अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 4
ऋषिः - अथर्वा
देवता - सोमः, पर्णमणिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राजा ओर राजकृत सूक्त
55
सोम॑स्य प॒र्णः सह॑ उ॒ग्रमाग॒न्निन्द्रे॑ण द॒त्तो वरु॑णेन शि॒ष्टः। तं प्रि॑यासं ब॒हु रोच॑मानो दीर्घायु॒त्वाय॑ श॒तशा॑रदाय ॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑स्य । प॒र्ण: । सह॑: । उ॒ग्रम् । आ । अ॒ग॒न् । इन्द्रे॑ण । द॒त्त: । वरु॑णेन । शि॒ष्ट: । तम् । प्रि॒या॒स॒म् । ब॒हु । रोच॑मान: । दी॒र्घा॒यु॒ऽत्वाय॑ । श॒तऽशा॑रदाय ॥५.४॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमस्य पर्णः सह उग्रमागन्निन्द्रेण दत्तो वरुणेन शिष्टः। तं प्रियासं बहु रोचमानो दीर्घायुत्वाय शतशारदाय ॥
स्वर रहित पद पाठसोमस्य । पर्ण: । सह: । उग्रम् । आ । अगन् । इन्द्रेण । दत्त: । वरुणेन । शिष्ट: । तम् । प्रियासम् । बहु । रोचमान: । दीर्घायुऽत्वाय । शतऽशारदाय ॥५.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
तेज, बल, आयु, धनादि बढ़ाने का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्रेण) बड़े ऐश्वर्यवाले और (वरुणेन) स्वीकरणीय श्रेष्ठ, गुरु आदि करके (दत्तः) हमें दिया हुआ और (शिष्टः) सिखाया हुआ (सोमस्य) अमृत का (पर्णः) पूर्ण करनेवाला परमेश्वर, (उग्रम्) पराक्रमवाला (सहः) बल [बलरूप], (आ) सब ओर से (अगन्) मिला है। (बहु) अनेक प्रकार से (रोचमानः) रुचि करता हुआ मैं (तम्) उस [अमृतपूरक परमेश्वर] को (शतशारदाय) सौ शरद् ऋतु युक्त (दीर्घायुत्वाय) बड़े जीवन के लिये (प्रियासम्) प्रसन्न करूँ ॥४॥
भावार्थ
जब मनुष्य विद्वानों की शिक्षा पाकर शुद्ध मुक्त स्वभाव परमेश्वर के ज्ञान से आत्मा में बल पाता है, तब वह धर्मात्मा बड़े उत्साह से परमात्मा की आज्ञा पालता हुआ बड़े अर्थात् यशस्वी जीवन के साथ आनन्द भोगता है ॥४॥ ‘इन्द्रेण दत्तो वरुणेन शिष्टः’ यह पाद, अ० २।२९।४। में और ‘दीर्घायुत्वाय शतशारदाय’ यह पाद, अ० १।३५।१। में आ चुके हैं ॥
टिप्पणी
४−(सोमस्य)। ऐश्वर्यस्य। अमृतस्य। मोक्षस्य। (पर्णः)। म० १। पालकः। पूरकः। (सहः)। बलरूपः परमेश्वरः। (उग्रम्)। उत्कटम्। (आ)। समन्तात्। सम्यक्प्रकारेण। (अगन्)। अगमत्। प्राप्तः। (इन्द्रेण)। परमैश्वर्यवता तेजस्विना पुरुषेण। (दत्तः)। प्रापितः। (वरुणेन)। श्रेष्ठेन। (शिष्टेन)। अ० २।२९।४। शिक्षितः। अनुज्ञातः। (तम्)। सोमस्य पर्णम्। (प्रियासम्)। प्रीञ् तर्पणे कान्तौ च-आशीर्लिङ्। तर्पयामि। प्रसन्नीक्रियासम्। (बहु)। अनेकविधम्। (रोचमानः)। रुच प्रीतिप्रकाशयोः-शानच्। रोचिष्णुः। प्रसन्नः। दीप्यमानः। (दीर्घायुत्वाय)। अ० १।३५।१। चिरजीवनाय। (शतशारदाय)। अ० १।३५।१। शतशरदृतुयुक्ताय ॥
