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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 28/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - दर्भमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भमणि सूक्त
    49

    द्वि॑ष॒तस्ता॒पय॑न्हृ॒दः शत्रू॑णां ता॒पय॒न्मनः॑। दु॒र्हार्दः॒ सर्वां॒स्त्वं द॑र्भ घ॒र्म इ॑वा॒भीन्त्सं॑ता॒पय॑न् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्वि॒ष॒तः। ता॒पय॑न्। हृ॒दः। शत्रू॑णाम्। ता॒पय॑न्। मनः॑। दुः॒ऽहार्दः॑। सर्वा॑न्। त्वम्। द॒र्भ॒। घ॒र्मःऽइ॑व। अ॒भीन्। स॒म्ऽता॒पय॑न् ॥२८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्विषतस्तापयन्हृदः शत्रूणां तापयन्मनः। दुर्हार्दः सर्वांस्त्वं दर्भ घर्म इवाभीन्त्संतापयन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्विषतः। तापयन्। हृदः। शत्रूणाम्। तापयन्। मनः। दुःऽहार्दः। सर्वान्। त्वम्। दर्भ। घर्मःऽइव। अभीन्। सम्ऽतापयन् ॥२८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 28; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सेनापति के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (द्विषतः) विरोधी के (हृदः) हृदयों को (तापयन्) तपाता हुआ, और (शत्रूणाम्) शत्रुओं के (मनः) मन को (तापयन्) तपाता हुआ, (दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (सर्वान्) सब (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवाले (अभीन्) अमङ्गलकारियों को (घर्मः इव) ग्रीष्म ऋतु के समान (सन्तापयन्) सर्वथा तपाता हुआ (त्वम्) तू [वर्तमान हो] ॥२॥

    भावार्थ

    शूरवीर सेनापति शत्रुओं को सदा कष्ट देकर नाश करे, जैसे ग्रीष्म का ताप घास आदि को सुखाकर नष्ट कर देता है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(द्विषतः) द्वेषं कुर्वतः शत्रोः (तापयन्) सन्तप्तं कुर्वन् (हृदः) हृदयानि (शत्रूणाम्) (तापयन्) (मनः) चित्तम् (दुर्हार्दः) अ०२।७।५। हार्दं करोति हार्दयतीति, हार्दयतेः क्विपि णिलोपे रूपम्। दुष्टहृदयान् (सर्वान्) (त्वम्) (दर्भः) म०१। हे शत्रुविदारक सेनापते (घर्मः) ग्रीष्मः (इव) यथा (अभीन्) वातेर्डिच्च। उ०४।१३४। नञ्+भद भदी कल्याणकरणे-इण्, स च डित्। अमङ्गलकारिणः शत्रून् (सन्तापयन्) सन्तापं कुर्वन्-वर्तस्वेति शेषः ॥

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    विषय

    द्विषन्-शत्रु-दुर्हादः

    पदार्थ

    १. (द्विषत:) = हमसे प्रीति न करनेवाले विरोधियों के (हृदः) = हृदयों को (तापयन्) = सन्तप्त करता हुआ यह 'दर्भ' है। (शत्रूणाम्) = हमारा शातन करनेवाले शत्रुओं के (मनः) = मन को (तापयन्) = तपाता हुआ यह दर्भ है। २. हे (दर्भ) = शत्रुओं को भयभीत करनेवाले दर्भमणे! (त्वम्) = तू (सर्वान्) = सब (अभीन्) = न डरनेवाले–अति प्रबल (दुर्हार्दिः) = दुष्ट हृदयवालों को (धर्मः इव) = आदित्य की भांति (तापयन्) = संतप्त करता हुआ हो।

    भावार्थ

    दर्भमणि के धारण से-वीर्य-रक्षण से द्वेषभाव दूर हो जाते हैं, 'काम, क्रोध, लोभ' आदि शत्रु विनष्ट हो जाते हैं, हृदय से सब दुर्भाव दूर हो जाते हैं।

