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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - वनस्पतिः, यक्ष्मनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु प्राप्ति सूक्त
    48

    दे॒वास्ते॑ ची॒तिम॑विदन्ब्र॒ह्माण॑ उ॒त वी॒रुधः॑। ची॒तिं ते॒ विश्वे॑ दे॒वा अवि॑द॒न्भूम्या॒मधि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वा: । ते॒ । ची॒तिम् । अ॒वि॒द॒न् । ब्र॒ह्माण॑: । उ॒त । वी॒रुध॑: । ची॒तिम् । ते॒ । विश्वे॑ । दे॒वा: । अवि॑दन् । भूम्या॑म् । अधि॑ ॥९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवास्ते चीतिमविदन्ब्रह्माण उत वीरुधः। चीतिं ते विश्वे देवा अविदन्भूम्यामधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवा: । ते । चीतिम् । अविदन् । ब्रह्माण: । उत । वीरुध: । चीतिम् । ते । विश्वे । देवा: । अविदन् । भूम्याम् । अधि ॥९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 9; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य अपने आप को ऊँचा करे।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य] (ते) तेरे लिये (देवाः) प्रकाशमान (ब्रह्माणः) ब्रह्मज्ञानियों ने (उत) और (वीरुधः) ओषधों ने (चीतिम्=चितिम्) ज्ञान (अविदन्) प्राप्त किया है। (विश्वे) सब (देवाः) दिव्य पदार्थों [सूर्य, चन्द्र, वायु आदि] ने (ते) तेरे लिये (चीतिम्) चेतन्यता को (भूम्याम् अधि) पृथिवी के ऊपर (अविदन्) प्राप्त किया है ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य विद्वान् वेदवेत्ताओं के उपदेश से और अन्न आदि ओषधों और सूर्य, चन्द्र, वायु, जल, आकाश आदि दिव्य पदार्थों में ईश्वरीय अटल नियमों से शिक्षा और उपकार प्राप्त करके, ईश्वर की महिमा के ध्यान में निमग्न होकर और परोपकार करके आनन्द पाते हैं ॥४॥

    टिप्पणी

    ४–देवाः। प्रकाशमानाः। दातारः। दिव्यपदार्थाः। सूर्यादयः। ते। तुभ्यं हे मनुष्य ! चीतिम्। इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। इति चिती ज्ञाने, जागरणे च–इन्, स च कित्, दीर्घश्छान्दसः। ज्ञानम्। जागरणम्। अविदन्। विद्लृ लाभे–लुङ्। लब्धवन्तः। ब्रह्माणः। अ० २।६।२। ब्रह्मज्ञानिनः। ब्राह्मणाः। वीरुधः। ओषधयः। भूम्याम्। अ० १।११।२। भू–मि। भूलोके। पृथिव्याम् ॥

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    विषय

    देव, ब्रह्मा, वीरुध

    पदार्थ

    १. (देवा:) = सूर्य-चन्द्रादि देव (ते) = तेरे (चीतिम्) = संवरण को [चीव-ति-संवरण] (अविदन्) = जानते हैं, अर्थात् इन देवों के सम्पर्क में रहने से यह ग्राहीरोग नष्ट हो जाता है। 'चीति' शब्द "चिति' के स्थान में प्रयुक्त मानकर यह अर्थ भी किया जा सकता है कि ये देव तेरी अन्त्येष्टि की चिता [funeral pyre] को जानते हैं। इसीप्रकार (ब्रह्माण:) = ज्ञानी वैद्य (उत) = और (वीरुधः) = रोगनाशक लताएँ तेरी चिति को जानते हैं, अर्थात् तेरा नाश करने में समर्थ हैं। २. (भूम्याम् अधि) = इस पृथिवी पर (विश्वेदेवा:) = सब ज्ञानी पुरुष (ते चीतिम्) = तेरे विनाश को (अविदन्) = जानते हैं, तेरे नाश के उपाय को जानते हुए वे तुझे नष्ट करते हैं।

    भावार्थ

    सूर्यादि देव, ज्ञानी वैद्य व कई लताएँ इस ग्राहीरोग को नष्ट करती हैं।

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    भाषार्थ

    (देवाः) देवों ने (ते) तेरे (चीतिम्) चीत्कार को (अविदन्) जाना, (ब्रह्माणः) वेदवेत्ताओं तथा ब्रह्मज्ञों ने, (उत) तथा (वीरुधः) वीरुधों के ज्ञाता चिकित्सकों ने तेरे चीत्कार को जाना। (भूम्याम् अधि) भूमिनिवासी (विश्वे देवाः) सब देवों ने (ते चीतिम्) तेरे चीत्कार को (अविदन्) जाना।

