अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 13
ऋषिः - शुक्रः
देवता - कृत्यापरिहरणम्
छन्दः - स्वराडनुष्टुप्
सूक्तम् - कृत्यापरिहरण सूक्त
73
अ॒ग्निरि॑वैतु प्रति॒कूल॑मनु॒कूल॑मिवोद॒कम्। सु॒खो रथ॑ इव वर्ततां कृ॒त्या कृ॑त्या॒कृतं॒ पुनः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्नि:ऽइ॑व । ए॒तु॒ । प्र॒ति॒ऽकूल॑म् । अ॒नु॒कूल॑म्ऽइव । उ॒द॒कम् । सु॒ख: । रथ॑:ऽइव । व॒र्त॒ता॒म् । कृ॒त्या । कृ॒त्या॒ऽकृत॑म् । पुन॑: ॥१४.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निरिवैतु प्रतिकूलमनुकूलमिवोदकम्। सुखो रथ इव वर्ततां कृत्या कृत्याकृतं पुनः ॥
स्वर रहित पद पाठअग्नि:ऽइव । एतु । प्रतिऽकूलम् । अनुकूलम्ऽइव । उदकम् । सुख: । रथ:ऽइव । वर्तताम् । कृत्या । कृत्याऽकृतम् । पुन: ॥१४.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रु के विनाश का उपदेश।
पदार्थ
वह [सेना] (अग्निः इव) अग्नि के समान (प्रतिकूलम्) विरुद्ध गति से, और (अनुकूलम्) तट-तट से चलनेवाले (उदकम् इव) जल के समान [शीघ्र] (एतु) चले। (कृत्या) शत्रुनाशक सेना (कृत्याकृतम्) हिंसाकारी पर (पुनः) अवश्य (वर्तताम्) घूमे, (इव) जैसे (सुखः) अच्छा बना हुआ (रथः) रथ [घूमता है] ॥१३॥
भावार्थ
हमारी सेना शत्रुओं पर इस प्रकार शीघ्र धावा करे, जैसे दावाग्नि वन में, तट के भीतर-भीतर चलनेवाला जल नदी में और अच्छा बना हुआ रथ मार्ग में चलता है ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(अग्निरिव) अग्निर्यथा (एतु) गच्छतु, अस्माकं सेना (प्रतिकूलम्) यथा तथा विरुद्धपक्षम् (अनुकूलम्) तीरद्वयमनुसृत्य गमनशीलम् (उदकम्) जलम्। अन्यद् व्याख्यातम् म० ५ ॥
विषय
अग्नि: इव, उदकम् इव
पदार्थ
१. यह (कृत्या) = छेदन-भेदन की क्रिया (प्रतिकूलम्) = हमारे विरोधी को (अग्निः इव एतु) = अग्नि के समान प्राप्त हो-यह उसे जलानेवाली हो, परन्तु यही (कृत्या अनुकूलम्) = हमारे अनुकूल को (उदकम् इव) = पानी की भाँति प्राप्त हो-उसे यह विनष्ट न कर सके। २. (सुख:) = उत्तम इन्द्रियाश्वोंवाला यह शरीर (रथः इव) = जीवन-यात्रा की पूर्ति के लिए रथ के समान हो। (कृत्या) = विनाश की क्रिया (कृत्याकृतम्) = विनाशक को ही (पुनः) = फिर (वर्तताम्) = प्राप्त हो। यह उसी का विनाश करनेवाली बने।
भावार्थ
कृत्या प्रतिकूल व्यक्ति को अग्नि की भाँति प्राप्त हो, अनुकूल व्यक्तियों के लिए यह जल के समान हो जाए। इन कृत्याओं से बचे रहकर हम अपने शरीर-रथ को उत्तम इन्द्रियाश्वोंवाला बनाएँ।
विशेष
सब प्रकार की हिंसा की भावनाओं को दूर करनेवाला पुरुष विश्वामित्र है। यही अगले दो सूक्तों का ऋषि है।
भाषार्थ
(कृत्या) सम्राट् [भन्त्र ७, इन्द्र] की छेदनपटु सेना, (अग्निः इव) अग्नि की तरह (प्रतिकूलम्) प्रतिकूल होकर [जलाती हुई] (ऐतु) शत्रु की ओर आए, या (उदकम् इव) जल की तरह (अनुकुलम्) अनुकूल होकर [शान्ति प्रदान करती हुई आए]। सेना (सुख: रथः इव) सुखदायक रथ की तरह (कृत्याकृतम्) हिंस्रसेना के निर्माता की ओर (वर्तताम्) बर्ताव करे, (पुनः) शत्रुराजा जब अनुकूल हो जाए तत्पश्चात् ।
टिप्पणी
[मन्त्र में दो विकल्प दिये हैं। शत्रुराजा यदि प्रतिकूल रूप में बर्ताव करे तो सम्राट् की सेना जलाती हुई उसके पास पहुँचे। यदि शत्रुराजा अनुकूल रूप में बर्ताव करे तो उसकी प्रजा को जलवत् शान्ति प्रदान करती हुई उसके पास पहुँचे, जैसेकि सुखदायक रथ सुख प्रदान करता है उसी प्रकार उसकी प्रजा को सुख प्रदान करती हुई पहुँचे।]
विषय
दुष्टों के विनाश के उपाय।
भावार्थ
(कृत्या) वही पीड़ा जो अपराधी ने औरों को दी है वह (पुनः कृत्या-कृतम्) फिर उस पीड़ाकारी पर ऐसे प्रतिकूल होकर पड़े जैसे (अग्निः इव प्रतिकूलम्) आग प्राणियों को सदा प्रतिकूल होकर कष्टदायी होता है। और राष्ट्र के लिये (अनुकूलम् उदकम् इव) अनुकूल जल के समान सुखदायी हो (रथ इव सुखः वर्तताम्) अपराधी को अपराध का दण्ड मिलने पर वह सब त्रासकारी पुरुष भी रथ के समान सब के बीच में सुखकारी पुरुष के समान होकर रहे।
इंग्लिश (4)
Subject
Krtyapratiharanam
Meaning
Let the deed turn and come back upon the doer like a smoothly moving chariot, punitive like fire to the evil doer, and favourable and cool like water to the person who does good.
Translation
Like fire towards an adversary, and like water towards a favourably inclined friend, like a pleasure-giving chariot, may the fatal contrivance go back to the applier of the fatal contrivance again.
Translation
Let this misery go against the misery creator like flame which goes contrary and like the water which follows its course and let it roll back upon man of its source like a well-naved chariot.
Translation
Let it go against the foe, contrary like fame, like water following its course. Let it roll back upon the violent person, as a car rolls freely in an open space.
Footnote
‘It’ refers to the foe-destroying army.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(अग्निरिव) अग्निर्यथा (एतु) गच्छतु, अस्माकं सेना (प्रतिकूलम्) यथा तथा विरुद्धपक्षम् (अनुकूलम्) तीरद्वयमनुसृत्य गमनशीलम् (उदकम्) जलम्। अन्यद् व्याख्यातम् म० ५ ॥
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