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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 59/ मन्त्र 2
    ऋषिः - मेध्यातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-५९
    46

    कण्वा॑ इव॒ भृग॑वः॒ सूर्या॑ इव॒ विश्व॒मिद्धी॒तमा॑नशुः। इन्द्रं॒ स्तोमे॑भिर्म॒हय॑न्त आ॒यवः॑ प्रि॒यमे॑धासो अस्वरन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कण्वा॑:ऽइव । भृग॑व: । सूर्या॑ऽइव । विश्व॑म् । इत् । धी॒तम् । आ॒न॒शु॒: ॥ इन्द्र॑म् । स्तोमे॑भि: । म॒हऽय॑न्त: । आ॒यव॑: । प्रि॒यमे॑धास: । अ॒स्व॒र॒न् ॥५९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कण्वा इव भृगवः सूर्या इव विश्वमिद्धीतमानशुः। इन्द्रं स्तोमेभिर्महयन्त आयवः प्रियमेधासो अस्वरन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कण्वा:ऽइव । भृगव: । सूर्याऽइव । विश्वम् । इत् । धीतम् । आनशु: ॥ इन्द्रम् । स्तोमेभि: । महऽयन्त: । आयव: । प्रियमेधास: । अस्वरन् ॥५९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 59; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    १-२ ईश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (कण्वाः इव) बुद्धिमानों के समान, और (सूर्याः इव) सूर्यों के समान [तेजस्वी], (भृगवः) परिपक्व ज्ञानवाले, (महयन्तः) पूजते हुए, (प्रियमेधासः) यज्ञ को प्रिय जाननेवाले (आयवः) मनुष्यों ने (विश्वम्) व्यापक, (धीतम्) ध्यान किये गये (इन्द्रम्) इन्द्र [परमात्मा] को (इत्) ही (स्तोमेभिः) स्तोत्रों से (आनशुः) पाया है और (अस्वरन्) उच्चारा है ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य बुद्धिमानों और सूर्यों के समान प्रतापी होकर परमात्मा के गुणों को गाते हुए आत्मोन्नति करें ॥२॥

    टिप्पणी

    १-२−मन्त्रौ व्याख्यातौ अ० २०।१०।१-२ ॥

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    विषय

    देखो व्याख्या अथर्व० २०.१०.१-२

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    भाषार्थ

    (कण्वाः) जिनकी चित्तवृत्तियाँ निमीलित हो गई हैं, और जिन्हें योगजन्य मेधा अर्थात् ऋतम्भरा प्रज्ञा प्राप्त हो चुकी है, ऐसे योगियों के (इव) सदृश, (भृगवः) ध्यानाभ्यास में परिपक्व तथा रजोमयी और तमोमयी वृत्तियों को मानो जिन्होंने भून दिया है ऐसे उपासक भी, (धीतम्) ध्यान द्वारा विषयीकृत (विश्वम् इत्) समग्र वस्तुओं का (आनशुः) ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, और वे (सूर्या इव) सूर्यों के सदृश प्रकाशमान हो जाते हैं। जबकि (आयवः) सर्वसाधारण मनुष्य, तथा (प्रियमेधासः) ज्ञान की प्राप्ति के प्रेमीजन, (स्तोमेभिः) स्तुतियों द्वारा (इन्द्रम्) परमेश्वर की (महयन्तः) महिमा को (अस्वरन्) उच्चस्वरों में गाते ही रहते हैं।

    टिप्पणी

    [कण्वाः=कण निमीलने; तथा मेधाविनः (निघं০ ३.१५)। भृगवः=भ्रस्ज पाके। मन्त्र में “कण्वाः” शब्द द्वारा असम्प्रज्ञातयोग-सम्पन्न योगियों का, तथा “भृगवः” शब्द द्वारा सम्प्रज्ञातयोग-सम्पन्न योगियों का वर्णन हुआ है।]

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    विषय

    ईश्वरार्चना।

    भावार्थ

    (१-२) इन दो मन्त्रों की व्याख्या देखो अथर्ववेद कां० २०। १०। १, २॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः। इन्द्रो देवता। चतुऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Brilliant scholars and sages as well as brave heroes of the human nation and loving and intelligent citizens of the land, praising and exalting Indra in one vaulting voice, rise and reach the presence of the lord in a world their own like rays of the sun filling the world of space they know.

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    Translation

    Like most wise ones, like ones who have burnt their evils in the fire of knowledge and like luminous suns the men for whom the wisdom is dear, may attain the knowledge of entire world present in concentration and worshipping Almighty God with prayers praises glorify Him.

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    Translation

    Like most wise ones, like ones who have burnt their evils in the fire of knowledge and like luminous suns the men for whom the wisdom is dear, may attain the knowledge of entire world present in concentration and worshipping Almighty God with prayers praises glorify Him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १-२−मन्त्रौ व्याख्यातौ अ० २०।१०।१-२ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-২ ঈশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (কণ্বাঃ ইব) বুদ্ধিমানদের সমান এবং (সূর্যাঃ ইব) সূর্য-সমূহের সমান [তেজস্বী], (ভৃগবঃ) পরিপক্ব জ্ঞানী, (মহয়ন্তঃ) পূজা করে, (প্রিয়মেধাসঃ) যজ্ঞকে প্রিয় জানে এমন (আয়বঃ) মনুষ্যগণ (বিশ্বম্) ব্যাপক, (ধীতম্) ধ্যেয় (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [পরমাত্মা] কে (ইৎ)(স্তোমেভিঃ) স্তোত্র দ্বারা (আনশুঃ) প্রাপ্ত করেছে এবং (অস্বরন্) উচ্চারণ করেছে ॥২॥

    भावार्थ

    মনুষ্য বুদ্ধিমান এবং সূর্য-সমূহের সমান প্রতাপী হয়ে পরমাত্মার গুণগান করে আত্মোন্নতি করুক॥২॥ মন্ত্র আছে-অ০ ২০।১০।১, ২।।

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    भाषार्थ

    (কণ্বাঃ) যাদের চিত্তবৃত্তি নিমীলিত হয়ে গেছে, এবং যারা যোগজন্য মেধা অর্থাৎ ঋতম্ভরা প্রজ্ঞা প্রাপ্ত করেছে, এমন যোগীদের (ইব) সদৃশ, (ভৃগবঃ) ধ্যানাভ্যাসে পরিপক্ব তথা রজোময়ী এবং তমোময়ী বৃত্তি-সমূহ যারা দগ্ধ করেছে এমন উপাসকও, (ধীতম্) ধ্যান দ্বারা বিষয়ীকৃত (বিশ্বম্ ইৎ) সমগ্র বস্তু-সমূহের (আনশুঃ) জ্ঞান প্রাপ্ত করে, এবং তাঁরা (সূর্যা ইব) সূর্যের সদৃশ প্রকাশমান হয়/হয়ে যায়। যদ্যপি (আয়বঃ) সর্বসাধারণ মনুষ্য, তথা (প্রিয়মেধাসঃ) জ্ঞান প্রাপ্তির প্রেমীজন, (স্তোমেভিঃ) স্তুতি-সমূহ দ্বারা (ইন্দ্রম্) পরমেশ্বরের (মহয়ন্তঃ) মহিমা (অস্বরন্) উচ্চস্বরে গান করতে থাকে।

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