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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वाक् देवता - त्रिपदा प्रतिष्ठार्ची छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    56

    सु॒श्रुतौ॒कर्णौ॑ भद्र॒श्रुतौ॒ कर्णौ॑ भ॒द्रं श्लोकं॑ श्रूयासम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽश्रुतौ॑ । कर्णौ॑ । भ॒द्र॒ऽश्रुतौ॑ । कर्णौ॑ । भ॒द्रम् । श्लोक॑म् । श्रू॒या॒स॒म् ॥२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुश्रुतौकर्णौ भद्रश्रुतौ कर्णौ भद्रं श्लोकं श्रूयासम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽश्रुतौ । कर्णौ । भद्रऽश्रुतौ । कर्णौ । भद्रम् । श्लोकम् । श्रूयासम् ॥२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    इन्द्रियों की दृढ़ता का उपदेश।

    पदार्थ

    [मेरे] (कर्णौ) दोनोंकान (सुश्रुतौ) शीघ्र सुननेवाले, (कर्णौ) दोनों कान (भद्रश्रुतौ) मङ्गलसुननेवाले [होवें], (भद्रम्) मङ्गलमय (श्लोकम्) यश (श्रूयासम्) मैं सुना करूँ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रयत्न करकेअभ्यास करें कि वे कान आदि इन्द्रियों को सचेत रख कर श्रेष्ठ कर्मों के करने मेंशीघ्रता करते रहें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(सुश्रुतौ) श्रु-क्विप्। शीघ्रश्रोतारौ (कर्णौ) श्रोत्रे (भद्रश्रुतौ) मङ्गलश्रोतारौ (भद्रम्) मङ्गलमयम् (श्लोकम्) यशः (श्रूयासम्)आकर्णयासम् ॥

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    विषय

    भद्र-श्रवण

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! आपके अनुग्रह से (कर्णौ सुश्रुतौ) = मेरे कान उत्तम श्रवणशक्ति से सम्पन्न हों। श्रवणशक्ति में किसी प्रकार की कमी न हो जाए। ये (कर्णौ) = कान (भद्रश्रुतौ) = सदा भद्र बातों को ही सुननेवाले हों। श्रवणशक्ति का प्रयोग सदा कल्याणी वाणियों के श्रवण के लिए ही हो। २. हे प्रभो! आपका स्मरण करता हुआ मैं सदा (भद्रं श्लोकम्) = कल्याणकर पद्यों को ही (श्रुयासम्) = सुनूं। ज्ञान की शुभवाणियाँ ही मेरे कानों का विषय बनें। ('भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः')

    भावार्थ

    प्रभुकृपा से हमारे कानों की शक्ति ठीक बनी रहे और हम उनसे सदा भद्र वाणियों का ही श्रवण करें।

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    भाषार्थ

    (कर्णौ) मेरे दोनों कान (श्रुतौ) अच्छी-श्रवण शक्ति से सम्पन्न हों, (कर्णौ) दोनों कान (भद्रश्रुतौ) कल्याणकारी तथा सुखदायी वचनों का श्रवण करने वाले हों। परमेश्वर की कृपा से (भद्रं श्लोकम्) भद्र-वाणी (श्रुयासम्) मैं सुना करूं।

    टिप्पणी

    [श्लोकः वाङ्नाम (निघं० १।११)]

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    विषय

    शक्ति उपार्जन।

    भावार्थ

    (कर्णौ) दोनों कान (सुश्रुतौ) उत्तम सुनने वाले हों, (कर्णौ भद्रश्रुतौ) दोनों कान भद्र, सुखकारी कल्याणजनक शब्द का श्रवण करें। (भद्रश्लोकम्) भद्र, सुखकारी कल्याणजनक स्तुति को मैं (श्रूयासम्) सुना करूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वाग्देवता। १ आसुरी अनुष्टुप्, २ आसुरी उष्णिक्, ३ साम्नी उष्णिक्, ४ त्रिपदा साम्नी बृहती, ५ आर्ची अनुष्टुप्, ६ निचृद् विराड् गायत्री द्वितीयं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vak Devata

    Meaning

    Let my ears be efficient in hearing. Let them be good so that I may hear good things. Let me hear good words of noble meaning.

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    Translation

    May my two ears be hearing good, ears hearing propitious. May I hear excellent praise.

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    Translation

    My both ears are quick and of auspicious hearing, they hear whatever is good and may I hear good praise.

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    Translation

    Let my ears hear words of knowledge. Let my ears hear what is good Fain would I hear auspicious words.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(सुश्रुतौ) श्रु-क्विप्। शीघ्रश्रोतारौ (कर्णौ) श्रोत्रे (भद्रश्रुतौ) मङ्गलश्रोतारौ (भद्रम्) मङ्गलमयम् (श्लोकम्) यशः (श्रूयासम्)आकर्णयासम् ॥

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