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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
    ऋषिः - नोधाः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९
    48

    द्यु॒क्षं सु॒दानुं॒ तवि॑षीभि॒रावृ॑तं गि॒रिं न पु॑रु॒भोज॑सम्। क्षु॒मन्तं॒ वाजं॑ श॒तिनं॑ सह॒स्रिणं॑ म॒क्षू गोम॑न्तमीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यु॒क्षम् । सु॒ऽदानु॑म् । तवि॑षीभि: । आऽवृ॑तम् । गि॒रिम् । न । पु॒रु॒ऽभोज॑सम् ॥ क्षु॒ऽमन्त॑म् । वाज॑म् । श॒तिन॑म् । स॒ह॒स्रिण॑म् । म॒क्षु । गोऽम॑न्तम् । ई॒म॒हे॒ ॥९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्युक्षं सुदानुं तविषीभिरावृतं गिरिं न पुरुभोजसम्। क्षुमन्तं वाजं शतिनं सहस्रिणं मक्षू गोमन्तमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्युक्षम् । सुऽदानुम् । तविषीभि: । आऽवृतम् । गिरिम् । न । पुरुऽभोजसम् ॥ क्षुऽमन्तम् । वाजम् । शतिनम् । सहस्रिणम् । मक्षु । गोऽमन्तम् । ईमहे ॥९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ईश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (द्युक्षम्) व्यवहारों में गतिवाले, (सुदानुम्) बड़े दानी, (तविषीभिः) सेनाओं से (आवृतम्) भरपूर (गिरिम् न) मेघ के समान (पुरुभोजसम्) बहुत पालन करनेवाले, (क्षुमन्तम्) अन्नवाले, (वाजम्) बलवाले, (शतिनम्) सैकड़ों उत्तम पदार्थोंवाले (सहस्रिणम्) सहस्रों श्रेष्ठ, गुणवाले, (गोमन्तम्) उत्तम गौओंवाले [शूर पुरुष] को (मक्षू) शीघ्र [इन्द्र परमात्मा से] (ईमहे) हम माँगते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमात्मा से प्रार्थना करके प्रयत्न करें कि वे अपने सन्तानों, अधिकारियों और प्रजाजनों सहित शूरवीर होकर व्यवहारकुशल होवें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(द्युक्षम्) दिवु व्यवहारे-डिवि+क्षि निवासगत्योः-डप्रत्ययः। द्युषु व्यवहारेषु गन्तारम् (सुदानुम्) महादानिनम् (तविषीभिः) तु वृद्धौ पूर्तौ च-टिषन्, ङीप्। तविषी बलनाम-निघ० २।९। बलैः। सेनाभिः (आवृतम्) आच्छादितम्। प्रपूर्णम् (गिरिम्) गिरिर्मेघनाम-निघ० १।१०। मेघम् (न) इव (पुरुभोजसम्) बहुपालकम् (क्षुमन्तम्) आङ्परयोः खनिशॄभ्यां डिच्च। उ० १।३३। टुक्षु शब्दे, क्षि निवासगत्योः, ऐश्वर्ये च-कुप्रत्ययः स च डित्। क्षु अन्ननाम-निघ० २।७। अन्नवन्तम् (वाजम्) अर्शआद्यच्। वाजवन्तम्। बलवन्तम् (शतिनम्) असंख्यश्रेष्ठपदार्थयुक्तम् (सहस्रिणम्) तपःसहस्राभ्यां विनीनी। पा० ।२।१०२। सहस्र-इनि। असंख्यश्रेष्ठगुणोपेतम् (मक्षु) शीघ्रम् (गोमन्तम्) प्रशस्तगोभिर्युक्तम् (ईमहे) याचामहे-निघ० ३।१९ ॥

