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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 5
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - वनस्पतिः, यक्ष्मनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु प्राप्ति सूक्त
    78

    यश्च॒कार॒ स निष्क॑र॒त्स ए॒व सुभि॑षक्तमः। स ए॒व तुभ्यं॑ भेष॒जानि॑ कृ॒णव॑द्भि॒षजा॒ शुचिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । च॒कार॑ । स: । नि: । क॒र॒त् । स: । ए॒व । सुभि॑षक्ऽतम: । स: । ए॒व । तुभ्य॑म् । भे॒ष॒जानि॑ । कृ॒णव॑त् । भि॒षजा॑ । शुचि॑: ॥९.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यश्चकार स निष्करत्स एव सुभिषक्तमः। स एव तुभ्यं भेषजानि कृणवद्भिषजा शुचिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । चकार । स: । नि: । करत् । स: । एव । सुभिषक्ऽतम: । स: । एव । तुभ्यम् । भेषजानि । कृणवत् । भिषजा । शुचि: ॥९.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 9; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य अपने आप को ऊँचा करे।

    पदार्थ

    (यः) जिस [परमेश्वर] ने (चकार) बनाया है, (सः) वही (निष्करत्) निस्तारा करेगा, (सः) वह (एव) ही (सुभिषक्तमः) बड़ा भारी वैद्य है। (सः) वह (एव) ही (शुचिः) पवित्रात्मा (भिषजा) वैद्यरूप से (तुभ्यम्) तेरे लिये (भेषजानि) ओषधों को (कृणवत्) करेगा ॥५॥

    भावार्थ

    जिस परमेश्वर ने इस सृष्टि को रचा है, वही जगदीश्वर अपने आज्ञाकारी और पुरुषार्थी सेवकों का क्लेश हरण करके आनन्द देता है ॥५॥ टिप्पणी–(भिषजा शुचिः) “वैद्यरूप से पवित्रात्मा” के स्थान में (भिषजां शुचिः) “वैद्यों में पवित्रात्मा” ऐसा पाठ अधिक ठीक दीखता है। लिपिप्रमाद से अनुस्वार नहीं लगा। नीचे के प्रयोगों को विचारिये ॥ १–ऋग्वेद २।३३।४। में ऐसा पाठ है। भिषक्त॑मं त्वा भि॒षजां॑ शृणोमि ॥ मैं तुझको (भिषजाम्) वैद्यों में महावैद्य (शृणोमि) सुनता हूँ ॥ २–अथर्ववेद ६।२४।२। में ऐसा है। आप॒स्तत् सर्वं॒ निष्क॑रन् भि॒षजां॒ सुभिषक्तमाः ॥ (भिषजाम्) वैद्यों में अति पूजनीय वैद्य (आपः) परमेश्वर उस सब दुःख को हटावे ॥ ३–यजुर्वेद २१।४०। में ऐसा पाठ है। सु॒त्रामा॑ण  सवि॒तारं वरु॑णं भि॒षजां॒ पति॒  स्वाहा॒ ॥ बड़े रक्षक, परम ऐश्वर्यवाले, श्रेष्ठ, (भिषजाम्) वैद्यों के (पतिम्) रक्षक को सुन्दर वाणी है ॥

    टिप्पणी

    ५–यः। परमेश्वरः। चकार। सर्वं सृष्टवान्। निः+करत्। लेटोऽडाटौ। पा० ३।४।९४। इति कृञ् करणे–लेटि अडागमः। कःकरत्करति०। पा० ८।३।५०। इति निसः षत्वम्। निष्कृतिं निर्मुक्तिं पापादिभ्य उद्धारं कुर्यात्। सुभिषक्तमः। सु+भिषज्+तमप्। म० ३। अतिशयेन पूजनीयो भिषक्, भयनिवारको वैद्यः। भेषजानि। अ० २।३।२। औषधानि। कृणवत्। कृवि हिंसाकरणयोः–लेट्। कुर्यात्। भिषजा। म० ३। भिषग्रूपेण। इत्थंभावे तृतीया। यद्वा (भिषजाम्) इति पाठे। वैद्यानां मध्ये। शुचिः। अ० १।३३।१। शुचिर् शौचे–इन्। स च कित्। शुद्धस्वभावः। पवित्रः ॥