    टिप्पणी

    [वीरुधः=विरुन्धन्ति विनाशयन्ति रोगान् इति वीरुधः (सायण, मन्त्र ३। इस व्युत्पत्ति के अनुसार वीरुधः का अर्थ चिकित्सक भी सम्भव है। अथवा वीरुधः= वीरुधां ज्ञातारः, लाक्षणिक प्रयोग, यथा "मञ्चा: क्रोशन्ति= मञ्चस्था मनुष्याः क्रोशन्ति।" मन्त्र २, ३ में भूतकाल-प्रयोगों द्वारा, तथा अन्य वर्णनों द्वारा ज्ञात होता है कि रोगी रोगोन्मुक्त हो चुका था। मन्त्र ४ में रोगोन्मुक्त के चीत्कार का पुनः कथन हुआ है। अतः वह पुनः रोगाक्रान्त हो गया है। इसलिए उसके रोग के स्थिर शमन के लिए परमेश्वर से याचनार्थ मन्त्र ५ कहा है।]

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    विषय

    आत्मज्ञान का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे (जीव) शरीरधारिन् ! (ते) तेरी ( चीतिं ) शरीर परमाणुओं के संग्रह और उपचय होने की विधि को ( देवाः ) विद्वान् (ब्रह्माणः) ब्रह्मज्ञानी, वेदवित् ( वीरुधः ) और ब्रह्मज्ञानी स्त्रियां या पुत्रोत्पादक माताएं या ब्रह्मवल्लियां ही (अविदन्) जानती हैं। (ते चीतिं) तेरी देह में वृद्धि को प्राप्त होने की विधि (भूम्याम् अधि) इस पृथिवी पर ( विश्व देवाः ) समस्त दिव्यगुण धारण करने हारे विद्वान् और प्राण और पञ्चभूत आदि ( अविदन्) जानते और प्राप्त करते या कराते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरा ऋषिः। वनस्पतिर्यक्ष्मनाशनो देवता । मन्त्रोक्तदेवतास्तुतिः। १ विराट् प्रस्तारपंक्तिः। २-५ अनुष्टुभः। पञ्चर्चं सूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rheumatism

    Meaning

    Brilliant physicians, scholars of Veda, holy powers of nature and noble people of experience and observation have known, collected and consolidated the knowledge for you, O man, on this subject, and the herbs and trees have provided the medical materials on earth for you. (Be grateful and cooperative with nature and humanity, and to divinity.)

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    Translation

    The enlightened ones know how to collect you and the physician know the plants. All the bounties of Nature have made it possible to gather you on the earth.

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    Translation

    O patient! the physiologists know how the formation of your body is made. Also know this fact that the physicians and the herbs and all the physical forces have attained the healing medicine for the recovery of your consciousness in this world.

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    Translation

    O soul, the learned, the Vedic scholars and the mothers who bear children, know the science of thy bodily structure. The way in which thou developest in the body, is known to all the enlightened persons on the earth.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४–देवाः। प्रकाशमानाः। दातारः। दिव्यपदार्थाः। सूर्यादयः। ते। तुभ्यं हे मनुष्य ! चीतिम्। इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। इति चिती ज्ञाने, जागरणे च–इन्, स च कित्, दीर्घश्छान्दसः। ज्ञानम्। जागरणम्। अविदन्। विद्लृ लाभे–लुङ्। लब्धवन्तः। ब्रह्माणः। अ० २।६।२। ब्रह्मज्ञानिनः। ब्राह्मणाः। वीरुधः। ओषधयः। भूम्याम्। अ० १।११।२। भू–मि। भूलोके। पृथिव्याम् ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    [হে মনুষ্য] (তে) তোমার জন্য (দেবাঃ) প্রকাশমান (ব্রহ্মাণঃ) ব্রহ্মজ্ঞানিরা (উত) এবং (বীরুধঃ) ওষধির (চীতিম্=চিতিম্) জ্ঞান (অবিদন্) প্রাপ্ত করিয়াছে। (বিশ্বে) সব (দেবাঃ) দিব্য পদার্থ [সূর্য, চন্দ্র, বায়ু আদির] (তে) তোমার জন্য (চীতিম্) চৈতন্যতার (ভূম্যাম্ অধি) পৃথিবীর উপর (অবিদন্) প্রাপ্ত করিয়াছে।।

