अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 142/ मन्त्र 3
यदु॑षो॒ यासि॑ भा॒नुना॒ सं सूर्ये॑ण रोचसे। आ हा॒यम॒श्विनो॒ रथो॑ व॒र्तिर्या॑ति नृ॒पाय्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । उ॒ष॒: । यासि॑ । भा॒नुना॑ । सम् । सूर्ये॑ण । रो॒च॒से॒ ॥ आ । ह॒ । अ॒यम् । अ॒श्विनो॑: । रथ॑: । व॒र्ति: । या॒ति॒ । नृ॒ऽपाय्य॑म् ॥१४२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
यदुषो यासि भानुना सं सूर्येण रोचसे। आ हायमश्विनो रथो वर्तिर्याति नृपाय्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । उष: । यासि । भानुना । सम् । सूर्येण । रोचसे ॥ आ । ह । अयम् । अश्विनो: । रथ: । वर्ति: । याति । नृऽपाय्यम् ॥१४२.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।
पदार्थ
(उषः) हे उषा ! [प्रभात वेला] (यत्) जब तू (भानुना) प्रकाश के साथ (यासि) चलती है, [तब] तू (सूर्येण) सूर्य के साथ (सम्) ठीक प्रकार से (रोचसे) रुचती है [प्रिय लगती है।] [तभी] (अश्विनोः) दोनों अश्वी [व्यापक दिन-राति] का (अयम्) यह (रथः) रथ (ह) भी (नृपाय्यम्) नरों [नेताओं] से पालने योग्य (वर्तिः) घर पर (आ याति) आता है ॥३॥
भावार्थ
जैसे उषा सूर्य के साथ सदा शोभायमान होती है, वैसे ही मनुष्य ज्ञान के साथ शोभा बढ़ाकर दिन-राति को सफल करें ॥३॥
टिप्पणी
३−(यत्) यदा (उषः) हे प्रभातवेले (यासि) गच्छसि (भानुना) दीप्त्या सह (सम्) सम्यक् (सूर्येण) (रोचसे) रुचि (प्रिया) भवसि (आ याति) आगच्छति (ह) अपि (अयम्) दृश्यमानः (अश्विनोः) व्यापकयोः। अहोरात्रयोः (रथः) (वर्तिः) सू० १४१।१। गृहम् (नृपाय्यम्) श्रुदक्षिस्पृहि०। उ० ३।९६। पा रक्षणे-आय्य। नृभिर्नेतृभिः पातव्यं पालनीयम् ॥
विषय
नृपाय्य वर्ति
पदार्थ
१. हे (उष:) = उषाकाल की देवि! (यत्) = जब भानुना ज्ञान दीति के साथ (यासि) = तु प्राप्त होती है और (सूर्येण सं रोचसे) = ज्ञान-सूर्य के साथ सम्यक् दीप्त हो उठती है तब (ह) = निश्चय से (अयम्) = यह (अश्विनो:) = प्राणापान का (रथ:) = शरीर-रथ-यह शरीर जिसमें प्राणसाधना प्रवृत्त हुई है। (नृपाय्यम् वर्ति:) = मनुष्यों का रक्षण करनेवाले मार्ग पर (आयाति) = गतिवाला होता है, अर्थात् हम उसी मार्ग पर चलना प्रारम्भ करते हैं जो हमें सदा सुरक्षित करता है। जिस मार्ग पर चलते हुए हम विषयों में फंसकर विनष्ट नहीं हो जाते।
भावार्थ
उषा के होते ही हम प्रबुद्ध होकर स्वाध्याय व प्राणसाधना के लिए उद्यत हों। सदा उस मार्ग पर आक्रमण करें जो मनुष्यों का रक्षण करनेवाला है।
भाषार्थ
(उषः) हे उषा! तू (सूर्येण) सूर्य के कारण (सम् रोचसे) अति रोचक रूप धारण करती है। (यद्) जब तू (भानुना) अपनी प्रभा के साथ (यासि) चली जाती है, तब (नृपाय्यम्) प्रजावर्ग के खान-पान तथा रक्षा को लक्ष्य करके, (ह) निश्चय से, (अश्विनोः) दोनों अश्वियों का (अयम्) यह (रथः) अपना-अपना रथ (आ याति) प्रजावर्ग के कार्यों के निरीक्षणार्थ आता है और (वर्तिः) मार्ग, या वर्तन-वर्ताव, अर्थात् व्यापार और उद्योग-धन्धे (याति) चलने लगते हैं।
विषय
वेदवाणी।
भावार्थ
