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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 88 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 88/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वामदेवः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८८
    42

    धु॒नेत॑यः सुप्रके॒तं मद॑न्तो॒ बृह॑स्पते अ॒भि ये न॑स्तत॒स्रे। पृष॑न्तं सृ॒प्रमद॑ब्धमू॒र्वं बृह॑स्पते॒ रक्ष॑तादस्य॒ योनि॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धु॒नऽइ॑तय: । सु॒ऽप्र॒के॒तम् । मद॑न्त: । बृह॑स्पते । अ॒भि । ये ।न॒: । त॒त॒स्रे ॥ पृष॑न्तम् । सृ॒प्रम् । अद॑ब्धम् । ऊ॒र्वम् । बृह॑स्पते । रक्ष॑ताम् । अ॒स्य॒ । योनि॑म् ॥८८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धुनेतयः सुप्रकेतं मदन्तो बृहस्पते अभि ये नस्ततस्रे। पृषन्तं सृप्रमदब्धमूर्वं बृहस्पते रक्षतादस्य योनिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धुनऽइतय: । सुऽप्रकेतम् । मदन्त: । बृहस्पते । अभि । ये ।न: । ततस्रे ॥ पृषन्तम् । सृप्रम् । अदब्धम् । ऊर्वम् । बृहस्पते । रक्षताम् । अस्य । योनिम् ॥८८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 88; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (बृहस्पते) हे बृहस्पति ! [बड़ी विद्याओं के रक्षक] (ये) जिन (धुनेतयः) शीघ्र गतिवाले, (सुप्रकेतम्) सुन्दर ज्ञान से (मदन्तः) प्रसन्न होते हुए [विद्वानों ने] (नः) हमको (अभि) सब ओर (ततस्रे) फैलाया है [प्रसिद्ध किया है]। (बृहस्पते) हे बृहस्पति ! [बड़े गुणों के स्वामी] (पृषन्तम्) सींचनेवाले, (सृप्रम्) ज्ञानवाले, (अदब्धम्) नष्ट न किये हुए, (ऊर्वम्) दोषनाशक (अस्य) उन [विद्वानों] के (योनिम्) कारण [वेदशास्त्र] को (रक्षतात्) तू रक्षित रख ॥२॥

    भावार्थ

    जिस वेदज्ञान में महात्मा लोग मग्न होकर दूसरों को सुख पहुँचाते हैं, विद्वान् लोग उस वेद की रक्षा करके अर्थात् आज्ञा में चलकर आनन्द पावें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(धुनेतयः) तृषिशुषिरसिभ्यः कित्। उ० ३।१२। धुञ् कम्पने न प्रत्ययः, कित्+इण् गतौ क्तिन्। शीघ्रगतयः (सुप्रकेतम्) यथा तथा। शोभनेन ज्ञानेन (मदन्तः) हृष्यन्तः (बृहस्पते) महतीनां विद्यानां रक्षक (अभि) सर्वतः (ये) विद्वांसः (नः) अस्मान् (ततस्रे) अ० २०।७२।२। विस्तारितवन्तः। प्रसिद्धान् कृतवन्तः (पृषन्तम्) सिञ्चन्तम् (सृप्रम्) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। सृप्लृ गतौ-रक्। ज्ञानवन्तम् (अदब्धम्) अहिंसितम्। अनाशितम् (ऊर्वम्) उर्वी हिंसायाम्-पचाद्यच्। दोषनाशकम् (बृहस्पते) बृहतां गुणानां स्वामिन् (रक्षतात्) रक्ष (अस्य) बहुवचनस्यैकवचनम्। एषां विदुषाम् (योनिम्) कारणं वेदशास्त्रम् ॥

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    विषय

    स्वाध्याय व दोष-निवारण

    पदार्थ

    १. हे (बृहस्पते) = ज्ञान के स्वामिन् प्रभो! (ये) = जो (न:) = हममें से (धुनेतय:) = [धुना ईतिर्येषाम्] शत्रुओं को कम्पित करनेवाली गतिवाले (सप्रकेतम् मदन्तः) = उत्कृष्ट ज्ञान के साथ आनन्द का अनुभव करते हुए (अभिततस्त्रे) = प्रात:-सायं दोनों समय दोषों को अपने से दूर फेंकते हैं। [तस् reject, cast]| (अस्य) = इस मनुष्य के (योनिम्) = बुराइयों के अमिश्रण व अच्छाइयों के मिश्रण के प्रयत्न की (रक्षतात्) = आप रक्षा करें। २. यह योनि ही (पृषन्तम्) = सब सुखों का सेचन करनेवाली है। (सप्रम्) = अग्रगति की साधक है, (अदब्धम्) = इसे हिंसित नहीं होने देती और (ऊर्वम्) = विशाल है। प्रात:-सायं दोषनिवारण के कार्य से ही इसका जीवन सुखसिक्त, अग्रगतिवाला, अहिंसित तथा विशाल बनता है।

