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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 36/ मन्त्र 3
    ऋषिः - पतिवेदनः देवता - अग्नीषोमौ छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - पतिवेदन सूक्त
    111

    इ॒यम॑ग्ने॒ नारी॒ पतिं॑ विदेष्ट॒ सोमो॒ हि राजा॑ सु॒भगां॑ कृ॒णोति॑। सुवा॑ना पु॒त्रान्महि॑षी भवाति ग॒त्वा पतिं॑ सु॒भगा॒ वि रा॑जतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒यम् । अ॒ग्ने॒ । नारी॑ । पति॑म् । वि॒दे॒ष्ट॒ । सोम॑: । हि । राजा॑ । सु॒ऽभगा॑म् । कृ॒णोति॑ । सुवा॑ना । पु॒त्रान् । महि॑षी । भ॒वा॒ति॒ । ग॒त्वा । पति॑म् । सु॒ऽभगा॑ । वि । रा॒ज॒तु॒ ॥३६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इयमग्ने नारी पतिं विदेष्ट सोमो हि राजा सुभगां कृणोति। सुवाना पुत्रान्महिषी भवाति गत्वा पतिं सुभगा वि राजतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इयम् । अग्ने । नारी । पतिम् । विदेष्ट । सोम: । हि । राजा । सुऽभगाम् । कृणोति । सुवाना । पुत्रान् । महिषी । भवाति । गत्वा । पतिम् । सुऽभगा । वि । राजतु ॥३६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 36; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विवाह संस्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! (इयम्) यह (नारी) नर [अपने पति] का हित करनेवाली कन्या (पतिम्) पति को (विदेष्ट) प्राप्त करे, (हि) क्योंकि (सोमः) ऐश्वर्यवान् वा चन्द्रसमान आनन्दप्रद (राजा) राजा [ऐश्वर्यवान् वर] [इसको] (सुभगाम्) सौभाग्यवती (कृणोति) करता है। [यह कन्या] (पुत्रान्) कुलशोधक वा बहुरक्षक वीरपुत्रों को (सुवाना) उत्पन्न करती हुई (महिषी) पूजनीय महारानी (भवाति) होवे और (पतिम्) पति को (गत्वा) पाकर (सुभगा) सौभाग्यवती होकर (वि) अनेक प्रकार से (राजतु) राज्य करे ॥३॥

    भावार्थ

    परमेश्वर के अनुग्रह से ये दोनों पति और पत्नी, बड़े ऐश्वर्य वा ठाटवाले राजा और रानी के समान गृहकार्यों को चलावें और वीर पुत्र-पौत्र आदिकों को उत्तम शिक्षा देते हुए सदा आनन्द भोगें ॥३॥ मनु महाराज ने कहा है–अ० ३।६०। संतुष्टो भार्यया भर्त्ता भर्त्रा भार्या तथैव च। यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ॥१॥ भार्या से भर्त्ता और भर्त्ता से भार्या, जिस कुल में संतुष्ट हों, वहाँ पर अवश्य ही नित्य कल्याण रहता है ॥

    टिप्पणी

    ३–इयम्। निर्दिष्टा गुणवती। अग्ने। हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर। नारी। अ० १।११।१। नरस्य हिता। कन्या। वधूः। पतिम्। अ० १।१।१। रक्षकम्। यद्वा। सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। इति पत ऐश्ये–इन्। ऐश्वर्यवन्तम्। विदेष्ट। विद्लृ लाभे–आशीर्लिङि छान्दसं रूपम्। वेदिषीष्ट। विन्दताम्। लभताम्। सोमः। अ० १।६।२। ऐश्वर्यवान्। चन्द्रवदानन्दप्रदः। हि। यस्मात्। राजा। अ० १।१०।१। ऐश्वर्यवान्। प्रतापी। सुभगाम्। सुष्ठु भगं यस्याः। शोभनैश्वर्यवतीम्। पतिप्रियाम्। कृणोति। करोति। सुवाना। षूङ् प्राणिगर्भविमोचने–शानच्। जनयन्ती। पुत्रान्। अ० १।११।५। कुलशोधकान् बहुरक्षकान् वा वीरान्। महिषी। अ० २।३५।४। मह पूजायाम्–टिषच्। षित्वान् ङीष्। पूजनीया। कृताभिषेका राजपत्नी। भवाति। भू–लेट्। भूयात्। गत्वा। प्राप्य। लब्ध्वा। सुभगा। सौभाग्यवती। वि। विशेषेण। राजतु। ईश्वरी तेजस्विनी भवतु ॥

