अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 4
यो दे॒वो वि॒श्वाद्यमु॒ काम॑मा॒हुर्यं दा॒तारं॑ प्रतिगृ॒ह्णन्त॑मा॒हुः। यो धीरः॑ श॒क्रः प॑रि॒भूरदा॑भ्य॒स्तेभ्यो॑ अ॒ग्निभ्यो॑ हु॒तम॑स्त्वे॒तत् ॥
स्वर सहित पद पाठय: । दे॒व: । वि॒श्व॒ऽअत् । यम् । ऊं॒ इति॑ । काम॑म् । आ॒हु: । यम् । दा॒तार॑म् । प्र॒ति॒ऽगृ॒ह्णन्त॑म् । आ॒हु: ।य: । धीर॑: । श॒क्र: । प॒रि॒ऽभू: । अदा॑भ्य: । तेभ्य॑: । अ॒ग्निऽभ्य॑: । हु॒तम् । अ॒स्तु॒ । ए॒तत् ॥२१.४॥
स्वर रहित मन्त्र
यो देवो विश्वाद्यमु काममाहुर्यं दातारं प्रतिगृह्णन्तमाहुः। यो धीरः शक्रः परिभूरदाभ्यस्तेभ्यो अग्निभ्यो हुतमस्त्वेतत् ॥
स्वर रहित पद पाठय: । देव: । विश्वऽअत् । यम् । ऊं इति । कामम् । आहु: । यम् । दातारम् । प्रतिऽगृह्णन्तम् । आहु: ।य: । धीर: । शक्र: । परिऽभू: । अदाभ्य: । तेभ्य: । अग्निऽभ्य: । हुतम् । अस्तु । एतत् ॥२१.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो (देवः) प्रकाशमान अग्नि, [वैरियों में] (विश्वात्) सबका खानेवाला है, (यम्) जिसको (उ) ही (कामम्) कमनीय वा कामना पूरी करनेवाला (आहुः) लोग कहते हैं, (यम्) जिसको (दातारम्) देनेवाला और (प्रतिगृह्णन्तम्) लेनेवाला (आहुः) बताते हैं। (यः) जो (धीरः) पुष्टि करनेवाला, (शक्रः) शक्तिमान् (परिभूः) सर्वव्यापक और (अदाभ्यः) न दबने योग्य है, (तेभ्यः) उन (अग्निभ्यः) अग्नियों [ईश्वरतेजों] को (एतत्) यह (हुतम्) दान [आत्मसमर्पण] (अस्तु) होवे ॥४॥
भावार्थ
जिस परमात्मा को विद्वान् लोग आनन्ददाता और प्रार्थना का माननेवाला जानते हैं, और जिसके ध्यान से पुरुषार्थी लोग शत्रुओं को जीतते हैं, उसको हमारा प्रणाम है ॥४॥
टिप्पणी
४−(देवः) प्रकाशमानोऽग्निः। (विश्वात्) अदोऽनन्ने। अ० ३।२।६८। इति विश्व+अद भक्षणे-विट्। शत्रूणां सर्वभक्षकः। (कामम्) कमु इच्छायाम्-घञ्। कमनीयम्। कामयितारम्। (आहुः) ब्रूञ्-लेट्। ब्रुवन्ति। (दातारम्) इष्टफलस्य प्रदातारम्। (प्रतिगृह्णन्तम्) ग्रह-शतृ। प्रार्थनायाः स्वीकर्तारम्। (धीरः) अ० २।३५।३। धाञ्-क्रन्, ईत्वम्। दधाति पोषयतीति। धारकः। पोषकः। (शक्रः) अ० २।५।४। शक्तिमान्। (परिभूः) परि+भू सत्तायाम्, प्राप्तौ-क्विप्। सर्वव्यापकः। (अदाभ्यः) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।२२४। इति दम्भु दम्भे-ण्यत्। दभ्नोतिर्वधकर्मा-निघ० २।१९। अहिंस्यः। अजेयः ॥
विषय
धीरः, शक्रः
पदार्थ
१. (यः देवः) = जो दान आदि गुणों से युक्त अग्नि [प्रभु] (विश्वात्) = प्रलयकाल में सबको खा-सा जाता है-सबको अपने अन्दर समा लेता है, (उ) = और (यम्) = जिसे कामम्, (आहु:) = 'काम' इस नाम से कहते हैं। प्रभु ही (धर्माविरुद्ध कामरूप से सब प्राणियों में स्थित हैं। धर्माविरुद्धः कामोऽस्मि भूतेषू भरतर्षभ), (यम्) = जिसे (दातारम्) = देनेवाला व (प्रतिगृह्णन्तम्) = लेनेवाला (आहु:) = कहते हैं-काम ही दाता है, काम ही प्रतिग्रहीता है। २. (यः) = जो प्रभुरूप अग्नि (धीर:) = हम सबकी बुद्धियों को प्रेरित करनेवाली है, जो (शक्रः) = सर्वशक्तिमान् है, (तेभ्यः अग्निभ्यः) = उन अग्रणी प्रभु के लिए (एतत्) = यह (हुतम्, अस्तु) = आत्मसमर्पण हो।
भावार्थ
प्रभु ही हमारे अन्दर सब उत्तम कामनाओं को जन्म देते हैं। वे ही हमें बुद्धि व बल देते हैं [धीरः, शक्रः]। उनके लिए हम अपना अर्पण करनेवाले बनें।