    भावार्थ

    हम प्रात:-सायं स्वाध्याय में आनन्द लेते हुए दोष-निवारण के लिए यत्नशील हों। प्रभु-कृपा से हमारा यह कार्य सुखवर्षक, उन्नतिकारक, अहिंसक व हमें विशाल बनानेवाला होगा।

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    भाषार्थ

    (बृहस्पते) हे महाब्रह्माण्ड के पति! (नः) हम में से (ये) जो (धुनेतयः) कामादि को कम्पाने में नेतृरूप उपासक—(सुप्रकेतम्) सुविज्ञ (पृषन्तम्) आनन्दरसवर्षी, (सृप्रम्) हृदय में सर्पण करनेवाले, (अदब्धम्) किसी भी शक्ति द्वारा न दबाएँ जानेवाले, (ऊर्वम्) अग्निस्वरूप आप को—(मदन्तः) प्रसन्नतापूर्वक स्तुतियाँ करते हुए (अभि) प्रत्यक्षरूप में (ततस्रे) अलंकृत करते हैं, (बृहस्पते) हे महाब्रह्माण्ड के पति! आप उन उपासकों के, (अस्य) और इस मुझ उपासक के (योनिम्) शरीर-गृहों की (रक्षतात्) रक्षा कीजिए, ताकि मोक्षप्राप्ति में हम सफल हो सके।

    टिप्पणी

    [योनि=गृह (निघं০ ३.४); अर्थात् जो मातृयोनि से पैदा होते हैं, अर्थात् शरीर। धुनेतयः=धु (धू कम्पने)+नेतय=नेतारः (णी+क्तिन्, अथवा “तिः” कर्तरि, निपातनात्)।]

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    विषय

    परमेश्वर सेनापति राजा।

    भावार्थ

    हे (बृहस्पते) बड़े शक्ति, वाणी, राष्ट्र और ब्रह्माण्ड के पालक ! विद्वन् ! सेनापते ! राजन् ! एवं परमात्मन् ! बृहस्पते ! (धुनेतयः) शत्रुओं को कंपा देने वाली चढ़ाई करने वाले (सु प्रकेतं) उत्तम उत्कृष्ट ज्ञानवान् तुझको (मदन्तः) हर्ष देने वाले (ये) जो (नः) हम मैं से (अभि ततस्रे) तेरी साक्षात् स्तुति करते हैं, तेरी शोभा बढ़ाते हैं अथवा (नः अभि ततस्त्रे) हमारे शत्रुओं का नाश करते हैं (अस्य) उनके (पृषन्तं) नाना फलों के देने वाले, अथवा अन्तरात्मा को और अन्न से सिंचन करने वाले (सृप्रम्) अति व्यापक, विस्तृत, सर्वगामी, (अदब्धम्) अहिंसित, अविनाशी, अखण्ड, (अपूर्वम्) अपूर्व, लोकोत्तर (योनिम्) आश्रय स्थान वेद और राष्ट्र को (रक्षतात्) रक्षा कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः। बृहस्पतिदेवता। त्रिष्टुभः। षडृर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    O Brhaspati, vibrant scholars and heroes are they who inspire the holy and brilliant man of knowledge and centres of advancement, and help us progress in culture and achievement. O lord of progress and advancement, protect and promote the home and profession of every such person and institution, creative, brilliant, fearless, and generous and extensive in possibilities.

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    Translation

    This Brihaspati (the fire) is the preserver of the sun’s heat, light and magnetic power (Brihaspati). The forces which strengnening the shining flame of this fire expand it for our use are the stimulators of speed. Let this fire preserve its propelling cause which causes moistening which is pervasive indestrictible and inviolable.

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    Translation

    This Brihaspati (the fire) is the preserver of the sun’s heat, light and magnetic power (Brihaspati). The forces which strengnening the shining flame of this fire expand it for our use are the stimulators of speed. Let this fire preserve its propelling cause which causes moistening which is pervasive indestructible and inviolable.

