अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 2
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - वरुणः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
102
यस्तिष्ठ॑ति॒ चर॑ति॒ यश्च॑ वञ्चति॒ यो नि॒लायं॒ चर॑ति॒ यः प्र॒तङ्क॑म्। द्वौ सं॑नि॒षद्य॒ यन्म॒न्त्रये॑ते॒ राजा॒ तद्वे॑द॒ वरु॑णस्तृ॒तीयः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । तिष्ठ॑ति । चर॑ति । य: । च॒ । वञ्च॑ति । य: । नि॒ऽलाय॑म् । चर॑ति । य: । प्र॒ऽङ्क॑म् । द्वौ । स॒म्ऽनि॒षद्य॑ । यत् । म॒न्त्रय॑ते॒ । इति॑ । राजा॑ । तत् । वे॒द॒ । वरु॑ण: । तृ॒तीय॑: ॥१६.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्तिष्ठति चरति यश्च वञ्चति यो निलायं चरति यः प्रतङ्कम्। द्वौ संनिषद्य यन्मन्त्रयेते राजा तद्वेद वरुणस्तृतीयः ॥
स्वर रहित पद पाठय: । तिष्ठति । चरति । य: । च । वञ्चति । य: । निऽलायम् । चरति । य: । प्रऽङ्कम् । द्वौ । सम्ऽनिषद्य । यत् । मन्त्रयते । इति । राजा । तत् । वेद । वरुण: । तृतीय: ॥१६.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो पुरुष (तिष्ठति) खड़ा होता है, वा (चरति) चलता है, (च) और (यः) जो पुरुष (वञ्चति) ठगी करता है, और (यः) जो (निलायन्) भीतर घुसकर, और (यः) जो (प्रतङ्कम्) बाहिर निकलकर (चरति) काम करता है और (द्वौ) दो जने (संनिषद्य) एक साथ बैठकर (यत्) जो कुछ (मन्त्रयेते) कानाफूसी करते हैं, (तृतीयः) तीसरा (राजा) राजा (वरुणः) वरणीय वा दुष्टनिवारण वरुण परमेश्वर (तत्) उसे (वेद) जानता है ॥२॥
भावार्थ
परमेश्वर प्राणियों के गुप्त से गुप्त कर्मों को सर्वथा जानता और उनका यथावत् फल देता है ॥२॥
टिप्पणी
२−(यः) पुरुषः (तिष्ठति) स्थितो भवति (चरति) गच्छति (वञ्चति) प्रतारयति। वञ्चनं करोति (निलायन्) नि+ली श्लेषे द्रावणे च-शतृ। निलीनः अदृश्यः सन् (चरति) आचरति (प्रतङ्कम्) प्र+तकि कृच्छ्रजीवने-णमुल्। प्रकृष्टगमनं बहिर्गमनं प्राप्य (द्वौ) यौ पुरुषौ (संनिषद्य) सहोपविश्य (यत्) यत्किञ्चित् कार्यम् (मन्त्रयेते) मत्रि गुप्तभाषणे। रहसि गुप्तं भाषेते (राजा) ईश्वरः (सर्वम्) (वेद) वेत्ति (वरुणः) वरणीयो दुष्टानां निवारको वा (तृतीयः) त्रेः संप्रसारणं च। पा० ५।२।५५। इति त्रि-तीय, संप्रसारणं च। त्रयाणां पूरकः ॥
विषय
सर्वज्ञ वरुण
पदार्थ
१. (य: तिष्ठति) = जो खड़ा है अथवा (चरति) = चल रहा है (च) = और (यः वञ्चतिः) = जो कुटिलगति में व्याप्त है-किसी को ठग रहा है, (य:) = जो निलाय (चरति) = छिपकर कोई कार्य कर रहा है अथवा (यः प्रतकम्) = [चरति]-औरों के जीवन को कष्टमय बनाता हुआ गति करता है [तकि कृच्छ्रजीवने] (तत्) = उस सबको (राजा वरुण:) = वह शासक, पाप-निवारक प्रभु (वेद) = जानते हैं। प्रभु से कुछ भी छिपा नहीं है। (द्वौ) = दो पुरुष [व्यक्ति] (संनिषद्य) = एकान्त में सम्यक् आसीन होकर (यत्) = जो (मन्त्रयेते) = मन्त्रणा करते हैं, वह राजा वरुण (तृतीयः) = उन दो के साथ तीसरे के रूप में होकर उस सब मन्त्रणा को जान रहा होता है। उनकी वह गुप्त-मन्त्रणा प्रभु से गुप्त नहीं होती।
