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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वेनः देवता - आत्मा छन्दः - उपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप् सूक्तम् - आत्मविद्या सूक्त
    147

    आपो॑ व॒त्सं ज॒नय॑न्ती॒र्गर्भ॒मग्रे॒ समै॑रयन्। तस्यो॒त जाय॑मान॒स्योल्ब॑ आसीद्धिर॒ण्ययः॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आप॑: । व॒त्सम् । ज॒नय॑न्ती: । गर्भ॑म् । अग्रे॑ । सम् । ऐ॒र॒य॒न् । तस्य॑ । उ॒त । जाय॑मानस्य । उल्ब॑: । आ॒सी॒त् । हि॒र॒ण्यय॑: । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥२.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आपो वत्सं जनयन्तीर्गर्भमग्रे समैरयन्। तस्योत जायमानस्योल्ब आसीद्धिरण्ययः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आप: । वत्सम् । जनयन्ती: । गर्भम् । अग्रे । सम् । ऐरयन् । तस्य । उत । जायमानस्य । उल्ब: । आसीत् । हिरण्यय: । कस्मै । देवाय । हविषा । विधेम ॥२.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्रे) पहिले हि पहिले (वत्सम्) निवास स्थान संसार को वा बालक रूप संसार को (जनयन्तीः=०-न्त्यः) उत्पन्न करते हुए (आपः) ज़ल धाराओं [वा तन्मात्राओं] ने (गर्भम्) बालक [रूप संसार] को (समैरयन्) यथावत् प्रकट किया, (उत) और (तस्य) उस (जायमानस्य) उत्पन्न होते हुए [बालक, संसार] का (उल्बः) जरायु [गर्भ की झिल्ली] (हिरण्ययः) तेजोमय परमात्मा (आसीत्) था, इस (कस्मै) सुखदायक प्रजापति परमेश्वर की (देवाय) दिव्य गुण के लिये (हविषा) भक्ति के साथ (विधेम) हम सेवा किया करैं ॥८॥

    भावार्थ

    जल [वा तन्मात्राओं] की उत्पादन शक्ति से यह संसार उत्पन्न हुआ है और सृष्टि का आदिकारण परमेश्वर है, जो सृष्टि को सब ओर से गर्भ की झिल्ली के समान ढके हुए है और बीज में भी उत्पादनशक्ति देनेवाला वही है-मन्त्र ६ देखो ॥८॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋ० १०।१२१।७ और यजु० २७।२५ में है ॥ मनु भगवान् ने इस प्रकार कहा है-म० १।९। तदण्डमभवद्धैमं सहस्रांशुसमप्रभम्। तस्मिञ्जज्ञे स्वयं ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः ॥ वह [बीज] सूर्य के समान प्रकाशवाला चमकीला अण्डा हो गया, उस [अण्डे] में ब्रह्मा [परमात्मा] सब लोकों का पितामह [दादा] अपने आप प्रकट हुआ [अर्थात् उसमें परमात्मा की महिमा जान पड़ी] ॥

    टिप्पणी

    ८−(आपः) जलानि। तन्मात्राः (वत्सम्) अ० ३।१२।३। वृतॄवदिवचिवसि०। उ० ३।६२। इति वद कथने यद्वा वस निवासे-सः। वसन्ति भूतान्यस्मिंस्तं संसारम्। वदति सततमिति वत्सो बालस्तं वा-इति दयानन्दभाष्ये यजु० ३३।५। (जनयन्तीः) जनयतेः शतृ। जसि पूर्वसवर्णदीर्घः। जनयन्त्यः। उत्पादयन्त्यः (गर्भम्) मूलं प्रधानम्। वीर्यम्। शिशुम् (अग्रे) प्राक्काले (सम्) सम्यक्। यथावत् (ऐरयन्) ईर गतौ ण्यन्ताल्लङ्। प्रेरिवतत्यः। प्रकाशितवत्यः (तस्य) प्रसिद्धस्य (उत) अपि च (जायमानस्य) उत्पद्यमानस्य गर्भस्य (उल्बः) उल्वादयश्च। उ० ४।९५। इति उच समवाये-वन् चस्य लत्वं गुणाभावश्च। यद्वा। बल संवरणे-वन् प्रत्ययः संप्रसारणं च। जरायुः। गर्भवेष्टनः (आसीत्) अभवत् (हिरण्ययः) मलोपः। हिरण्यमयः। तेजोमयः। अन्यद् गतम् म० ॥

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    विषय

    हिरण्यय उत्सः

    पदार्थ

    १. (आप:) = इस धुलोक ने (वसं जनयन्ती:) = सबके निवासस्थानभूत इस संसार को जन्म देने के हेतु से [वसन्ति अस्मिन् इति वत्सः] (अग्रे) = सृष्टि के आरम्भ में (गर्भम) = गर्भरूप से अवस्थित इस संसार को (समैरयन्) = प्रेरित किया-गतिमय किया। २. (उत) = और जायमानस्य उत्पन्न होते हुए (तस्य) = उस बुलोक के गर्भरूप संसार का (उल्ब:) = गर्भ-वेष्टन (हिरण्ययः आसीत्) = ज्योतिर्मय प्रभु ही थे-प्रभु ने ही इन सबको वेष्टित किया हुआ था। (कस्मै) = उस आनन्दमय (देवाय) = प्रकाशमय प्रभु के लिए (हविषा विधेम) = दानपूर्वक अदन द्वारा पूजन करें।

    भावार्थ

    युलोक से जन्म लेनेवाला यह सारा संसार प्रभु से वेष्टित था। हम उस ज्योतिर्मय प्रभु का हवि के द्वारा अर्चन करें।