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    विषय

    'सर्वमहान् वैद्य' प्रभु

    पदार्थ

    १. (यः चकार) = जो प्रभु इस संसार को बनाते हैं और इसमें जीवों को कर्मानुसार दण्ड देते हुए ग्राही आदि रोगों को भी उत्पन्न करते हैं, (सः निष्करत्) = वे प्रभु ही रोग को दूर भी करते हैं। प्रभुकृपा से ही रोगों का विनाश हुआ करता है। (सः एव) = वे प्रभु ही (सु-भिषक्तमः) = सर्वमहान् वैद्य हैं। (भिषक्तमत्वा भिषजां शणोमि) = [ऋ०२.३३.४] २. (सः एव) = वे प्रभु ही (तुभ्यम्) = तेरे लिए (भिषजा) = वैद्यों के द्वारा (भेषजानि कृण्वत्) = औषधों को करता है। वैद्य निमित्त बनता है, चिकित्सक तो प्रभु ही हैं। वे प्रभु ही रोगमुक्त करनेवाले हैं। रोगरहित करनेवाले प्रभु (शुचि:) = हमें निर्मल शरीर व मन के देनेवाले हैं। वे हमारे शरीरों व मनों का शोधन करते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ही सर्वमहान् वैद्य हैं। वैद्य को माध्यम बनाकर प्रभु ही हमें रोगमुक्ति व शुचिता प्रदान करते हैं।

    विशेष

    विशेष-इस सूक्त में मुख्यरूप से सन्धिवात की चिकित्सा का उल्लेख हुआ है। इस प्रसंग में 'दशवृक्ष' का उल्लेख प्रथम मन्त्र में है [१]। अन्तिम मन्त्र में प्रभु-स्मरण करते हुए उत्तम वैद्य के परामर्श से रोगनाशक वीरुधों के प्रयोग का विधान है [५]। अगले सूक्त में भी शरीर व मानस व्याधियों को दूर करने का प्रसङ्ग है -

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    भाषार्थ

    हे रुग्ण ! (यः चकार) जिसने तुझे पैदा किया है (स निष्करत् ) वह तेरे रोग का शमन करे, (स एव) वह ही ( सुभिषक्तमः) सर्वश्रेष्ठ महाचिकित्सक है। (स एव) वह ही ( भिषजा) निजभिषक् रूप द्वारा (तुभ्यम्) तेरे लिए (भेषजानि) औषधें (कृणवत् ) करे । (शुचिः) जो भिषक् रूप कि पवित्र है, [अर्थात् जो परमेश्वर कि पवित्ररूप है, वह तुझे पवित्र करके तुझे रोगोन्मुक्त करे।]

    टिप्पणी

    [परमेश्वर भेषज भी है, यथा "भेषजमसि भेषजं गवेऽश्वाय पुरुषाय भेषजम्। सुखं मेषाय मेष्यै"।। (यजु:० ३।५९), अर्थात् परमेश्वर भिषक् भी है और भेषज भी। उसकी इच्छामात्र से सर्वरोग-निवृत्ति हो जाती है।]

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    विषय

    आत्मज्ञान का उपदेश ।

    भावार्थ

    ( यः ) जो परमात्मा इस देह को बनाता हैं (सः) वह ( निष्करत् ) पूर्ण रूप से ही इसका निर्माण करता है, उसमें किसी बात की त्रुटि नहीं रहने देता, क्योंकि (सः एव) वह ही (सुभिषक्तमः) सर्व प्रकार के मानस और शरीरपीड़ाओं का सबसे श्रेष्ठ चिकित्सक है। हे जीव बन्धनग्रस्त ! आधि-व्याधि-पीड़ित जीव ! (सः एव) वह ही ( तुभ्यं ) तेरे लिये (भेषजानि) नाना प्रकार के रोगों को दूर करने के साधन (कृणवत्) उत्पन्न करता है और इसी प्रकार तू ( भिषजा ) उस उत्तम चिकित्सक के द्वारा स्वयं भी (शुचिः) शुद्ध मन और कार्य वाला होकर सुख प्राप्त कर । अथवा तू ही ( भिषजा ) उस चिकित्सक के संग से (शुचिः) आवरणमल से रहित होकर सुक्त हो जा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरा ऋषिः। वनस्पतिर्यक्ष्मनाशनो देवता । मन्त्रोक्तदेवतास्तुतिः। १ विराट् प्रस्तारपंक्तिः। २-५ अनुष्टुभः। पञ्चर्चं सूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rheumatism