भावार्थ
प्रभु हमारे सब कर्मों को देख रहे हैं। हमारी कोई भी मन्त्रणा उससे छुपी नहीं होती।
पदार्थ
शब्दार्थ = ( यः तिष्ठति ) = जो खड़ा है ( चरति ) = जो चलता है ( यः वञ्चति ) = और जो ठगता है ( यो निलायं चरति ) = जो निलीन अर्थात् अदृश्य होकर चलता है ( यः प्रतङ्कम् ) = जो कष्ट से वर्त्तता है इन सब को वरुण प्रभु जानते हैं ( द्वौ संनिषद्य ) = दो पुरुष बैठ कर ( यत् मन्त्रयेते ) = जो अच्छा वा बुरा गुप्त मन्त्रणा करते हैं ( तृतीयः वरुण: राजा ) = उनमें तीसरे वरुण श्रेष्ठ राजा प्रभु ( तद् वेद ) = अपनी सर्वज्ञता से उस सबको जानते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ = हे वरुण राजन् ! जो खड़ा वा चलता वा ठगता वा छिप कर चलता वा दुःख से जीता है, उन सब को आप जानते हैं, जो दो पुरुष मिलकर, अच्छी वा बुरी गुप्त सलाह करते हैं, उन दोनों में तीसरे होकर आप वरुण राजा उस सब को जानते हैं ।
भाषार्थ
(यः) जो कोई (तिष्ठति) खड़ा है, (चरति) या चल रहा है, (यः च) और जो (वञ्चति) धोखा देता है. (यः) जो (निलायम, वरति) छिप-छिपकर चलता है, (यः प्रतङ्कम्) जो दूसरे को कष्ट पहुंचाकर छिपे-छिपे विचरता है, (द्वौ) दो (सम् निषद्य) परस्पर मिल-बैठकर, (यत्) जो, (मन्त्रयेते) गुप्त परिभाषण करते हैं, (वरुणः राजा) जगत् का राजा वरुण, (तृतीयः) उनमें तीसरा हुआ, (तत् वेद) उसे जानता है।
टिप्पणी
[मन्त्रयेते= मत्रि गुप्तपरिभाषणे (चुरादिः)। प्रतङ्कम= तकि कृच्छ्रजीवने, यथा “तङ्कति कृच्छ्रेण जीवति” (उणा० १।५७; दयानन्दः) तथा तकि कृच्छ्रजीवने (सायण)।]
विषय
राजा और ईश्वर का शासन।
भावार्थ
वरुण राजा की गुप्त विज्ञता और सर्व व्यापकता को दर्शाते हैं। (यः) जो (तिष्ठति) खड़ा हैं, (यः चरति) और जो चलता है, (यः च वञ्चति) और जो दूसरे को ठगता है, (यः निलायं चरति) जो छुप २ कर कहीं जाता है, (यः प्रतङ्कं चरति) जो दूसरे को भारी पीड़ा देने आदि अत्याचारों को करता है, और (यत्) जो कुछ (द्वौ) दो पुरुष भी (संनिषद्य) एक साथ मिल कर, बैठकर (मन्त्रयेते) गुप्त विचार करते हैं, (राजा वरुणः) सब का शासक वरुण अर्थात् परमात्मा (तृतीयः) उन दोनों के साथ तीसरा होकर (वेद) उनकी गुप्त बातों को जानता है। राजा भी अपने गुप्तचर विभाग को ऐसा ही स्थापित करे कि प्रजा और शत्रु के कार्यों को भलीभाँति जाने।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। सत्यानृतान्वीक्षणसूक्तम्। वरुणो देवता। १ अनुष्टुप्, ५ भुरिक्। ७ जगती। ८ त्रिपदामहाबृहती। ९ विराट् नाम त्रिपाद् गायत्री, २, ४, ६ त्रिष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
All Watching Divinity
Meaning
Who does not move and stands still, who moves, who deceives, who acts under disguise or openly or crookedly, whatever two people in consult talk and decide together, all these the third, the witness, the all¬ ruling Varuna, lord of universal judgement, dispensation and retribution, knows, ever watchful.
