अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 4
ऋषिः - अथर्वा
देवता - आपः
छन्दः - एकावसानासमविषमात्रिपाद्गायत्री
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
61
आपो॒ यद्वः॑ शो॒चिस्तेन॒ तं प्र॑ति शोचत॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥
स्वर सहित पद पाठआप॑: । यत् । व॒: । शो॒चि: । तेन॑ । तम् । प्रति॑ । शो॒च॒त॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: ॥२३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
आपो यद्वः शोचिस्तेन तं प्रति शोचत यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥
स्वर रहित पद पाठआप: । यत् । व: । शोचि: । तेन । तम् । प्रति । शोचत । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: ॥२३.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कुप्रयोग त्याग के लिये उपदेश।
पदार्थ
(आपः) हे जलो ! (यत्) जो (वः) तुम्हारी (शोचिः) शोधनशक्ति है, (तेन) उससे (तम्) उस [दोष] को (प्रति शोचत) शुद्ध कर दो, (यः) जो (अस्मान्) हमसे.... मन्त्र १ ॥४॥
भावार्थ
मन्त्र १ के समान ॥४॥
विषय
५ स्वराविषमात्रिपाद्गायत्री॥
पदार्थ
१, २, ३, ४, ५ एवं मन्त्र संख्या के केवल भावार्थ ही है |
भावार्थ
सर्वव्यापक प्रभु अपने तप आदि के द्वारा द्वेषियों के द्वेष को दूर करे। राजा भी राष्ट्र में गुप्तचरों व अध्यक्षों के द्वारा व्यापक-सा होकर जहाँ भी द्वेष को देखे उसे दूर करने के लिए यत्नशील हो। ज्ञान-प्रचारक भी अपने हृदय को विशाल व उदार बनाता हुआ ज्ञान प्रसार व अपने क्रियात्मक उदाहरण से लोगों को द्वेष की भावना से ऊपर उठने की प्ररेणा दे।
उन्नीस से तेईस तक पाँच सूक्तों का उपदेश
१. इन सूक्तों का भाव ऊपर दिया ही है। मूल भावना द्वेष से ऊपर उठने की है। इस द्वेष से ऊपर उठने के लिए 'अनि, वायु, सूर्य, चन्द्र व आप:' बनना चाहिए। अग्नि की भाँति गतिशील [अगि गतौ], वायु की भाँति गति के द्वारा बुराइयों को दूर करनेवाला[वा गतिगन्धनयो:], सूर्य की भाँति सरणशील व कर्मप्रेरणा देनेवाला, चन्द्रमा की भाँति आहादमय तथा आपः की भौति व्यापकतावाला बनने से द्वेष का प्रसङ्ग रहता ही नहीं। २. इसीप्रकार द्वेष को दूर करने के लिए 'तपस, हरस, अर्चिस्, शोचिस् व तेजस्' का साधन आवश्यक है। तप सब मलों का
अथ द्वितीयं काण्डम् हरण करता है। ज्ञानज्वाला जीवन को शुचि व दीस बनाती है। तेजस्विता के सामने द्वेषादि भाव स्वयं अभिभूत व निस्तेज हो जाते है, तेजस्विता के साथ द्वेष का निवास नहीं। ३. अग्नि शरीर में 'वाणी' है, वायु 'प्राण', सूर्य'चक्षु', चन्द्र 'मन' और आपः 'रेतस्' है। 'वाणी का संयम, प्राणसाधना[प्राणायाम], तत्त्वदर्शन, मनो-निग्रह, ऊर्ध्व-रेतस्कता' द्वेष आदि सब अशुभ भावनाओं को समास कर देते हैं। एवं ये पाँच साधन मनुष्य के जीवन को अत्यन्त उन्नत व सुन्दर बनानेवाले हैं। अगले सूक्त में सब अशुभ वासनाओं के विनाश का ही निर्देश है। इस सूक्त का ऋषि ब्रह्मा है-वृद्धिवाला। देवता 'आयुः' है-उत्तम जीवन । ब्रह्मा चाहता है कि -
भाषार्थ
[परमेश्वरार्थ में परमेश्वर की शोचि है शोकित करने की शक्ति। आसुर विचारों तथा कर्मों को शोकित करना, कवितादृष्टि से है। आप: = व्यापक परमेश्वर ।]
विषय
द्वेष करने वालों के सम्बन्ध में प्रार्थना ।
भावार्थ
हे (आपः) सब के प्राप्तव्य ! सब के शरण्य ! इत्यादि पूर्ववत् । भौतिकपक्ष में—अग्नि, चन्द्र, सूर्य और आपः उनसे अपने शत्रु को विनाश करने का संकल्प किया है। प्रत्येक में पांच शक्तियां हैं। (१) तपः= पीड़क शक्ति, संतापकारी शक्ति, (२) हर:=संहार सामर्थ्य, विनाशकारी या विध्वंसकारी शक्ति, (३) आर्चिः=ज्वाला, भस्म कर देने या निर्मूल करने की शक्ति, (४) शोचिः= पवित्र करने और दुःखित करने की शक्ति और (५) तेजः = तेज, तीक्ष्णता और तीव्रता की शक्ति । इन शक्तियों को अपने वश करके इनका उचित साधनों से प्रयोग करके अपने शत्रु को वश करना चाहिये ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पूर्ववत् ऋषिः। आपो देवता। १-४ समविषमा ५ स्वराड् विषमा । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Apah Devata
Meaning
O waters, the radiance that is in you, with that wash off that which hates us and that which we hate to suffer.
Translation
O waters, whatever afflicting power you have, with that may you afflict him, who hates us and whom we hate.
Translation
Let the waters, with that of their heat, etc, like the pervious Hymn XIX.
Translation
O God, the Goal and Shelter of all, with Thy Refulgence, grant him, who hates us, or whom we do not love, light, so that he may abandon hatred.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
बंगाली (2)
भाषार्थ
(আপঃ) হে আপঃ (যৎ বঃ) যে তোমার (শোচিঃ) যে তোমার শোকজননশক্তি রয়েছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) তাঁকে (প্রতি শোচঃ) শোক প্রদান করাও (যঃ) যাঁরা (অস্মান্ দ্বেষ্টি) আমাদের সাথে দ্বেষ করে, (যম্) এবং যাঁর সাথে (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি।
टिप्पणी
[পরমেশ্বরার্থে পরমেশ্বরের শোচি হল শোকিত করার শক্তি। আসুরিক বিচার ও কর্মকে শোকিত করা, কবিতা দৃষ্টিতে। আপঃ= ব্যাপক পরমেশ্বর।]
मन्त्र विषय
কুপ্রয়োগত্যাগায়োপদেশঃ
भाषार्थ
(আপঃ) হে জল ! (যৎ) যা (বঃ) তোমার (শোচিঃ) শোধনশক্তি আছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) সেই [দোষকে] (প্রতি শোচত) শুদ্ধ করো, (যঃ) যা (অস্মান্) আমাদের প্রতি (দ্বেষ্টি) অপ্রীতি করে, [অথবা] (যম্) যার প্রতি (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি॥৪॥
भावार्थ
মন্ত্র ১ এর সমান ॥৪॥
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