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    विषय

    'क्षुमन्तं, शतिर्न, गोमन्तं' वाजम्

    पदार्थ

    १. (पक्षम्) = दीप्त-ज्ञानदीप्ति में निवास करनेवाले, (सदानम्) = सम्यक वासनाओं का खण्डन करनेवाले [दाप् लवने], (तविषीभिः आवृतम्) = बलों से (आवृत) = सर्वशक्तिमान् (गिरि न) = जो उपदेष्टा आचार्य के समान हैं [गृणाति], (पुरुभोजसम्) = खूब ही पालन व पोषण करनेवाले प्रभु से (वाजम्) = [wealth] ऐश्वर्य की (मक्षुः ईमहे) = शीघ्र याचना करते हैं। २. उस ऐश्वर्य की याचना करते हैं जो (क्षमन्तम्) = स्तुतिवाला है जो हमें प्रभु-स्तवन से पृथक् नहीं करता, (शतिनम्) = हमें शतवर्ष के आयुष्य को प्रात करता है (सहस्त्रिणम्) = जो हज़ारों प्राणियों का पोषण करता है तथा गोमन्तम्-प्रशस्त इन्द्रियोंवाला है। जो ऐश्वर्य हमें वासनासक्त करके क्षीण इन्द्रियशक्तिवाला नहीं कर देता।

    भावार्थ

    प्रभु से हमें वह-वह ऐश्वर्य प्राप्त हो, जो हमें प्रभु-जैसा बनने में सहायक हो। हम इस धन से विषयासक्त न होकर लोकहित में प्रवृत्त हुए-हुए दीर्घजीवी व प्रभु-स्तवन की वृत्तिवाले बनें।

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    भाषार्थ

    (द्युक्षम्) द्युलोकनिवासी या सदा निज प्रकाश में निवास करनेवाले, (सुदानुम्) उत्तम-दानी, (तविषीभिः) नाना शक्तियों से (आवृतम्) घिरे हुए अर्थात् नाना शक्तियोंवाले, (गिर न) मेघ के सदृश (पुरुभोजसम्) सबकी पालना करनेवाले, (क्षुमन्तम्) सत्प्रेरणाओं के प्रदाता अथवा अन्नों के स्वामी, (वाजम्) बलस्वरूप, (शतिनं सहस्रिणम्) सैकड़ों और हजारों लोकलोकान्तरों के स्वामी (गोमन्तम्) तथा वेदवाणी के स्वामी को (मक्षू) शीघ्र (ईमहे) हम प्राप्त होते हैं।

    टिप्पणी

    [गिरि=मेघ (निघं০ १.१०)। मक्षू=क्षिप्रनाम (निघं০ २.१५)। क्षुमन्तम्=क्षु शब्दे तथा अन्ननाम (निघं০ २.७)। गौः=वाक् (निघं০ १.११)।]

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    विषय

    परमेश्वर और राजा।

    भावार्थ

    (द्युक्षम्) दीदीप्तिमान् तेजस्वी (सुदानम्) उतम उत्तम पदार्थों के दाता (गिरिं न) पर्वत के समान (पुरुभोजसम्) बहुत से भोग्य पदार्थ, कन्दमूल आदि, हिरण्य रत्नादि नाना भोग्य पदार्थों को देने हारा अथवा बहुत से प्राणियों का पालन करने हारे (तविषीभिः) महान् शक्तियों से (आवृतम्) घिरे हुए परमेश्वर से (क्षुमन्तम्) अन्न सम्पत्ति से युक्त, (वाजम्) बलवान्, (शतिनं, सहस्रिणम्) सैंकड़ों और सहस्रों ऐश्वर्य से युक्त, (गोमन्तम्) गो आदि पशुओं से समृद्ध (वाजम्) ऐश्वर्य की (मनु) शीघ्र या निरन्तर प्रतिक्षण (ईमहे) याचना करते हैं। राजा के पक्ष में—तेजस्वी, उत्तम दानशील, उदार, प्रजाओं के पालक राजा से हम अन्नादि समृद्धि से युक्त ऐश्वर्य की याचना करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १, २ नोधाः, ३, ४ मेधातिथिऋषिः। १, २ त्रिष्टुभौ, ३, ४ प्रगाथे। चतुर्ऋचं सूक्तम।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    We pray to Indra, lord of light, omnificent, hallowed with heavenly glory, universally generous like clouds of shower, and we ask for food abounding in strength and nourishment and for hundredfold and thousandfold wealth and prosperity abounding in lands, cows and the graces of literature and culture, and we pray for the gift instantly.