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    विषय

    पुत्रजन्म व सौभाग्य

    पदार्थ

    १. हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (इयम्) = गतमन्त्र में वर्णित गुणोंवाली (नारी) = कन्या (पतिं विदेष्ट) = पति को प्राप्त करे। (हि) = निश्चय से (सोमः) = सौम्य स्वभाववाला (राजा) = व्यवस्थित जीवनवाला [राज Regulated] दीस जीवनवाला [राज् दीसौ] यह पति इस नारी को (सुभगां कृणोति) = सौभाग्यवाला करता है। पति इसके जीवन को सदा सौभाग्य-सम्पन्न बनाने का प्रयत्न करता है। २. यह नारी (पुत्रान् सुवाना) = पुत्रों को जन्म देती हुई (महिषी) = आदरणीय (भवाति) = होती है। सामान्यत सन्तानोत्पादन में असमर्थ पत्नी उचित आदर नहीं पाती है। कन्या के माता-पिता चाहते हैं कि यह कन्या (पतिं गत्वा) = अपने पति को प्रास करके (सुभगा) = सौभाग्यवाली होती हुई (विराजतु) = विशेषरूप से शोभावाली हो। कन्या अपने पतिगृह में ही शोभा पाती है। उसे इस अपने बनाये हुए घर को ही अपना घर समझना चाहिए। आज तक वह जिस घर में थी, वह घर तो उसकी माता का घर था, उसे उसकी माता ने ही बनाया था।

    भावार्थ

    कन्या पतिगृह को प्राप्त करे। उसे ही वह अपना घर समझे। पति भी सौम्य स्वभाववाला व व्यवस्थित जीवनवाला हो।

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    भाषार्थ

    (अग्ने) हे सर्वाग्रणी परमेश्वर ! (इयम् नारी) यह कन्या (पति विदेष्ट) पति को प्राप्त हो। (सोमो हि राजा) सौम्य स्वभाववाला राजमान हुआ वर, (सुभगाम् कृणोति) इसे सौभाग्ययुक्त करता है। (पुत्रान् सुवाना) पुत्रों का प्रसव करती हुई (महिषी) महिमायुक्ता (भवाति) यह हो (गत्वा पतिम्) पति [गृह] को जाकर (सुभगा) सोभाग्युक्ता हुई (वि राजतु) विराजमान हो।

    टिप्पणी

    [विदेष्ट= विद्लृ लाभे आशिषि लिङ्, सीयुटः सलोपः सुडागमः (सायण)।]

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    विषय

    कन्या के लिये योग्य पति की प्राप्ति ।

    भावार्थ

    हे अग्ने ! (इयं नारी) यह नारी (पतिं) पति को (विदेष्ट) प्राप्त हो। (राजा) विद्या और ऐश्वर्य से युक्त (सोमः) प्रसव अर्थात् पुत्रोत्पादन करने में समर्थ वीर्यवान् ब्रह्मचारी पति (हि) निश्चय से इसको (सुभगा) सौभाग्यसम्पन्न (कृणोति) करे। यह नारी (पुत्रान्) पुत्रों को (सुवाना) उत्पन्न करती हुई (महिषी) पूजनीय श्रेष्ठ रानी के समान (भवाति) हो। और (पतिं) पति के पास (गत्वा) जाकर (सुभगा) सौभाग्यवती होकर (वि राजतु) नाना प्रकार से और विशेष रूप से शोभा को प्राप्त हो ।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘अग्ने नारि’ इति क्वाचित्कः पाठः। पतिविदेष्टु (द्वि०) ‘सुभगं कृणोतु’ ‘महिषी भवासि गत्वा पति सुभगे विराज’ इति पैप्प० सं०। महिषी महनीया श्रेष्ठा भार्या इति सायणः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पतिवेदन ऋषिः। अग्नीषोमौ मन्त्रोक्ता सोमसूर्येन्द्रभगधनपतिहिरण्यौषधयश्च देवताः। १ भुरिग्। २, ५-७ अनुष्टुभः। ३, ४ त्रिष्टुभौ। ८ निचृत् पुरोष्णिक् । अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Happy Matrimony

    Meaning

    O lord, self-refulgent, Agni, O sacred fire of yajna, let this wedded woman now join her husband. Let Soma, noble brilliant husband, join her as his noble blessed wife. And let the wife, having joined her husband, be the proud mother of their children and shine and rule the home as the queen of prosperity and conjugal bliss.

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    Subject

    Agni-Soma pair

    Translation

    O foremost adorable Lord, may this woman select out a nice husband (in this svayamvara). May Soma Rajan, our Lord of Bliss, make her happy. May she be blessed with sons, may she be the Chief Lady of the household. May she have the privilege of leading peaceful and prosperous life in her husband's company.

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    Translation

    O' Lord of creatures; May this woman find husband, verily tender good husband makes her happy. May she bearing progeny, become the mistress of the house and going to her husband shine as his happy friend.