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    Translation

    O Mighty Lord of Vedic learning, getting inspired from that sublimest source of the highest knowledge, i.e., Vedic lore, the truth-seeking, learned persons sit all-absorbed in Thee. Just as the deep-dug wells, the fountains, filled with sweet waters from the clouds or mountains, trickle out plenteous sweet streams of water, similarly the devoted yogis, digging deep in meditation, nourishing spiritual glory, capable of shedding Dharm-megh Blissful rain of perfect serenity all around, trickle out plenty of sweet waters of nectar on all sides.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(धुनेतयः) तृषिशुषिरसिभ्यः कित्। उ० ३।१२। धुञ् कम्पने न प्रत्ययः, कित्+इण् गतौ क्तिन्। शीघ्रगतयः (सुप्रकेतम्) यथा तथा। शोभनेन ज्ञानेन (मदन्तः) हृष्यन्तः (बृहस्पते) महतीनां विद्यानां रक्षक (अभि) सर्वतः (ये) विद्वांसः (नः) अस्मान् (ततस्रे) अ० २०।७२।२। विस्तारितवन्तः। प्रसिद्धान् कृतवन्तः (पृषन्तम्) सिञ्चन्तम् (सृप्रम्) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। सृप्लृ गतौ-रक्। ज्ञानवन्तम् (अदब्धम्) अहिंसितम्। अनाशितम् (ऊर्वम्) उर्वी हिंसायाम्-पचाद्यच्। दोषनाशकम् (बृहस्पते) बृहतां गुणानां स्वामिन् (रक्षतात्) रक्ष (अस्य) बहुवचनस्यैकवचनम्। एषां विदुषाम् (योनिम्) कारणं वेदशास्त्रम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    বিদ্বৎকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বৃহস্পতে) হে বৃহস্পতি ! [মহান বিদ্যার রক্ষক] (যে) যে (ধুনেতয়ঃ) শীঘ্র গতিসম্পন্ন, (সুপ্রকেতম্) সুন্দর জ্ঞান দ্বারা (মদন্তঃ) প্রসন্ন চিত্ত হয়ে [বিদ্বানগণ] (নঃ) আমাদের (অভি) চতুর্দিকে (ততস্রে) ব্যাপ্ত করেছেন [প্রসিদ্ধ করেছেন]। (বৃহস্পতে) হে বৃহস্পতি ! [মহান্ গুণসমূহের স্বামী] (পৃষন্তম্) সীঞ্চনকারী, (সৃপ্রম্) জ্ঞানবান, (অদব্ধম্) অহিংসিত, (ঊর্বম্) দোষনাশক (অস্য) সেই [বিদ্বানদের] (যোনিম্) কারণকে [বেদশাস্ত্র] (রক্ষতাৎ) আপনি সুরক্ষিত রাখুন ॥২॥

    भावार्थ

    যে বেদজ্ঞান দ্বারা মহাত্মাগণ মনুষ্যকে সুখ পৌঁছে দেন/প্রদান করেন, বিদ্বানগণ সেই বেদের রক্ষা দ্বারা অর্থাৎ আজ্ঞা পালনপূর্বক আনন্দ প্রাপ্তি করে ॥২॥

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    भाषार्थ

    (বৃহস্পতে) হে মহাব্রহ্মাণ্ডের পতি! (নঃ) আমাদের মধ্য থেকে (যে) যে (ধুনেতয়ঃ) কামাদি কম্পিত করার ক্ষেত্রে নেতৃরূপ উপাসক—(সুপ্রকেতম্) সুবিজ্ঞ (পৃষন্তম্) আনন্দরসবর্ষী, (সৃপ্রম্) হৃদয়ে সর্পণকারী, (অদব্ধম্) কোনোরকম শক্তি দ্বারা অপ্রতিহত/অপ্রতিরোধ্য, (ঊর্বম্) অগ্নিস্বরূপ আপনার—(মদন্তঃ) প্রসন্নতাপূর্বক স্তুতি করে (অভি) প্রত্যক্ষরূপে (ততস্রে) অলঙ্কৃত করে, (বৃহস্পতে) হে মহাব্রহ্মাণ্ডের পতি! আপনি সেই উপাসকদের, (অস্য) এবং এই আমার উপাসকের (যোনিম্) শরীর-গৃহের (রক্ষতাৎ) রক্ষা করুন, যাতে মোক্ষপ্রাপ্তিতে আমরা সফল হই/হতে পারি।

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