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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 34/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अग्निः, विश्वकर्मा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - पशुगण सूक्त
    68

    ये ब॒ध्यमा॑न॒मनु॒ दीध्या॑ना अ॒न्वैक्ष॑न्त॒ मन॑सा॒ चक्षु॑षा च। अ॒ग्निष्टानग्रे॒ प्र मु॑मोक्तु दे॒वो वि॒श्वक॑र्मा प्र॒जया॑ संररा॒णः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । ब॒ध्यमा॑नम् । अनु॑ । दीध्या॑ना: । अ॒नु॒ऽऐक्ष॑न्त । मन॑सा । चक्षु॑षा । च॒ । अ॒ग्नि: । तान् । अग्रे॑ । प्र । मु॒मो॒क्तु॒ । दे॒व: । वि॒श्वऽक॑र्मा । प्र॒ऽजया॑ । स॒म्ऽर॒रा॒ण: ॥३४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये बध्यमानमनु दीध्याना अन्वैक्षन्त मनसा चक्षुषा च। अग्निष्टानग्रे प्र मुमोक्तु देवो विश्वकर्मा प्रजया संरराणः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । बध्यमानम् । अनु । दीध्याना: । अनुऽऐक्षन्त । मनसा । चक्षुषा । च । अग्नि: । तान् । अग्रे । प्र । मुमोक्तु । देव: । विश्वऽकर्मा । प्रऽजया । सम्ऽरराण: ॥३४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 34; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    बन्ध से मुक्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो [महाविद्वान्] (बध्यमानम् अनु) बन्धन में पड़ते हुए [जीव] पर (दीध्यानाः+सन्तः) प्रकाश करते हुए, (मनसा) मन से (च) और (चक्षुषा) नेत्र से (अन्वैक्षन्त) दया से देख चुके हैं, (तान्) उन (अग्रे=अग्रे वर्त्तमानान्) अग्रगामियों को (अग्निः) सर्वव्यापक, (देवः) प्रकाशस्वरूप, (विश्वकर्मा) सबका रचनेवाला परमेश्वर, (प्रजया) प्रजा [सृष्टि] के साथ (संरराणः=संरममाणः) आनन्द करता हुआ (प्र) भले प्रकार (मुमोक्तु) [विघ्न से] मुक्त करे ॥३॥

    भावार्थ

    जो महात्मा अपनी मानसिक और शारीरिक शक्ति से अज्ञान के कारण से दुःख में डूबे हुओं के उद्धार में समर्थ होते हैं, वह सर्वशक्तिमान् सर्वकर्ता परमेश्वर उन परोपकारीजनों का सदा सहायक और आनन्ददायक होता है ॥३॥ (बध्यमानम्) के स्थान पर (वध्यमानम्) और (अनु दीध्यानाः) दो पद के स्थान पर [अनुदीध्यानाः] एक पद सायणभाष्य में हैं ॥

    टिप्पणी

    ३–ये। विद्वांसः। बध्यमानम्। सार्वधातुके यक्। पा० ३।१।६७। इति बन्ध बन्धने–कर्मणि यक्, ततः शानच्। बन्धने गच्छन्तम्। अनु। अनुलक्ष्य। दीध्यानाः। दीधीङ् दीप्तिदेवनयोः–शानच्। दीप्यमानाः। अन्वैक्षन्त। ईक्ष दर्शने–छान्दसो लङ्। अनुकूलम् अनुक्रमेण वा दृष्टवन्तः। मनसा चित्तेन। चक्षुषा। अ० १।३३।४। दर्शनेन्द्रियेण। नेत्रेण। अग्निः। सर्वत्रगतिः परमेश्वरः। तान्। विदुषः पुरुषान्। युष्मत्तत्ततक्षुःष्वन्तःपादम्। पा० ८।३।१०३। इति (अग्निष्टान्) इत्यत्र षत्वम्। अग्रे। अग्रे वर्त्तमानान्। प्र। प्रकर्षेण। मुमोक्तु। छन्दसि शपः श्लुः। मोचयतु विघ्नात्। देवः। दीप्यमानः। विश्वकर्मा। सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। इति विश्व+कृञ्–मनिन्। विश्वकर्मा सर्वस्य कर्त्ता [मध्यस्थानः]–निरु० १०।२५। विश्वेषु कर्म यस्य। सर्वकर्त्ता। परमात्मा। प्रजया। स्वसृष्ट्या। संरराणः। संरममाणः। सहरममाणः। सम्यग्रममाणः। यद्वा। रा दाने, ग्रहणे, रै शब्दे–लिटः कानच्। सम्यग्दाता ग्रहीता शब्दायमानो वा ॥