Translation
Whoever stands still, whoever moves about, whoever deceives, whoever works in secret, whoever conducts defiantly, and what two persons sittings close by whisper to each other, all that the lustrous venerable Lord knows being the third one (present there in hiding).
Translation
If a man Stands, walks and deceives any other person, whether he does any work in his private chamber or outside it; and whatever two men sitting together whisper secretly the Imperial Ruler Varuna. (The Supreme Being) knows it being present as the third amongst them.
Translation
If a man stands or walks or deceives others, or acts covertly or overtly.When two men whisper as they sit together. God knows all this He is present as the third.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(यः) पुरुषः (तिष्ठति) स्थितो भवति (चरति) गच्छति (वञ्चति) प्रतारयति। वञ्चनं करोति (निलायन्) नि+ली श्लेषे द्रावणे च-शतृ। निलीनः अदृश्यः सन् (चरति) आचरति (प्रतङ्कम्) प्र+तकि कृच्छ्रजीवने-णमुल्। प्रकृष्टगमनं बहिर्गमनं प्राप्य (द्वौ) यौ पुरुषौ (संनिषद्य) सहोपविश्य (यत्) यत्किञ्चित् कार्यम् (मन्त्रयेते) मत्रि गुप्तभाषणे। रहसि गुप्तं भाषेते (राजा) ईश्वरः (सर्वम्) (वेद) वेत्ति (वरुणः) वरणीयो दुष्टानां निवारको वा (तृतीयः) त्रेः संप्रसारणं च। पा० ५।२।५५। इति त्रि-तीय, संप्रसारणं च। त्रयाणां पूरकः ॥
बंगाली (1)
পদার্থ
য়স্তিষ্ঠতি চরতি য়শ্চ বঞ্চতি য়ো নিলায়ং চরতি য়ঃ প্রতঙ্কম্।
দ্বৌ সংনিষদ্য য়ন্মন্ত্রয়েতে রাজা তদ্বেদ বরুণস্তৃতীয়ঃ।।১৪।।
(অথর্ব ৪।১৬।২)
পদার্থঃ (য়ঃ তিষ্ঠতি) যারা স্থির, (চরতি) যারা গতিশীল, (য়ঃ বঞ্চতিঃ) যারা বঞ্চনাকারী, (য়ো নিলায়ং চরতি) যারা নিলীন অর্থাৎ অদৃশ্যে কর্ম করে, (য়ঃ প্রতঙ্কম্) যারা কষ্টে জীবন যাপন করে, তাদের সকলকে বরুণ পরমাত্মা জানেন। (দ্বৌ সংনিষদ্য) দুই ব্যক্তি বসে (য়ৎ মন্ত্রয়েতে) ভালো বা মন্দ গুপ্ত মন্ত্রণা করে। (তৃতীয়ঃ বরুণঃ রাজা) তৃতীয় একজন শ্রেষ্ঠ বরণীয় পরমাত্মা (তৎ বেদ) সর্বজ্ঞ, তাই তাদের সকলকে জানেন ।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে বরুণ ভগবান! যারা স্থির বা চলমান, যারা বঞ্চনাকারী বা লুকিয়ে চলে বা দুঃখে জীবন যাপন করে, তাদের সকলকে তুমি জান। যেকোনো দুই ব্যক্তি মিলে যে সব ভালো বা মন্দ গুপ্ত পরামর্শ করে, এই দুইজনের পর তৃতীয় তুমি বরণীয় পরমাত্মা তাদের সকলকে জানো।।১৪।।
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