अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
ऋषिः - सिन्धुद्वीपं कृतिः, अथवा अथर्वा
देवता - अपांनपात् सोम आपश्च देवताः
छन्दः - गायत्री
सूक्तम् - जल चिकित्सा सूक्त
112
आपः॑ पृणी॒त भे॑ष॒जं वरू॑थं त॒न्वे॑३ मम॑। ज्योक्च॒ सूर्यं॑ दृ॒शे ॥
स्वर सहित पद पाठआप॑: । पृ॒णी॒त । भे॒ष॒जम् । वरू॑थम् । त॒न्वे । मम॑ । ज्योक् । च॒ । सूर्य॑म् । दृ॒शे ॥
स्वर रहित मन्त्र
आपः पृणीत भेषजं वरूथं तन्वे३ मम। ज्योक्च सूर्यं दृशे ॥
स्वर रहित पद पाठआप: । पृणीत । भेषजम् । वरूथम् । तन्वे । मम । ज्योक् । च । सूर्यम् । दृशे ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आरोग्यता के लिये उपदेश।
पदार्थ
(आपः) हे व्यापनशील जलो ! [जलसमान उपकारी पुरुषो] (मम) मेरे (तन्वे) शरीर के लिये (च) और (ज्योक्) बहुत काल तक (सूर्यम्) चलने वा चलानेवाले सूर्य को (दृशे) देखने के लिये (वरूथम्) कवचरूप (भेषजम्) भयनिवारक औषध को (पृणीत) पूर्ण करो ॥३॥
भावार्थ
जैसे युद्ध में योद्धा की रक्षा झिलम से होती है, वैसे ही जलसमान उपकारी पुरुष परस्पर सहायक होकर सबका जीवन आनन्द से बढ़ाते हैं ॥३॥
टिप्पणी
३−आपः। हे व्यापयितॄणि जलानि [जलसमानोपकारिणः पुरुषाः]। पृणीत। पॄ पालनपूरणयोः−लोट् पालयत, पूरयत। भेषजम्। १।४।४। भयनिवारकम्। औषधम्। वरुथम्। जॄवृञ्भ्यामूथन्। उ० २।६। इति वृञ् वरणे−ऊथन्, व्रियते शरीरमनेन। तनुत्राणम्, कवचम्। तन्वे। १।१।१। तद्वत् पदसिद्धिः स्वरितश्च। तन्यते विस्तीर्यते तनूः। शरीराय। मम। मदीयाय। ज्योक्। ज्यो नियमे-डोकि। चिरकालम्। सूर्यम्। १।३।५। जगतः प्रेरकम्, आदित्यम्। दृशे। दृशे विख्ये च। पा० ३।४।११। इति दृशिर् प्रेक्षणे−तुमर्थे के प्रत्ययान्तो निपात्यते। द्रष्टुम् ॥
विषय
आरोग्य कवच
पदार्थ
१. (आप:) = हे जलो! आप (भेषजम्) = रोग-निवारक गुण को (पृणीत) = अपने में सुरक्षित करो। [प्रणाति to protect, to maintain] | इस रोग-निवारक गुण के द्वारा आप (मम तन्वे) = मेरे शरीर के लिए वरूथम्-[Cover] आच्छादन होओ। आपसे सुरक्षित हुआ मैं किसी रोग का शिकार न होऊँ। २. (च) = और रोगों का शिकार न होता हुआ मैं (ज्योक) = दीर्घकाल तक (सूर्य दृशे) = सूर्य को देखने के लिए होऊँ। सूर्य-दर्शन करता हुआ दीर्घ-जीवन प्राप्त कसैं । जल 'वारि' है, ये रोगों का निवारण करते ही हैं। रोग-निवारण के द्वारा ये जीवन को सुखी बनाते हैं, अत: इनका नाम 'कम्' है।
भावार्थ
रोग-निवारण के गुणवाले ये जल मेरे लिए आच्छादन का काम करें। मैं दीर्घ जीवनवाला बनूं।
भाषार्थ
(आपः) हे जलो! (मम तन्वे) मेरी तनू के लिये (वरूथम्) रोग-निवारक (भेषजम्) औषध (पृणीत) पूरित करो, (च) और औषध प्रदान करो (ज्योक्) चिरकाल तक (सूर्य दृशे) सूर्य को देखने के लिये। दीर्घकाल तक जीवित रहने के लिए।
टिप्पणी
[दो प्रकार के औषध का कथन हुआ है, शारीरिक रोगनिवारक तथा दृष्टिशक्ति-प्रदायक। पृणीत=पृ पालनपूरणयोः (जुहोत्यादिः), पूरित और पालित करना अर्थात् स्थिर बनाए रखना। दृशे = द्रष्टुम्।]
विषय
जलों का वर्णन
भावार्थ
( आपः ) हे जलो ! तुम ( मम ) मेरै ( तन्वे ) शरीर के लिये ( वरूथं ) सब रोगों के निवारक (भेषजं ) औषध को ( पृणीत ) प्रदान करो और ( ज्योक् च ) चिरकाल तक (सूर्य) सूर्य को ( दृशे ) देखने में हमें समर्थ बनाओ।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अपोनप्त्रीयं सूक्तम्। अथर्वा कृतिः सिन्धुद्वीपश्च ऋषी। ऋग्वेदे त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धु द्वीपोऽवाम्बरीष ऋषिः। आपो देवताः। पथ्यापंक्तिश्छन्दः । चतुर्ऋचं सृक्तम् ।
इंग्लिश (4)
Subject
Waters for Health and Happiness
Meaning
O waters, give me the best sanative for my body’s health for a long life, so that I may see the sun, universal light, every day for a long long time. May waters of the desert regions be good and auspicious. May waters of the lakes and marshy lands be good and auspicious for us.