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    विषय

    वीर्य-रक्षण व प्रभु-दर्शन

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र में वीर्य को अपने शरीर में सुरक्षित करने का उपदेश है। यही शरीर में वीर्य का बन्धन है। (ये) = जो लोग (बध्यमानम् अनु) = शरीर में बौधे जाते हुए व सुरक्षित किये जाते हुए वीर्य के अनुसार (दीध्याना:) = [दीधी to shine] चमकते हुए, तेजस्वी होते हुए, (मनसा) = मन से तथा (चक्षुषा) = चक्षु से (अन्वेक्षत) = अपने में आत्मा का दर्शन करते हैं। वीर्यरक्षण से बुद्धि तीन बनती है और इस तीव्र बुद्धि से प्रभु का दर्शन होता है। वीर्य-रक्षण करनेवाला पुरुष तेजस्वी बनता है, इसकी सब इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि उत्कृष्ट बनते हैं। यह मन से उस आत्मा का मनन करता है तो आँख से सर्वत्र उसकी महिमा को देखता है। २. (तान्) = इन मनन व दर्शन करनेवाले पुरुषों को (अग्रिः) = वह अग्रणी प्रभु अग्रे सर्वप्रथम (प्रमुमोक्तु) = मोक्ष प्राप्त कराता है, वे प्रभु जोकि (देव:) = प्रकाशमय हैं, (विश्वकर्मा) = सृष्टि-रचनरूप कर्मवाले हैं और (प्रजया संरराण:) = सब प्रजाओं के साथ रमण करनेवाले हैं। वस्तुत: प्रजा' शब्द उनके लिए प्रयुक्त होता है, जो अपनी शक्तियों का प्रकृष्ट प्रादुर्भाव करनेवाले हैं। इनमें ही प्रभु का वास होता है।

     

    भावार्थ

    वीर्य-रक्षण से मनुष्य दीप्त बनता है, प्रभु का दर्शन करता है और मोक्ष प्राप्त करता है।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (बध्यमानम्) शरीर में बंधे जीवात्मा का (अनु दीध्याना:) अनुध्यान अर्थात् निरन्तर चिन्तन करते हैं, (मनसा) मनन द्वारा (च) और (चक्षुषा) दिव्य दृष्टि द्वारा (अन्वैक्षन्त) उसका अन्वीक्षण करते हैं (तान्) उन्हें (विश्वकर्मा) विश्व का कर्ता, (प्रजया संरराणः) प्रजा के साथ सम्यक् रममाण हुआ (अग्निः देवः) अग्निनामक परमेश्वर -देव (अग्रे) पहिले (प्र मुमोक्तु) प्रमुक्त करे, मोक्ष प्रदान करे।

    टिप्पणी

    [अग्निदेव="तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायुस्तदु चन्द्रमाः। तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म ताऽआपः स प्रजापतिः।। (यजु:० ३२।१) के अनुसार अग्निदेव है ब्रह्म, जिसे कि विश्वकर्मा कहा है। जिन अनुध्यानियों में जीवात्म-सम्बन्धी ज्ञानाग्नि प्रकट हुई है, उन्हें प्रमुक्त करनेवाला विश्वकर्मा भी, अग्निदेव है।]