    Meaning

    One who pursues the subject practically and persistently, researches, observes, analyses and comes to correct conclusions, he alone becomes a physician of the best order. He alone, pure at heart, unpolluted in the soul, would bring the best treatment with correct medications for humanity.

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    Translation

    He, who so makes frees also from the disease. He is the best of the healers. May only, He, the true healer, provide remedies for you.

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    Translation

    He, who makes you to heal, is to treat you and is the most efficient, among the physicians. He is the pious one and he is to administer you the medicine that heals.

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    Translation

    God, who makes this body, perfects it as well. He is the deftest physician for all physical and mental afflictions. O soul in bondage, He creates different sorts of aids for healing thy ailments. Attain to purity, through the help of that Great Physician. [1]

    Footnote

    [1] Ailments: Physical as well as spiritual.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५–यः। परमेश्वरः। चकार। सर्वं सृष्टवान्। निः+करत्। लेटोऽडाटौ। पा० ३।४।९४। इति कृञ् करणे–लेटि अडागमः। कःकरत्करति०। पा० ८।३।५०। इति निसः षत्वम्। निष्कृतिं निर्मुक्तिं पापादिभ्य उद्धारं कुर्यात्। सुभिषक्तमः। सु+भिषज्+तमप्। म० ३। अतिशयेन पूजनीयो भिषक्, भयनिवारको वैद्यः। भेषजानि। अ० २।३।२। औषधानि। कृणवत्। कृवि हिंसाकरणयोः–लेट्। कुर्यात्। भिषजा। म० ३। भिषग्रूपेण। इत्थंभावे तृतीया। यद्वा (भिषजाम्) इति पाठे। वैद्यानां मध्ये। शुचिः। अ० १।३३।१। शुचिर् शौचे–इन्। स च कित्। शुद्धस्वभावः। पवित्रः ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (য়ঃ) যে [পরমেশ্বরই] (চকার) বানাইয়াছে, (সঃ) সেই (নিষ্করত্) প্রশমন করিবে, (সঃ) সে (এব)(সুভি ঃ) মহান বৈদ্য। (সঃ) সে (এব)(শুচিঃ) পবিত্রাত্মা (ভিষজা) বৈদ্য রূপে (তুভ্যম্) তোমার জন্য (ভেষজানি) ঔষধিকে (কৃণবত্) বানাইয়াছে।।
    ‘ভিষজা শুচিঃ “বৈদ্যরূপে পবিত্রাত্মা”র স্থানে (ভিষজাং শুচিঃ) “বৈদ্যোং মেং পবিত্রাত্মা” এরূপ পাঠ অনেক ঠিক দেখা যায়। লিপি প্রমাদ হইতে অনুনাসিক বর্ণ বিশেষ লাগে না। নিচে ইহার প্রয়োগ বিচার দেখুন।

    भावार्थ

    যে [পরমেশ্বরই] বানাইয়াছে, সেই নিবারণ করিবে, সেই মহান বৈদ্য। সেই পবিত্ৰাত্মা বৈদ্য রূপে তোমার জন্য ঔষধিকে বানাইয়াছে।।
    যে পরমেশ্বরই এই সৃষ্টি রচনা করিয়াছে, সেই জগদীশ্বর নিজের আজ্ঞাকারী এবং পুরুষার্থী সেবকের ক্লেশ হরণ করিয়া আনন্দ দান করেন।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়শ্চকার স নিষ্করৎস এব সুভিষক্তমঃ ।স এব তুভ্যং ভেষজানি কৃষ্ণবদ্ভিষজা শুচিঃ।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    ভৃগ্বঙ্গিরাঃ। বনস্পতিঃ। অনুষ্টুপ্

