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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त
    57

    येन॑ दे॒वं स॑वि॒तारं॒ परि॑ दे॒वा अधा॑रयन्। तेने॒मं ब्र॑ह्मणस्पते॒ परि॑ रा॒ष्ट्राय॑ धत्तन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑। दे॒वम्। स॒वि॒तार॑म्। परि॑। दे॒वाः। अधा॑रयन्। तेन॑। इ॒मम्। ब्र॒ह्म॒णः॒। प॒ते॒। परि॑। रा॒ष्ट्राय॑। ध॒त्त॒न॒ ॥२४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन देवं सवितारं परि देवा अधारयन्। तेनेमं ब्रह्मणस्पते परि राष्ट्राय धत्तन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन। देवम्। सवितारम्। परि। देवाः। अधारयन्। तेन। इमम्। ब्रह्मणः। पते। परि। राष्ट्राय। धत्तन ॥२४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (येन) जिस [नियम] से (देवम्) विजय चाहनेवाले (सवितारम्) प्रेरक [पुरुष] को (देवाः) विद्वानों ने (परि) सब ओर से (अधारयन्) धारण किया है [स्वीकार किया है]। (तेन) उस [नियम] से (इमम्) इस [पराक्रमी] को (राष्ट्राय) राज्य के लिये, (ब्रह्मणः पते) हे वेद के रक्षक ! [और तुम सब] (परि) सब ओर से (धत्तन) धारण करो ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे प्रजागण सदा से सदाचारी पराक्रमी पुरुष को राजा बनाते आये हैं, वैसे ही विद्वान् प्रजा के प्रतिनिधि पुरुष प्रजा की सम्मति से राजा बनावें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(येन) नियमेन (देवम्) विजिगीषुम् (सवितारम्) प्रेरकम् (परि) सर्वतः (देवाः) विद्वांसः (अधारयन्) धारितवन्तः। स्वीकृतवन्तः (तेन) नियमेन (इमम्) पराक्रमिणम् (ब्रह्मणस्पते) हे वेदस्य रक्षक यूयं च सर्वे (परि) (राष्ट्राय) राज्याय (धत्तन) तस्य तनप्। धारयत। स्वीकुरुत ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Rashtra

    Meaning

    By the law and commitment by which the Devas, divine powers and brilliancies of Nature, fully hold and wholly support Savita, the divine, self-refulgent, all- inspiring Sun, O Brahmanaspati, high priest of this great Dominion, you and other enlightened personalities, invest and consecrate this ruler in his office for the sake of the Rashtra, enlightened self-governing social order.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(येन) नियमेन (देवम्) विजिगीषुम् (सवितारम्) प्रेरकम् (परि) सर्वतः (देवाः) विद्वांसः (अधारयन्) धारितवन्तः। स्वीकृतवन्तः (तेन) नियमेन (इमम्) पराक्रमिणम् (ब्रह्मणस्पते) हे वेदस्य रक्षक यूयं च सर्वे (परि) (राष्ट्राय) राज्याय (धत्तन) तस्य तनप्। धारयत। स्वीकुरुत ॥

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