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    विषय

    मोक्षमार्ग का उपदेश ।

    भावार्थ

    (ये) जो ध्यानी, योगाभ्यासी, मुमुक्ष पुरुष (दीध्यानाः) योगसमाधि द्वारा ध्यान करते हुए (बध्यमानम्) देह-बन्धन में फंसे हुए आत्मा को (मनसा) अपनी मननशक्ति और (चक्षुषा) प्रज्ञानेत्र से (अनु ऐक्षन्त) अनुदर्शन करते हैं (अग्निः) सर्वप्रकाशक ज्ञानमय परमेश्वर (देवः) प्रकाशस्वरूप (विश्वकर्मा) समस्त विश्व का कर्त्ता (प्रजया) समस्त जीवों की प्रजा के साथ या सर्वोत्पादक प्रकृति के साथ (संरराणः) रमण करता हुआ जगदीश्वर (अग्रे) प्रथम ही (मुमोक्तु) इस देह के क्लेशमय बन्धन से मुक्त कर देता है, उनको जीवन्मुक्त कर देता है।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘बध्यमानमनुबध्यमाना अभ्यैक्षन्त’ इति तै० सं०। (च०) ‘देवः प्रजापतिः’ इति तै० सं०, मै० सं०। ‘प्रजया संविदानः’ इति तै० सं०। ‘प्रमुमुक्त देवः प्रजापतिः प्रजाभिः संविदानम्’। इति पैप्प० सं०। (प्र०) ‘ये वध्यमानमनु वध्यमानं’ इति सायणाभिमतः पाठः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। पशुपतिर्देवता। पशुभागकरणम्। १-४ त्रिष्टुभः। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Way to Freedom, Moksha

    Meaning

    Those who, with concentrated mind and inner vision in meditation, see the soul bound in sufferance, may Agni, lord self-refulgent, enlighten, and may he, Vishvakarma, happy with the children of his creation, liberate them at the earliest.

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    Subject

    Agni-Visvakarman

    Translation

    Among us, there are worshippers, who engrossed in deep ‘meditation, could realize with their mental eye (manasā caksusā), that the victim, (the culprit) is seated in their own interior. May our foremost adorable (Agni), always happy and pleased with the creation, the Supreme Architect (Visvakarman)- first of all (agnih tan agre), bless them with complete freedom (mumoktu).

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    Translation

    Self-refulgent and All-illuminating creator of the universe rejoicing with his creatures gives riddance from bondage first (in the life time) to them who enjoying the state of concentration see through their intuictive mind and eye the soul which is in bondage.

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    Translation

    Yogis, who in deep meditation, through mental vision and the eye of intellect visualize the soul, fettered by Matter, the first set free from the painful bondage of the body, by the Refulgent God, the Creator of the universe, who sports with Matter.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३–ये। विद्वांसः। बध्यमानम्। सार्वधातुके यक्। पा० ३।१।६७। इति बन्ध बन्धने–कर्मणि यक्, ततः शानच्। बन्धने गच्छन्तम्। अनु। अनुलक्ष्य। दीध्यानाः। दीधीङ् दीप्तिदेवनयोः–शानच्। दीप्यमानाः। अन्वैक्षन्त। ईक्ष दर्शने–छान्दसो लङ्। अनुकूलम् अनुक्रमेण वा दृष्टवन्तः। मनसा चित्तेन। चक्षुषा। अ० १।३३।४। दर्शनेन्द्रियेण। नेत्रेण। अग्निः। सर्वत्रगतिः परमेश्वरः। तान्। विदुषः पुरुषान्। युष्मत्तत्ततक्षुःष्वन्तःपादम्। पा० ८।३।१०३। इति (अग्निष्टान्) इत्यत्र षत्वम्। अग्रे। अग्रे वर्त्तमानान्। प्र। प्रकर्षेण। मुमोक्तु। छन्दसि शपः श्लुः। मोचयतु विघ्नात्। देवः। दीप्यमानः। विश्वकर्मा। सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। इति विश्व+कृञ्–मनिन्। विश्वकर्मा सर्वस्य कर्त्ता [मध्यस्थानः]–निरु० १०।२५। विश्वेषु कर्म यस्य। सर्वकर्त्ता। परमात्मा। प्रजया। स्वसृष्ट्या। संरराणः। संरममाणः। सहरममाणः। सम्यग्रममाणः। यद्वा। रा दाने, ग्रहणे, रै शब्दे–लिटः कानच्। सम्यग्दाता ग्रहीता शब्दायमानो वा ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (যে) যে (বধ্যমানম্) শরীরে বদ্ধ জীবাত্মার (অনু দীধ্যানাঃ) অনুধ্যান অর্থাত নিরন্তর চিন্তন করে, (মনসা) মনন দ্বারা (চ) এবং (চক্ষুষা) দিব্য দৃষ্টি দ্বারা (অন্বৈক্ষন্ত) তার অন্বীক্ষণ/অনুসন্ধান করে (তান্) তাঁকে (বিশ্বকর্মা) বিশ্বের কর্তা, (প্রজয়া সংররাণঃ) প্রজার সাথে সম্যক্ রমমাণ (অগ্নিঃ দেবঃ) অগ্নিনামক পরমেশ্বর-দেব (অগ্রে) প্রথমে (প্র মুমোক্তু) প্রমুক্ত করেন, মোক্ষ প্রদান করেন।

