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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - शाला, वास्तोष्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शालनिर्माण सूक्त
    70

    मान॑स्य पत्नि शर॒णा स्यो॒ना दे॒वी दे॒वेभि॒र्निमि॑ता॒स्यग्रे॑। तृणं॒ वसा॑ना सु॒मना॑ अस॒स्त्वमथा॒स्मभ्यं॑ स॒हवी॑रं र॒यिं दाः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मान॑स्य । प॒त्नि॒ । श॒र॒णा । स्यो॒ना । दे॒वी । दे॒वेभि॑: । निऽमि॑ता । अ॒सि॒ । अग्रे॑ । तृण॑म् । वसा॑ना । सु॒ऽमना॑: । अ॒स॒: । त्वम् । अथ॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । स॒हऽवी॑रम् । र॒यिम् । दा॒: ॥१२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मानस्य पत्नि शरणा स्योना देवी देवेभिर्निमितास्यग्रे। तृणं वसाना सुमना असस्त्वमथास्मभ्यं सहवीरं रयिं दाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मानस्य । पत्नि । शरणा । स्योना । देवी । देवेभि: । निऽमिता । असि । अग्रे । तृणम् । वसाना । सुऽमना: । अस: । त्वम् । अथ । अस्मभ्यम् । सहऽवीरम् । रयिम् । दा: ॥१२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 12; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    नवीनशाला का निर्माण और प्रवेश।

    पदार्थ

    (मानस्य) हे मान अर्थात् प्रतिष्ठा की (पत्नि) रक्षा करनेवाली, (शरणा) शरण देनेवाली, (स्योना) सुखदायिनी, (देवी) उजियालेवाली तू (देवेभिः=०−वैः) देवताओं [विश्वकर्मा पुरुषों] करके (निमिता) मायी हुई (अग्रे) हमारे सम्मुख (असि) वर्तमान है। (तृणम्) घास को (वसाना) पहिने हुए (त्वम्) तू (सुमनाः) प्रसन्न मनवाली (असः) हो, (अथ) और (अस्मभ्यम्) हमें (सहवीरम्) वीर पुरुषों के सहित (रयिम्) धन (दाः) दे ॥५॥

    भावार्थ

    सब मनुष्य गृहनिर्माण विद्या में कुशल पुरुषों से सम्मति लेकर बाहिर और भीतर से मनोरम घर बनावें, जिससे संसार में सम्मान हो और सब गृहस्थ स्वस्थ, वीर, उद्योगी होकर धनवान् होवें ॥५॥ ‘अथास्मभ्यं सहवीरं रयिं दाः’ यह पाद अ० २।६।५। में आया है ॥

    टिप्पणी

    ५−(मानस्य)। मान पूजायाम्-घञ्। चित्तसमुन्नतेः। सत्कारस्य। (पत्नि)। अ० ३।१०।२। हे पालयित्रि। (शरणा)। अर्शआदिभ्योऽच्। पा० ५।२।१२७। इति शरण-अच् मत्वर्थे। टाप्। शरणवती। आश्रयवती। (स्योना)। स्योनं सुखं व्याख्यातम्। अ० २।१०।७। पूर्ववत् अच् टाप् च। सुखवती। (देवी)। द्योतमाना। (देवेभिः)। देवैः। विश्वकर्मभिः। निर्माणविद्याकुशलैः। (निमिता)। डुमिञ् क्षेपे-क्त। दृढीकृता। (असि)। वर्तसे। (अग्रे)। अस्माकमभिमुखम्। (तृणम्)। अ० २।३०।१। तृह हिंसायाम्-क्न, हलोपः। गवादि-भक्ष्यम्। (वसाना)। वस आच्छादने-शानच्। आच्छादयन्ती। (सुमनाः)। शोभनमनस्का। (असः)। अस्तेर्लटि अडागमः। भव। (अथ दाः)। इति गतम्। अ० २।६।५। (दाः)। दद्याः ॥

