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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - राष्ट्रधारण सूक्त
    60

    सं वो॒ मनां॑सि॒ सं व्र॒ता समाकू॑तीर्नमामसि। अ॒मी ये विव्र॑ता॒ स्थन॒ तान्वः॒ सं न॑मयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । व॒: । मनां॑सि । सम् । व्र॒ता । सम् । आऽकू॑ती: । न॒मा॒म॒सि॒ । अ॒मी इति॑ । ये । विऽव्रता॑: । स्थन॑ । तान् । व॒: । सम् । न॒म॒या॒म॒सि॒ ॥८.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं वो मनांसि सं व्रता समाकूतीर्नमामसि। अमी ये विव्रता स्थन तान्वः सं नमयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । व: । मनांसि । सम् । व्रता । सम् । आऽकूती: । नमामसि । अमी इति । ये । विऽव्रता: । स्थन । तान् । व: । सम् । नमयामसि ॥८.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 8; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रीति उत्पन्न करने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्यों !] (वः) तुम्हारे (मनांसि) मनों को (सम्) ठीक रीति से, (व्रता=व्रतानि) कर्मों को (सम्) ठीक रीति से, (आकूतीः) संकल्पों को (सम्) ठीक रीति से (नमामसि=०−मः) हम झुकते हैं। (अमी ये) यह जो तुम (विव्रताः) विरुद्ध कर्मी (स्थन) हो, (तान् वः) उन तुमको (सम्) ठीक रीति से (नमयामसि=०−मः) हम झुकाते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    प्रधान पुरुष सबके उत्तम विचारों, उत्तम कर्मों और उत्तम मनोरथों को माने और धर्मपथ में विरुद्ध मतवालों को भी सहमत कर लेवे ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(सम्)। षो नाशने-कमु। स्यति अनर्थान् सम्यक्। यथाविधि। (वः)। युष्माकम्। (मनांसि)। मननानि। (चेतांसि)। (व्रता)। अ० २।३०।२। कर्माणि-निघ० २।१। (आकूतीः)। अ० ३।२।२। सङ्कल्पान्। मनोरथान्। (नमामसि)। इदन्तो मसि। पा० ७।१।४६। इति मसः स्थाने मसि। वयं नमामः। नम्रीभवामः। (अमी)। समीपस्थाः। (ये)। पुरुषाः। (विव्रताः)। विरुद्धकर्माणः। (स्थन)। अ० १।३१।२। यूयं स्थः। वर्तध्वे। (तान्)। पूर्वोक्तान्। (वः)। युष्मान् (नमयामसि)। णम नम्रीभावे। णिच, लट्। नमयामः। प्रह्वीकुर्मः। नम्रीकुर्मः ॥

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    विषय

    अविमनस्कता

    पदार्थ

    १. (व:) = तुम्हारे (मनांसि) = मनों को (सम् नमामसि) = एक विषय की ओर झुकाववाला व अविसंवादि करते हैं। (व्रता) = तुम्हारे व्रतों को भी (सम्) = अबिरोधी करते हैं। इसीप्रकार (आकृती:) = तुम्हारे संकल्पों को भी (सम्) = सन्नत करते हैं। २. (अमी) = वे (ये) = जो आप किन्हीं कारणों से (विव्रता स्थन) = विरुद्ध कर्मा हो गये, (तान् वः) = उन आपको (संनमयामसि) = राष्ट्र की उन्नतिरूप एक कार्य में लगे हुए व विरोधशून्य करते हैं।

    भावार्थ

    राष्ट्र के सब लोग अविरुद्धभाववाले होकर समान संकल्पवाले होते हुए राष्ट्रोन्नति में लगे रहें।

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    भाषार्थ

    (वः) तुम्हारे (मनांसि) मनों को (सम् नमामसि) हम परस्पर मिलाते हैं, (व्रता=व्रतानि) कर्मों को (सम्) परस्पर मिलाते हैं (आकूती:) संकल्पों को (सम्) परस्पर मिलाते हैं। (अमी) वे तुम (ये) जो (विव्रताः स्थन) परस्पर विरुद्ध कर्मोंवाले हो (तान् व:) उन तुमको (सम् नमयामसि) हम परस्पर मिलाते हैं।

    टिप्पणी

    [प्रजाजन दो विचारोंवाले हैं। कई तो राष्ट्र त्याग कर चले जाने के विचारवाले हैं। कई निज राष्ट्र में ही रहने के विचारवाले हैं। इस प्रकार वे परस्पर विरुद्ध विचारों तथा कर्मोंवाले हैं। राष्ट्र के दिव्यजन उन्हें एक मत करने के लिये यत्नवान् हैं। व्रतम् कर्मनाम (निघं० २। १)]

