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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 8
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - शाला, वास्तोष्पतिः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - शालनिर्माण सूक्त
    252

    पू॒र्णं ना॑रि॒ प्र भ॑र कु॒म्भमे॒तं घृ॒तस्य॒ धारा॑म॒मृते॑न॒ संभृ॑ताम्। इ॒मां पा॒तॄन॒मृते॑ना सम॑ङ्ग्धीष्टापू॒र्तम॒भि र॑क्षात्येनाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पू॒र्णम् । ना॒रि॒ । प्र । भ॒र॒ । कु॒म्भम् । ए॒तम् । घृ॒तस्य॑ । धारा॑म् । अ॒मृते॑न । सम्ऽभृ॑ताम् । इ॒माम् । पा॒तृृन् । अ॒मृते॑न । सम् । अ॒ङ्ग्धि॒ । इ॒ष्टा॒पू॒र्तम् । अ॒भि । र॒क्षा॒ति॒ । ए॒ना॒म् ॥१२.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूर्णं नारि प्र भर कुम्भमेतं घृतस्य धाराममृतेन संभृताम्। इमां पातॄनमृतेना समङ्ग्धीष्टापूर्तमभि रक्षात्येनाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पूर्णम् । नारि । प्र । भर । कुम्भम् । एतम् । घृतस्य । धाराम् । अमृतेन । सम्ऽभृताम् । इमाम् । पातृृन् । अमृतेन । सम् । अङ्ग्धि । इष्टापूर्तम् । अभि । रक्षाति । एनाम् ॥१२.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 12; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    नवीनशाला का निर्माण और प्रवेश।

    पदार्थ

    (नारि) हे नर का हित करनेवाली गृहपत्नी ! (एतम्) इस (पूर्णम्) पूरे (कुम्भम्) घड़े में से (अमृतेन) अमृत [हितकारी पदार्थ] से (संभृताम्) भरी हुई (घृतस्य) घी की (धाराम्) धारा को (प्र, भर=हर) अच्छे प्रकार ला। (इमाम्) इस [शाला] को और (पातॄन्) पानकर्ताओं वा रक्षकों को (अमृतेन) अमृत से (सम्) अच्छे प्रकार (अङ्ग्धि) पूर्ण कर। (इष्टापूर्तम्) यज्ञ और वेदों का अध्ययन, अन्नदानादि पुण्यकर्म (एनाम्) इस [शाला] की (अभि) सब ओर से (रक्षाति) रक्षा करे ॥८॥

    भावार्थ

    गृहपत्नी घर को घृत, दुग्ध आदि अमृत पदार्थों से परिपूर्ण रखकर सब कुटुम्बियों को स्वस्थ और पुष्ट रक्खे। और सब स्त्री-पुरुष धार्मिक, पुरुषार्थी तथा धनी होकर चोर-उचक्के सिंहादि दुष्टों से रक्षा करते हुए बस्ती को बसाये रक्खें ॥८॥ मनु भगवान् ने कहा है−सदा प्रहृष्टया भाव्यं गृहकार्येषु दक्षया। सुसंस्कृतोपस्करया व्यये चामुक्तहस्तया ॥ मनु० ५।१५०॥ स्त्री सदा प्रसन्नचित्त और घर के कामों में चतुर हो और (सुसंस्कृतोपस्करया) घर की सामग्री बासन-भाँडे भली-भाँति ठीक रखती हुई, व्यय करने में हाथ सकोड़ों रहे ॥

    टिप्पणी

    ८−(पूर्णम्)। पूरितम्। (नारि)। अ० १।११।१। हे नरस्य धर्म्ये हितकारिणि। (प्रभर)। हस्य भः। आहर। द्विकर्मकत्वात् (कुम्भम्, धाराम्)। इत्येतयोः कर्मता। (कुम्भम्)। म० ७। अपादाने द्वितीया। घटात्-इत्यर्थः। (एतम्)। (घृतस्य)। आज्यस्य। (धाराम्)। धृ-णिच्-अङ्, टाप्। सन्तत्या पतनम्। (अमृतेन)। मरणाद्रक्षकेण स्वास्थ्यवर्धकेन पदार्थसमूहेन। (संभृताम्)। संपादिताम्। (इमाम्)। (पातॄन्)। पा पाने, पा रक्षणे वा-तृच्। पानकर्तॄन्। रक्षकान्। (सम्)। सम्यक्। (अङ्ग्धि)। अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-लोट् म्रक्ष, संयोजय। (इष्टापूर्तम्)। अ० २।१२।४। यज्ञवेदाध्ययनान्नदानादि पुण्यकर्म। (अभि)। सर्वतः। (रक्षाति)। लेट्। रक्षेत् ॥

