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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 18 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 18/ मन्त्र 1
    ऋषि: - चातनः देवता - अग्निः छन्दः - द्विपदा साम्नीबृहती सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    43

    भ्रा॑तृव्य॒क्षय॑णमसि भ्रातृव्य॒चात॑नं मे दाः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भ्रा॒तृ॒व्य॒ऽक्षय॑णम् । अ॒सि॒ । भ्रा॒तृ॒व्य॒ऽचात॑नम् । मे । दा॒: । स्वाहा॑ ॥१८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भ्रातृव्यक्षयणमसि भ्रातृव्यचातनं मे दाः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भ्रातृव्यऽक्षयणम् । असि । भ्रातृव्यऽचातनम् । मे । दा: । स्वाहा ॥१८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 18; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (2)

    विषय

    शत्रुओं से रक्षा करनी चाहिये–इसका उपदेश।

    पदार्थ

    (भ्रातृव्यक्षयणम्) वैरियों की नाशनशक्ति (असि) तू है, (मे) मुझे (भ्रातृव्यचातनम्) वैरियों के मिटाने का बल (दाः) दे, (स्वाहा) यही सुन्दर आशीर्वाद हो ॥१॥

    भावार्थ

    (भ्रातृव्य) वह छली पुरुष है, जो देखने में भ्राता के समान प्रीति और भीतर से दुष्ट आचरण करे। परमेश्वर वा राजा ऐसे दुराचारियों का नाश करता है, ऐसे ही मनुष्य मृगतृष्णारूप, इन्द्रियलोलुपता और अन्य आत्मिक दोषों का नाश करके सुख से रहे ॥१॥

    टिप्पणी

    १–भ्रातृव्यक्षयणम्। नप्तृनेष्टृत्वष्टृ० २।९६। इति भ्राजृ दीप्तौ, वा भृञ्–धारणपोषणयोः–तृन्। ततः। व्यन् सपत्ने। पा। ४।१।१४५। इति व्यन्। क्षि क्षये–ल्युट्। भ्रातृव्यो गुप्तशत्रुः, तस्य क्षयणं नाशनम्। भ्रातृव्यचातनम्। चातयतिर्नाशने–निरु० ६।३०। गुप्तशत्रुनाशनम्। स्वाहा। अ० २।१६।१। आशीर्वादोऽस्तु ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Prayer for Self-Protection

    Meaning

    Agni, self blazing fire and passion of life, you wield the power to destroy jealous rivals. Give me the strength, power and passion to destroy the hostile rivals. This is the voice of truth.

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