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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रयिसंवर्धन सूक्त
    76

    अग्ने॒ अच्छा॑ वदे॒ह नः॑ प्र॒त्यङ्नः॑ सु॒मना॑ भव। प्र णो॑ यच्छ विशां पते धन॒दा अ॑सि न॒स्त्वम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । अच्छ॑ । व॒द॒ । इ॒ह । न॒: । प्र॒त्यङ् । न॒: । सु॒ऽमना॑: । भ॒व॒ । प्र । न॒: । य॒च्छ॒ । वि॒शा॒म् । प॒ते॒ । ध॒न॒ऽदा: । अ॒सि॒ । न॒: । त्वम् ॥२०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने अच्छा वदेह नः प्रत्यङ्नः सुमना भव। प्र णो यच्छ विशां पते धनदा असि नस्त्वम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने । अच्छ । वद । इह । न: । प्रत्यङ् । न: । सुऽमना: । भव । प्र । न: । यच्छ । विशाम् । पते । धनऽदा: । असि । न: । त्वम् ॥२०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 20; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे विद्वान् पुरुष ! (अच्छ) अच्छे प्रकार से (इह) यहाँ पर (नः) हमसे (वद) बोल, और (प्रत्यङ्) प्रत्यक्ष होकर (नः) हमारे लिए (सुमनाः) प्रसन्न मन (भव) हो। (विशाम् पते) हे प्रजाओं के रक्षक ! (नः) हमें (प्र यच्छ) दान दे, (त्वम्) तू (नः) हमारा (धनदाः) धनदाता (असि) है ॥२॥

    भावार्थ

    सब मनुष्य विद्वानों से विद्या ग्रहण करके संसार में ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥२॥ मन्त्र २-७ ऋग्वेद म० १० सू० १४१ म० १-५ में कुछ भेद से हैं। यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद अ० ९ मन्त्र २८ में है ॥

    टिप्पणी

    २−(अग्ने) हे विद्वन् ! (अच्छ) सम्यक्। (वद) ब्रूहि। उपदिश। (इह) अत्र समाजे। (प्रत्यङ्) प्रत्यञ्चन् अभिमुखं गच्छन्। (नः) अस्मान्। अस्मभ्यम्। (सुमनाः) प्रीतिमनाः। (प्र यच्छ) दानं कुरु। (विशांपते) हे प्रजानां पालक। (धनदाः) धन+दा-विच्। ऐश्वर्यस्य दाता। अन्यत् सुगमम् ॥

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    विषय

    सुमनाः, धनदाः

    पदार्थ

    १. हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (इह) = यहाँ-इस हृदयदेश में (न:) = हमारे लिए (अच्छा वद) = आभिमुख्येन प्रिय उपदेश दीजिए। (प्रत्यङ्) = अभिमुख प्राप्त होते हुए आप (न:) = हमारे लिए (सुमनाः) उत्तम मनवाले (भव) = होओ। हमें उत्तम मन प्राप्त कराओ। २. हे (विशांपते) = वैश्वानररूपेण सब प्रजाओं के रक्षक प्रभो! (न: प्रयच्छ) = आप हमारे लिए दीजिए, (त्वम्) = आप ही तो (न:) = हमारे लिए (धनदाः असि) = सब धनों के दाता हैं-आप ही को हमारे लिए आवश्यक धन देने हैं।

    भावार्थ

    प्रभु हमें प्ररेणा दें, हमें उत्तम मन प्राप्त कराएँ और हमारे लिए आवश्यक धन प्रदान करें।

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    भाषार्थ

    (अग्ने) हे अग्नि के सदृश प्रकाशमान परमेश्वर! (इह) इस जीवन में (न: अच्छ) हमारे अभिमुख होकर (वद) हमारे साथ वार्तालाप कर, (नः प्रत्यङ्) हमारे प्रति गति करता हुआ तू (सुमनाः भव) सुप्रसन्न हो। (विशांपते) हे प्रजाओं के पति! (नः प्रयच्छ) हमें प्रदान कर [धन], (त्वम्) तू (न:) हमारा (धनदाः असि) धनदाता है।

    टिप्पणी

    [हृदय में प्रकट हुए परमेश्वर के साथ वार्तालाप सम्भव है, जबकि हृदयस्थ जीवात्मा और उसमें प्रकट परमेश्वर, एक-दूसरे के अभिमुख होते हैं। धन प्राकृतिक नहीं, अपितु अध्यात्म है।]