Translation
Waters, bring to perfection all disease-dispelling medicaments for the up-keep of my body, so that I may live long to see the bright sun. (also Rg. 1-23.21).
Translation
May the waters provide us with all prophylactic balms for our physiques and make us able to see the Sun for a very long time.
Translation
O Waters, grant me medicine to keep my body safe from harm, so that I may see the sun for long.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−आपः। हे व्यापयितॄणि जलानि [जलसमानोपकारिणः पुरुषाः]। पृणीत। पॄ पालनपूरणयोः−लोट् पालयत, पूरयत। भेषजम्। १।४।४। भयनिवारकम्। औषधम्। वरुथम्। जॄवृञ्भ्यामूथन्। उ० २।६। इति वृञ् वरणे−ऊथन्, व्रियते शरीरमनेन। तनुत्राणम्, कवचम्। तन्वे। १।१।१। तद्वत् पदसिद्धिः स्वरितश्च। तन्यते विस्तीर्यते तनूः। शरीराय। मम। मदीयाय। ज्योक्। ज्यो नियमे-डोकि। चिरकालम्। सूर्यम्। १।३।५। जगतः प्रेरकम्, आदित्यम्। दृशे। दृशे विख्ये च। पा० ३।४।११। इति दृशिर् प्रेक्षणे−तुमर्थे के प्रत्ययान्तो निपात्यते। द्रष्टुम् ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(আপঃ) জল (মম) আমার (তম্বে) শরীরের জন্য (চ) এবং (জ্যোক্) দীর্ঘকাল ধরিয়া (সূর্য্যঃ) সূর্যকে (দৃশে) দেখিতে (বরূথং) কবচ (ভেষজং) ভয় বা রোগ নিবারক ঔষধকে (পৃণীত) পালন করে।।
‘বরূথম্’ শরীরত্রাণম্, কবচম্। ‘জ্যোক্’ চিরকালম্। ‘পূণীত’ পৃ পালন পুরণয়োঃ, পালয়ত। পুরয়ত। এই মন্ত্র ঋগ্বেদে ১.১৩.২১ ও ১০.১.৭ ।।
भावार्थ
জল আমার শরীর রক্ষার জন্য এবং দীর্ঘকালব্যাপী সূর্য দর্শনের জন্য কবচরূপী ঔষধকে পালন করে।।
मन्त्र (बांग्ला)
আপঃ পৃণীত ভেষজং বরূথং তন্বে ৩মম ৷ জ্যোক্ চ সূৰ্য্যাং দৃশে।।
ऋषि | देवता | छन्द
অর্থবা কৃতিৰ্বা। আপঃ। গায়ত্রী
मन्त्र विषय
(আরোগ্যতোপদেশঃ) আরোগ্যতার জন্য উপদেশ
भाषार्थ
(আপঃ) হে ব্যাপনশীল জলসমূহ! [জলসমান উপকারী পুরুষগণ] (মম) আমার (তন্বে) শরীরের জন্য (চ) এবং (জ্যোক্) বহুকাল পর্যন্ত (সূর্যম্) সূর্য (দৃশে) দর্শনের/দেখার জন্য (বরূথম্) কবচরূপ (ভেষজম্) ভয়নিবারক ঔষধকে (পৃণীত) পূর্ণ করো ॥৩॥
भावार्थ
যেভাবে যুদ্ধে যোদ্ধার রক্ষা লোহার বর্মের দ্বারা হয়, সেভাবেই জলের সমান উপকারী পুরুষ পরস্পরের সহায়ক হয়ে সকলের জীবন আনন্দে বৃদ্ধি করে/করুক ॥৩॥
भाषार्थ
(আপঃ) হে জল! (মম তন্বে) আমার তনূর জন্য (বরূথম্) রোগ-নিবারক (ভেষজম্) ঔষধ (পৃণীত) পূরিত করো, (চ) এবং ঔষধ প্রদান করো (জ্যোক্) চিরকাল পর্যন্ত (সূর্য দৃশে) সূর্যকে দেখার জন্য। দীর্ঘকাল পর্যন্ত জীবিত থাকার জন্য।
टिप्पणी
[দুই প্রকারের ঔষধির কথন হয়েছে, শারীরিক রোগনিবারক ও দৃষ্টিশক্তি-প্রদায়ক। পৃণীত=পৃ পালনপূরণয়োঃ (জুহোত্যাদিঃ), পূরিত ও পালিত করা অর্থাৎ স্থির করে রাখা। দৃশে = দ্রষ্টুম্।]
हिंगलिश (1)
Subject
जल का महत्व
Word Meaning
(आप) हे जलो ,आप (पृणीतभेषजम्) मुझ में ऐसा ओषधी तत्व भरो (वरुथम् तन्वे मम) जो मेरे शरीर के लिए रक्षा कवच हों, और (ज्योक् च सूर्यम् दृशे) मैं चिरकाल तक सूर्य का दर्शन करूं|
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