विषय
सोम का पर्ण
पदार्थ
१. (सोमस्य) = वीर्यशक्ति का (पर्ण:) = पालन व पूरण का कर्म (उग्रं सहः) = अत्यन्त प्रबल शत्रुनाशक सामर्थ्य को (आगन्) = प्राप्त कराता है। यह सोम का पर्ण (इन्द्रेण दत्त:) = इन्द्रियों के अधिष्ठाता के द्वारा दिया जाता है, अर्थात् जितेन्द्रियता ही हमें इस सोम के पालन व पूरणरूप कर्म को प्राप्त कराती है। (वरुणेन शिष्ट:) = द्वेष का निवारण करनेवाले देव से यह अनुशष्टि होता है, अनुज्ञात होता है, अर्थात् निर्दृषता होने पर ही यह सोम शरीर में सुरक्षित रहता है। २. (तम) = उस सोम के (उग्रं सहः) = प्रबल सामर्थ्य को मैं (प्रियासम) = प्रेम करनेवाला बनें। यह सामर्थ्य मुझे प्रिय हो। इसके धारण से मैं (बहु रोचमान:) = अत्यन्त दीस बनूँ। (दीर्घायुत्वाय शतशारदाय) = मैं दीर्घजीवन के लिए-पूर्ण सौ वर्ष के जीवन को प्राप्त करने के लिए इस सोम को धारण करनेवाला बनूं।
भावार्थ
सोम का पालनात्मक कर्म मुझे प्रबल सामर्थ्य प्राप्त कराता है। इसके धारण से मैं दीत व दीर्घजीवन प्राप्त करता हूँ।
भाषार्थ
(इन्द्रेण) परमेश्वर्यवान् परमेश्त्र ने [कृपापूर्वक] (दत्तः) दिया, (वरुणेन) वरुण रूप आचार्य द्वारा (शिष्ट:) शिक्षा तथा अनुशासित, (सोमस्य) सेनाप्रेरक रोनाध्यक्ष का (पर्ण:) पालक, (उग्रम् सहः) उग्रबल रूप सेनापति (आ अगन्) मुझे प्राप्त हुआ है, (तम् प्रियासम्) उसे मैं अपना प्रिय जानूं, (बहु रोचमानः) बहुत प्रदीप्त होता हुआ, (दीर्घायुत्वाय) दीर्घायु के लिये, (शतशारदाय) सो शरद्-ऋतुओं के लिये [सौ वर्षों के लिये।
टिप्पणी
[वरुण है आचार्य। यथा "आचार्यो वरुणो भूत्वा" (अथर्व० ११।५।१५)। प्रियासम्=प्रिय [नामधातु]+सिप्, अट्, आकार का आगम। रोचमानः प्रदीप्त हुआ "सम्राटों का सम्राट" सेनापति की प्राप्ति के कारण प्रदीप्त हुआ, चमकता हुआ। सोमस्य=सोम है सेनाप्रेरक तथा सेनाध्यक्ष, जोकि युद्ध के लिये सेना के मुख्य भाग में आगे-आगे चलता है [षु प्रेरणे तुदादि:], देखो यजु० (१७।४०)। सेनापति द्वारा सुरक्षित "सम्राटों का सम्राट" सौ वर्षों तक जीवित रहने का अभिलाषी है। सोम और सेनापति दोनों का सम्बन्ध सेना के साथ है। सेनापति को "पर्णः" अर्थात् पालक कहा है, यह सोम का भी पालक है। सेनापति "पर्ण", गुरुकुल आश्रम में रहकर आचार्य द्वारा शिक्षित और अनुशासित हुआ है।]
विषय
‘पर्णमणि’ के रूप में प्रधान पुरुषों का वर्णन ।
भावार्थ