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    विषय

    'जल, घृत, दुग्ध'-पूर्ण शाला

    पदार्थ

    १. हे (नारि) = गृहपलि! (एतम्) = इस (पूर्ण कुम्भम्) = जल से परिपूर्ण घड़े को (प्रभर) = घर में प्राप्त करा तथा (अमृतेन) = सब रोगों के वारक गोदुग्ध से (संभृताम्) = संभृत (घृतस्य धाराम्) = घृत की धारा को प्राप्त करा। ताज़ा दूध को जमाकर दधि से प्राप्त घृत की धाराएँ प्रतिदिन घर में बहती हों घृत पर्याप्त मात्रा में हो। २. (इमाम्) = इस घृत की धारा को (पातन्) = पीनेवालों को (अमृतेन) = नीरोगता से (समङ्ग्धि) = सन्दीस व अलंकृत कर । (इष्टापूर्तम्) = यज्ञ व दान आदि के कार्य (एनाम्) = इस शाला को (अभिरक्षाति) = रक्षित करते हैं।

    भावार्थ

    घर में जल, ताज़ा दूध व घृत की कमी न हो। इनका सेवन करनेवाले नीरोग बनें रहें। यज्ञ व दान इस शाला का रक्षण करनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (नारि) हे नारी! अर्थात् पत्नी (अमृतेन संभृताम्) अमृत से सम्यक् भरी हुई (घृतस्य धाराम्) घृत की धारा को [प्राप्त करके], (एतम्, कुम्भम्) इस कुम्भ को (पूर्णं प्रभर) पूर्णरूप में प्रकृष्टतया भर दे (इमाम्=इमान्) इन (पातृन्) [घृत को] पीनेवालों को (अमृतेन) अमृत से (समङ्ग्धि) सम्यक् प्रदीप्त कर दे। (इष्टापूर्तम्) यज्ञ और आपूर्तकर्म (एनाम्) इस शाला की (अभि रक्षाति) सब ओर से रक्षा करें।

    टिप्पणी

    [अमृतेन संभृताम्=न मरने अर्थात् दीर्घजीवन से सम्यक्-भरी हुई। घृतपान द्वारा श्रीरहित-शरीर श्रीयुक्त हो जाता है। यथा "अश्रीरं चित् कृणुथा सुप्रतीकम्" (अथर्व० ४।२१।६)। यह उद्धरण गौओं के सम्बन्ध में है, गौ के दूध, घृत आदि के सम्बन्ध में है। सु प्रतीकम्१=सुमुखम, शोभन मुखम्। इमाम्=इमान्। इष्टापूर्तम्=यज्ञ तथा आपूर्त अर्थात् रतिकर्म, यथा कृपनिर्माण, तालाब निर्माण, धर्मशाला निर्माण, अनाथसेवा आदि। इन कर्मों द्वारा शाला की रक्षा होती है। समङ्ग्धि= सम्+अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु (रुधादिः)। सुप्रतीकम्=शोभनावयवम् (सायण), (अथर्व० ४।२१।६)।] [१. प्रतीकम्=Face (आप्टे)।]

