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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 32/ मन्त्र 3
    ऋषिः - ब्रह्मास्कन्दः देवता - मन्युः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सेनासंयोजन सूक्त
    42

    अ॒भीहि॑ मन्यो त॒वस॒स्तवी॑या॒न्तप॑सा यु॒जा वि ज॑हि॒ शत्रू॑न्। अ॑मित्र॒हा वृ॑त्र॒हा द॑स्यु॒हा च॒ विश्वा॒ वसू॒न्या भ॑रा॒ त्वं नः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । इ॒हि॒ । म॒न्यो॒ इति॑ । त॒वस॑: । तवी॑यान् । तप॑सा । यु॒जा । वि । ज॒हि॒ । शत्रू॑न् । अ॒मि॒त्र॒ऽहा । वृ॒त्र॒ऽहा । द॒स्यु॒ऽहा । च॒ । विश्वा॑ । वसू॑नि । आ । भ॒र॒ । त्वम् । न॒: ॥३२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभीहि मन्यो तवसस्तवीयान्तपसा युजा वि जहि शत्रून्। अमित्रहा वृत्रहा दस्युहा च विश्वा वसून्या भरा त्वं नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । इहि । मन्यो इति । तवस: । तवीयान् । तपसा । युजा । वि । जहि । शत्रून् । अमित्रऽहा । वृत्रऽहा । दस्युऽहा । च । विश्वा । वसूनि । आ । भर । त्वम् । न: ॥३२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 32; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    संग्राम में जय पाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (मन्यो) हे प्रकाशमान क्रोध (तवसः) महान् से भी (तवीयान्) अति महान् तू (अभीहि) इधर आ, (तपसा युजा) अपने ऐश्वर्य, मित्र के साथ (शत्रून्) शत्रुओं को (विजहि) मिटा दे। (च) और (अमित्रहा) पीड़ा देनेवालों का मारनेवाला, (वृत्रहा) अन्धकार नाश करनेवाला, (दस्युहा) डाकुओं का मारनेवाला (त्वम्) तू (विश्वा) सब (वसूनि) धनों को (नः) हमारे लिये (आ) सब ओर से (भर) भर दे ॥३॥

    भावार्थ

    पुरुषार्थी मनुष्य नीतिपूर्वक क्रोध से धन प्राप्त करके आनन्द भोगते हैं ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(अभीहि) अभिमुखं गच्छ (मन्यो) हे क्रोध (तवसः) तु सौत्रो धातुर्गतिवृद्धिहिंसासु-असुन्। तवसे इति महतोनामधेयम्-निरु० ५।९। तवः, इति बलनाम-निघ० २।९। महतः प्रवृद्धादपि (तवीयान्) तोतृ-ईयसुन् तृलोपः। प्रवृद्धतरः (तपसा) सामर्थ्येन (युजा) सहायेन (वि जहि) विनाशय (शत्रून्) अरीन् (अमित्रहा) अ० १।१९।२। पीडकनाशकः (वृत्रहा) शत्रुहन्ता (दस्युहा) चोरादीनां घातकः (च) (विश्वा) सर्वाणि (वसूनि) धनानि (आ) समन्तात् (भर) धारय (त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् ॥

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    विषय

    शत्रुनाश व वसु-प्राप्ति

    पदार्थ

    १.हे (मन्यो) = ज्ञान! तू (अभि इहि) = हमारी ओर आनेवाला हो-हमें प्राप्त हो। तू (तवसः तवीयान्) = बलवान् से भी बलवान् है। ज्ञान सर्वाधिक शक्तिवाला है। हे ज्ञान ! (तपसा युजा) = तपरूप साथी के साथ तू (शत्रून् विजहि) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं को नष्ट कर दे। तप से ज्ञान उत्पन्न होता है और यह ज्ञान काम आदि शत्रुओं का विध्वंस करनेवाला होता है। २. हे मन्यो! (अमित्रहा) = तू हमारे शत्रुओं का नाश करनेवाला है, (वृत्रहा) = ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं को नष्ट करता है (च) = और (दस्युहा) = तू दास्यववृत्ति को समाप्त करनेवाला है। यह ज्ञान हमारी ध्वंसक वृत्तियों को दूर करता है। हे ज्ञान ! तू (नः) = हमारे लिए (विश्वा वसूनि) = निवास के लिए आवश्यक सब तत्वों को (आभर) = प्राप्त करानेवाला हो।

