अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त
51
परी॒ममिन्द्र॒मायु॑षे म॒हे क्ष॒त्राय॑ धत्तन। यथै॑नं ज॒रसे॒ नयां ज्योक्क्ष॒त्रेऽधि॑ जागरत् ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑। इ॒मम्। इन्द्र॑म्। आयु॑षे। म॒हे। क्ष॒त्राय॑। ध॒त्त॒न॒। यथा॑। ए॒न॒म्। ज॒रसे॑। न॒याम्। ज्योक्। क्ष॒त्रे। अधि॑। जा॒ग॒र॒त् ॥२४.२॥
स्वर रहित मन्त्र
परीममिन्द्रमायुषे महे क्षत्राय धत्तन। यथैनं जरसे नयां ज्योक्क्षत्रेऽधि जागरत् ॥
स्वर रहित पद पाठपरि। इमम्। इन्द्रम्। आयुषे। महे। क्षत्राय। धत्तन। यथा। एनम्। जरसे। नयाम्। ज्योक्। क्षत्रे। अधि। जागरत् ॥२४.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे विद्वानो !] (इमम्) इस (इन्द्रम्) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् पुरुष] को (महे) बड़े (आयुषे) जीवन के लिये और (क्षत्राय) राज्य के लिये (परि) सब प्रकार (धत्तन) धारण करो। (यथा) जिससे (एनम्) इस [पुरुष] को (जरसे) स्तुति के लिये (नयाम्) मैं ले चलूँ और वह (ज्योक्) बहुत काल तक (क्षत्रे) राज्य के भीतर (अधि) अधिकारपूर्वक (जागरत्) जागता रहे ॥२॥
भावार्थ
जिस प्रजापालक महाप्रतापी पुरुष को प्रजागण राजा स्वीकार करें, वह अपनी योग्यता से कीर्तिमान् होकर प्रजा को सावधानी से सदा पालता रहे ॥२॥
टिप्पणी
२−(परि) सर्वतः (इमम्) (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं पुरुषम् (आयुषे) जीवनाय (महे) महते (क्षत्राय) राज्याय (धत्तन) धारयत (यथा) येन प्रकारेण (एनम्) (जरसे) जॄ स्तुतौ-असुन्। जरतिरर्चतिकर्मा-निघ०३।१४। स्तुत्यै (नयाम्) लेट्। प्रापयेयम् (ज्योक्) चिरकालम् (क्षत्रे) राज्ये (अधि) अधिकृत्य (जागरत्) लेट्। जागृयात्। सावधानो भवेत् ॥
विषय
प्रभु-धारण व बल-प्राप्ति
पदार्थ
१. (आयुषे) = दीर्घजीवन के लिए तथा (महे क्षत्राय) = क्षतों से त्राण करनेवाले महान् बल के लिए (इमम्) = इस (इन्द्रम्) = सर्वशक्तिमान् प्रभु को (परिधत्तन) = अपने हृदयों में धारण करो। २. (यथा) = जिस प्रकार (एनम्) = इस पुरुष को-परमपुरुष प्रभु को-(जरसे) = वासनाओं को जीर्ण करनेवाली स्तुति के लिए (नयाम्) = प्राप्त करूँ, जिससे यह स्तोता (ज्योक्) = दीर्घकाल तक (क्षत्रे) = बल के विषय में (अधि जागरत्) = जागरित रहे-अप्रमत्त बना रहे।
भावार्थ
हम जितना-जितना प्रभु को धारण कर पाते हैं, उतना उतना ही वासनाओं के विनाश के द्वारा बल को धारण करनेवाले बनते हैं।
भाषार्थ
हे राष्ट्राधिकारियो! तथा प्रजाजनो! (आयुषे) राष्ट्र में अन्न की वृद्धि के लिए, (महे क्षत्राय) महार्घसम्पत्तियों की प्राप्ति तथा क्षतियों क्षतों से महात्राण के लिए (इमम्) इस (इन्द्रम्) सम्राट् का (परि) सब प्रकार से (धत्तन) धारण-पोषण करो। (यथा) ताकि (एनम्) इस सम्राट् को (जरसे) जरावस्था तक (नयाम्) मैं ब्रह्मणस्पति ले चलूं, और यह (ज्योक्) चिरकाल (क्षत्रेऽधि) महार्घसम्पत्तियों की प्राप्ति तथा क्षतियों-क्षतों से महात्राण के निमित्त (जागरत्) जागरूक रहे, सावधान रहे।
टिप्पणी
[इन्द्रम्= “इन्द्रश्च सम्राट्” (यजुः० ८.३७)। आयुषे=आयुः अन्ननाम (निघं० २.७)। क्षत्राय=क्षत्रम् धन-नाम (निघं० २.१०)। तथा क्ष (क्षति)+त्रम् (त्राणम्); तथा “क्षतात् किल त्रायत इत्युदग्रः क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढः”। अधि जागरत्= अथवा सम्राट् स्वाधिकारपूर्वक जागरूक रहे।]
विषय
राजा के सहायक रक्षक और विशेष वस्त्र।
भावार्थ
(इमम् इन्द्रम्) इस राजोचित गुणैश्वर्य से सम्पन्न राजा को (आयुषे) दीर्घ आयु प्राप्त कराने और (महे क्षत्राय) बड़े भारी क्षात्रबल को प्राप्त कराने के लिये हे विद्वान् पुरुषो ! (परिधत्तन) सब प्रकार से पुष्ट करो (यथा) जिससे (एनम्) इसको हम (जरसे) वार्धक्य काल तक (नयान्) प्राप्त करा सकें। और वह (क्षत्रे अधि) राष्ट्र को क्षति से श्राण करने वाले बल के ऊपर (ज्योक्) चिरकाल तक (अधिजागरत्) जागृत सावधान होकर रहें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः देवता। १-३ अनुष्टुप, ४-६, ८ त्रिष्टुप, ७ त्रिपदाआर्षीगायत्री।
इंग्लिश (4)
Subject
Rashtra
Meaning
O people of the land, for the sake of the great social order, hold and support this Indra, mighty ruler, for good health and full age, so that I may lead him unto his full age of fulfilment and he may always abide, awake and alert, by the great dominion.
Translation
May you enclothe this resplendent one for long life, for great ruling power, so that I may lead him to ripe old age. May he (remain awake and alert to) watch over his dominion for long.
Translation
O Ye learned men, you invest this mighty men for long life and for great regal power. So that I, the priest lead him for mature age and he may be watchful and active in ruling the kingdom for Jong.
Translation
Strengthen this glorious king for long life and great protection; so that we may lead him to advanced old age and he, being wide-awake may constantly protect us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(परि) सर्वतः (इमम्) (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं पुरुषम् (आयुषे) जीवनाय (महे) महते (क्षत्राय) राज्याय (धत्तन) धारयत (यथा) येन प्रकारेण (एनम्) (जरसे) जॄ स्तुतौ-असुन्। जरतिरर्चतिकर्मा-निघ०३।१४। स्तुत्यै (नयाम्) लेट्। प्रापयेयम् (ज्योक्) चिरकालम् (क्षत्रे) राज्ये (अधि) अधिकृत्य (जागरत्) लेट्। जागृयात्। सावधानो भवेत् ॥
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