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    भाषार्थ

    হে রুগ্ন! (যঃ চকার) যিনি তোমাকে উৎপন্ন/সৃষ্টি করেছেন (স নিষ্করৎ) তিনি তোমার রোগের নিরাময় করবেন, (স এব) তিনিই (সুভিষক্তমঃ) সর্বশ্রেষ্ঠ মহা চিকিৎসক। (স এব) তিনিই (ভিষজা) নিজ ভিষক্ রূপ দ্বারা (তুভ্যম্) তোমার জন্য (ভেষজানি) ভেষজ ঔষধ (কৃণবৎ) প্রস্তুত করেন। (শুচিঃ) যিনি বৈদ্য রূপ পবিত্র, [অর্থাৎ পরমেশ্বরের যে পবিত্র রূপ রয়েছে তা তোমাকে পবিত্র করে/করুক, রোগমুক্ত করে/করুক।]

    टिप्पणी

    [পরমেশ্বর ভেষজ, যথা "ভেষজমসি ভেষজং গবেঽশ্বায় পুরুষায় শেষজম্। সুখং মেষায় মেষ্যৈ"। (যজুঃ০ ৩।৫৯), অর্থাৎ পরমেশ্বর ভিষক্ এবং ভেষজ। উনার ইচ্ছামাত্র সর্ব রোগ-নিবৃত্তি হয়ে যায়।]

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    मन्त्र विषय

    মনুষ্য আত্মানমুন্নয়েৎ

    भाषार्थ

    (যঃ) যে [পরমেশ্বর] (চকার) সৃষ্টি করেছেন, (সঃ) তিনিই (নিষ্করৎ) বিনষ্ট করবেন, (সঃ) তিনি (এব)(সুভিষক্তমঃ) মহান বৈদ্য। (সঃ) তিনি (এব)(শুচিঃ) পবিত্রাত্মা (ভিষজা) বৈদ্যরূপে (তুভ্যম্) তোমার জন্য (ভেষজানি) ঔষধি (কৃণবৎ) করবেন ॥৫॥

    भावार्थ

    যে পরমেশ্বর এই সৃষ্টি রচনা করেছেন, সেই জগদীশ্বর নিজের আজ্ঞাকারী ও পুরুষার্থী সেবকদের ক্লেশ হরণ করে আনন্দ দেন ॥৫॥ টিপ্পণী–(ভিষজা শুচিঃ) “বৈদ্যরূপে পবিত্রাত্মা” এর স্থানে (ভিষজাং শুচিঃ) “বৈদ্যদের মধ্যে পবিত্রাত্মা” এই পাঠ অধিক উচিত প্রতীত হয়। লিপিপ্রমাদে অনুস্বার নেই। নীচের প্রয়োগ-সমূহ বিচার করো ॥ ১–ঋগ্বেদ ২।৩৩।৪। এ এমন পাঠ আছে। ভিষক্ত॑মং ৎবা ভি॒ষজাং॑ শৃণোমি ॥ আমি তোমাকে (ভিষজাম্) বৈদ্যদের মধ্যে মহাবৈদ্য (শৃণোমি) শুনি ॥ ২–অথর্ববেদ ৬।২৪।২। এ এমনটা আছে । আপ॒স্তৎ সর্বং॒ নিষ্ক॑রন্ ভি॒ষজাং॒ সুভিষক্তমাঃ ॥ (ভিষজাম্) বৈদ্যদের মধ্যে অতি পূজনীয় বৈদ্য (আপঃ) পরমেশ্বর সেই সব দুঃখ দূর করবেন॥ ৩–যজুর্বেদ ২১।৪০। এ এমন পাঠ আছে। সু॒ত্রামা॑ণ সবি॒তারং বরু॑ণং ভি॒ষজাং॒ পতি॒ স্বাহা॒ ॥ উত্তম রক্ষক, পরম ঐশ্বর্যবান, শ্রেষ্ঠ, (ভিষজাম্) বৈদ্যদের (পতিম্) রক্ষকের সুন্দর বাণী আছে ॥

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