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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 142 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 142/ मन्त्र 5
    ऋषिः - शशकर्णः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त १४२
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    प्र द्यु॒म्नाय॒ प्र शव॑से॒ प्र नृ॒षाह्या॑य॒ शर्म॑णे। प्र दक्षा॑य प्रचेतसा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । द्यु॒म्नाय॑ । प्र । शव॑से । प्र । नृ॒ऽसह्या॑य । शर्म॑णे ॥ प्र । दक्षा॑य । प्र॒ऽचे॒त॒सा॒ ॥१४२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र द्युम्नाय प्र शवसे प्र नृषाह्याय शर्मणे। प्र दक्षाय प्रचेतसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । द्युम्नाय । प्र । शवसे । प्र । नृऽसह्याय । शर्मणे ॥ प्र । दक्षाय । प्रऽचेतसा ॥१४२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 142; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।

    पदार्थ

    [तब] (प्रचेतसा) हे उत्तम ज्ञान देनेवाले ! तुम दोनों (द्युम्नाय) चमकते हुए यश के लिये (प्र=प्रभवथः) समर्थ होते हो, (शवसे) बल के लिये (प्र) समर्थ होते हो, (नृषह्याय) मनुष्यों को सहाय देनेवाले (शर्मणे) शरण [घर आदि] के लिये (प्र) समर्थ होते हो, और (दक्षाय) चतुराई [कार्यकुशलता] के लिये (प्र) समर्थ होते हो ॥॥

    भावार्थ

    मनुष्य दिन-राति तत्त्व का ग्रहण करके यशस्वी, बलवान् और कार्यकुशल होवें ॥४-६॥

    टिप्पणी

    −(प्र) प्रभवथः। समर्थौ भवथः (द्युम्नाय) द्योतमानाय यशसे (प्र) प्रभवथः (शवसे) बलाय (प्र) प्रभवथः (नृषह्याय) शकिसहोश्च। पा० ३।१।९९। षह क्षमायां-यत्, सहितायां दीर्घः। नॄणां सहायाय (शर्मणे) गृहाय। शरणाय (प्र) प्रभवथः (दक्षाय) दक्षत्वाय। कार्यकुशलत्वाय (प्रचतसा) हे प्रकृष्टज्ञानप्रदौ ॥

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    विषय

    'द्युम्न, शवस्, शर्म, दक्ष'

    पदार्थ

    १. है (प्रचेतसा) = प्रकृष्ट ज्ञान प्राप्त करानेवाले प्राणापानो! आप हमारी (गुम्नाय) = ज्ञान- ज्योतियों के लिए (प्र) = [भवतम्]-होओ। (शवसे प्र) = बल के लिए होओ। २. इसी प्रकार (नषाह्याय) = शत्रनायकों का-काम, क्रोध, लोभरूप शत्रु सेनापतियों का पराभव करनेवाले (शर्मणे) = सुख के लिए (प्र) = [भवतम्]-होइए और (दक्षाय) = सब प्रकार की उन्नति के लिए (प्र) = होइए।

    भावार्थ

    प्राणसाधना द्वारा हमें 'ज्ञान, बल, शत्रु-पराजय-जनित सुख तथा विकास प्राप्त हो।

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    भाषार्थ

    हे (प्रचेतसा) प्रज्ञासम्पन्न अश्वियो! तुम दोनों, (प्र द्युम्नाय) राष्ट्रसम्बन्धी प्रकृष्ट-अन्न तथा प्रकृष्ट यश के चिन्तन के लिए, (प्र शवसे) प्रकृष्ट-सैनिकादि बल के चिन्तन के लिए, (प्र नृषाह्याय) शत्रुओं के प्रकृष्ट पराभव के चिन्तन के लिए, (प्र दक्षाय) राष्ट्र की प्रगति तथा वृद्धि के चिन्तन के लिए॥ ५॥ (उक्थ्या अश्विना) हे प्रशंसनीय अश्वियो! तुम दोनों, (यत् नूनम्) निश्चयपूर्वक (धीभिः) अपने-अपने निश्चित कर्त्तव्यकर्मों के अनुसार, (यद् वा) तथा (सुम्नेभिः) प्रजाजनों को सुख पहुंचाने की भावनाओं के अनुसार, (पितुः) परमपिता परमेश्वर के (योना=योनौ) सिंहासन पर (निषीदथः) बैठते हो॥ ६॥