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    विषय

    'शरणा स्योना' शाला

    पदार्थ

    १. (मानस्य पत्लि) = सन्मान की रक्षिका शाले! अथवा मीयमान [मापे-तोले जानेवाले] धान्य की पालयत्रि! तू (शरणा) = हमें शरण देनेवाली है, (देवी) = द्योतमान-प्रकाशमान है। तू (अग्रे) = सर्वप्रथम (देवेभिः) = देवों के द्वारा (निमिता असि) = मानपूर्वक बनाई गई है। २. (तृणं वसाना) = तृण को अपने ऊपर आच्छादित करती हुई (त्वम्) = तू (सुमना: अस:) = उत्तम मनवाली हो-तुझमें रहनेवाले सभी व्यक्ति प्रसन्नचित्त हों। (अथ) = अब (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (सहवीरम्) = वीर पुत्रों के साथ (रयिं दा:) = धन प्रदान कर।

    भावार्थ

    घर बडे माप से बनाया जाए। यह हमें शरण देनेवाला और सुखदायी हो। तुणों से छत्ता हुआ यह गृह हमें शीतोष्ण से बचानेवाला हो। इसमें रहनेवाले सब उत्तम मनवाले, उत्तम सन्तानोंवाले और सम्पन्न हों।

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    भाषार्थ

    (मानस्य पत्नी) हे मान की पत्नी! (शरणा) तू शरणरूपा है, आश्रय है, (स्योना) सुखकारी है, (देवी) दिव्यरूपा या "द्योतमाना" [सायण] है, (अग्रे) गृहस्थी होने से पूर्व (देवेभिः) दिव्य बृहस्पतियों द्वारा (निमिता असि) तू निर्मित होती रही है [सायण]। (त्वम् तृणम् वसाना१) तू तृण का वस्त्र ओढ़ती हुई, (सुमना) हमारी मनों को प्रसन्न करनेवाली (अस) हो, (अथा) तदनन्तर (अस्मभ्यम्) हमारे लिए (सहवीरम्) वीर सन्तानों सहित (रयिम् दाः) सम्पत्ति प्रदान कर।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में पत्नी उपमान है, और शाला उपमेय है। उपमानवाचक पद लुप्त है। पत्नीपद सूचक है पति की सत्ता का, और शालापद सूचक है शाला के स्वामी का। पत्नी की सत्ता द्वारा पति का मान बना रहता है और शाला की सत्ता द्वारा शालाधिपति का मान बना रहता है। शाला के बिना गृहस्थी की ध्रुवा स्थिति नहीं होती, वह कभी किरायादार हुआ एक शाला का आश्रय लेता है, कभी दूसरी शाला का, जैसेकि पुरुष पत्नी के विना सहायतार्थ भटकता रहता है, और सामाजिक जीवन में उसकी स्थिति नहीं बन पाती। स्थिति के बनने के पश्चात् ही वह सन्तानों सहित सम्पत्तियों को प्राप्त करने का अधिकारी बन पाता है। "तृणं वसाना" द्वारा सर्वसुलभशाला सूचित हुई है। "तृणं वसाना" द्वारा झोंपड़ी प्रतीत होती है अथवा फूस की छत्त गर्मी-सर्दी से बचाती है।] [१. वस आच्छादने (अदादिः)।]

