अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 9
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - वरुणः
छन्दः - त्रिपान्महाबृहती
सूक्तम् - सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
55
तैस्त्वा॒ सर्वै॑र॒भि ष्या॑मि॒ पाशै॑रसावामुष्यायणामुष्याः पुत्र। तानु॑ ते॒ सर्वा॑ननु॒संदि॑शामि ॥
स्वर सहित पद पाठतै: । त्वा॒ । सर्वै॑: । अ॒भि । स्या॒मि॒ । पाशै॑: । अ॒सौ॒ । आ॒मु॒ष्या॒य॒ण॒ । अ॒मु॒ष्या॒: । पु॒त्र॒ । तान् । ऊं॒ इति॑ । ते॒ । सर्वा॑न् । अ॒नु॒ऽसंदि॑शामि ॥१६.९॥
स्वर रहित मन्त्र
तैस्त्वा सर्वैरभि ष्यामि पाशैरसावामुष्यायणामुष्याः पुत्र। तानु ते सर्वाननुसंदिशामि ॥
स्वर रहित पद पाठतै: । त्वा । सर्वै: । अभि । स्यामि । पाशै: । असौ । आमुष्यायण । अमुष्या: । पुत्र । तान् । ऊं इति । ते । सर्वान् । अनुऽसंदिशामि ॥१६.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वरुण की सर्वव्यापकता का उपदेश।
पदार्थ
(असौ= असौ त्वम्) वह तू (आमुष्यायण) हे अमुक पिता के पुत्र ! और (अमुष्याः पुत्र) हे अमुक माता के पुत्र ! (त्वा) तुझको (तैः सर्वैः) उन सब (पाशैः) नियम बन्धनों से (अभि ष्यामि) मैं [वरुण] बाँधता हूँ, और (तान् सर्वान्) उन सबों को (उ) अवश्य (ते) तेरे लिये (अनुसंदिशामि) समीप से समझाता हूँ ॥९॥
भावार्थ
परमेश्वर ने वेद द्वारा स्पष्ट दिखा दिया है कि सत्कर्म सुख के और दुष्कर्म दुःख के मूल हैं। इस लिये मनुष्य दुष्कर्मों को छोड़कर सत्कर्म करके आनन्द भोगें ॥९॥
टिप्पणी
९−(तैः) सुप्रसिद्धैः (त्वा) त्वां मनुष्यम् (सर्वैः) (अभि ष्यामि) अभिपूर्वः षो बन्धने। बध्नामि, अहं वरुणः (पाशैः) बन्धैः (असौ) स त्वम् (आमुष्यायण) अमुष्य, अदस् इत्यस्य षष्ठी, फक्, षष्ठ्या अलुक्। हे अमुष्य−पुरुषस्य पुत्र। हे प्रख्यातकुलोद्भव (अमुष्याः) स्त्रियाम् अदस्-षष्ठी। अमुकजनन्याः (पुत्र) (तान्) (सर्वान्) पाशान् (उ) अवश्यम् (ते) तुभ्यम् (अनुसंदिशामि) दिश दाने आज्ञापने। अनु सामीप्येन विज्ञापयामि निरूपयामि ॥
विषय
शत्रुता व वारुण पाशबन्धन
पदार्थ
१. गतमन्त्र में वर्णित सब पाश शत्रुओं को ही बाँधनेवाले हों। न हम शत्रुता करें और न इनसे बद्ध हों। (असौ) = वह (अमुष्यायण) = अमुक गोत्र में उत्पत्र ! (अमुष्या: पुत्र) = अमुक माता की सन्तान! (त्वा) = तुझे (तैः) = गतमन्त्र में वर्णित (सर्वैः) = सब वारुण (पाशै:) = पाशों से (अभिष्यामि) = बाँधता हूँ। २. (उ) = निश्चय से (तान् सर्वान्) = उन सब पाशों को (ते अनु) = तेरा लक्ष्य करके (सन्दिशामि) = सन्दिष्ट करता हूँ। शत्रुता करनेवाला तू ही इन वारुण पाशों से बद्ध हो, अर्थात् तुझ शत्रुता करनेवाले को प्रभु ही उचित दण्ड देंगे।
भावार्थ
हम किसी से शत्रुता न करें। 'शत्रुता करनेवाला प्रभु के पाशों के बद्ध होगा' इस तथ्य में विश्वास रक्खें।
विशेष
प्रभु को 'सर्वव्यापक, सर्वद्रष्टा' जाननेवाला व्यक्ति पवित्र जीवनवाला बनता है। यह वारुण-पाशों का भय मानता हुआ पाप से बचता है। पवित्र जीवनवाला यह व्यक्ति 'शुक्र:' [शुच] बनता है। यही अगले तीन सूक्तों का ऋषि है। 'अपामार्ग' ओषधि के प्रयोग से यह सब दोषों को अपमार्जन करता हुआ प्रार्थना करता है-
सूचना