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    विषय

    बड़े २ भवन बनाने का उपदेश ।

    भावार्थ

    गृहपत्नी के कर्तव्य का उपदेश करते हैं । हे (नारि) गृहपत्नि ! (एतं) इन (कुम्भम्) घड़ों और मटकों को (पूर्णं) पूर्ण भरकर (प्र भर) अपने घर में लेजा । और (अमृतेन) अमृत, अन्न और जल से (संभृताम्) सम्पन्न (घृतस्य धाराम्) घी दूध की धारा को भी घर में लेजा । (इमां) इस शाला को अर्थात् शालास्य स्त्री पुरुषों को और (पातॄन्) अन्य भी खाने पीने वाले अतिथि आदि को (अमृतेन) उत्तम अन्न रस से (आसमङ्ग्धि) सुशोभित कर और (एनां) इस शाला के (इष्टापूर्तं) यज्ञ दान और कूप बागीचा और बावड़ी आदि के (अभि) चारों तरफ से (रक्षाति) रक्षा करे । अथवा—(इमां पात्रीम्) इस थाली आदि पात्रों को अन्न से सुशोभित कर ।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘इमां पात्रीममतेना संमग्धि इति सायणसम्मतः पाठः सुसंगततरः । पा नमृतेना इति शं० पा०, प्रायिकश्च पाठः । ‘पूर्णो नाभिरिप्रहराभिकुम्भमपारमन्तोषधीनान् घृतस्य। इमा प्रात्रेरमृतस्य०’ इत्यादि पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः । वास्तोष्पतीयम् शालासूक्तम् । वास्तोष्पतिः शाला च देवते । १,४,५ त्रिष्टुभः । २ विराड् जगती । ३ बृहती । ६ शक्वरीगर्भा जगती । ७ आर्षी अनुष्टुप् । ८ भुरिग् । ९ अनुष्टुप् । नवर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Architecture

    Meaning

    O lady of the house, fill this pot, keep it full and flowing, let the stream of ghrta full of the nectar sweets of hospitality be ever flowing. Keep this house full and treat all inmates and guests of the house with nectar sweet hospitality. It is the noble acts of piety, service and hospitality which protect and promote this house.

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    Translation

    O woman, to this: house of ours bring the full jar pouring out a stream of clarified butter (as if) imbued with immortality. Serve the drinkers with a draught of this ambrosia. May the supplies of all the desired things keep this house fully i eguipped in every respect.

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    Translation

    O’ house-hold woman’ bring hither the well-filled pitcher and stream molten butter blent with nector. O mistress of this house; make this house, other guests etc bedewed with palatable juice. Let the good acts of Yajna and philanthropy protect it from all sides.

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    Translation

    Bring hitherward, O dame, the well-filled pitcher, and the stream of molten butter blent with nectar, and feed the guests with nice food. Yajna, Vedic study and charity preserve this house.

    Footnote

    Hitherward means towards your house. Pitchers filled with milk and ghee shouldalways remain in the house.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(पूर्णम्)। पूरितम्। (नारि)। अ० १।११।१। हे नरस्य धर्म्ये हितकारिणि। (प्रभर)। हस्य भः। आहर। द्विकर्मकत्वात् (कुम्भम्, धाराम्)। इत्येतयोः कर्मता। (कुम्भम्)। म० ७। अपादाने द्वितीया। घटात्-इत्यर्थः। (एतम्)। (घृतस्य)। आज्यस्य। (धाराम्)। धृ-णिच्-अङ्, टाप्। सन्तत्या पतनम्। (अमृतेन)। मरणाद्रक्षकेण स्वास्थ्यवर्धकेन पदार्थसमूहेन। (संभृताम्)। संपादिताम्। (इमाम्)। (पातॄन्)। पा पाने, पा रक्षणे वा-तृच्। पानकर्तॄन्। रक्षकान्। (सम्)। सम्यक्। (अङ्ग्धि)। अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-लोट् म्रक्ष, संयोजय। (इष्टापूर्तम्)। अ० २।१२।४। यज्ञवेदाध्ययनान्नदानादि पुण्यकर्म। (अभि)। सर्वतः। (रक्षाति)। लेट्। रक्षेत् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (নারি) হে নারী ! অর্থাৎ পত্নী (অমৃতেন সংভৃতাম্) অমৃতের সম্যক্ পূর্ণ (ঘৃতস্য ধারাম্) ঘৃতের ধারা [প্রাপ্ত করে], (এতম্, কুম্ভম্) এই কুম্ভকে (পূর্ণ প্রভর) পূর্ণ রূপে প্রকৃষ্টরূপে পরিপূর্ণ করো (ইমাম্ =ইমান্) এই (পাতৃন্) [ঘৃত] পানকারীদের (সম্বন্ধী) সম্যক্-প্রদীপ্ত করো/করে দাও। (ইষ্টাপূর্তম্) যজ্ঞ ও ইষ্টকর্ম (এনাম্) এই গৃহের (রক্ষাতি) রক্ষা করুক।