भाषार्थ
(यः) जो (देव:) परमेश्वर-देव (विश्वाद्) विश्व को खा जाता है [प्रलयकाल में] (यम्, उ) जिसे ही (कामम्) कामनावाला या काम्य (आहुः) कहते हैं, (यम्) जिसे (दातारम्) दाता तथा (प्रतिगृह्णन्तम्) हमारी भक्ति-श्रद्धा को स्वीकार करनेवाला (आहुः) कहते हैं। (यः) जो (धीरः) धीमान्, (शक्रः) शक्तिशाली, (परिभूः) सर्वत्र विद्यमान, (अदाभ्यः) न खाया जा सकनेवाला है, (तेभ्यः अग्नि भ्यः) परमेश्वर के उन अग्निस्वरूपों के लिए (एतत्) यह प्राकृतिक तथा आत्म हविः (हुतम्, अस्तु) प्रदत्त हो, अर्पित हो।
टिप्पणी
[परमेश्वर विश्वाद् है, विश्व+अद भक्षणे (अदादिः), वह विश्व का भक्षण करता है, अतः अग्निरूप है। वह कामनावाला है, अतः काम है। इसे उपनिषदों में "अकामयत" द्वारा कहा है। कामना द्वारा जगत् को वह प्रकाशित करता है, इसलिए भी वह अग्नि है। अग्नि प्रकाशक होती है। वह धीर है, बुद्धिमान् है, ज्ञानवान् है। ज्ञान ज्ञेयों को प्रकाशित करता है, इसलिए भी वह अग्निरूप है।]
विषय
लोकोपकारक अग्नियों का वर्णन ।
भावार्थ
(यः देवः) जो देव(विश्वाद्) समस्त संसार को प्रलयकाल में ग्रास कर जाता है।(यं उ कामम् आहुः) और जिसको समस्त संसार में व्यापक समष्टि इच्छा शक्ति का प्रतिरूप, ‘काम’ स्वरूप विद्वान् बतलाते हैं,(यं दातारं) और जिसको सबको सब पदार्थों का दाता होते हुए भी (प्रतिगृह्णन्तम् आहुः) सबका दिया भक्ति उपहार अथवा प्रलयकाल में सर्व संसार को अपने भीतर स्वीकार करता हुआ बतलाते हैं। और(शक्रः) शक्तिसम्पन्न (धीरः) धारणा और ध्यान से सम्पन्न एवं सब का पालक पोषक और(अदाभ्यः) किसी से पराजित एवं हिंसित न होने वाला, अद्वितीय,(परिभूः) सब पर वशकर्त्ता और सर्वव्यापक है (तेभ्यः अग्निभ्यः हुतम् अस्तु एतत्) इन सब गुण विशिष्ट अग्नि=परमात्मा की शक्तियों को मेरा स्मरण और त्याग प्राप्त हो । देखो कामसूक्त [ अथर्व० का० ९० सू० २॥ ]
टिप्पणी
विश्वात्—अत्ता चराचरग्रहणात्। वेदान्तसूत्रम्। परमात्मा का नाम ‘अत्ता’ है वह चराचर संसार को प्रलयकाल में खा जाता है। “कामोऽस्मि भरतर्षभ” और “प्रजनश्चास्मि कंदर्पः” इत्यादि गीता । (प्र०) ‘विश्वादमग्निं यमु’ इति मै० सं०, ‘हुतादमग्निं यमु’ इति काठः। (द्वि०) ‘प्रतिग्रहीतारमाहुः’ मै० सं०। काठ०। (तृ०) ‘धीरोयः’ इति मै० सं०। (प्र०) ‘यमु काममाह’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः। अग्निर्देवता। १ पुरोनुष्टुप्। २, ३,८ भुरिजः। ५ जगती। ६ उपरिष्टाद्-विराड् बृहती। ७ विराड्गर्भा। ९ निचृदनुष्धुप्। १० अनुष्टुप्। दशर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Energy, Kama Fire and Peace
Meaning
That fire divine which consumes the world of existence, which they call ‘Kama’, the passion of love for life, which they say is the giver as well as the receiver, constant, invariable, mighty, universal and overpowering, indomitable, to all these fires, this oblation is offered in homage for peace.
Translation
Who the divine one is all-consuming, who is called Kama (desire), who is called giver as well as the receiver, who is - courageous, capable, over-whelming and invincible - to all those fires let this oblation be offered.