    टिप्पणी

    [অগ্নিদেব="তদেবাগ্নিস্তদাদিত্যস্তদ্বায়ুস্তদু চন্দ্রমাঃ। তদেব শুক্রং তদ্ ব্রহ্ম তাঽআপঃ স প্রজাপতিঃ ॥" (যজুঃ০ ৩২।১) এর অনুসারে অগ্নিদেব হল ব্রহ্ম, যাকে বিশ্বকর্মা বলা হয়েছে। যে অনুধ্যানীদের মধ্যে জীবাত্ম-সম্বন্ধীয় জ্ঞানাগ্নি প্রকট হয়েছে, তাঁদের প্রমুক্তকারী বিশ্বকর্মাও, অগ্নিদেব।]

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    मन्त्र विषय

    বন্ধাৎ মোক্ষায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যে) যে [মহাবিদ্বান্] (বধ্যমানম্ অনু) বন্ধনে আবদ্ধ [জীবের] প্রতি (দীধ্যানাঃ+সন্তঃ) প্রকাশ করে, (মনসা) মন থেকে (চ) এবং (চক্ষুষা) চক্ষু দ্বারা (অন্বৈক্ষন্ত) কৃপাপূর্বক নিরীক্ষণ করেছে, (তান্) সেই (অগ্রে=অগ্রে বর্ত্তমানান্) অগ্রগামীদের (অগ্নিঃ) সর্বব্যাপক, (দেবঃ) প্রকাশস্বরূপ, (বিশ্বকর্মা) সর্বরচয়িতা/সর্বকর্তা পরমেশ্বর, (প্রজয়া) প্রজা [সৃষ্টির] সাথে (সংররাণঃ=সংরমমাণঃ) আনন্দ করে (প্র) উত্তমরূপে (মুমোক্তু) [বিঘ্ন থেকে] মুক্ত করেন/করুন ॥৩॥

    भावार्थ

    যে মহাত্মা নিজের মানসিক ও শারীরিক শক্তি দ্বারা অজ্ঞানের কারণে দুঃখে নিমজ্জিতদের উদ্ধারে সমর্থ হয়, সেই সর্বশক্তিমান্ সর্বকর্তা পরমেশ্বর সেই পরোপকারীদের সদা সহায়ক ও আনন্দদায়ক হয়॥৩॥ (বধ্যমানম্) এর স্থানে (বধ্যমানম্) এবং (অনু দীধ্যানাঃ) দুটি পদের স্থানে [অনুদীধ্যানাঃ] একটি পদ সায়ণভাষ্যে আছে ॥

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