    विशेष

    अगले सूक्त का ऋषि 'अथर्वा' है-प्रभु-पूजन से अपनी वृत्ति को स्थिर बनानेवाला। वह प्रयत्न करके कामादि शत्रुओं को अपने से दूर करता है।

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    भाषार्थ

    (आपः) विश्वव्यापी अप=तत्त्व ने (वत्सम्) विराट रूप का कार्य रूपी पुत्र को (जनयन्ती:) पैदा करते हुए, (अग्रे) प्रारम्भ में, (गर्भम्) गर्भीभूत [विराट् या सूर्य को] (समैरयन्) सम्यक्तया प्रेरित किया। (उत) तथा (तस्य जायमानस्य) उसके पैदा होते हुए (उल्ब:) प्रदीप्यमान गर्भ वेष्टन (आसीत्) था (हिरण्यय:) हिरण्यसदृश चमकीला, उस (कस्मै देवाय) किस देव के लिए, (हविषा) हवि द्वारा, (विधेम) हम परिचर्या अर्थात् सेवा भेंट करें।

    टिप्पणी

    [वत्स=विराट्; यथा "ततो विराडजाय़त विराजोऽअधि पूरुषः। स जातोऽअत्यरिच्यत पश्चाद् भूमिमथो पुरः" (यजुः० ३१।५)। विराट् है 'वि+राजृ (दीप्तौ)', यह विराट् अत्युष्ण और जाज्वल्यमान होता है। जिसके चारों ओर फैले प्रकाश को "उल्ब" कहा है, और हिरण्यवत् यह चमकता है। इसे ही गर्भवेष्टन द्वारा मन्त्रार्थ में दर्शाया है। इसे Photosphere कहते हैं, अर्थात् प्रकाशीय घेरा। गर्भाशयस्थ डिम्व भी आवेष्टन से घिरा रहता है, जिसे जरायु या जेर कहते हैं। यही भावना सूर्य के सम्बन्ध में जाननी चाहिए। मनुस्मृति में "विराट" को "हेमाण्ड" कहा है।]

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    विषय

    ईश्वर की महिमा।

    भावार्थ

    वे पूर्वोक्त (आपः) जगत् की परम मूलभूत तेजोमय ‘आपः’ व्यापक, धूम के समान विरल विकृत प्रकृति (वत्सं) हिरण्यगर्भ रूप महान् तेजोमय अण्ड को (जनयन्तीः) उत्पादन करती, बनाती हुई, (अग्रे) इस व्यवस्थित सृष्टि के प्रकट होने के पूर्व, (गर्भम्) तेजोमय अण्ड के बीज को (सम् ऐरयन्) उस प्रकृति ने प्राप्त किया (उत) और (तस्य जायमानस्य) जब वह हिरण्यगर्भ बन रहा था तब उसका (उल्वः) बाहरी आवरण, उसका घेरनेवाला पदार्थ भी (हिरण्ययः) तेजोमय पदार्थ का ही था। यह सब उस प्रभु की महिमा है। (कस्मै०) उस आनन्दघन परम प्रभु की हम भक्ति से उपासना करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वेन ऋषिः। आत्मा देवता। १-२ त्रिष्टुभः।१ पुरोऽनुष्टुप्। ८ उपरिष्टाज्ज्योतिः । अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Who to Worship?

    Meaning

    Which lord divine do we worship with homage of havi? Apah, living vitalities of potential Prakrti, mother powers of the universe-in-embryo, moved and animated the embryo and gave birth to the baby universe. Of that embryo and of the universe born, the first and ultimate womb was and is the one lord of golden glory. That One Lord of golden glory and immortal bliss we worship with homage of havi.

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    Translation

    In the beginning, for bearing the child the elemental waters activated the embryo. When it was born even that it had a golden foetal sheath (ulba). That divinity alone and none else we adore with our oblations.

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    Translation

    In the beginning generating the world the atoms of matter brought an embryo into being and the Cover of that spring in worldly oval was full of luster, (He who ordained these atoms); to that All-blissful Divinity we offer our humble worship.

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    Translation

    Before the creation of the world, Matter fashioning the child of the universe retained the seed of its production. God was the outer covering of the world in the process of creation. May we worship with devotion, Him, the Illuminator and Giver of happiness.

    Footnote

    Universe has been spoken of as the child, the creation of Matter. God surrounds the universe like the outer covering of the womb, before its creation.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(आपः) जलानि। तन्मात्राः (वत्सम्) अ० ३।१२।३। वृतॄवदिवचिवसि०। उ० ३।६२। इति वद कथने यद्वा वस निवासे-सः। वसन्ति भूतान्यस्मिंस्तं संसारम्। वदति सततमिति वत्सो बालस्तं वा-इति दयानन्दभाष्ये यजु० ३३।५। (जनयन्तीः) जनयतेः शतृ। जसि पूर्वसवर्णदीर्घः। जनयन्त्यः। उत्पादयन्त्यः (गर्भम्) मूलं प्रधानम्। वीर्यम्। शिशुम् (अग्रे) प्राक्काले (सम्) सम्यक्। यथावत् (ऐरयन्) ईर गतौ ण्यन्ताल्लङ्। प्रेरिवतत्यः। प्रकाशितवत्यः (तस्य) प्रसिद्धस्य (उत) अपि च (जायमानस्य) उत्पद्यमानस्य गर्भस्य (उल्बः) उल्वादयश्च। उ० ४।९५। इति उच समवाये-वन् चस्य लत्वं गुणाभावश्च। यद्वा। बल संवरणे-वन् प्रत्ययः संप्रसारणं च। जरायुः। गर्भवेष्टनः (आसीत्) अभवत् (हिरण्ययः) मलोपः। हिरण्यमयः। तेजोमयः। अन्यद् गतम् म० ॥

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