    भावार्थ

    ज्ञान एक प्रबल शक्ति है। यह हमारे सब शत्रुओं को समाप्त करती है। यह ज्ञान हमें वसुओं को प्राप्त कराता है।

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    भाषार्थ

    (मन्यो) हे मन्यु ! (अभीहि) अभिमुख जा; (तवस: तवीयान्) तू प्रवृद्ध शत्रुशक्ति से भी प्रवृद्ध शक्तिमान् है, (तपसा युजा) तप और जोशरूपी सहयोगी के साथ (शत्रून् वि जहि) शत्रुओं का तू विहनन कर, विनाश कर; (अमित्रहा) अमित्रों का हनन करनेवाला, (वृत्रहा) हमारे राष्ट्र पर घेरा डालनेवाले का हनन करनेवाला, (च दस्युहा) और उपक्षयकारी का हनन करनेवाला तू है, (विश्वा वसूनि) शत्रु के सब धनों का (आभर) आहरण कर (त्वम्) तू (नः) हमारे लिए।

    टिप्पणी

    [मन्त्र २ में मन्यु को इन्द्रादिरूप में सर्वरूप कहा है। मन्त्र ३ में सर्वरूप मन्यु को विजेता कहा है। युद्ध में इन्द्रादि का अपलाप किया है, निरसन किया है। इस प्रकार युद्ध में मन्यु को प्रधानता दी है। तवस:= तु वृद्धौ (अदादिः)।]

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    विषय

    प्रभु से प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे मन्यो ! ज्ञानवान् प्रभो ! आप (तवसः तवीयान्) महान् से भी महान् हैं। आप (तपसा युजा) अपने सदा साथ वर्तमान तप, सामर्थ्य बल से (शत्रून्) शत्रुओं को (विजहि) सर्वथा नाश करो। (त्वं) आप (अमित्र-हा) शत्रुशों के नाशक ! (वृत्र-हा)। सब विघ्नों के नाशक, (दस्यु-हा) सब डाकू आदि विनाशकारी, हिंसकों के विनाश करने वाले होकर (नः) हमें (वसूनि) धनों को (आ भर) प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मास्कन्द ऋषिः। मन्युर्देवता। १ जगती। २-७ त्रिष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    High Spirit of Passion

    Meaning

    Come manyu, stronger than strength itself, one with valour and austerity of discipline, destroy the enemies, O saviour of friends and destroyer of adversaries, dispeller of darkness, eliminator of evil and negativities, and bear and bring us all wealth, honour and excellence of the world.

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    Translation

    O Wrath, O mightier than the mighty, move to the fore. Full of heat, may you destroy the enemies. O slayer of unfriendly enemies, slayer of nescience, slayer of robbers, may you bring all the riches to us. (Also Rg. X.83.3)

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    Translation

    This Manyu, the incitement is mightier than mighty, let it come to us and let it kill the foemen with its ferver, Le this slayer of enemies, killer of wickeds, destroyer of thieve and dacoits bring to us all kinds of wealth.

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    Translation

    Come hither, Perseverance! mightier than the mighty, smite, with thy fervour, for ally, our foemen. Slayer of foes, remover of impediments, slayer of violent marauders, bring thou to us all kinds of wealth and treasure.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(अभीहि) अभिमुखं गच्छ (मन्यो) हे क्रोध (तवसः) तु सौत्रो धातुर्गतिवृद्धिहिंसासु-असुन्। तवसे इति महतोनामधेयम्-निरु० ५।९। तवः, इति बलनाम-निघ० २।९। महतः प्रवृद्धादपि (तवीयान्) तोतृ-ईयसुन् तृलोपः। प्रवृद्धतरः (तपसा) सामर्थ्येन (युजा) सहायेन (वि जहि) विनाशय (शत्रून्) अरीन् (अमित्रहा) अ० १।१९।२। पीडकनाशकः (वृत्रहा) शत्रुहन्ता (दस्युहा) चोरादीनां घातकः (च) (विश्वा) सर्वाणि (वसूनि) धनानि (आ) समन्तात् (भर) धारय (त्वम्) (नः) अस्मभ्यम् ॥

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