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    भाषार्थ

    (द्विषतः) द्वेष करनेवाले प्रजाजनों के (हृदः) हृदयों को (तापयन्) तपाता हुआ, और (शत्रूणाम्) विनाशकारी दुश्मनों के (मनः) मनों को या संकल्पों को (तापयन्) तपाता हुआ, तथा (सर्वान्) सब (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदय वालों को, (अभीन्) और अपने आपको भय-रहित समझनेवालों को (घर्मः इव) ग्रीष्मऋतु के सूर्य के सदृश (संतापयन्) संतप्त करता हुआ (दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापति! (त्वम्) तू हो।

    टिप्पणी

    [द्विषतः=द्विष् अप्रीतौ। शत्रूणाम्=शतयतीति शत्रुः (उणा० ४।१०४)। घर्मः=ग्रीष्म ऋतुः (उणा० १।१४९), तथा घर्मांशुः सूर्यः। यथा—देवदत्तः=देवः, एवं घर्माशुः=घर्मः। अभीन्=अ+भीन् (भी भये, द्वितीयाबहुवचनम्)।]

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    विषय

    शत्रुनाशक सेनापति दर्भ मणि का वर्णन।

    भावार्थ

    (द्विषतः) प्रेम न करने वाले पुरुष के (हृद:) हृदयों को (तापयन्) सन्तप्त करता हुआ, और (शत्रूणाम्) शत्रुओं के (मनः) मन को सन्तप्त करता हुआ और (सर्वान् दुर्हार्दः) सभी दुष्ट हृदय वाले (अभीन्) भय रहित पुरुषों को भी (धर्म इव) धाम के समान (अभि तपन्) खूब प्रतप्त प्रचण्ड होकर हे (मणे) मननशील नर, रत्न ! (द्विषतः नितपन्) बहुत से शत्रुओं को भी खूब तपाता हुआ (इन्द्र इव) इन्द्र, ऐश्वर्यवान् राजा के समान या (बलम् इन्द्र इव विरुजन्) मेघ को सूर्य के समान या प्रचण्ड वायु या विद्युत के समान नाना प्रकार से छिन्न भिन्न करता हुआ (सपत्नानां) शत्रुओं के (हृदः) हृदयों को (भिन्धि) भेद और उनके (बलम्) बल-सेना बल को तोड़ डाल॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सपत्नक्षय कामो ब्रह्माऋषिः। मन्त्रोक्तो दर्भमणिर्देवता। अनुष्टुभः। दशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Darbha Mani

    Meaning

    Scorching the heart of the jealous, heating up the mind of the enemies, you, O Darbha, destroyer, be active like the very fire and the sun, distressing and burning up all the undaunted elements, negative and evil at heart.

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    Translation

    Burning the heart of the malicious one, and burning the mind of enemies, O darbha, may you scorch all evil-hearted persons like summer.

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    Translation

    Let this Darbha burning the spirit of foes and inflaming the mind of enemies; and like heat on every side inflaming them destroy all the evil-hearted men.

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    Translation

    O darbha, let thee roast the hearts of those who hate us. Let thee pierce the minds of the enemies. Let thee thoroughly burn all the wicked-hearted people like the cauldron.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(द्विषतः) द्वेषं कुर्वतः शत्रोः (तापयन्) सन्तप्तं कुर्वन् (हृदः) हृदयानि (शत्रूणाम्) (तापयन्) (मनः) चित्तम् (दुर्हार्दः) अ०२।७।५। हार्दं करोति हार्दयतीति, हार्दयतेः क्विपि णिलोपे रूपम्। दुष्टहृदयान् (सर्वान्) (त्वम्) (दर्भः) म०१। हे शत्रुविदारक सेनापते (घर्मः) ग्रीष्मः (इव) यथा (अभीन्) वातेर्डिच्च। उ०४।१३४। नञ्+भद भदी कल्याणकरणे-इण्, स च डित्। अमङ्गलकारिणः शत्रून् (सन्तापयन्) सन्तापं कुर्वन्-वर्तस्वेति शेषः ॥

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