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    Translation

    We ordently ask self refulgent, bounteous God who is covered with His might and like mountain is endowed with plentiful protective powers, for wealth full of corn, and blessed with cows and brought in hundred fold and thousand fold.

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    Translation

    We ordently ask self refulgent, bounteous God who is covered with His might and like mountain is endowed with plentiful protective powers, for wealth full of corn, and blessed with cows and brought in hundred fold and thousand fold.

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    Translation

    We always pray to God, the Radiant, the Good Donor, Equipped with all sort of powers, the Giver of many eatables like a mountain to grant us wealth of foodgrains, cattle, with hundreds and thousands of riches of all kinds.

    Footnote

    cf. Rig, 8.88.2

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(द्युक्षम्) दिवु व्यवहारे-डिवि+क्षि निवासगत्योः-डप्रत्ययः। द्युषु व्यवहारेषु गन्तारम् (सुदानुम्) महादानिनम् (तविषीभिः) तु वृद्धौ पूर्तौ च-टिषन्, ङीप्। तविषी बलनाम-निघ० २।९। बलैः। सेनाभिः (आवृतम्) आच्छादितम्। प्रपूर्णम् (गिरिम्) गिरिर्मेघनाम-निघ० १।१०। मेघम् (न) इव (पुरुभोजसम्) बहुपालकम् (क्षुमन्तम्) आङ्परयोः खनिशॄभ्यां डिच्च। उ० १।३३। टुक्षु शब्दे, क्षि निवासगत्योः, ऐश्वर्ये च-कुप्रत्ययः स च डित्। क्षु अन्ननाम-निघ० २।७। अन्नवन्तम् (वाजम्) अर्शआद्यच्। वाजवन्तम्। बलवन्तम् (शतिनम्) असंख्यश्रेष्ठपदार्थयुक्तम् (सहस्रिणम्) तपःसहस्राभ्यां विनीनी। पा० ।२।१०२। सहस्र-इनि। असंख्यश्रेष्ठगुणोपेतम् (मक्षु) शीघ्रम् (गोमन्तम्) प्रशस्तगोभिर्युक्तम् (ईमहे) याचामहे-निघ० ३।१९ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ঈশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (দ্যুক্ষম্) ব্যবহারে গতিযুক্ত, (সুদানুম্) উত্তমদাতা, (তবিষীভিঃ) সেনাদ্বারা (আবৃতম্) পরিপূর্ণ (গিরিম্ ন) মেঘের সমান (পুরুভোজসম্) অনেকের পালনকারী, (ক্ষুমন্তম্) অন্নযুক্ত, (বাজম্) বলযুক্ত, (শতিনম্) শত শত উত্তম পদার্থসম্পন্ন (সহস্রিণম্) সহস্র শ্রেষ্ঠ, গুণযুক্ত, (গোমন্তম্) উত্তম গাভীসম্পন্ন [বীর পুরুষ] কে (মক্ষূ) শীঘ্রই [ইন্দ্র পরমাত্মার সাথে] (ঈমহে) আমরা প্রার্থনা করি ॥২॥

    भावार्थ

    মনুষ্য পরমাত্মার প্রতি প্রার্থনা করে প্রচেষ্টা করুক, যাতে তাঁরা নিজেদের সন্তান, অধিকারী এবং প্রজাদের সহিত বীর হয়ে ব্যবহারকুশল হয় ॥২॥

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    भाषार्थ

    (দ্যুক্ষম্) দ্যুলোকনিবাসী বা সদা নিজ প্রকাশে নিবাসী, (সুদানুম্) উত্তম-দানী, (তবিষীভিঃ) নানা শক্তি দ্বারা (আবৃতম্) আবৃত অর্থাৎ নানা শক্তিসম্পন্ন, (গির ন) মেঘের সদৃশ (পুরুভোজসম্) সকলের পালনকারী, (ক্ষুমন্তম্) সৎপ্রেরণা প্রদাতা অথবা অন্নের স্বামী, (বাজম্) বলস্বরূপ, (শতিনং সহস্রিণম্) শত এবং সহস্র লোকলোকান্তরের স্বামী (গোমন্তম্) তথা বেদবাণীর স্বামীকে (মক্ষূ) শীঘ্র (ঈমহে) আমরা প্রাপ্ত হই।

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