Translation
The tremendous fire which the learned men describe all-devouring Kama-the universal desire of creation, which the learned one’s call, receiver in spite of its being giver, which is invincible, powerful, unconquerable and all-pervading-to all those lot this oblation be offered.
Translation
God is all-devouring. Men call Him Kama. They call Him the Giver and Receiver. He is Wise, Mighty, All-pervading, and Invincible. May my sacrifice be offered to all these forces of God.
Footnote
Kama: The inspirer and fulfiller of our wishes. Receiver: God receives our devotion, and grants salvation to noble souls at the time of dissolution, and thereby brings them near Himself.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(देवः) प्रकाशमानोऽग्निः। (विश्वात्) अदोऽनन्ने। अ० ३।२।६८। इति विश्व+अद भक्षणे-विट्। शत्रूणां सर्वभक्षकः। (कामम्) कमु इच्छायाम्-घञ्। कमनीयम्। कामयितारम्। (आहुः) ब्रूञ्-लेट्। ब्रुवन्ति। (दातारम्) इष्टफलस्य प्रदातारम्। (प्रतिगृह्णन्तम्) ग्रह-शतृ। प्रार्थनायाः स्वीकर्तारम्। (धीरः) अ० २।३५।३। धाञ्-क्रन्, ईत्वम्। दधाति पोषयतीति। धारकः। पोषकः। (शक्रः) अ० २।५।४। शक्तिमान्। (परिभूः) परि+भू सत्तायाम्, प्राप्तौ-क्विप्। सर्वव्यापकः। (अदाभ्यः) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।२२४। इति दम्भु दम्भे-ण्यत्। दभ्नोतिर्वधकर्मा-निघ० २।१९। अहिंस्यः। अजेयः ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(যঃ) যে (দেবঃ) পরমেশ্বর-দেব (বিশ্বাদ্) বিশ্বকে গ্ৰাস করেন [প্রলয়কালে] (যম্, উ) যাকে ই (কামম্) কাম্য (আহুঃ) বলা হয়, (যা) যাকে (দাতারম্) দাতা এবং (প্রতিগৃহ্ণতম্) আমাদের ভক্তি-শ্রদ্ধার গ্রহণকারী/গ্রহীতা/স্বীকারকারী (আহুঃ) বলে/বলা হয়। (যঃ) যে (ধীরঃ) ধীমান্, (শক্রঃ) শক্তিশালী, (পরিভূঃ) সর্বত্র বিদ্যমান, (অদাভ্যঃ) খাওয়া সম্ভব নয় এমন, (তেভ্যঃ অগ্নিভ্যঃ) পরমেশ্বরের সেই অগ্নিস্বরূপের জন্য (এতৎ) এই প্রাকৃতিক এবং আত্মহবিঃ (হুতম্, অস্তু) প্রদত্ত হোক, অর্পিত হোক।
टिप्पणी
[পরমেশ্বর হলেন বিশ্বাদ্, বিশ্ব+অদ্ ভক্ষণে (অদাদিঃ), তিনি বিশ্বের ভক্ষণ করেন, অতঃ তিনি হলেন অগ্নিরূপ। তিনি হলেন কাম্য/কামনাসম্পন্ন, অতঃ কাম। ইহাকে উপনিষদে "অকাময়ত" দ্বারা বলা হয়েছে। কামনা দ্বারা জগতকে তিনি প্রকাশিত করেন, এই জন্যও তিনি হলেন অগ্নি। অগ্নি প্রকাশক হয়। তিনি ধীর, বুদ্ধিমান্, জ্ঞানবান। জ্ঞান জ্ঞেয়কে প্রকাশিত করে, এইজন্য তিনি হলেন অগ্নিরূপ।]
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরস্য গুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(যঃ) যে (দেবঃ) প্রকাশমান অগ্নি, [শত্রুদের মধ্যে] (বিশ্বাৎ) সকলের ভক্ষণকারী/সর্বভক্ষক, (যম্) যাকে (উ) ই (কামম্) কমনীয় বা কামনা পূর্ণকারী (আহুঃ) লোকেরা বলে, (যম্) যাকে (দাতারম্) দাতা ও (প্রতিগৃহ্ণন্তম্) গ্ৰহণকারী (আহুঃ) বলে। (যঃ) যে (ধীরঃ) পুষ্টিকারক, (শক্রঃ) শক্তিমান্ (পরিভূঃ) সর্বব্যাপক ও (অদাভ্যঃ) অদমনযোগ্য/অজেয়, (তেভ্যঃ) সেই (অগ্নিভ্যঃ) অগ্নি [ঈশ্বর তেজ] কে (এতৎ) এই (হুতম্) দান [আত্মসমর্পণ] (অস্তু) হোক ॥৪॥
भावार्थ
যে পরমাত্মাকে বিদ্বানগণ আনন্দদাতা ও প্রার্থনাযোগ্য হিসেবে জানে, এবং যার ধ্যান করে পুরুষার্থীরা শত্রুদের জয় করে, সেই পরমাত্মাকে আমাদের প্রণাম ॥৪॥
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