিকে পুষ্ট করে, এবং সোমলতা মুখ্য ঔষধি। এই সমস্ত পদার্থ যেমন ঔষধ, অন্ন আদি এবং শরীরের বৃদ্ধির ক্ষেত্রে, পাচন শক্তি ঠিক রাখার ক্ষেত্রে এবং তেজস্বী করার ক্ষেত্রে মুখ্য কারণ হয় সেভাবেই মনুষ্যকে পরস্পর সামর্থ্য বৃদ্ধি করে উপকার করা উচিত॥২॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (সোমঃ) জগদুৎপাদক বা চন্দ্রবৎ বা জলবৎ শান্তিদায়ক পরমেশ্বর (মে) আমাকে (অব্রবীৎ) বলেছেন যে, (অপ্সু অন্তঃ) জলের ভেতর (বিশ্বানি ভেষজা= ভেষজানি) সকল ঔষধি আছে, (চ) এবং (অগ্নিম্) তার মধ্যে অগ্নি আছে, (বিশ্বশংভুবম্) যা সব রোগের শমন করে।

    टिप्पणी

    [জলের মধ্যে সব রোগ শান্ত করার শক্তি আছে, এবং এর মধ্যে বৈদ্যুতাগ্নি১ ও আছে, যা সব রোগকে শান্ত করে দেয়। সোমঃ=ষু প্রসবে (ভ্বাদিঃ)।] [১. বিদ্যুদগ্নি দ্বারা রোগ-সমূহকে শান্ত করার নির্দেশ হয়েছে। জল থেকে বিদ্যুৎ উৎপন্ন হয়।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिंगलिश (1)

    Subject

    जल का महत्व

    Word Meaning

    (सोम: मे अब्रवीद्‌) वैज्ञानिक ज्ञान ने मुझे बताया कि (अप्सु अंत: विश्वानि भेषजा) जलों के भीतर सब रोगों की ओषधि है | और ( विश्वशंभुवम्‌ अग्निश्च) जलों में विश्व के कल्याण के लिए ऊर्जा भी होती है | {इस पक्ष का वैज्ञानिक विशेषण निम्न प्रकार से किया जाता है। ऋग्वेद 10.99.4 के ‘द्रोण्यश्वास: ईरते घृतं वा:’ वेग से आगे बढते हुए श्वास लेते हुए घृत- पौष्टिकता से युक्त आप: को वारि नाम देते हैं. इस प्रक्रिया को आधुनिक वैज्ञानिक भंवर वोर्टेक्स vortex प्रक्रिया द्वारा उपचारित चेतन्यता युक्त जल बताते हैं. जल जिस ने विद्युत को वरण कर लिया है. ( पवित्र गंगा जल की सामर्थ्य का यही वैज्ञानिक रहस्य प्रतीत होता है, होम्योपेथी और सींग खाद बायोडायनमिक उर्वरक में भी जल का उपचार इसी प्रकार किया जाता है) आधुनिक वैज्ञानिक ऐसे उपचारित जल को activated water चेतना युक्त जल कहते हैं. }

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top