    टिप्पणी

    [অমৃতেন সংভৃতাম্= দীর্ঘজীবনে পূর্ণরূপে-পরিপূর্ণ। ঘৃতপান দ্বারা শ্রীরহিত-শরীর শ্রীযুক্ত হয়ে যায়। যথা "অশ্রীরং চিৎ কৃণুথা সুপ্রতীকম্" (অথর্ব০ ৪।২১।৬)। এই উদ্ধহরণ গাভীদের সম্মন্ধে, গরুর দুধ, ঘৃত আদির সম্মন্ধে। সু প্রতীকম্১= সুমুখম্, শোভনমুখম্। ইমাম্=ইমান্। ইষ্টাপূর্তম্ = যজ্ঞ ও আপূর্ত অর্থাৎ রতিকর্ম, যথা কূপনির্মাণ, পুকুর নির্মাণ, ধর্মশালা নির্মাণ, অনাথসেবা ইত্যাদি। এই সকল কর্মের দ্বারা গৃহের রক্ষা হয়। সমঙ্গ্ধি=সম্+ অঞ্জূ ব্যক্তিম্রক্ষণকান্তিগতিষু (রুধাদিঃ)। সুপ্রতীকম্= শোভনাবয়বম্ (সায়ণ), (অথর্ব০ ৪।২১।৬)।] [১. প্রতীকম্ = Face (আপ্টে)।]

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    मन्त्र विषय

    নবশালানির্মাণং প্রবেশশ্চঃ

    भाषार्थ

    (নারি) হে নরের হিতকারিনী গৃহপত্নী ! (এতম্) এই (পূর্ণম্) পূর্ণ (কুম্ভম্) ঘড়া/কুম্ভ/কলস থেকে (অমৃতেন) অমৃত [হিতকারী পদার্থ] থেকে (সংভৃতাম্) পরিপূর্ণ/সম্পাদিত (ঘৃতস্য) ঘৃত-এর (ধারাম্) ধারা (প্র, ভর=হর) উত্তমরূপে নিয়ে এসো। (ইমাম্) এই [শালা]কে এবং (পাতৃন্) পানকর্তাদের বা রক্ষকদের (অমৃতেন) অমৃত দ্বারা (সম্) উত্তমরূপে (অঙ্গ্ধি) পূর্ণ করো। (ইষ্টাপূর্তম্) যজ্ঞ এবং বেদের অধ্যয়ন, অন্নদানাদি পুণ্যকর্ম (এনাম্) এই [শালা] এর (অভি) সবদিক থেকে/সর্বতোভাবে (রক্ষাতি) রক্ষা করুক ॥৮॥

    भावार्थ

    গৃহপত্নী ঘরকে ঘৃত, দুগ্ধাদি অমৃত পদার্থ দ্বারা পরিপূর্ণ রেখে সমস্ত আত্মীয়দের সুস্থ ও পুষ্ট রাখুক। এবং সমস্ত স্ত্রী-পুরুষ ধার্মিক, পুরুষার্থী ও ধনী হয়ে চোর-ডাকাত, সিংহাদি দুষ্ট থেকে রক্ষা করে ঘরকে দৃঢ় রাখুক ॥৮॥ মনু ভগবান্ বলেছেন- সদা প্রহৃষ্টয়া ভাব্যং গৃহকার্যেষু দক্ষয়া। সুসংস্কৃতোপস্করয়া ব্যয়ে চামুক্তহস্তয়া ॥ মনু০ ৫।১৫০॥ স্ত্রী সদা প্রসন্নচিত্ত ও ঘরের কাজে চতুর হোক এবং (সুসংস্কৃতোপস্করয়া) ঘরের সামগ্রী বাসন-কলস উত্তমরূপে সঠিক রেখে, ব্যয় করার ক্ষেত্রে হস্ত মুক্ত থাকুক ॥

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