अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आसुरी बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
57
स उ॑त्त॒मांदिश॒मनु॒ व्यचलत् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । उ॒त्ऽत॒माम् । दिश॑म् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥६.७॥
स्वर रहित मन्त्र
स उत्तमांदिशमनु व्यचलत् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । उत्ऽतमाम् । दिशम् । अनु । वि । अचलत् ॥६.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (उत्तमाम्) अत्यन्त ऊँची (दिशम् अनु) दिशा की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥७॥
भावार्थ
मनुष्य वेदों मेंप्रतिपादित ईश्वरीय ज्ञान को ऊँचे से ऊँचे स्थान में साक्षात् करके उन्नति करताहुआ मोक्षानन्द भोगता है ॥७, ८, ९॥
टिप्पणी
७−(सः) व्रात्यः (उत्तमाम्) अतिशयेनोन्नताम्। अन्यद् गतम् ॥
विषय
ऊर्ध्वा दिक् में 'ऋक्, यजुः, सत्य व ब्रह्म [अथर्व]'
पदार्थ
१. (स:) = वह व्रात्य (उत्तमां दिशं अनुव्यचलत्) = उत्तमादिक् का लक्ष्य करके गतिवाला हुआ। उसने जीवन को उत्तम बनाने का दृढ़ संकल्प किया (तम्) = उस उत्तमादिक् की ओर गतिवाले व्रात्य को (ऋचः च सामानि च) = ऋचाएँ व साम-विज्ञानमन्त्र व उपासनामन्त्र (च) = तथा (यजूंषि च ब्रह्म च) = यज्ञ-प्रतिपादक मन्त्र तथा ब्रह्मज्ञान देनेवाले अथर्वमन्त्र (अनुव्यचलन्) = अनुकूलता से प्राप्त हुए। २. (स:) = वह व्रात्य (वै) = निश्चय से (ऋचां च साम्नांच) = ऋचाओं और साममन्त्रों का (च) = और (यजुषां ब्रह्मणश्च) = यज्ञ प्रतिपादक मन्त्रों व ब्रह्मज्ञानप्रद मन्त्रों का (प्रियं धाम भवति) = प्रिय स्थान बनता है, (यः) = जो व्रात्य (एवं वेद) = इसप्रकार उत्तमा दिक् में अनुकूलता से गति का विचार करता है।
भावार्थ
उत्तमादिक में गति का संकल्प करनेवाला व्रात्य 'प्राक्, यजुः, साम व अथर्व [ब्रह्म]' मन्त्रों का प्रिय स्थान बनता है। इनके द्वारा ही तो उसने जीवन को उत्तम बनाना है।
भाषार्थ
(सः) वह व्रात्य-संन्यासी (उत्तमाम्) ऊर्ध्वा से भी उत्तम (दिशम् अनु) निर्देश या उद्देश्य को लक्ष्य कर के (वि, अचलत्) विशेषतया चला, प्रयत्नवान् हुआ।
विषय
व्रात्य प्रजापति का प्रस्थान।
भावार्थ
(सः उत्तमाम् दिशम् अनु-वि अचलत्) वह व्रात्य प्रजापति उत्तमा=सब से अधिक ऊंची दिशा की ओर चला (तम्) उसके पीछे पीछे (ऋचः च, सामानि च, यजूंषि च, ब्रह्म च अनु वि-अचलन्) ऋग्वेद के सन्त्र, साम गायन मन्त्र, यजुर्मन्त्र और बह्मवेद, अर्थात् अथर्ववेद के मन्त्र चले। (यः एवं वेद) जो व्रात्य के इस प्रकार के स्वरूप को साक्षात् करता है (ऋचां सः, साम्नां च, यजुषां च, ब्रह्मणः च, प्रियं धाम भवति) वह ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद के मंत्रों का प्रिय आश्रय होजाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१ प्र०, २ प्र० आसुरी पंक्तिः, ३-६, ९ प्र० आसुरी बृहती, ८ प्र० परोष्णिक्, १ द्वि०, ६ द्वि० आर्ची पंक्तिः, ७ प्र० आर्ची उष्णिक्, २ द्वि०, ४ द्वि० साम्नी त्रिष्टुप्, ३ द्वि० साम्नी पंक्तिः, ५ द्वि०, ८ द्वि० आर्षी त्रिष्टुप्, ७ द्वि० साम्नी अनुष्टुप्, ६ द्वि० आर्ची अनुष्टुप्, १ तृ० आर्षी पंक्तिः, २ तृ०, ४ तृ० निचृद् बृहती, ३ तृ० प्राजापत्या त्रिष्टुप्, ५ तृ०, ६ तृ० विराड् जगती, ७ तृ० आर्ची बृहती, ९ तृ० विराड् बृहती। षड्विंशत्यृचं षष्ठं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Translation
He started moving towards the uppermost quarter.
Translation
He (vratya) walks towards the Supreme Region.
Translation
Rigveda, and Samaveda, and Yajurveda, and Atharvaveda remain under His control.
Footnote
Brahma is interpreted by Pt. Jaidev, Vidyalankar Pt. Khem Karan Das Trivedi and Pt. Damodra Satyavalekar as Atharvaveda, as it deals with the knowledge of God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(सः) व्रात्यः (उत्तमाम्) अतिशयेनोन्नताम्। अन्यद् गतम् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal