Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 141 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 141/ मन्त्र 5
    ऋषिः - शशकर्णः देवता - अश्विनौ छन्दः - बृहती सूक्तम् - सूक्त १४१
    51

    यन्ना॑सत्या परा॒के अ॑र्वा॒के अस्ति॑ भेष॒जम्। तेन॑ नू॒नं वि॑म॒दाय॑ प्रचेतसा छ॒र्दिर्व॒त्साय॑ य॒च्छत॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ना॒स॒त्या॒ । प॒रा॒के । अ॒र्वा॒के । अस्ति॑ । भे॒ष॒जम् ॥ तेन॑ । नू॒नम् । वि॒ऽम॒दाय॑ । प्र॒ऽचे॒त॒सा॑ । छ॒र्दि: । व॒त्साय॑ । य॒च्छ॒त॒म् ॥१४१.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यन्नासत्या पराके अर्वाके अस्ति भेषजम्। तेन नूनं विमदाय प्रचेतसा छर्दिर्वत्साय यच्छतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । नासत्या । पराके । अर्वाके । अस्ति । भेषजम् ॥ तेन । नूनम् । विऽमदाय । प्रऽचेतसा । छर्दि: । वत्साय । यच्छतम् ॥१४१.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 141; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।

    पदार्थ

    (नासत्या) हे सदा सत्य स्वभाववाले दोनों ! [दिन-राति] (यत्) जो (भेषजम्) औषध (पराके) दूर में और (अर्वाके) समीप में (अस्ति) है। (प्रचेतसा) हे उत्तम ज्ञान करानेवाले दोनों (तेन) उस [औषध] के साथ (नूनम्) अवश्य करके (विमदाय) निरहंकारी [वा अदीन] (वत्साय) शास्त्रों के कहनेवाले पुरुष को (छर्दिः) घर (यच्छतम्) दान करो ॥॥

    भावार्थ

    मनुष्य घर और बाहिर समय को उत्तम रीति से काम में लगाकर सुन्दर घरों में स्वस्थ रहें ॥॥

    टिप्पणी

    −(यत्) (नासत्या) सू० १४०।१। हे सदा सत्यस्वभावौ (पराके) पिनाकादयश्च। उ० ४।१। परा+क्रमु पादविक्षेपे-आकप्रत्ययः, धातुलोपः। पराके दूरनाम-निघ० ३।२६। पराके पराक्रान्ते-निरु० ।९। दूरदेशे (अर्वाके) वलाकादयश्च। उ० ४।१४। अर्वाक्+क्रमु पादविक्षेपे-आकप्रत्ययः, धातुलोपः। अर्वाके अन्तिकनाम-निघ० ३।१६। समीपे (अस्ति) (भेषजम्) औषधम् (तेन) भेषजेन सह (नूनम्) अवश्यम् (विमदाय) अ० ४।२९।४। निरहंकाराय। अदीनाय (प्रचेतसा) प्रकृष्टं ज्ञानं याभ्यां तौ। हे प्रकृष्टज्ञानकारकौ (छर्दिः) गृहम् (वत्साय) सू० १३८।१। शास्त्राणां कथनशीलाय (यच्छतम्) दत्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वत्स, विमद

    पदार्थ

    १. प्राणापान वासना को विनष्ट करके ज्ञानदीति का साधन बनते हैं तो इन्हें 'प्रचेतसा' कहा गया है। हे (नासत्या) = हमारे जीवनों से असत्य को दूर करनेवाले प्राणापानो! (यत्) = जो (पराके) = दूर देश के विषय में तथा (अर्वाके) = समीप क्षेत्र के विषय में (भेषजम्) = औषध (अस्ति) = है, (तेन) = उस औषध के साथ हे (प्रचेतसा) = प्रकृष्ट ज्ञान के साधनभूत प्राणापानो! (नूनम्) = निश्चय से (वत्साय) = इस ज्ञान की वाणियों का उच्चारण करनेवाले (विमदाय) = मद व अभिमान से शून्य-जीवनवाले इस ऋषि के लिए (छर्दिः) = सुरक्षित गृह प्राप्त कराओ। २. यह शरीर ही सुरक्षित गृह है। जब इसमें प्रथम ड्योढ़ी के रूप में स्थित अन्नमयकोश नीरोग होता है तथा तृतीय ड्योढ़ी के रूपमें स्थित मनोमयकोश वासनाशून्य होता है तब यह शरीर-गृह बड़ा सुन्दर बनता है। इसे ऐसा बनाने के लिए प्राणसाधना ही साधन है। यही प्राणों का 'अर्वाक व पराक' क्षेत्र के विषय में भेषज है। ये प्राण रोगों व वासनाओं पर आक्रमण करके इस गृह को दृढ़ व प्रकाशमय बनाते हैं। प्राणापान इस शरीरगृह के पति को 'वत्स व विमद' बनाते हैं।

    भावार्थ

    प्राणसाधना से शरीर के रोग दूर होंगे और मन की वासनाएँ नष्ट होंगी। इसप्रकार यह शरीर-गृह बड़ा सुन्दर बनेगा।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (नासत्या प्रचेतसा) असत्य व्यवहारों से रहित हे प्रज्ञा-सम्पन्न अश्वियो! (पराके) दूर प्रदेश में तथा (अर्वाके) समीप प्रदेश में (यत्) जो-जो (भेषजम् अस्ति) औषधें हैं, उनका संग्रह करके (तेन) उनके द्वारा (विमदाय) प्रजावर्ग की मादक-प्रवृत्तियों के हटाने के लिए, उन्हें प्रजावर्ग को (यच्छतम्) दिया करो, और (वत्साय) पुत्रसमान प्रजावर्ग के लिए (छर्दिः) गृहों का भी (यच्छतम्) प्रबन्ध किया करो।

    टिप्पणी

    [विमदाय=विमदं कर्त्तुम्। छर्दिः=गृहनाम (निघं০ ३.४)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    दो अधिकारी।

    भावार्थ

    हे (नासत्यौ) सदा सत्य व्यवहार वाले तुम दोनों (पराके) दूर देश में और (अर्वाके) समीप देश में भी (यत्) जो (भेषजम् अस्ति) रोगादि निवारक ओषधि और उपद्रवों के निवारक उपाय हैं। हे (प्रचेतसौ) उत्कृष्ट ज्ञान वाले पुरुषो ! (तेन) उस उपाय से वैद्यों के समान (वत्साय) विद्वान् या राज्य में सुख से बसने वाले (विमदाय) विशेष हर्षवान्, या मद रहित पुरुष को (छर्दिः) शरण या सुख (यच्छ्तम्) प्रदान करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शशकर्ण ऋषिः। अश्विनौ देवता। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Ashvins, versatile powers of health and longevity, whatever food or sanative or efficacious remedies be there far or near, by that without fail, O masters of knowledge and expertise, provide a home of health and peace for the dear devotee free from the pride and arrogance of drugs and intoxication.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O truthful physician and surgeon, what ever healing medicine is available in the near place and whatever in distant place, there by, O learned ones, give relief to man in trouble (Vimadaya) and the man loved by all.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O truthful physician and surgeon, whatever healing medicine is available in the near place and whatever in distant place, thereby, O learned ones, give relief to man in trouble (Vimadaya) and the man loved by all.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O infallible Asvins, endowed with special intelligence, whatever there is capable of warding off diseases, or other difficulties and troubles, at a distant place or near at hand, certainly give shelter to the well-settled person, specially enjoying peace and prosperity under you, with that.

    Footnote

    (4-5) यदु, and तर्वश, विमद, and वत्स are not proper names but are qualifying words.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(यत्) (नासत्या) सू० १४०।१। हे सदा सत्यस्वभावौ (पराके) पिनाकादयश्च। उ० ४।१। परा+क्रमु पादविक्षेपे-आकप्रत्ययः, धातुलोपः। पराके दूरनाम-निघ० ३।२६। पराके पराक्रान्ते-निरु० ।९। दूरदेशे (अर्वाके) वलाकादयश्च। उ० ४।१४। अर्वाक्+क्रमु पादविक्षेपे-आकप्रत्ययः, धातुलोपः। अर्वाके अन्तिकनाम-निघ० ३।१६। समीपे (अस्ति) (भेषजम्) औषधम् (तेन) भेषजेन सह (नूनम्) अवश्यम् (विमदाय) अ० ४।२९।४। निरहंकाराय। अदीनाय (प्रचेतसा) प्रकृष्टं ज्ञानं याभ्यां तौ। हे प्रकृष्टज्ञानकारकौ (छर्दिः) गृहम् (वत्साय) सू० १३८।१। शास्त्राणां कथनशीलाय (यच्छतम्) दत्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    অহোরাত্রসুপ্রয়োগোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (নাসত্যা) হে সদা সত্য স্বভাবযুক্ত উভয়! [দিন-রাত] (যৎ) যে (ভেষজম্) ঔষধ (পরাকে) দূরে এবং (অর্বাকে) নিকটে (অস্তি) আছে। (প্রচেতসা) হে উত্তম জ্ঞানদাতা উভয় (তেন) সেই [ঔষধের] সাথে (নূনম্) অবশ্যই (বিমদায়) নিরহঙ্কারী [বা অদীন] (বৎসায়) শাস্ত্রসমূহের বক্তা পুরুষকে (ছর্দিঃ) ঘর (যচ্ছতম্) দান করো ॥৫॥

    भावार्थ

    মনুষ্য ঘরে এবং বাহিরে সময়কে উত্তম রীতিতে কাজে লাগিয়ে সুন্দর ঘরে সুস্থ থাকুক ॥৫॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (নাসত্যা প্রচেতসা) অসত্য ব্যবহাররহিত হে প্রজ্ঞা-সম্পন্ন অশ্বিদ্বয়! (পরাকে) দূর প্রদেশে তথা (অর্বাকে) সমীপ প্রদেশে (যৎ) যা-যা (ভেষজম্ অস্তি) ঔষধি আছে, সেগুলোর সংগ্রহ করে (তেন) সেগুলোর দ্বারা (বিমদায়) প্রজাবর্গের মাদক-প্রবৃত্তি দূর করার জন্য, সেগুলো প্রজাবর্গকে (যচ্ছতম্) প্রদান করো, এবং (বৎসায়) পুত্রসমান প্রজাবর্গের জন্য (ছর্দিঃ) গৃহাদিরও (যচ্ছতম্) প্রবন্ধ/ব্যবস্থা করো।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top