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    Translation

    In obedience to the upright law of God, the Creator of the universe, I prepare for accepting a husband, this lucky girl, liked by the learned, respected by the spiritually advanced, and guarded by the king. [1]

    Footnote

    [1] "I" refers to the father or preceptor of the girl.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३–इयम्। निर्दिष्टा गुणवती। अग्ने। हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर। नारी। अ० १।११।१। नरस्य हिता। कन्या। वधूः। पतिम्। अ० १।१।१। रक्षकम्। यद्वा। सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। इति पत ऐश्ये–इन्। ऐश्वर्यवन्तम्। विदेष्ट। विद्लृ लाभे–आशीर्लिङि छान्दसं रूपम्। वेदिषीष्ट। विन्दताम्। लभताम्। सोमः। अ० १।६।२। ऐश्वर्यवान्। चन्द्रवदानन्दप्रदः। हि। यस्मात्। राजा। अ० १।१०।१। ऐश्वर्यवान्। प्रतापी। सुभगाम्। सुष्ठु भगं यस्याः। शोभनैश्वर्यवतीम्। पतिप्रियाम्। कृणोति। करोति। सुवाना। षूङ् प्राणिगर्भविमोचने–शानच्। जनयन्ती। पुत्रान्। अ० १।११।५। कुलशोधकान् बहुरक्षकान् वा वीरान्। महिषी। अ० २।३५।४। मह पूजायाम्–टिषच्। षित्वान् ङीष्। पूजनीया। कृताभिषेका राजपत्नी। भवाति। भू–लेट्। भूयात्। गत्वा। प्राप्य। लब्ध्वा। सुभगा। सौभाग्यवती। वि। विशेषेण। राजतु। ईश्वरी तेजस्विनी भवतु ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (অগ্নে) হে সর্বাগ্রণী পরমেশ্বর ! (ইয়ম্ নারী) এই কন্যা (পতিং বিদেষ্ট) পতিকে প্রাপ্ত হোক। (সোমো হি রাজা) সৌম্যস্বভাবযুক্ত রাজমান বর, (সুভগাম্ কৃণোতি) একে সৌভাগ্যযুক্ত করে। (পুত্রান্ সুবানা) সন্তানের প্রসব করে (মহিষী) মহিমাযুক্তা (ভবাতি) এই কন্যা হোক (গত্বা পতি) পতি [গৃহে] গিয়ে (সুভগা) সৌভাগ্যযুক্তা হয়ে (বি রাজতু) বিরাজমান হোক।

    टिप्पणी

    [বিদেষ্ট= বিদ্লৃ লাভে আশিষি লিঙ্, সীয়ুটঃ সলোপঃ সুডাগমঃ (সায়ণ)।]

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    मन्त्र विषय

    বিবাহসংস্কারোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অগ্নে) হে জ্ঞানস্বরূপ পরমেশ্বর ! (ইয়ম্) এই (নারী) নর [নিজের পতির] হিতকরী কন্যা (পতিম্) পতিকে (বিদেষ্ট) প্রাপ্ত করুক, (হি) কারণ (সোমঃ) ঐশ্বর্যবান্ বা চন্দ্রসমান আনন্দপ্রদ (রাজা) রাজা [ঐশ্বর্যবান্ বর] [এই কন্যাকে] (সুভগাম্) সৌভাগ্যবতী (কৃণোতি) করে। [এই কন্যা] (পুত্রান্) কুলশোধক বা বহুরক্ষক বীরপুত্রদের (সুবানা) উৎপন্ন করে (মহিষী) পূজনীয় মহারানী (ভবাতি) হোক এবং (পতিম্) পতিকে (গত্বা) প্রাপ্ত করে (সুভগা) সৌভাগ্যবতী হয়ে (বি) অনেক প্রকারে (রাজতু) রাজ্য করুক ॥৩॥

    भावार्थ

    পরমেশ্বরের অনুগ্রহপূর্বক এই দুজন পতি ও পত্নী, বড়ো ঐশ্বর্য বা রাজা এবং রানীর সমান গৃহকার্য চালনা করুক এবং বীর পুত্র-পৌত্র আদিদের উত্তম শিক্ষা দিয়ে সদা আনন্দ ভোগ করুক ॥৩॥ মনু মহারাজ বলেছেন–অ০ ৩।৬০। সংতুষ্টো ভার্যযা ভর্ত্তা ভর্ত্রা ভার্যা তথৈব চ। যস্মিন্নেব কুলে নিত্যং কল্যাণং তত্র বৈ ধ্রুবম্ ॥১॥ ভার্যা দ্বারা ভর্ত্তা এবং ভর্ত্তা দ্বারা ভার্যা, যে কুলে সন্তুষ্ট হয়, সেখানে অবশ্যই নিত্য কল্যাণ থাকে ॥

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