    टिप्पणी

    [द्युम्नाय=द्युम्नं द्योततेर्यशो वा अन्नं वा (निरु০ ५.१.५)। शवस्=बलम् (निघं০ २.९)। दक्षाय= दक्ष गतिवृद्धयोः। धीभिः=धीः कर्मनाम (निघं০ २.१)। सुम्नेभिः=सुम्नम् सुखनाम (निघं০ ३.६)। पितुर्योना=देखो मन्त्र २०.१४०.२ की टिप्पणी।]

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    विषय

    वेदवाणी।

    भावार्थ

    (प्रचेतसा) उत्कृष्ट ज्ञान वाले गुरु, आचार्य और अध्यापक दोनों (द्युम्नाय) यश, उत्कृष्ट धन, (शवसे) बल, (नृषाह्याय) नायकोचित, शत्रु दमनकारी बल एवं (दक्षाय) ज्ञान और कर्म सामर्थ्य के लिये (प्र बोधयतम्) हमें नित्य उत्तम शिक्षा से ज्ञानवान् करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शशकर्ण ऋषिः। अश्विनौ देवते -१-४ अनुष्टुभः। ५, ६, गायत्र्यौ। षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Then for wealth, honour and excellence, for strength and courage and joy and prosperity, for the peace and protection of humanity and achievement of dexterity and competence, O harbingers of light and awareness, bless them.

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    Translation

    Then, these two, the teacher and preacher conscious of their duties become capable for gaining brilliant fame and strength they become able to gain happiness serving to men and also for cleverness.

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    Translation

    Then, these two, the teacher and preacher conscious of their duties become capable for gaining brilliant fame and strength they become able to gain happiness serving to men and also for cleverness.

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    Translation

    Let the above-mentioned, specially energising forces awaken us for fortune and glory, power and strength, courage and daring to subdue the enemy or forces of evil* ability to give shelter to the poor and the helpless, and skill and dexterity in the execution of our duties. (All these qualities are the products of early rising).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(प्र) प्रभवथः। समर्थौ भवथः (द्युम्नाय) द्योतमानाय यशसे (प्र) प्रभवथः (शवसे) बलाय (प्र) प्रभवथः (नृषह्याय) शकिसहोश्च। पा० ३।१।९९। षह क्षमायां-यत्, सहितायां दीर्घः। नॄणां सहायाय (शर्मणे) गृहाय। शरणाय (प्र) प्रभवथः (दक्षाय) दक्षत्वाय। कार्यकुशलत्वाय (प्रचतसा) हे प्रकृष्टज्ञानप्रदौ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    অহোরাত্রসুপ্রয়োগোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [তখন] (প্রচেতসা) হে উত্তম জ্ঞান দাতা! তোমরা উভয় (দ্যুম্নায়) দীপ্তিময় যশের জন্য (প্র=প্রভবথঃ) সমর্থ হও, (শবসে) বলের জন্য (প্র) সমর্থ হও, (নৃষহ্যায়) মনুষ্যের সহায় দাতা (শর্মণে) আশ্রয়ের [ঘর আদির] জন্য (প্র) সমর্থ হও, এবং (দক্ষায়) দক্ষতার [কার্যকুশলতার] জন্য (প্র) সমর্থ হও ॥৫॥

    भावार्थ

    মনুষ্য দিবা-রাত্রি তত্ত্ব গ্রহণ করে যশস্বী, বলবান এবং কার্যকুশলী হোক ॥৪-৬॥

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    भाषार्थ

    হে (প্রচেতসা) প্রজ্ঞাসম্পন্ন অশ্বিদ্বয়! তোমরা, (প্র দ্যুম্নায়) রাষ্ট্রসম্বন্ধী প্রকৃষ্ট-অন্ন তথা প্রকৃষ্ট যশের চিন্তনের জন্য, (প্র শবসে) প্রকৃষ্ট-সৈনিকাদি বলের চিন্তনের জন্য, (প্র নৃষাহ্যায়) শত্রুদের প্রকৃষ্ট পরাভবের চিন্তনের জন্য, (প্র দক্ষায়) রাষ্ট্রের প্রগতি তথা বৃদ্ধির চিন্তনের জন্য॥ ৫॥

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