    भावार्थ

    [হে মনুষ্য] তোমার জন্য প্রকাশমান ব্রহ্মজ্ঞানিরা এবং ওষধির জ্ঞান প্রাপ্ত করিয়াছে। সব দিব্য পদার্থ [সূর্য, চন্দ্র, বায়ু আদির] তোমার জন্য চৈতন্যতার পৃথিবীর উপর প্রাপ্ত করিয়াছে।।
    মনুষ্য বিদ্বান বেদবেত্তার উপদেশ হইতে তথা অন্ন আদি ওষধি এবং সূর্য, চন্দ্র, বায়ু, জল, আকাশ আদি দিব্য পদার্থে ঈশ্বরীয় অচল নিয়মে শিক্ষা এবং উপকার প্রাপ্ত করিয়া ঈশ্বরের মহিমার ধ্যানে নিমগ্ন হইয়া এবং পরোপকার করিয়া আনন্দ পাইয়া থাকে।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    দেবাস্তে চীতিমবিদগ্ৰহ্মাণ উত বীরুধঃ । চীতিং তে বিশ্বে দেবা অবিদহূম্যামধি।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    ভৃগ্বঙ্গিরাঃ। বনষ্পতিঃ। অনুষ্টুপ্

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    भाषार्थ

    (দেবাঃ) দেবগণ (তে) তোমার (চীতিম্) রোগযন্ত্রনায় করা চিৎকার/আর্তনাদ (অবিদন্) জেনেছে/জ্ঞাত হয়েছে, (ব্রহ্মাণঃ) বেদবেত্তাগণ এবং ব্রহ্মজ্ঞগণ, (উত) এবং (বীরুধঃ) বিরুৎ আদির জ্ঞাতা চিকিৎসকেরা তোমার চিৎকার জেনেছে। (ভূম্যাম্ অধি) ভূমিনিবাসী (বিশ্বে দেবাঃ) সকল দেবতা (তে চীতিম্) তোমার চিৎকার (অবিদন্) জেনেছে।

    टिप्पणी

    [বীরুধঃ= বিরুন্ধন্তি বিনাশয়ন্তি রোগান্ ইতি বীরুধঃ (সায়ণ, মন্ত্র ৩)। এই ব্যুৎপত্তি অনুসারে বিরুধঃ এর অর্থ চিকিৎসকই সম্ভব। অথবা বীরুধঃ বীরুধাং জ্ঞাতারঃ, লাক্ষণিক প্রয়োগ, যথা "মঞ্চাঃ ক্রোশন্তি =মঞ্চস্থা মনুষ্যাঃ ক্রোশন্তি।” মন্ত্র ২, ৩ এ ভূতকাল-প্রয়োগ দ্বারা, এবং অন্যান্য বর্ণনার দ্বারা জ্ঞাত হয় যে, রোগী রোগোন্মুক্ত হয়েছিল। মন্ত্র ৪ এ রোগোন্মুক্তের রোগযন্ত্রনার চিৎকারের পুনরায় কথন হয়েছে। অতঃএব সে পুনরায় রোগাক্রান্ত হয়ে গেছে। এইজন্য তাঁর রোগের স্থির/পূর্ণরূপে দমনের জন্য পরমেশ্বরের কাছে যাচনার্থে মন্ত্র ৫ বলা হয়েছে।]

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    मन्त्र विषय

    মনুষ্য আত্মানমুন্নয়েৎ

    भाषार्थ

    [হে মনুষ্য] (তে) তোমার জন্য (দেবাঃ) প্রকাশমান (ব্রহ্মাণঃ) ব্রহ্মজ্ঞানীগণ (উত) এবং (বীরুধঃ) ঔষধসমূহ (চীতিম্=চিতিম্) জ্ঞান (অবিদন্) প্রাপ্ত করেছে। (বিশ্বে) সকল (দেবাঃ) দিব্য পদার্থ-সমূহ [সূর্য, চন্দ্র, বায়ু আদি] (তে) তোমার জন্য (চীতিম্) চেতন্যতা (ভূম্যাম্ অধি) পৃথিবীর উপর (অবিদন্) প্রাপ্ত করেছে ॥৪॥

    भावार्थ

    মনুষ্য বিদ্বান্ বেদবেত্তাদের উপদেশ দ্বারা এবং অন্নাদি ঔষধ ও সূর্য, চন্দ্র, বায়ু, জল, আকাশ আদি দিব্য পদার্থে ঈশ্বরীয় দৃঢ় নিয়ম দ্বারা শিক্ষা ও উপকার প্রাপ্ত করে, ঈশ্বরের মহিমার ধ্যানে নিমগ্ন হয়ে এবং পরোপকার করে আনন্দ প্রাপ্ত করে ॥৪॥

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