(सोमस्य) सोमरूप राष्ट्र का (पर्णः) पालन करने हारा विद्वद्गण (इन्द्रेण) राजा की शक्ति के साथ मिल कर (उग्रम्) बल को (आगन्) प्राप्त होता है । वह विद्वद्गुण भी (इन्द्रेण दत्तः) राजशक्ति से बहुत ऐश्वर्य आदि पाकर (वरुणेन) राष्ट्र के कष्टनिवारक या सर्वश्रेष्ठ, वरण करने योग्य शासक द्वारा (शिष्टः) अनुशासित होता है । मैं राजा भी (शतशारदाय) सौ वर्षों के (दीर्घायुत्वाय) दीर्घ जीवन को प्राप्त करने के लिये उस विद्वद्गुण सहित (बहु रोचमानः) प्रजा का बहुत प्रिय एवं सुशोभित और संमानित होता हुआ (तं) उस विद्वत्समूह का (प्रियासं) पालन पोषण करूं ।
टिप्पणी
(तृ०) ‘तं भ्रियासं’ इति ह्विटनकामितः पाठः । ‘तमहं बिभर्मि’ इति (द्वि०) ‘वरुणेन सख्यः’ इति पैप्प० सं०। (तृ०) ‘बहुरोचमानं’ इति सायणाभिमतः पाठः ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः । सोमो देवता । पुरोनुष्टुप् । त्रिष्टुप् । विराड् उरोबृहती । २-७ अनुष्टुभः । अष्टर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Makers of Men and Rashtra
Meaning
The jewel leaf of soma, life giver, blest by Indra, divine omnipotence, seasoned and enlightened by Varuna, divine wisdom and judgment, has come to me with lustrous vigour which, highly loving and brilliant with enthusiasm, I cherish for a long life of hundred years.
Translation
The Parga capsule (holding the drug) is a blessing, the most efficacious as cure, has come to me granted by the resplendent Lord (Indra), and approved by the venerable Lord(Varuņa). Full of splendour, I shall accept and take it orally’ in order to enjoy a long life. through a hundred autumns.
Translation
To attain the long life Jasting through a hundred autrenins I shining with transparence use that favorable Parnamanih which is available as the leaf of the Soma plant, is the effective vigor, given by the air, and brought up by the substance of water.
Translation
The learned guardians of the state, attain to power, in cooperationwith the king. The learned acquiring supremacy from kingly power, areruled by the king. May I, for prolonging the life of my rule for a hundredyears, loving deeply my subjects and respected by them, grant protection tothe learned folk.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(सोमस्य)। ऐश्वर्यस्य। अमृतस्य। मोक्षस्य। (पर्णः)। म० १। पालकः। पूरकः। (सहः)। बलरूपः परमेश्वरः। (उग्रम्)। उत्कटम्। (आ)। समन्तात्। सम्यक्प्रकारेण। (अगन्)। अगमत्। प्राप्तः। (इन्द्रेण)। परमैश्वर्यवता तेजस्विना पुरुषेण। (दत्तः)। प्रापितः। (वरुणेन)। श्रेष्ठेन। (शिष्टेन)। अ० २।२९।