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    विषय

    बड़े २ भवन बनाने का उपदेश ।

    भावार्थ

    शाला या गृह और गृहिणी दोनों को समान रूप से दर्शाते हैं । हे (मानस्य पनि) मान, प्रतिष्ठा का पालन करने हारी धर्मपत्नी के समान शाले ! तू (शरणा) सब को शरण देने वाली (स्योना) सुखकारिणी (देवी) दिव्यगुणशालिनी सुखप्रदा है । तुझे (देवेभिः) देव, विद्वान् शिल्पियों ने (अग्रे) पूर्व कल्पों में भी बराबर (निमिता असि) इसी प्रकार से मापा या बनाया है । (त्वं) तू तृण-वल्कल-धारिणी ब्रह्मचारिणी के समान अब भी (तृणं वसाना) फूस के सुन्दर आवरण और काष्ठ आदि की सुन्दर छत को धारण करती हुई (सुमनाः) शुभ चित्त वाली मनोनुकूल (असः) हो, (अथ) और (अस्मभ्यम्) हमें (सहवीरं) पुत्रों के साथ (रयिं) यश, वीर्य, धन धान्य को (दाः) प्रदान कर ।

    टिप्पणी

    (तृ० च०) ‘ऊन्नं वसना शुभना यशस्स्वं रयिं नोऽधि सुभगे सुवीरम्’ इति पैप्प० सं० । मानः सपत्नः शरण: स्योना देवो देवेभिर्विभितास्यग्रे तृणं वसानाः सुमना असि त्वम् । इति हि० गृ० सू० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः । वास्तोष्पतीयम् शालासूक्तम् । वास्तोष्पतिः शाला च देवते । १,४,५ त्रिष्टुभः । २ विराड् जगती । ३ बृहती । ६ शक्वरीगर्भा जगती । ७ आर्षी अनुष्टुप् । ८ भुरिग् । ९ अनुष्टुप् । नवर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Architecture

    Meaning

    Protector of honour and social culture, comfortable shelter, clothed in beauty, shining with soothing light, you stand prominent, designed, built and decorated by brilliant builder artists with gifts of divine nature. Nestled in lawns and greenery, looking cheerful and inspiring, be good and give us plenty of health, wealth and honour with noble and brave progeny.

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    Translation

    O mistress of measures and construction (mānasya patni); from the very beginning you have been built by the enlightend ones as a good shelter, comfortable and shining. Covered with grass(thatch), may you be benign to us and may bring to us riches along with brave sons.(Patni = O lovely dwelling).

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    Translation

    This house is the preserver of the respect of the house-holder, this gives shelter, this increases happiness, is the repository of good sentiments, it is a Priority of house-hold life and is Constructed by architects. Let it have to be covered with grassy lawns and be it suitable for us. Let it give us wealth accompanied by good children

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    Translation

    O respect-enhancing, sheltering, comfortable, beautiful house, thou wast built by skilled engineers in former times. Clad in thy robe of grass be friendly-minded, and give us wealth with valiant sons.

    Footnote

    Clad in the robe of grass: Possessing spacious grassy lawns.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(मानस्य)। मान पूजायाम्-घञ्। चित्तसमुन्नतेः। सत्कारस्य। (पत्नि)। अ० ३।१०।२। हे पालयित्रि। (शरणा)। अर्शआदिभ्योऽच्। पा० ५।२।१२७। इति शरण-अच् मत्वर्थे। टाप्। शरणवती। आश्रयवती। (स्योना)। स्योनं सुखं व्याख्यातम्। अ० २।१०।७। पूर्ववत् अच् टाप् च। सुखवती। (देवी)। द्योतमाना। (देवेभिः)। देवैः। विश्वकर्मभिः। निर्माणविद्याकुशलैः। (निमिता)। डुमिञ् क्षेपे-क्त। दृढीकृता। (असि)। वर्तसे। (अग्रे)। अस्माकमभिमुखम्। (तृणम्)। अ० २।३०।१। तृह हिंसायाम्-क्न, हलोपः। गवादि-भक्ष्यम्। (वसाना)। वस आच्छादने-शानच्। आच्छादयन्ती। (सुमनाः)। शोभनमनस्का। (असः)। अस्तेर्लटि अडागमः। भव। (अथ दाः)। इति गतम्। अ० २।६।५। (दाः)। दद्याः ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (মানস্য পত্নি) হে সম্মানের পত্নী ! (শরণা) তুমি শরণরূপা, আশ্রয়, (স্যোনা) সুখকারী, (দেবী) দিব্যরূপা বা "দ্যোতমানা" [সায়ণ], (অগ্রে) গৃহস্থী হওয়ার পূর্বে (দেবেভিঃ) দিব্য বৃহস্পতিদের দ্বারা (নিমিতা অসি) তুমি নিরন্তর নির্মিত হও [সায়ণ]। (ত্বম্ তৃণম্ বসানা১) তুমি তৃণের বস্ত্র জড়িয়ে, (সুমনা) আমাদের মনের প্রসন্নকারিনী (অসঃ) হও (অথা) তদনন্তর (অস্মভ্যম্) আমাদের জন্য (সহবীর্যম্) বীর সন্তান সহিত (রয়িম দাঃ) সম্পত্তি প্রদান করো।