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    विषय

    राजा के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    अधिकारियों का प्रजाओं के प्रति उपदेश—हम लोग (वः) आप प्रजागण के (मनांसि) चित्तों को (सं नमामसि) अपने अनुकूल करते हैं । (व्रता सम्) आप लोगों के कर्मों को अपनी व्यवस्था के अनुकूल करते हैं (आकूतीः सम्) आपके विचारों को भी हम अपने अनुकूल करते हैं । और (ये) जो (अमी) ये पुरुष (विव्रताः) नियमों के प्रतिकूल कार्य करने हारे (स्थान) हों (तान्) उनको (वः) आपके सामने ही (सं नमयामसि) पुनः व्यवस्था के अनुकूल झुकावें, उनको दबावें, दण्ड दें ।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘विव्रता स्थ’ च ‘संमनंसत’ इति मै० सं । (तृ०) ‘विव्रतास्तन’ इति सायणाभिमतः पाठः । सं वो मनांसि सं व्रता समुचित्तान्याकरम्’ यजु० [ १२ । ५८ (प्र० दि०) ] सं वो मनांसि जानतां सं व्रता आकूतिः । असौ यो विमनाजनस्तं समावर्त्तयार्मास इति ऋ० १०। १९१ ॥ खिलो मन्त्रः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मित्रो विश्वेदेवा वा देवता । २, ६ जगत्यौ । ४ चतुष्पदा विराड् बृहतीगर्भा । त्रिष्टुप् । ५ अनुष्टुप् । १, ३ त्रिष्टुभौ । षडृचं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rashtra Unity

    Meaning

    O people of the world, we honour your minds in unison, we salute your discipline and commitments in unison, and we value and adore your thoughts and resolves bound in unity. And as regards those that still stay out and stand apart from your ideals, we persuade and bring them too to be with you together.

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    Subject

    Mind or Manas

    Translation

    To unity we bend your minds, your actions (vrata), and your resolves. You, who, at present, are of discordant actions, we hereby bend to complete unity.

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    Translation

    O’ Ye people of the nation; we bend together to concordance you have in your minds, we bow down to the vows and purpose you undertake unitedly and we bow down to the intentions and designs you plan together. We make bend down before you those people who are not concordant with your vows and purpose.

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    Translation

    We bend together all your minds, your vows and purposes. We bend together you who stand apart with hopes opposed to ours.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(सम्)। षो नाशने-कमु। स्यति अनर्थान् सम्यक्। यथाविधि। (वः)। युष्माकम्। (मनांसि)। मननानि। (चेतांसि)। (व्रता)। अ० २।३०।२। कर्माणि-निघ० २।१। (आकूतीः)। अ० ३।२।२। सङ्कल्पान्। मनोरथान्। (नमामसि)। इदन्तो मसि। पा० ७।१।४६। इति मसः स्थाने मसि। वयं नमामः। नम्रीभवामः। (अमी)। समीपस्थाः। (ये)। पुरुषाः। (विव्रताः)। विरुद्धकर्माणः। (स्थन)। अ० १।३१।२। यूयं स्थः। वर्तध्वे। (तान्)। पूर्वोक्तान्। (वः)। युष्मान् (नमयामसि)। णम नम्रीभावे। णिच, लट्। नमयामः। प्रह्वीकुर्मः। नम्रीकुर्मः ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (বঃ) তোমাদের (মনাংসি) মনকে (সম্ নমামসি) আমরা পরস্পর সহমত করাই, (ব্রতা=ব্রতানি) কর্ম-সমূহকে (সম্) পরস্পর সহমত/সমান করাই, (আকূতীঃ) সংকল্প-সমূহকে (সম্) পরস্পর সহমত/সমান করাই। (অভী) সেই তোমরা (যে) যে (বিব্রতাঃ স্থন) পরস্পর বিরুদ্ধ কর্মকারী (তান্ ব) সেই তোমাদের (সম্ নময়ামসি) আমরা পরস্পর সহমত করাই।

    टिप्पणी

    [প্রজারা দুরকমের বিচারযুক্ত। কেউ তো রাষ্ট্র ত্যাগ করে চলে যাওয়ার বিচার করে, কেউ নিজ রাষ্ট্রেই থাকার বিচার করে। এইভাবে তাঁরা পরস্পর বিরুদ্ধ বিচার ও কর্মকারী। রাষ্ট্রের বিদ্বানগণ তাঁদের ঐকমত্য করার জন্য যত্নবান্। ব্রতম্ কর্মনাম (নিঘং০ ২।১)।]

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    मन्त्र विषय

    প্রীতিজননায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে মনুষ্যগণ !] (বঃ) তোমাদের (মনাংসি) মনকে (সম্) সঠিক রীতিতে/রীতি দ্বারা, (ব্রতা=ব্রতানি) কর্মকে (সম্) সঠিক রীতিতে/রীতি দ্বারা, (আকূতীঃ) সংকল্পকে (সম্) সঠিক রীতিতে/রীতি দ্বারা (নমামসি=০−মঃ) আমি নত হই। (অমী যে) এই যে তোমরা (বিব্রতাঃ) বিরুদ্ধ কর্মী (স্থন) হও, (তান্ বঃ) সেই তোমাদের (সম্) সঠিক রীতিতে/রীতি দ্বারা (নময়ামসি=০−মঃ) আমি নত করাই ॥৫॥

    भावार्थ

    প্রধান পুরুষ সকলের উত্তম বিচার, উত্তম কর্ম ও উত্তম মনোরথ মান্য করুক এবং ধর্মপথের বিরুদ্ধাচরণকারীদেরও সহমত করুক ॥৫॥

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