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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 12
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्यापरिहरणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
    57

    इष्वा॒ ऋजी॑यः पततु॒ द्यावा॑पृथिवी॒ तं प्रति॑। सा तं मृ॒गमि॑व गृह्णातु कृ॒त्या कृ॑त्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इष्वा॑: । ऋजी॑य: । प॒त॒तु॒ । द्यावा॑पृथिवी॒ इति॑ । तम् । प्रति॑ । सा । तम् । मृ॒गम्ऽइ॑व । गृ॒ह्णा॒तु॒ । कृ॒त्या । कृ॒त्या॒ऽकृत॑म् । पुन॑: ॥१४.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इष्वा ऋजीयः पततु द्यावापृथिवी तं प्रति। सा तं मृगमिव गृह्णातु कृत्या कृत्याकृतं पुनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इष्वा: । ऋजीय: । पततु । द्यावापृथिवी इति । तम् । प्रति । सा । तम् । मृगम्ऽइव । गृह्णातु । कृत्या । कृत्याऽकृतम् । पुन: ॥१४.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 14; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    शत्रु के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (द्यावापृथिवी) हे सूर्य और पृथिवी ! (सा) वह (कृत्या) शत्रुनाशक सेना (तम्) चोर (प्रति) पर (इष्वाः) बाण से (ऋजीयः) अधिक सीधी (पततु) गिरे और (पुनः) फिर (तम्) उस (कृत्याकृतम्) हिंसाकारी को (मृगम् इव) आखेट पशु के समान (गृह्णातु) पकड़ लेवे ॥१२॥

    भावार्थ

    मनुष्य आकाश और पृथिवी मार्ग से प्रबल सेना द्वारा शत्रुओं को मारें ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(इष्वाः) बाणात् (ऋजीयः) ऋजु−ईयसुन्। ऋजुतरम्। अधिकसरलम् (पततु) अधः पततु (द्यावापृथिवी) हे द्यावापृथिव्योः पदार्थाः (तम्) तर्दकं चोरम् (प्रति) (सा) (तम्) पूर्वोक्तम् (मृगम्) आखेटपशुम् (इव) यथा (गृह्णातु) आदत्ताम् (कृत्या) शत्रुनाशिका सेना (कृत्याकृतम्) हिंसाकारिणम् (पुनः) पश्चात्। अवश्यम् ॥

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    विषय

    इष्वा ऋजीयः [पततु]

    पदार्थ

    १. हे (द्यावापृथिवी) = धुलोक व पृथिवीलोक ! आपके अन्दर रहनेवाले (तं प्रति) = उस व्यक्ति के प्रति (कृत्या) = यह छेदन-भेदन की क्रिया (इष्वा:) = बाण से भी (ऋजीयः) = अधिक सरल रेखा में, अर्थात् अतिशीघ्र (पततु) = जानेवाली हो, जो इस कृत्या को करनेवाला है। २. (सा) = वह (कृत्या तम्) = उस (कृत्याकृतम्) = कृत्याकृत् को (पुन:) = फिर इसप्रकार (गृह्णातु) = पकड़ ले (इव) = जैसेकि कोई शिकारी (मृगम्) = हिरन को पकड़ लेता है।

    भावार्थ

    कृत्या कृत्या करनेवाले का ही विनाश करती है।

     

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    भाषार्थ

    (इष्वाः) बाण के सदृश (ऋजीयः) अधिक सीधी, (द्यावापृथिवी) द्यौ और पृथिवी के अन्तराल में (कृत्या) सम्राट की छेदनपटु सेना (तं प्रति) उस राजा की ओर [पक्षीवत्] उड़कर (पततु) पतन करे। (सा) वह सेना (तम् कृत्याकृतम्) उस कृत्या के निर्माता को (पुनः) तत्पश्चात् (गृह्णातु) पकड़ ले (मृगम्, इव) जैसेकि मृग को पकड़ लिया जाता है ।

    टिप्पणी

    [इषु जिसपर फैकी जाए, वह सीधे रास्ते में उड़कर लक्ष्य पर जा गिरती है, सेना भी सीधे मार्ग में उड़ता हुई शत्रुराजा पर जा पतित हो। सेना के उड़ने का अभिप्राय सम्भवतः विमानों द्वारा उड़कर जाना हो। वैदिक नौविमान विद्या के सम्बन्ध में देखिए 'ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका' (ऋषि दयानन्द)]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Krtyapratiharanam

    Meaning

    O heaven and earth, let the evil deed turn and fall back upon the evil doer fast and straight like an arrow and seize him like a tiger seizing its prey.

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    Translation

    O heaven and earth, may this fatal contrivance fly straighter than an arrow towards him; may it (she) catch that applier of the fatal contrívance again just like a beast of chase..

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    Translation

    O ye ruler and subject! Let this misery fly against the misery creator straighter than any arrow. Let it seize him like a beast of chase.

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    Translation

    O King and subjects, straighter than any arrow let it fly against him, let violence seize against the violent person like a beast of prey.

    Footnote

    ‘It’ refers to the foe-destroying army. ‘Him' refers to the man who resorts to violence.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(इष्वाः) बाणात् (ऋजीयः) ऋजु−ईयसुन्। ऋजुतरम्। अधिकसरलम् (पततु) अधः पततु (द्यावापृथिवी) हे द्यावापृथिव्योः पदार्थाः (तम्) तर्दकं चोरम् (प्रति) (सा) (तम्) पूर्वोक्तम् (मृगम्) आखेटपशुम् (इव) यथा (गृह्णातु) आदत्ताम् (कृत्या) शत्रुनाशिका सेना (कृत्याकृतम्) हिंसाकारिणम् (पुनः) पश्चात्। अवश्यम् ॥

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