हे (उषः) पापों के नाश करने वाली ! उषः ! जिस प्रकार ‘उषा’ प्रभातवेला (भानुना याति) दीप्ति के साथ आती है और (सूर्येण रोचसे) सूर्य के साथ प्रकाशित होती है और दिन और रात्रि रूप अश्वियों का सूर्यरूप रथ समस्त पुरुषों का पालन करनेद्वारा होता है उसी प्रकार जब हे (उषः) पाप दग्ध करनेहारी ज्ञान वाणी ! तू (भानुना) अर्थप्रकाश रूप ज्ञान के साथ (यासि) हमें प्राप्त होती है और (सूर्येण) सूर्य के समान ज्ञान के अगाध सागर विद्वान् के साथ उसको प्राप्त होकर (सं रोचसे) बड़ी उत्तम रूप से प्रकाशित होती है तब ही (अश्विनोः) प्राण और अपान दोनों का एवं नर नारी दोनों का (अयम् रथः) यह रमण योग्य, सुखजनक व्यवहार (नृपाप्यम्) नरों के पालन करने वाले (वर्त्तिः) देह और गृह को (याति) प्राप्त होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शशकर्ण ऋषिः। अश्विनौ देवते -१-४ अनुष्टुभः। ५, ६, गायत्र्यौ। षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
O dawn, harbinger of a new day, when you rise with the first sun-rays and then join the sun and shine together with it, then the Ash vim’ chariot rolls on on its usual course of the day which preserves and promotes humanity in life and leads it to advancement.
Translation
When this dawn accompanies the light it shines with the sun. Then this wheel of day and night spreads on the house occupied by men.
Translation
When this dawn accompanies the light it shines with the sun. Then this wheel of day and night spreads on the house occupied by men.
Translation
When the dawn moves on with splendor and glory and shines with the sun, surely this chariot of the Asvins, the two strong forces of nature, reaches the houses and bodies of the people protecting and invigorating them.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(यत्) यदा (उषः) हे प्रभातवेले (यासि) गच्छसि (भानुना) दीप्त्या सह (सम्) सम्यक् (सूर्येण) (रोचसे) रुचि (प्रिया) भवसि (आ याति) आगच्छति (ह) अपि (अयम्) दृश्यमानः (अश्विनोः) व्यापकयोः। अहोरात्रयोः (रथः) (वर्तिः) सू० १४१।१। गृहम् (नृपाय्यम्) श्रुदक्षिस्पृहि०। उ० ३।९६। पा रक्षणे-आय्य। नृभिर्नेतृभिः पातव्यं पालनीयम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
অহোরাত্রসুপ্রয়োগোপদেশঃ
भाषार्थ
(উষঃ) হে ঊষা! [প্রভাত বেলা] (যৎ) যখন তুমি (ভানুনা) প্রকাশের সহিত (যাসি) চলো, [তখন] তুমি (সূর্যেণ) সূর্যের সাথে (সম্) সম্যক (রোচসে) রুচিশীল হও [প্রিয় হও।] [তখন] (অশ্বিনোঃ) উভয় অশ্বীর [ব্যাপক দিন-রাতের] (অয়ম্) এই (রথঃ) রথ (হ) ই (নৃপায়্যম্) নরদের [নেতাদের] দ্বারা পালনের যোগ্য (বর্তিঃ) ঘরে (আ যাতি) আসে ॥৩॥
भावार्थ
যেমন ঊষা সূর্যের সাথে সর্বদা শোভায়মান হয়, তেমনই মনুষ্য জ্ঞানের সাথে শোভা বৃদ্ধি করে দিন-রাতকে সফল করুক ॥৩॥
भाषार्थ
(উষঃ) হে ঊষা! তুমি (সূর্যেণ) সূর্যের কারণে (সম্ রোচসে) অতি রোচক রূপ ধারণ করো। (যদ্) যখন তুমি (ভানুনা) নিজের প্রভা সহিত (যাসি) চলে যাও, তখন (নৃপায়্যম্) প্রজাবর্গের খাদ্য-পানীয় তথা রক্ষাকে লক্ষ্য করে, (হ) নিশ্চিতরূপে, (অশ্বিনোঃ) উভয় অশ্বিগণের (অয়ম্) এই (রথঃ) নিজ-নিজ রথ (আ যাতি) প্রজাবর্গের কার্যের নিরীক্ষণার্থে আসে এবং (বর্তিঃ) মার্গ, বা আচার-ব্যবহার, অর্থাৎ বানিজ্য এবং উদ্যোগ (যাতি) চলে।
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