४। शिक्षितः। अनुज्ञातः। (तम्)। सोमस्य पर्णम्। (प्रियासम्)। प्रीञ् तर्पणे कान्तौ च-आशीर्लिङ्। तर्पयामि। प्रसन्नीक्रियासम्। (बहु)। अनेकविधम्। (रोचमानः)। रुच प्रीतिप्रकाशयोः-शानच्। रोचिष्णुः। प्रसन्नः। दीप्यमानः। (दीर्घायुत्वाय)। अ० १।३५।१। चिरजीवनाय। (शतशारदाय)। अ० १।३५।१। शतशरदृतुयुक्ताय ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(ইন্দ্রেণ) পরমৈশ্বর্যবান্ পরমেশ্বর [কৃপাপূর্বক] (দত্তঃ) প্রদান করেছেন, (বরুণেন) বরুণ রূপ আচার্য দ্বারা (শিষ্টঃ) শিক্ষিত এবং অনুশাসিত, (সোমস্য) সেনাপ্রেরক সেনাধ্যক্ষের (পর্ণঃ) পালক, (উগ্রম্ সহঃ) উগ্রবলরূপ সেনাপতি (আ অগন্) আমাকে প্রাপ্ত হয়েছে, (তম্ প্রিয়াসম্) তাঁকে আমি নিজের প্রিয় জানি, (বহু রোচমানঃ) অনেক প্রদীপ্ত হয়ে, (দীর্ঘায়ুত্বায়) দীর্ঘায়ুর জন্য, (শতশারদায়) শত শরৎ ঋতুর জন্য [শত বর্ষের জন্য।]
टिप्पणी
[বরুণ হলেন আচার্য যথা “আচার্যো বরুণো ভূত্বা" (অথর্ব০ ১১।৫।১৫)। প্রিয়াসম=প্রিয় [নামধাতু] +সিপ্, অট্, আকার-এর আগম। রোচমানঃ প্রদীপ্ত "সম্রাটদেরও সম্রাট" সেনাপতির প্রাপ্তির কারণে প্রদীপ্ত, চমকিত। সোমস্য= সোম হলেন সেনাপ্রেরক এবং সেনাধ্যক্ষ, যিনি যুদ্ধের জন্য সেনাবাহিনীর মুখ্য ভাগে সামনে-সামনে চলে [ষূ প্রেরণে তুদাদিঃ], দেখো যজুঃ০(১৭।৪০)। সেনাপতি দ্বারা সুরক্ষিত "সম্রাটদের সম্রাট্” শত বর্ষ পর্যন্ত জীবিত থাকার অভিলাষী। সোম এবং সেনাপতি দুজনের সম্পর্ক সেনার সাথে রয়েছে। সেনাপতিকে "পর্ণঃ" অর্থাৎ পালক বলা হয়েছে, ইনি সোম-এর পালক। সেনাপতি "পর্ণ", গুরুকুল-আশ্রমে থেকে আচার্য দ্বারা শিক্ষিত এবং অনুশাসিত হয়েছে।]
मन्त्र विषय
তেজোবলায়ুর্ধনাদিপুষ্ট্যুপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্রেণ) পরম ঐশ্বর্যশালী এবং (বরুণেন) স্বীকরণীয় শ্রেষ্ঠ, গুরু আদি দ্বারা (দত্তঃ) আমাদের প্রদত্ত এবং (শিষ্টঃ) শেখানো (সোমস্য) অমৃতের (পর্ণঃ) পূর্ণকারী পরমেশ্বর, (উগ্রম্) পরাক্রমী (সহঃ) বল [বলরূপ], (আ) সমস্ত দিক থেকে (অগন্) প্রাপ্ত হয়েছে। (বহু) বিবিধ প্রকারে (রোচমানঃ) উজ্জ্বল/দীপ্যমান/প্রসন্ন আমি (তম্) সেই [অমৃতপূরক পরমেশ্বর] কে (শতশারদায়) শত শরৎ ঋতুযুক্ত (দীর্ঘায়ুত্বায়) দীর্ঘ জীবনের/দীর্ঘায়ুর জন্য (প্রিয়াসম্) প্রসন্ন করি ॥৪॥
भावार्थ
যখন মনুষ্য বিদ্বানদের থেকে শিক্ষা প্রাপ্ত করে শুদ্ধ মুক্ত স্বভাব পরমেশ্বরের জ্ঞান দ্বারা আত্মার মধ্যে শক্তি প্রাপ্ত করে, তখন সেই ধর্মাত্মা পরম উৎসাহে পরমাত্মার আজ্ঞা পালন করে মহৎ অর্থাৎ যশস্বী জীবনের সাথে আনন্দ ভোগ করে ॥৪॥ (ইন্দ্রেণ দত্তো বরুণেন শিষ্টঃ) এই পাদ, অ০ ২।২৯।৪। এ এবং (দীর্ঘায়ুত্বায় শতশারদায়) এই পাদ, অ০ ১।৩৫।১। এ আছে॥
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