प्रस्तुत मन्त्र में 'अमुष्यायण' सम्बोधन यह संकेत करता है कि पिता से आनुवंशिक रोग प्राप्त हो सकता है और 'अमुष्याः पुत्र' से माता से प्राप्त होनेवाले रोग का निर्देश हो रहा है।
भाषार्थ
(असौ अमुष्यायण) वह हे अमुक गोश्रवाले१! (अमुष्याः) तथा उस माता के (पुत्र) पुत्र ! (तान्) उन (उ) निश्चय से (सर्वान्) सब पाशों को (अनु) तुझे लक्ष्य करके (सं दिशामि) में निर्दिष्ट करता हूँ, निर्दिष्ट करता हूँ। तथा (तैः सर्वै: पाशै:) उन सब देशों द्वारा (त्वा) तुझे (अभिष्यामि) मैं बांधता हूँ।
टिप्पणी
[पुत्र का परिचय माता के नाम द्वारा भी होना चाहिए यह सूचित किया है।] [१. अपत्यं पौत्रप्रभृति गोत्रम्। (अष्टा० ४।१।१६२)।]
विषय
राजा और ईश्वर का शासन।
भावार्थ
राजा दण्ड देने के समय अपराधी का नाम, माता और पिता के नाम सहित लिख कर दण्ड दे और दण्ड की आज्ञा इस प्रकार दे—हे (अमुष्याः पुत्र) अमुक माता के पुत्र ! और हे (आमुष्यायण) अमुक गोत्र और वंश के उत्पन्न पुरुष ! (त्वां) तुझको तेरे अपराध के निमित्त (तैः) उन २ (सर्वैः) सब (पाशैः) दण्डों, बन्धन-व्यवस्थाओं अर्थात् धाराओं से (अभि-स्यामि) सबके समक्ष दण्डित करता हूं और (तान्) उन (सर्वान्) सब अधिकारियों या दण्डधरों को (अनु सं-दिशामि) तदनुकूल दण्ड देने की मैं आज्ञा देता हूं। अर्थात् अपराधी की दण्डाज्ञा पर अपराधी के माता पिता का नाम, बाप दादों के वंश या गोत्र का नाम और दण्डधाराओं का उल्लेख हो और जिन अफसरों को वह दण्डार्थ सौंपा जाय उनका भी उल्लेख होना उचित है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। सत्यानृतान्वीक्षणसूक्तम्। वरुणो देवता। १ अनुष्टुप्, ५ भुरिक्। ७ जगती। ८ त्रिपदामहाबृहती। ९ विराट् नाम त्रिपाद् गायत्री, २, ४, ६ त्रिष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
All Watching Divinity
Meaning
By all these bonds of the law of Nature I bind you, son of your mother and scion of your family line, i.e., gotra, and direct that all of them be applied to you.
Translation
With all those fetters, I bind you down O so and so, of such and such family, and son of such and such mother, all of them I direct towards you.
Translation
O Worldly man! I, the Supreme Being, with all these nooses bind you who are the son of such a man and such a mother. I make you aware of all these nooses.
Translation
I bind and hold thee fast with all these punishments, thou son of such a man and such a mother. All these do I assign thee as thy portion.
Footnote
A man should always perform noble deeds, and shun vice, otherwise God will give him condign punishment.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(तैः) सुप्रसिद्धैः (त्वा) त्वां मनुष्यम् (सर्वैः) (अभि ष्यामि) अभिपूर्वः षो बन्धने। बध्नामि, अहं वरुणः (पाशैः) बन्धैः (असौ) स त्वम् (आमुष्यायण) अमुष्य, अदस् इत्यस्य षष्ठी, फक्, षष्ठ्या अलुक्। हे अमुष्य−पुरुषस्य पुत्र। हे प्रख्यातकुलोद्भव (अमुष्याः) स्त्रियाम् अदस्-षष्ठी। अमुकजनन्याः (पुत्र) (तान्) (सर्वान्) पाशान् (उ) अवश्यम् (ते) तुभ्यम् (अनुसंदिशामि) दिश दाने आज्ञापने। अनु सामीप्येन विज्ञापयामि निरूपयामि ॥
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