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    विषय

    ईश्वर से उत्तम ऐश्वर्य और सद्गुणों की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    अग्निस्तापस ऋषिः। विश्वेदेवा देवताः। हे (अग्ने) परमात्मन् या विद्वन् ! (इह) इस संसार में (नः) हमें (अच्छा) उत्तम रीति से (वद) उपदेश करो और (नः) हमारे (प्रत्यङ्) प्रति आकर (सुमनाः) शुभ संकल्प होकर (भव) रहो। हे (विशां-पते) समस्त प्रजाओं के पालक परमात्मन् ! (त्वं) आप (नः धनदा असि) हमें सब प्रकार का धन देने हारे हो, अतः (नः प्रयच्छ) हमें वह सब ऐश्वर्य प्रदान करो ।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘प्र० नो यच्छ विशस्पते’ इति श्र० । ‘भुवस्पते’ इति तै० सं० ‘सहस्रजित्’ इति यजु० (च०) ‘त्वंहि धनदा असि’ इति यजु०। (द्वि०) ‘प्रतिनः’ इति यजु०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः । अग्निर्वा मन्त्रोक्ता नाना देवताः। १-५, ७, ९, १० अनुष्टुभः। ६ पथ्या पंक्तिः। ८ विराड्जगती। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Man’s Self-development

    Meaning

    Agni, lord omniscient, O brilliant teacher, O enlightened man, speak to us well and straight, be kind at heart with us. O lord and leader of the people, give us the wealth of life, light of the spirit, you are the giver of wealth, light and life.

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    Translation

    O adorable Lord (agne), may you speak favourably to us. May you be friendly inclined towards us. O Lord of the people, give to us liberally. For us you are the bestower of wealth.(Cf. Rv. X.141.1)

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    Translation

    O’ learned man; instruct in this world in a nice way and come to us with an amicable intention. O protector of all the people; you are the giver of wealth, so give me prosperity.

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    Translation

    O God, instruct us nicely in this world. Be friendly minded unto us. O Lord of the people, enrich us. Thou art the giver of wealth unto us.

    Footnote

    See Yajur, 9-28, Rig, 10-141-1, 2, 4, 5, 6, for verses 2-7 of this hymn.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अग्ने) हे विद्वन् ! (अच्छ) सम्यक्। (वद) ब्रूहि। उपदिश। (इह) अत्र समाजे। (प्रत्यङ्) प्रत्यञ्चन् अभिमुखं गच्छन्। (नः) अस्मान्। अस्मभ्यम्। (सुमनाः) प्रीतिमनाः। (प्र यच्छ) दानं कुरु। (विशांपते) हे प्रजानां पालक। (धनदाः) धन+दा-विच्। ऐश्वर्यस्य दाता। अन्यत् सुगमम् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (অগ্নে) হে অগ্নির সদৃশ প্রকাশমান পরমেশ্বর ! (ইহ) এই জীবনে (নঃ অচ্ছ) আমাদের অভিমুখ হয়ে (বদ) আমাদের সাথে বার্তালাপ করো, (নঃ প্রত্যঙ্) আমাদের দিকে এগিয়ে তুমি (সুমনাঃ ভব) সুপ্রসন্ন হও। (বিশাংপতে) হে প্রজাদের পতি ! (নঃ প্রয়চ্ছ) আমাদের প্রদান করো [ধন], (ত্বম্) তুমি (নঃ) আমাদের (ধনদাঃ অসি) ধনদাতা।

    टिप्पणी

    [হৃদয়ে প্রকটিত পরমেশ্বরের সাথে বার্তালাপ সম্ভব, যখন হৃদয়স্থ জীবাত্মা এবং তার মধ্যে প্রকট পরমেশ্বর, একে-অপরের অভিমুখ হয়। ধন প্রাকৃতিক নয়, বরং আধ্যাত্ম।]

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    मन्त्र विषय

    ব্রহ্মজ্ঞানোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অগ্নে) হে বিদ্বান্ পুরুষ ! (অচ্ছ) উত্তমরূপে (ইহ) এখানে (নঃ) আমাদের (বদ) বলো, এবং (প্রত্যঙ্) প্রত্যক্ষ হয়ে (নঃ) আমাদের জন্য (সুমনাঃ) প্রসন্ন মনযুক্ত/মনস্ক (ভব) হও। (বিশাম্ পতে) হে প্রজাদের রক্ষক ! (নঃ) আমাদের (প্র যচ্ছ) দান করো, (ত্বম্) তুমি (নঃ) আমাদের (ধনদাঃ) ধন দাতা (অসি) হও॥২॥

    भावार्थ

    সকল মনুষ্য বিদ্বানদের থেকে বিদ্যা গ্রহণ করে সংসারে ঐশ্বর্য প্রাপ্ত করুক॥২॥ মন্ত্র ২-৭ ঋগ্বেদ ম০ ১০ সূ০ ১৪১ ম০ ১-৫ এ কিছুটা আলাদাভাবে আছে। এই মন্ত্র কিছু ভেদে যজুর্বেদ অ০ ৯ মন্ত্র ২৮ এ রয়েছে ॥

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