    टिप्पणी

    [মন্ত্রে পত্নী হলো উপমান, এবং শালা হলো উপমেয়। উপমানবাচক পদ লুপ্ত আছে। পত্নী পদ পতির সত্তার সূচক, এবং শালাপদ গৃহের স্বামীর সূচক। পত্নীর সত্তা দ্বারা পতির সম্মান বজায় থাকে এবং গৃহের সত্তা দ্বারা গৃহাধিপতির সম্মান বজায় থাকে। গৃহ ছাড়া গৃহস্থীর আধিপত্য স্থাপিত হয়না, সে ভাড়াটিয়া হয়ে একটি গৃহে আশ্রয় নেয়, কখনো অন্য গৃহের, যেমন পুরুষ পত্নী ছাড়া সহায়তার্থে বিচরণ করে, এবং সামাজিক জীবনে তাঁর স্থিতি হয় না। স্থাপনা হওয়ার পরেই সে সন্তানদের সহিত সম্পত্তি পাওয়ার অধিকারী হতে পারে। "তৃণং বসানা" দ্বারা সর্বসুলভশালা সূচিত হয়েছে। “তৃণং বসানা" দ্বারা কুঁড়ে ঘর প্রতীত হয় অথবা খড়ের ছাউনি গরম-ঠাণ্ডা থেকে রক্ষা করে।] [১. বস আচ্ছাদনে (অদাদি)।]

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    मन्त्र विषय

    নবশালানির্মাণং প্রবেশশ্চঃ

    भाषार्थ

    (মানস্য) হে মান অর্থাৎ প্রতিষ্ঠার (পত্নি) পালয়িত্রী, (শরণা) শরণ/আশ্রয়দাত্রী, (স্যোনা) সুখদায়িনী, (দেবী) দ্যোতমান তুমি (দেবেভিঃ=০−বৈঃ) দেবগণ [বিশ্বকর্মা পুরুষ] দ্বারা (নিমিতা) নির্মিত/দৃঢ়কৃত হয়ে (অগ্রে) আমাদের সম্মুখে (অসি) বর্তমান। (তৃণম্) ঘাস (বসানা) পরিধান করে/আচ্ছাদিত হয়ে (ত্বম্) তুমি (সুমনাঃ) প্রসন্ন মনযুক্ত (অসঃ) হও, (অথ) এবং (অস্মভ্যম্) আমাদের (সহবীরম্) বীর পুরুষদের সহিত (রয়িম্) ধন-সম্পদ (দাঃ) প্রদান করো ॥৫॥

    भावार्थ

    সকল মনুষ্য গৃহনির্মাণ বিদ্যায় কুশল পুরুষদের থেকে সম্মতি নিয়ে বাইরে ও ভিতর থেকে মনোরম ঘর নির্মাণ করুক, যাতে সংসারে সম্মান হয় এবং সকল গৃহস্থ সুস্থ, বীর, উদ্যোগী হয়ে ধনবান্ হয ॥৫॥ ‘অথাস্মভ্যং সহবীরং রয়িং দাঃ’ এই পাদ অ০ ২।৬।৫। এ আছে ॥

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