अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 131/ मन्त्र 8
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
44
आय॑ व॒नेन॑ती॒ जनी॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआऽअय॑ । व॒नेन॑ती॒ । जनी॑ ॥१३१.८॥
स्वर रहित मन्त्र
आय वनेनती जनी ॥
स्वर रहित पद पाठआऽअय । वनेनती । जनी ॥१३१.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(वनेनती) उपकार में झुकनेवाली (जनी) माता होकर (आय) तू आ ॥८॥
भावार्थ
सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥
टिप्पणी
८−(आय) अय गतौ। आगच्छ (वनेनती) वन उपकारे-अच्। पातेर्डतिः। उ० ४।७। णम प्रह्वत्वे शब्दे च-डति, ङीप्। उपकारे नम्रा (जनी) जन जनने-इन्, ङीप् जनयित्री। माता सती त्वम् ॥
विषय
संविभाग की वृत्ति
पदार्थ
१. गतमन्त्र का वर्तक प्रार्थना करता है कि (वनेनती) = संभजन में झुकाववाली [वन संभक्ती] बनी शक्तियों का विकास करनेवाली चित्तवृत्ति (आ अय) = मुझे सर्वथा प्राप्त हो। वस्तुत: जब हम संभजन की वृत्तिवाले होते है-सब-कुछ स्वयं ही नहीं खा लेते तब इस समय हमारी शक्तियों का प्रादुर्भाव होता है। वस्तुतः उत्तम कार्यों में वर्तनेवाला व्यक्ति सदा इस संभजन की वृत्ति को अपनाता है। २. ये (वनिष्ठा:) = अधिक-से-अधिक संविभाग की वृत्तिवाले लोग (न अवगृह्मान्ति) = परस्पर विरोध की वृत्तिवाले नहीं होते। एक-दूसरे का ये संग्रह करनेवाले ही होते हैं।
भावार्थ
संविभाग की वृत्ति हमारी शक्तियों का विकास करती है। यह हमें परस्पर के संघर्ष से दूर रखकर उन्नत करती है।
भाषार्थ
हे संसारी मनुष्य! (आय) उपासना मार्ग की ओर आ, (जनी) जगज्जननी (वनेनती) श्रद्धापूर्वक भक्ति में नत हो जाती है, झुक जाती है, [जैसे कि माता शिशु को अपना दूध पिलाने के लिए शिशु की ओर झुक जाती है। वने=वन संभक्तौ।]
विषय
missing
भावार्थ
(तेजनी = तेदनी) अग्नि को भड़काने वाली पूणी, (आयवने न) कोयलों को ऊपर नीचे करके जिस प्रकार अग्नि को भड़का देती है या ‘कशा’ जिस प्रकार आग को तीव्र कर देती है उसी प्रकार भेद छेदकर राजा सब को वश करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
missing
इंग्लिश (4)
Translation
O woman, you come as benevolent mother.
Translation
O woman, you come as benevolent mother.
Translation
Thou (God) actest like an igniting force in setting the universe into motion.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(आय) अय गतौ। आगच्छ (वनेनती) वन उपकारे-अच्। पातेर्डतिः। उ० ४।७। णम प्रह्वत्वे शब्दे च-डति, ङीप्। उपकारे नम्रा (जनी) जन जनने-इन्, ङीप् जनयित्री। माता सती त्वम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
ঐশ্বর্যপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ
भाषार्थ
(বনেনতী) উপকারে বিনয়ী/নম্র হয়ে (জনী) মাতা হয়ে (আয়) তুমি এসো ॥৮॥
भावार्थ
সকল নর-নারী পরস্পর সর্বদা উপকার করে ক্লেশ মুক্ত এবং আনন্দিত থাকুক ॥৬-১১॥
भाषार्थ
হে সাংসারিক মনুষ্য! (আয়) উপাসনা মার্গের দিকে এসো, (জনী) জগজ্জননী (বনেনতী) শ্রদ্ধাপূর্বক ভক্তিতে নত হয় [যেমন মাতা শিশুকে নিজের দুগ্ধ পান করানোর জন্য শিশুর দিকে নত হয়। বনে=বন সম্ভক্তৌ।]
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